वास्तुशास्त्र
रसोई और शयन कक्ष में न बनाए पूजाघर
पूजाघर रसोई और शयन कक्ष में नहीं होना चाहिए। वास्तुशास्त्र में इसकी मनाही है। ऐसा होने से सांसारिक सुख में असर पड़ता है। वास्तुशास्त्र पूजा घर के संदर्भ विशेष निर्देश दिए हैं इनका पालन करके आप सांसारिक सुख और आध्यात्मिक लाभ दोनों साथ-साथ प्राप्त कर सकते हैं। अगर आप अपने घर में पूजाघर बनाना चाहते हैं तो इन बातों का विशेष ध्यान रखें-
1- पूजाघर रसोई और शयन कक्ष में नहीं होना चाहिए।
2- पूजाघर में पीला या सफेद रंग करवाना ठीक रहता है।
3- पूजा स्थल पर पितृ-मृतकों की तस्वीर न रखें।
4-बहुमंजिले मकान में पूजा मंदिर निर्माण भूतल पर करें।
5-पूजाघर के निकट तिजोरी बिल्कुल न रखें।
6-पूजागृह शौचालय से सटा अथवा उसके सामने न हो।
7-आराधना स्थल में देवी-देवताओं की प्रतिमा या मूर्तिया एक-दूसरे के आमने-सामने होने चाहिए।
8-सीढि़यों के नीचे पूजा स्थल न बनाएं। अन्यथा पूजा निष्फल हो जाती है।
9-पूजाघर में सदैव प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए।
10-पूजाघर के ऊपर पिरामिड होना चाहिए साथ ही ध्यान रखना चाहिए कि मंदिर के ऊपर कोई सामान नहीं रखा हो।
निश्चित आधार नहीं है दरवाजों की संख्या का
वास्तु के सिद्धांतों का परिपालन करते हुए बनाया गया मकान, उसमें निवास करने वालों के जीवन की खुशहाली, उन्नति एवं समृद्धि का पतीक होता है। मकान में दरवाजे अहम भूमिका निभाते हैं। साधारणतया आम इंसान मकान में दरवाजों की संख्या के बारे में भ्रमित रहता है। क्योंकि वास्तु विषय की लगभग सभी पुस्तकों में दरवाजों की संख्या के बारे में विवरण दिया गया है कि मकान में दरवाजे 2, 4, 6, 8, 12, 16, 18, 22 इत्यादि की संख्या में होने चाहिए। जबकि व्यवहारिकता में दरवाजों की संख्या का कोई औचित्य व आधार ही नहीं है। मकान में दरवाजे आवश्यकता के अनुसार, वास्तु द्वारा निर्देशित उच्च स्थान पर लगाने से इससे शुभ फल पाप्त होते हैं। लेकिन इसके विपरीत नीच स्थल पर दरवाजे लगाने से इसके अशुभ परिणाम ही पाप्त होंगे।
उच्च स्थान पर दरवाजे लगाते समय यह भी ध्यान में रखा जाना अत्ति आवश्यक होता है कि मुख्य पवेश द्वार के सामने एक ओर दरवाजा लगाने पर ही यह दरवाजे शुभ फलदायक साबित होंगे। मुख्य द्वार के सामने एक ओर दरवाजा नहीं लगाने की स्थिति में एक खिड़की अवश्य ही लगानी चाहिए। ताकि मुख्य द्वार से आने वाली ऊर्जा मकान में पवेश कर सके। अन्यथा दरवाजे के सामने दरवाजा या खिड़की नहीं होने की स्थिति में यह ऊर्जा परिवर्तित हो जायेगी।
मकान के चारों तरफ वास्तु के सिद्धांत के अनुपात में खुली जगह छोड़ने का तात्पर्य भी यही है कि दरवाजों के माध्यम से इन ऊर्जा शक्तियों का मकान में निर्विघ्न पवेश हो सके। आमने-सामने दो दरवाजे ही रखने से अभीपाय यह है कि आमने-सामने दो से ज्यादा दरवाजे होने पर मकान में पवेश होने वाली सकारात्मक ऊर्जा शक्ति में न्यूनता आती है। चित्र संख्या 1 में निर्देशित उच्च (शुभ) तथा चित्र संख्या 2 में निर्देशित नीच (अशुभ) स्थान पर दरवाजे लगाने से पाप्त होने वाले परिणाम :-
दिशा |
श्रेणी |
परिणाम |
पूर्व |
उच्च |
शुभ, उच्च विचार |
पूर्व-ईशान |
उच्च |
सर्वश्रेष्ठ, शुभ व सौभाग्यदायक |
पूर्व-आग्नेय |
नीच |
वैचारिक मतभेद, चोरी, पुत्रों के लिये कष्टकारी |
पश्चिम-वायव्य |
उच्च |
शुभदायक |
पश्चिम-नैऋत |
नीच |
आर्थिक स्थिति तथा घर के मुखिया के लिये अशुभ |
उत्तर-ईशान |
उच्च |
आर्थिक फलदायक, श्रेष्ठ |
उत्तर-वायव्य |
नीच |
धन हानि, चंचल स्वभाव, तनाव में वृद्धि |
दक्षिण-आग्नेय |
उच्च |
अर्थ लाभ, स्वास्थदायक |
दक्षिण-नैऋत |
नीच |
आर्थिक विनाशक, गृहणी की स्थिति कष्टपद |
दक्षिण एवं पश्चिम |
उच्च |
शुभफलदायक |
उत्तर |
उच्च |
सुखदायक |
वास्तु दोष निवारण के कुछ सरल उपाय—
कभी-कभी दोषों का निवारण वास्तुशास्त्रीय ढंग से करना कठिन हो जाता है। ऐसे में दिनचर्या के कुछ सामान्य नियमों का पालन करते हुए निम्न सरल उपाय कर इनका निवारण किया जा सकता है।
- पूजा घर पूर्व-उत्तर में होना चाहिए तथा पूजा यथासंभव प्रातः 06 से 08 बजे के बीच हो जानी चाहिए।
-पूजा भूमि पर ऊनी आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ कर ही करनी चाहिए।
-पूजा घर के पास उत्तर-पूर्व में सदैव जल का एक कलश भरकर रखना चाहिए। इससे घर में सपन्नता आती है।
-मकान के उत्तर पूर्व कोने को हमेशा खाली रखना चाहिए।
-घर में कहीं भी झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखना चाहिए। उसे पैर नहीं लगना चाहिए, न ही लांघा जाना चाहिए, अन्यथा घर में बरकत और धनागम के स्रोतों में वृद्धि नहीं होगी।
-पूजाघर में तीन गणेशों की पूजा नहीं होनी चाहिए, अन्यथा घर में अशांति उत्पन्न हो सकती है।
-घर में दरवाजे अपने आप खुलने व बंद होने वाले नहीं होने चाहिए। ऐसे दरवाजे अज्ञात भय पैदा करते हैं।
-दरवाजे खोलते तथा बंद करते समय सावधानी बरतें ताकि कर्कश आवाज नहीं हो। इससे घर में कलह होता है।
-खिड़कियां खोलकर रखें, ताकि घर में रोशनी आती रहे।
-घर के मुख्य द्वार पर गणपति को चढ़ाए गए सिंदूर से दायीं तरफ स्वास्तिक बनाएं।
- घर में जूते-चप्पल इधर-उधर बिखरे हुए या उल्टे पड़े हुए नहीं हों, अन्यथा घर में अशांति होगी।
-सामान्य स्थिति में संध्या के समय सोएँ नहीं ।
-रात को सोने से पूर्व कुछ समय अपने इष्टदेव का ध्यान जरूर करें।
-घर में पढ़ने वाले बच्चों का मुंह पूर्व तथा पढ़ाने वाले का उत्तर की ओर होना चाहिए।
-घर के मध्य भाग में जूठे बर्तन साफ करने का स्थान नहीं बनाना चाहिए।
-उत्तर-पूर्वी कोने को वायु प्रवेश हेतु खुला रखें, इससे मन और शरीर में ऊर्जा का संचार होगा।
-अचल संपत्ति की सुरक्षा तथा परिवार की समृद्धि के लिए शौचालय, स्नानागार आदि दक्षिण-पश्चिम के कोने में बनाएं।
-भोजन बनाते समय पहली रोटी अग्निदेव अर्पित करें या गाय खिलाएं, धनागम के स्रोत बढ़ेंगे।
-घर के अहाते में कंटीले या जहरीले पेड़ जैसे बबूल, खेजड़ी आदि नहीं होने चाहिए, अन्यथा असुरक्षा का भय बना रहेगा।
-घर में या घर के बाहर नाली में पानी जमा नहीं रहने दें।
-घर में मकड़ी का जाल नहीं लगने दें, अन्यथा धन की हानि होगी। |