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:: सम्पादकीय ::

 

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उम्मीद की किरण की तरह है चौटाला पिता पुत्र को मिली सज़ा
आज़ादी के बाद से ही देश की अवाम को इस बात का मलाल था की राजनीतिक पहुँच वालों को कितना ही बढ़ा अपराध करने पर भी जेल नहीं होती है और एक आम आदमी के खिलाफ ट्रेफिक नियम तोड़ने पर भी चलान बना दिया जाता है। लेकिन हाल ही में सीबीआई की विशेष कोर्ट ने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला को 10-10 साल कैद की सजा सुना कर जो संदेश दिया है, उसका न केवल दूरगामी महत्व है बल्कि देश की जनता को राहत पहुँचाने वाला निर्णय भी है। अदालत ने साफ कर दिया की आरोपी चाहे कितना भी ताकतवर क्यों न हो, हमारा न्यायिक तंत्र उसे बचकर निकलने नहीं देगा। इस फैसले से यह धारणा एक तरह से टूटी है कि हमारा सिस्टम राजनेताओं को सजा दिलाने में नाकाम है। यह पहला मौका है जब किसी पूर्व मुख्यमंत्री को इतनी बड़ी सजा दी गई है। जो लोग देश में फैले भ्रष्टाचार से हताश हो चुके हैं, उनके भीतर इस फैसले से फिर से विश्वास बहाल होगा। एक तरह से देखा जाए तो इस फैसले से जाहिर होता है कि हमारे सिस्टम में अभी उम्मीद बची हुई है। जरूरत है तो केवल इसे और धार देने की। भले ही चौटाला पिता-पुत्र इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देंगे। आगे इस फैसले का स्वरूप बदल सकता है, लेकिन यह तय हो गया है कि न्यायिक तंत्र को चकमा देकर निकलना किसी के लिए भी आसान नहीं है। बता दें कि पिता-पुत्र ने सत्ता में रहते हुए टीचरों की भर्ती में जमकर फर्जीवाड़ा किया। 1999-2000 में हरियाणा में जूनियर बेसिक ट्रेनिंग टीचरों के लिए 3206 पद निकाले गए। लेकिन अधिकारियों पर दबाव बनाकर फर्जी इंटरव्यू कराए गए और मनमाने तरीके से पैसे लेकर टीचरों की नियुक्तियां की गईं। इस तरह अनेक अयोग्य लोग भर्ती कर लिए गए। यह प्रकरण बताता है कि हमारे सिस्टम में भ्रष्टाचार ने किस तरह अपनी जड़ें जमाई हैं। अब चौटाला के लिए आगे का सफर कठिन हो गया है। अगर उनकी सजा पर किसी ऊपरी अदालत ने रोक नहीं लगाई, तो वह आगे चुनाव नहीं लड़ पाएंगे क्योंकि रिप्रजेंटेशन ऑफ दि पीपल एक्ट के तहत दो साल से ज्यादा की कैद की सजा पाने वाला व्यक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराया जाता है। इस फैसले के बाद अब देश की नजर राजनेताओं के भ्रष्टाचार से जुड़े दूसरे मामलों पर भी रहेगी। उन मामलों में भी तत्काल फैसले किए जाने की जरूरत है। भारत में राजनेताओं से जुड़े हाई प्रोफाइल केस में अक्सर ये देखा गया है कि आरोपियों को बचाने में राजनेताओं के साथ साथ नौकरशाहों की एक पूरी लॉबी लग जाती है। इसका सबसे ज़्यादा नुकसान देश की क़ानून व्यवस्था को ही होता है। बहरहाल पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला को जेल भेजने की सज़ा ने उम्मीद की एक किरण जगाई है की देश में कोई कितना ही बढ़ा दबंग क्यों न हो वो क़ानून से नहीं बच सकता। इस प्रकरण से एक संदेश यह भी जा रहा है की भ्रष्टाचारियों की खैर नहीं। हालाँकि यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि हमारी देश की अदालतें और कितने दबंगों को जेल की हवा खिला सकती हैं।

टीम अन्ना के आंदोलन पर उठे सवाल
भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल बिल को लेकर वर्ष 2011 में शुरू हुए अन्ना हज़ारे व उनकी टीम को शुरुआती दौर में देश व विदेश से जो बड़ी संख्या में समर्थन मिला था वो इस बार देखने को नहीं मिल रहा। जंतर-मंतर पर टीम अन्ना के समर्थन में दिखाई दे रही कम भीड़ कई सवाल उठा रही है। यह भी पता नही कि टीम अन्ना का अनशन इस बार कितने दिन चलेगा। टीम अन्ना भी लोगों की बेरुखी से परेशान है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि वे कम भीड़ को लेकर परेशान नहीं हैं। भीड़ की कमी से जूझ रही अन्ना टीम को बाबा रामदेव से थोड़ी बहुत रहट मिली। बाबा रामदेव के अनशन स्थल पर पहुँचने के बाद ही थोड़ी बहुत भीड़ जमा हुई। सवाल यह है कि आख़िर अचानक ऐसा क्या हो गया की ज़ोर शोर से शुरू हुआ भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आंदोलन ठंडा पड़ने लगा। क्या आंदोलन में दम नहीं रहा या फिर लोगों का विश्वास ही टीम अन्ना से उठ गया है। ऐसे कई सवाल हैं जो जेहन में घूमने लगे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि टीम अन्ना का या आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ है या कांग्रेस के खिलाफ। यही एक सवाल है जो टीम अन्ना को कटघरे में खड़ा कर रहा है। टीम अन्ना का शुरू से ही यह कहना रहा है कि उनका आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ है। लेकिन बाद में उनका आंदोलन पूरी तरह कांग्रेस व केंद्र की यूपीए सरकार पर केंद्रित हो गया। अगर बारीकी से विश्लेषण करें तो टीम अन्ना ने जीतने भी मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाएँ हैं वे सब या तो कांग्रेसी हैं या फिर कांग्रेस समर्थक पार्टी के मंत्री हैं। इसका सीधा मतलब यह निकल रहा है कि भ्रष्टाचार में केवल कांग्रेसी ही लिप्त हैं बाकी अन्य राजनीतिक पार्टियाँ मसलन भाजपा, सपा, बसपा, वामपंथी, अन्ना द्रमुक आदि बहुत ईमानदार हैं। टीम अन्ना ने इस बार जंतर मंतर स्थित अनशन स्थल पर जितने भी भ्रष्ट मंत्रियों की तस्वीरें लगाई हैं उनमें भी केवल कांग्रेसी हैं या फिर कांग्रेस समर्थक पार्टी के नेताओं की हीं तस्वीरें दिखाई दे रही हैं। अन्य राजनीतिक पार्टियाँ के भ्रष्ट मंत्रियों के एक भी तस्वीर नहीं है। क्या यह संभव है की भ्रष्टाचार में केवल केंद्र की कांग्रेस सरकार ही दोषी है अन्य राज्य सरकारें पाक साफ हैं। देखा जाए तो हर राजनीतिक पार्टी व राज्य सरकारें कहीं न कहीं भ्रष्टाचार के लिए दोषी हैं। लेकिन टीम अन्ना का केवल कांग्रेस व केंद्र सरकार को टारगेट बनाकर आंदोलन करना कहीं न कहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में उनकी ईमानदारी पर सवाल उठता है।
पिछले कुछ समय में ही यह आंदोलन टीम अन्ना बनाम भ्रष्टाचार नहीं बल्कि टीम अन्ना बनाम कांग्रेस हो गया है। यही बजाह है की भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल बिल को लेकर जिन कांग्रेसियों ने भी टीम अन्ना का साथ दिया था ख़ासकर युवाओं ने वो इस बार गायब हैं। यही वजह है कि इस बार टीम अन्ना का आंदोलन भीड़ की कमी से जूझ रहा है। इस बार अन्ना के समर्थन में गांवों से तो लोग आ रहे हैं, लेकिन यूथ गायब है। कुल मिलाकर भीड़ उम्मीद से बहुत कम है। लोगों का पुराना उत्साह भी इस बार नदारद है। टीम अन्ना को उम्मीद के मुताबिक समर्थन न मिलने का असर चंदे पर भी दिख रहा है। टीम अन्ना को दो दिन में महज तीन लाख का चंदा मिला है। पिछली बार इससे कई गुना ज्यादा चंदा इकट्ठा हो गया था। भीड़ क्यों नहीं आ रही, इस पर टीम के अंदर काफी माथापच्ची हो रही है। लेकिन यह समझ में नहीं आ रहा है कि पब्लिक का समर्थन कैसे बढ़ाया जाए। सरकार और सिस्टम पर कई तरह के अटैक के बीच अन्ना हजारे द्वारा सीधे किसी का नाम लेने से बचना, यह सब मतभेद का मेसेज दे रहा है।
उधर बाबा रामदेव का कहना है कि अगर कोई आंदोलन बड़े बदलाव की बात करता है तो उसे कम से कम सवा करोड़ लोगों का समर्थन हासिल होना चाहिए। रामदेव का दावा है कि 9 अगस्त से शुरू होने जा रहे उनके आंदोलन का हश्र ऐसा नहीं होगा। उन्होंने कहा कि उनके एक करोड़ से ज्यादा समर्पित कार्यकर्ता हैं। लेकिन क्या सिर्फ़ उनके समर्पित कार्यकर्ता देश की आवाज़ हैं। इसका फ़ैसला भी 9 अगस्त को हो जाएगा। टीम अन्ना के कुछ ज़िम्मेदार लोगों ने जिस तरह सांसदों के खिलाफ अपमानजनक बयान दिए थे उसने भी एक तरह से आंदोलन को नुकसान ही पहुँचाया है। लोक सभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने टीम अन्ना के बयानों की आलोचना कर कहा था कि संसद तथा सांसदों की गरिमा के खिलाफ कुछ भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस बीच टीम अन्ना के टीम केजरीवाल बनने, आंदोलन के लिए हवाला के जरिए पैसा आने, भाजपा का समर्थन मिलने, टीम अन्ना में फूट पड़ने आदि जैसी खबरों ने भी जनता का विश्वास आंदोलन की ओर से कम किया है।
भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू का कहना कि करप्शन विरोधी मुहिम चलाने वाले अन्ना हजारे में साइंटिफिक आइडिया की कमी है जो कहीं न कहीं आंदोलन पर सवाल खड़े करता है। उनका कहना सही साबित हुआ कि 'भारत माता की जय' और 'इंकलाब जिंदाबाद' चिल्लाकर करप्शन के खिलाफ संघर्ष नहीं कर सकते। लोग 10-15 दिनों तक चिल्लाते रहेंगे और फिर अपने घर चले जाएँगे, और हुआ भी यही। यही वजह है कि अन्ना हजारे को पहले जितना समर्थन मिला था वो इस बार नही मिला। हालाँकि अभी भी समय गुजरा नही है भ्रष्टाचार अभी भी देश में है और आने वाले कई सालों तक इसी तरह देश को बर्बाद करता रहेगा। ज़रूरत सिर्फ़ टीम अन्ना को दोबारा मंथन करने की है।


देवी को पूजने वाले देश में औरतों की आबरू सुरक्षित नहीं
भारत भी अजीब देश है। कहते हैं न कि 'इट हैपन्स ओन्ली इन इंडिया'। यह जुमला भारत पर बुल्कुल सही बैठता है। एक तरफ तो हम देवी की पूजा करते हैं, लड़कियों को दुर्गा का अवतार बताते हैं और दूसरी तरफ उनकी कोख में ही हत्या कर देते हैं। एक तरह हम विदेशी संस्कृति को भला बुरा कहते हैं कि वहाँ लड़कियाँ कम कपड़ों में घूमती है और दूसरी तरफ मौका मिलने पर हम बीच बाज़ार में औरत के कपड़े फाड़ने में ज़रा भी शर्म महसूस नहीं करते। दो दिन पहले गुवाहाटी में करीब 15 मनचलों द्वारा एक लड़की से सरेआम छेड़छाड़ करने, उसके बाल नोचने, सड़क पर घसीटने और कपड़े फाड़ने की जो घटना घटी उसने संस्कृति की दुहाई देने वाले इस देश का सिर पूरी दुनिया के सामने झुका दिया। यहाँ करीब 15 लड़कों ने एक लड़की से करीब आधे घंटे तक छेड़छाड़ की और उसके कपड़े फाड़ डाले। लड़की सड़क पर मदद की गुहार लगाती रही लेकिन उसकी मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। लड़की मिन्नतें करते हुए कहती रही कि मुझे घर जाने दो, तुम्हारी भी बहनें हैं, लेकिन लड़कों ने उसे नहीं बख्शा। सोमवार को घटी इस शर्मनाक घटना में पुलिस ने 3 दिन बाद तब कार्रवाई की, जब इस घटना का विडियो यूट्यूब पर अपलोड कर दिया गया। पुलिस ने 4 लड़कों को गिरफ्तार कर लिया है और 12 लड़कों की पहचान कर ली है। इस पूरे मामले में सबसे ज़्यादा झटका देश को डीजीपी के बयान से लगा। पुलिस का बचाव करते हुए डीजीपी ने ऐसा बयान दिया है जिससे उनकी संवेदनशीलता पर सवाल खड़े हो गए हैं। उन्होंने कहा है कि 'पुलिस कोई एटीएम मशीन नहीं है कि मशीन में कार्ड डालते ही मौके पर पहुंच जाए।' उनके इस बयान ने पहले से ही सकते में पड़े देश को और हैरत में डाल दिया है। हैरान करने वाली बात तो यह है कि महिलाएं सड़क ही नहीं बल्कि भगवान के दरबार में भी सुरक्षित नहीं रह गई हैं। बिहार के बेगुसराय जिले में मां दुर्गा की पूजा करने पर अड़ी दलित महिला को कुछ दबंगों ने जमकर पीटा। पहले तो दबंगों ने उसे मंदिर में घुसने से रोका और पूजा करने से मना किया, लेकिन जब महिला मंदिर में घुसने की कोशिश करने लगी तो सरेआम पिटाई शुरू कर दी। यही नही हमारे देश में तो महिलाएँ पुलिस थाने तक में भी सुरक्षित नहीं रह गई हैं। दो दिन पहले ही लखनऊ के माल थाने में बुधवार को दरोगा ने एक महिला से रेप की कोशिश की। थाने में बैठे रक्षक ही जब भक्षक बन जाए तो जनता किसके पास अपनी आबरू बचाने जाए। एक अन्य मामले में नज़र डालिए, रतनपुर के पास खूंटाघाट में चार हथियारबंद युवकों ने यहां घूमने के लिए आए एक प्रेमी जोड़े को पकड़ लिया और फिर युवक के सामने ही प्रेमिका के सारे कपड़े उतरवा दिए। हैवानियत की हदें पार करते हुए इन बदमाशों ने दोनों की न्यूड परेड भी कराई और इसका एमएमएस बना लिया। अब यह एमएमएस दर्जनों लोगों तक पहुंच चुका है।
महिलाओं के खिलाफ लगातार हो रहे अपराधों ने देश को एक बार फिर सोचने को मजबूर कर दिया है कि आख़िर यह सब कब तक चलेगा। आज पूरे समाज के सामने यह सवाल उठकर आ रहा है कि क्या देवी की पूजा करने वाले इस देश में लड़कियाँ व महिलाएँ कभी सुरक्षित रह पाएँगी ? अगर हम अन्य राज्यों को छोड़ दें और केवल मध्यप्रदेश पर ही नज़र दौड़ाएँ तो पाएँगे कि मध्य प्रदेश में हर दिन औसतन 10 महिलाएं बलात्कार की शिकार बनती हैं। पिछले तीन साल के दौरान राज्य में कुल 9926 बलात्कार की घटनाएं दर्ज की गईं। 2009 में 3,071, 2010 में 3,220 और 2011 में बलात्कार के 3381 मामले सामने आए। प्रदेश महिलाओं के रहने के लिए किस हद तक खतरनाक जगह बन चुका है उसका अंदाज़ा इन आंकड़ों से लगाया जा सकता है। बहरहाल अब समय आ गया है कि महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों को गंभीरता से लेते हुए कड़ी करवाही का प्रावधान किया जाए। वरना वो दिन दूर नहीं जब लोगों का धैर्य ज़वाब दे जाएगा और क़ानून से लोगों का भरोसा उठ जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो यह लोकतांत्रिक देश कब अराजकता की चपेट में आ जाएगा हमें पता ही नहीं चलेगा।