उदयपुर को मिलेगी नई पहचान
पर्यटन विकास के लिए कलेक्टर की पहल
उदयपुर,13अगस्त/विश्वविख्यात मेवाड़ धरा की नैसर्गिक सम्पदा को विश्व पर्यटन मानचित्र पर स्थापित करने के लिए जिला कलेक्टर रोहित गुप्ता ने कुछ नवीन योजनाओ को मूर्त रूप प्रदान करने की पहल की है। इस सम्बन्ध में सोमवार को एक महत्वपूर्ण बैठक में कई निर्णय होंगे।
कलेक्टर गुप्ता ने बताया कि जिले में एशिया की सबसे दूसरी बड़ी मीठे पानी की झील जयसमंद की अथाह जलराशि का पर्यटन दृष्टि से उपयोग करने के लिए इसमें फ्लोटिंग मरीना चलाने की योजना बनाई गई है। फ्लोटिंग मरीना एक प्रकार का हाउसबोट है जिसमे बैठकर पर्यटक सघन हरीतिमा और पहाड़ों के बीच निर्मल जल पर बोटिंग का आनंद उठा सकेंगे।
इसी प्रकार, शहर की शान फतहसागर में अब बोटिंग के साथ ही एडवेंचर स्पोर्ट्स को भी शुरू किये जाने की योजना है। इसमें पर्यटक और शहरवासी पानी की लहरों पर विभिन्न प्रकार की क्रीडाओं का लुत्फ उठा सकेंगे। इन दोनों झीलो पर पर्यटन विकास के नवीन और रोचक प्रस्तावों पर विचार विमर्श के लिए सोमवार को
नगर निगम और पर्यटन विभाग के साथ अन्य सम्बद्ध विभागों के अधिकारियो की बैठक रखी गई है जिसमे कई नए प्रस्तावों पर मुहर लगेगी तथा उदयपुरवासियो को कई सौगाते मिलेंगी ।
जग मंदिर
26 Dec. 2012
जग मंदिर राजस्थान राज्य के उदयपुर शहर का मुख्य पर्यटन स्थलों से एक है और इस शहर का सबसे आकर्षक स्थल माना जाता है। जगमंदिर के बाहर तालाब के किनारे पत्थर के हाथियों की एक पंक्ति बनी हुई है। एक गुंबदाकार छत वाला महल जगमंदिर के मुख्य स्थान पर है, जिसे गोल महल कहते हैं। शाहजादा ख़ुर्रम (शाहजहाँ) अपने पिता जहाँगीर से विद्रोह कर कुछ समय के लिए यहीं गोल महल में रहा था। कुछ लोगों के अनुसार यह कहा गया है कि इस महल को महाराणा कर्णसिंह ने शाहजहाँ के लिए बनवाया था। लेकिन कुछ लोगों का यह मानना है कि जब शाहजादा ख़ुर्रम शाही फ़ौज का सेनापति बनकर उदयपुर में निवास कर रहा था तब इस महल का निर्माण करवाया गया था।
ख्वांजा साहब की दरगाह
26 Dec. 2012
तारागढ की तलहटी में स्थित यह दरगाह (1143-1233 ईसवी) मजहबी आस्था का प्रमुख केन्द्र है
सन्र 1464 में मांडू के सुलतान गयासुददीन खिलजी ने इसे पक्का करवाया मुगल शासन के दौरान इस का और विस्तार हुआ यहां अकबर ने 1570 में अकबरी मस्जिद बुलंद दरवाजा महफिलखाना बनवाया दरगाह के पूर्वी दरवाजे पर शाहजहां की बेटी जहाआरा द्वारा बनवाया हुआ बेगमी दालान है जिस की कारीगरों और नक्काशी देखते ही बनती है मुस्लिम कलैंडर के मुताबिक यहां रजब माह की 1 से 6 तारीख तक वशिाल उर्स लगता हैा
अढाई दिन का झोपडा
26 Dec. 2012
यह ऐतिहासिक इमारत चौहान सम्राट बीसलदेव ने सन 1153 में बनवाई थी
यह मूलतया संस्क़त स्कूल थी बाद में शाहबुददीन गौरी ने इसे मस्जिद का रूप दे दिया कहा जाता है यह मस्जिद ढाई दिन में बनी थी इसलिए इसे यह नाम दिया गया इस इमारत में 7 मेहराबें बनी हुई हैं ये मेहराबें हिंदमुस्लिम स्थापत्य शिल्पकला के अनूठे उदाहरण हैा
इस मस्जिद को बनवाने में कहते है सिर्फ़ ढाई दिन ही लगे इसलिए इसे अढाई दिन का झोपडा कहा जाता है।
यह ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह से आगे कुछ ही दूरी पर स्थित है।
इस खंडहरनुमा इमारत में 7 मेहराब एंव हिन्दु-मुस्लिम कारीगिरी के 70 खंबे बने हैं तथा छत पर भी शानदार कारीगिरी की गई है।
इस से कई बातें प्रचलित है, और अब हर साल यहाँ (ढाई) अढाई दिन का मेला लगता है।
इसका नाम इस के निर्माण के कारण ही अढाई दिन का झोपडा पडा है।
यहाँ पहले बहुत बड़ा संस्कृत का विद्यालय था।
1198 में मुहम्मद ग़ोरी ने उस पाठशाला को इस मस्जिद में बदल दिया।
इसका निर्माण थोडा सा फ़िर से करवाया।
अबु बकर ने इसका नक्शा तैयार किया था।
मस्जिद का अन्दर का हिस्सा मस्जिद से अलग किसी मंदिर की तरह से लगता है।
मेहरानगढ किला
26 Dec. 2012
यह भव्यश किला 125 मीटर उंची पहाडी पर जोधपुर की शाने के रूप में स्थित है
राव जोधा द्वारा सन 1459 में सामरिक द़ष्टि से बनवाया गया यह किला प्राचीन कला, वैभव शाक्ति साहस त्याहग और स्थासपत्य5 का अनूठा नमूना है किले के भीतर मोती महल शीश महल, फूल महल, दौलतखाना, आदि स्थाऔपत्यप शिल्पाकला के उत्क़डष्टन नमूने है भवनों की मेहराबदार खिडकियों छजजों पर बालुई पत्थमर से की गई बारीक खूबसूरत नक्का शी देखने लायक है किजले की बुर्ज पर रखी ऐतिहासिक तोपें दर्शनीय है किले के एक भाग में स्थित संग्राहलय में 17वीं सदी के शस्ञाेगार , राजसी पोशाकें लोकवाघ् तथा जोधपुर शैली के चिञ खासकर देखने लायक हैा
उम्मैद महल
26 Dec. 2012
महाराजा उम्मैद सिंह ने इस महल का निर्माण सन 1943 में किया था। मार्बल और बालूका पत्थर से बने इस महल का दृश्य पर्यटकों को खासतौर पर लुभाता है। इस महल के संग्रहालय में पुरातन युग की घडियां और पेंटिंग्स भी संरक्षित हैं।यही एक ऐसा बीसवीं सदी का महल है जो बाढ़ राहत परियोजना के अंतर्गत निर्मित हुआ। जिसके कारण बाढ़ से पीड़ित जनता को रोजगार प्राप्त हुआ। यह महल सोलह वर्ष में बनकर तैयार हुआ। बलुआ पत्थर से बना यह अतिसमृद्ध भवन अभी पूर्व शासकों का लिवास स्थान है जिस्के एक हिस्से में होटल चलता है और बाकी के हिस्से में संग्राहालय।
जसवंत थड़ा
26 Dec. 2012
जोधपुर दुर्ग मेहरानगढ़ के पास ही सफ़ेद संगमरमर का एक स्मारक बना है जिसे जसवंत थड़ा कहते है । इसे सन 1899 में जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह जी (द्वितीय)(1888-1895) की यादगार में उनके उत्तराधिकारी महाराजा सरदार सिंह जी ने बनवाया था । यह स्थान जोधपुर राजपरिवार के सदस्यों के दाह संस्कार के लिये सुरक्षित रखा गया है । इससे पहले राजपरिवार के सदस्यों का दाह संस्कार मंडोर में हुआ करता था । इस विशाल स्मारक में संगमरमर की कुछ ऐसी शिलाएँ भी दिवारों में लगी है जिनमे सूर्य की किरणे आर-पार जाती हैं । इस स्मारक के लिये जोधपुर से 250 कि,मी, दूर मकराना से संगमरमर का पत्थर लाया गया था । स्मारक के पास ही एक छोटी सी झील है जो स्मारक के सौंदर्य को और बढा देती है इस झील का निर्माण महाराजा अभय सिंह जी( 1724-1749) ने करवाया था । जसवंत थड़े के पास ही महाराजा सुमेर सिह जी, महाराजा सरदार सिंह जी, महाराजा उम्मेद सिंह जी व महाराजा हनवन्त सिंह जी के स्मारक बने हुए हैं । इस स्मारक को बनाने मे 2,84,678 रूपए का खर्च आया था ।