पोषण और फिटनेस से जुड़ी जाने कितनी ही बातें हम जानते हैं। इनके बारे में दूसरों को सुझाव भी देते हैं। तो आइए, जांच लेते हैं कि जिन बातों पर हम यकीन करते हैं, उनमें कितनी सच्चाई है, कितना भ्रम...
क्या खाया क्या पाया!
(1) भोजन में वसा रहेगी, तो मोटापा बढ़ेगा।
1. हां। 2. नहीं।
3. मात्रा पर निर्भर करता है।
4. तेल से नहीं, केवल घी, मक्खन आदि से बढ़ता है।
(2) रात को चावल नहीं खाने चाहिए, नुकसान करते हैं।
1. हां। 2. नहीं।
3. खाकर तुरंत सोने से नुकसान होता है।
4. पनी निथारकर खा सकतें हैं।
(3) रात के भोजन में दाल हो, तो नुकसान करती है।
1. हां, इससे वजन बढ़ता है।
2. नहीं।
3. होनी चाहिए, ये प्रोटीन का स्त्रोत है।
4. एक आयु के बाद ऐसा होता है।
(4) बाजार में मिलने वाले लो फैट फूड फायदेमंद होते हैं और फिट रखते हैं।
1. सही है।
2. बिल्कुल नहीं।
3. निर्भर करता है कि साथ में क्या खा रहे हैं।
4. शाम के बाद न खाएं, क्योंकि तब पचाना मुष्किल होगा।
(5) काजू कोलेस्ट्राॅल बढ़ाता है।
1. हां। 2. नहीं।
3. निर्धारित मात्रा में ले सकते हैं।
4. केवल काजू न खाएं, साथ में अन्य मेवे भी लें, तो नहीं बढ़ेगा।
(6) शहद व नींबू को गुनगुने पानी में लेने से वनज घटता है।
1. हां।
2. सुबह खाली पेट लेने से फायदा होता है।
3. खाने के साथ लें, तो बेहतर।
4. यह केवल भ्रम है।
(7) शक्कर की जगह गुड़ या शहद का इस्तेमाल बेहतर होता है।
1. बिल्कुल सही।
2. बिल्कुल गलत।
3. मधुमेह के रोगियों के लिए अच्छा हो सकता है।
4. बेहतर पोषक तत्व मिलेंगे।
(8) गृहिणियां घर के कामों में ही इतना व्यायाम कर लेती हैं कि अलग से करने की जरूरत नहीं है।
1. हां। 2. नहीं।
3. अगर झाडू आदि खुद करती हैं, तो ठीक है।
4. सुबह-सुबह घर के काम करने वालों के लिए ये सच है।
(9) दूध पीने से कफ बनता है।
1. हां। 2. नहीं।
3. खाली पेट पिएं, तो बनता है।
4. खांसी आ रही हो, तो बनेगा।
(10) चावल खाने से मोटापा बढ़ता है।
1. हां।
2. नहीं।
3. निर्धारित मात्रा में ले सकते हैं।
4. पानी निथारकर नहीं लें, तों बढ़ेगा।
उत्तर...
1. (3) निर्धारित मात्रा है 5 छोटे चम्मच प्रति व्यक्ति, प्रतिदिन। इतनी मात्रा में तेल, घी, मक्खन कुछ भी लें, नुकसान नहीं करेगा।
2. (2) चावल के साथ दाल और चपाती हो, तो चावल नुकसान नहीं करते।
3. (3) दिन की तरह रात के भोजन में भी संतुलित पोेषण होना चाहिए। एक कटोरी दाल रात में भी खाना चाहिए।
4. (2) लो फैट हुए तो क्या, उनमें सोडियम, ष्षक्कर या मैदा ज्यादा हो सकती है, तो नुकसान ही करेगी।
5. (3) किसी भी ष्षाकाहारी भोज्य पदार्थ में कोलेस्ट्राॅल नहीं होता, इसलिए काजू भी निर्धारित मात्रा में ले सकते हैं।
6. (4) यह केवल भ्रम है। किसी भी भोज्य पदार्थ में ये गुण नहीं होता कि वनज घटा सके।
7. (2) तीनों में ऊर्जा बराबर मात्रा में होती है। पोषक तत्व इतने कम होते हैं कि अंतर नहीं पड़ता।
8. (2) व्यायाम करते समय लगातार बिना रूके पूरे ध्यान से व्यायाम किया जाता है। घर के कामों में क्रियाएं रूक-रूककर की जाती हैं, सो पर्याप्त व्यायाम नहीं होता।
9. (2)दूध पेट में जाता है, कफ फेफड़ों में संक्रमण का नतीजा होता है। दोनों का आपस में कोई ताल्लुक नहीं है।
10.(3)कोई भी 100 ग्राम अनाज एक जैसी ऊर्जा देता है। आप इसका संतुलन बनाएं रखेंगे, तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
निःशुल्क कैंसर परामर्श शिविर का आयोजन
05 February 2016
बंसल हॉस्पिटल में छह दिवसीय निःशुल्क कैंसर परामर्श शिविर का आयोजन किया गया है। यह शिविर ६ फ़रवरी तक चलेगा , जिसमें बंसल हॉस्पिटल के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. श्रीकांत तिवारी और डॉ. अतुल समैया द्वारा कैंसर परामर्श दिया जा रहा है। ज्ञात हो कि देश में लगभग २० से २५ लाख व्यक्ति कैंसर से पीड़ित होते है और जागरूक न होने की वजह से यह संख्या हर वर्ष बढ़ रही है। शिविर में मरीजों को किसी भी तरह के कैंसर और संबंधित लक्षणों की जानकारी दी जा रही है। साथ ही जांचों में २० प्रतिशत तक की छूट भी यहाँ उपलब्ध है।
वायरस के इस्तेमाल करते हुए टीबी का नया टीका बनाया
टोरंटो। पहली बार जैविक रूप से संवर्धित किसी वायरस का इस्तेमाल करते हुए खतरनाक बीमारी टीबी का नया असरदार टीका तैयार किया गया है। इस टीके को विकसित करने वाले कनाडाई वैज्ञानिकों का दावा है कि यह टीका टीबी का रामबाण इलाज साबित होगा।
मैक्मास्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. फियोना स्मैल के अनुसार, 'उनकी टीम द्वारा विकसित टीका वर्तमान में टीबी के इलाज के लिए मौजूद एकमात्र बीसीजी टीके का असरकारक विकल्प बनेगा।' बीसीजी टीके को 1920 में विकसित किया गया था। पूरी दुनिया में डॉक्टर टीबी के इलाज में इसी टीके का इस्तेमाल करते हैं। डॉ. स्मैल का कहना है, 'अभी भी टीबी एक खतरनाक बीमारी बनी हुई है। एचआइवी के बाद यह दूसरी जानलेवा बीमारी के रूप में लोगों के लिए खतरा बनी हुई है। वर्तमान बीसीजी टीका इसके इलाज में निष्प्रभावी साबित हो रहा है।' उन्होंने बताया कि उनकी टीम द्वारा विकसित टीका शरीर में प्रतिरोधक तत्वों को नए सिरे से विकसित करेगा। ध्यान रहे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रतिरक्षण कार्यक्रम के तहत एशिया, अफ्रीका, पूर्वी यूरोप और दक्षिण अमेरिका के देशों में बीसीजी टीकाकरण अभियान चला रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अब इस टीके की खोज से टीबी के खिलाफ अभियान को नई गति मिलेगी। उन्होंने बताया कि इस टीके को तैयार करने में दस वर्षों का समय लगा है। मानव पर इसके क्लीनिकल ट्रायल के सकारात्मक परिणाम निकले हैं।
दिल की बीमारियों से दूर रखता है अखरोट
वाशिंगटन। हालिया शोध में पता चला है कि रोजाना अखरोट खाने से डायबिटीज और दिल की बीमारियों का खतरा काफी कम हो जाता है।
कनेक्टिकट स्थित येल ग्रिफिन प्रिवेंशन रिसर्च सेंटर के शोधकर्ताओं के मुताबिक, रोज 56 ग्राम अखरोट के सेवन से अधिक वजन वाले वयस्कों के शरीर की आंतरिक प्रक्रिया में सुधार आता है। इस शोध में 30 से 75 साल के 46 वयस्कों को शामिल किया गया था। प्रतिभागियों का बॉडी मास इंडेक्स 25 से भी अधिक था। इनमें पुरुषों की कमर 40 इंच व महिलाओं की कमर 35 इंच थी। शोध से पहले शर्त रखी गई थी कि प्रतिभागी धूमपान न करता हो लेकिन ज्यादातर को पाचन संबंधी बीमारियों और डायबिटीज से पीड़ित होना चाहिए। प्रतिभागियों को रोजाना नाश्ते में 56 ग्राम अखरोट दिया गया जिससे उनके स्वास्थ्य में पहले से सुधार देखा गया। प्रमुख शोधकर्ता और येल ग्रिफिन प्रिवेंशन रिसर्च सेंटर के निदेशक डॉक्टर डेविड केट्ज ने कहा, खाने की आदतों को बदलना मुश्किल है, लेकिन उसमें सुधार किया जाना जरूरी है। यह शोध 'जर्नल ऑफ द अमेरिकन कॉलेज ऑफ न्यूट्रिशियन' में प्रकाशित हुआ है।
डायरिया का सस्ता देसी टीका तैयार
नई दिल्ली। अब जल्दी ही दुनिया भर के गरीब और मध्यवर्गीय परिवार के बच्चों को भी रोटावायरस से सुरक्षा देने वाले टीके लग सकेंगे। बच्चों को दस्त और आंत्रशोथ का शिकार बनाने वाले इस वायरस से आजादी दिलाने वाला ऐसा टीका भारत ने विकसित किया है, जो पुराने टीकों के मुकाबले 90 फीसद से ज्यादा सस्ता है।
केंद्र सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग की साझेदारी में विकसित किए गए इन टीकों के तीसरे चरण का क्लीनिकल परीक्षण भी पूरा हो चुका है। अब जल्दी ही भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआइ) की इजाजत से ये टीके बाजार में बेचे जाने के लिए बनाए जा सकेंगे। उम्मीद की जा रही है कि दुनिया के दूसरे मुल्कों में भी इन टीकों की खासी मांग होगी।
इस टीके के विकास में अहम भूमिका निभाने वाले जैव प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व सचिव एम.के. भान कहते हैं कि लगभग तीन दशक की लगातार कोशिश के बाद यह संभव हो सका है। साथ ही ये बताते हैं कि यह टीका बच्चों में 56 फीसद तक प्रभावी पाया गया है। यानी, यह टीका लगाए जाने के बाद बच्चों में रोटावायरस के संक्रमण का खतरा इतना कम हो जाता है। तीसरे चरण का क्लीनिकल परीक्षण देश में तीन अलग-अलग जगहों पर 6,799 बच्चों में किया गया था। अब जल्दी ही क्लीनिकल परीक्षण की रिपोर्ट औषधि महानियंत्रक को सौंपी जाएगी। इसकी अनुमति मिलने के बाद इसका व्यावसायिक उत्पादन शुरू हो जाएगा।
इन टीकों की सबसे खास बात है इनका पहले के टीकों के मुकाबले 90 फीसद से भी ज्यादा सस्ता होना। निजी कंपनी ने इसकी कीमत लगभग 54 रुपए रखने का एलान किया है, जबकि पहले से मौजूद टीके 800 से 900 रुपए तक में बिक रहे हैं। बच्चों को रोटावायरस के संक्रमण से बचाने के लिए बच्चे को छह, दस और 14 हफ्ते की उम्र में इसकी तीन खुराक पिलानी होगी। रोटावेक नाम के वैक्सीन का तीसरे चरण का क्लीनिक ट्रायल पूरा हो चुका है।
उल्लेखनीय है कि डायरिया से प्रति वर्ष पांच साल से कम उम्र के एक लाख बच्चों की भारत में मौत हो जाती है। इस सस्ते इलाज से गरीब वर्ग के बच्चों की जान बचाईजा सकेगी। साथ ही इस वैक्सीन से डायरिया और आंत्रशोथहोने की 56 फीसद आशंका भी कम हो जाती है।
दिमाग को दुरूस्त करने के लिए एक झपकी
दिन में केवल एक झपकी न सिर्फ याददाश्त बल्कि आपके दिमाग को भी दुरूस्त करती है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के शोधकर्ता मैथ्यू वॉकर और उनकी टीम ने पाया कि दोपहर में लंबी झपकी लेने वाले छात्रों की सीखने की क्षमता में वृद्धि होती है। जबकि लगातार दिनभर जगने वाले छात्रों का मस्तिष्क सीखने की क्षमता खोने लगता है। यूनिवर्सिटी ऑफ एरीजोना के मनोविज्ञान के प्रोफेसर लिन नैडल एवं उनकी टीम ने शिशुओं पर नैपिंग के प्रभाव का अध्ययन किया, तो उनका नतीजा भी यही रहा। झपकी लेने वाले शिशु बेहतर लर्नर पाए गए। कुछ सीखने के बाद नींद लेने वाले बच्चे चीजों को बेहतर ढंग से समझ पाए। यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिलवानिया स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिक मार्कोस फ्रैंक ने अपने अध्ययन में पाया कि नींद के दौरान दिमाग अपने आपको पुनर्व्यवस्थित कर लेता है और यह क्रिया सीखने के लिए बेहद आवश्यक होती है। नींद के दौरान मस्तिष्क स्विच ऑफ नहीं होता। फर्क इतना ही है कि जब हम जागे हुए रहते हैं, तो यह अलग तरीके से एक्टिव रहता है। वैज्ञानिक मैथ्यू वॉकर के शोध के नतीजे बताते हैं कि मस्तिष्क की मेमोरी पावर सीमित और शॉर्ट टर्म होता है। कुछ तथ्यों को लॉन्ग टर्म मेमोरी में भेजने और नई जानकारियों के भंडारण के लिए स्पेस बनाने के लिए मस्तिष्क को नींद की जरूरत पड़ती है। ऎसे में दिमाग कहीं अधिक एक्टिव और फ्रेश फील करता है। इस शोध में करीब 40 लोगों पर तुलनात्मक अध्ययन किया गया, जिसमें से 20 लोगों ने दोपहर में 90 मिनट की नींद ली और 20 जगे रहे। यह दुनिया का पहला ऎसा शोध नहीं है जो नैपिंग की पैरवी करता हो। इससे पहले हुए शोधों में कुछ इसी तरह के नीजे सामने आए हैं। लिहाजा कहा जा सकता है कि काम के बीच में ब्रेक ले ही लिया जाना चाहिए।
अवचेतन का संदेश सुने, बुरी आदतों से छुटकारा पाएँ
टीवी और इलेक्ट्रानिक उपकरणों के कोहराम ने हमारी सुनने की नैसर्गिक क्षमताओं को कुंद कर दिया है और हम शरीर के मूक संदेशों को सुनना भूल ही गए हैं। यही कारण है कि अब देह आपका ध्यान खींचने के लिए और कठोर भाषा अपनाती है। आपको परेशान करने की कोशिश करती है। उसका संदेश बीमारियों के जरिए शरीर में नजर आने लगता है। जैसे सिरदर्द, बीच-बीच में टूटने वाली नींद,दुर्घटनाओं का आघात यानी ट्रॉमा,लाइलाज मर्ज,खासतौर से पीठ और पेट के रोग। सम्मोहन का नजरिया है कि कोई भी पीड़ा हो,वह एक संदेश है अवचेतन का। आपका अवचेतन आपसे कुछ कहना चाहता है, भागदौड़ छोड़कर जरा रूक जाएं और ध्यान दें। उसकी आवाज सुनें। उसे महसूस करें। यह ध्यान पद्धति सिखाती है कि देह की आवाज फिर कैसे सुननी शुरू की जाए और कैसे एक बार फिर पुरानी पीड़ाओं से छुटकारा पाया जाए।
बॉडी माइंड बैलेंसिंग को किसी भी असंतुलन को दूर करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। भले ही वह वजन बढ़ने की समस्या हो, हाजमे की दिक्कतें हों, तरह-तरह के दर्द हों,तनाव या बेचैनी हो। यहां तक कि इसके जरिए बुरी आदतों से छुटकारा पाया जा सकता है। यह ध्यान पद्धति हमारी चिंता भी कम करती है। हम जानते हैं कि डर से तनाव पैदा होता है। लेकिन,इसकी उल्टी प्रक्रिया भी चलती है यानी तनाव से डर भी पैदा होता है। जाहिर है हम जितना रिलैक्स रहना सीखेंगे,उतनी ही कम चिंता सताएगी। नींद अच्छी आएगी,जिससे वैलनेस की अनुभूति को और सहारा मिलेगा। इससे हमें समझने में मदद मिलती है कि हमारी देह और हमारा मन हमारे हाथ में किस तरह बेहतरीन उपकरण हैं। और तब नए किस्म की समझ पैदा होती है,उसके प्रकाश में हमें दिखाई देता है कि हमारा स्वास्थ्य हमारे ही हाथ में है।
मनुष्य की तीन अवस्थाएं होती हैं,एक है रोग,दूसरा है निरोग और तीसरा है नैरोग्य। नैरोग्य यानी वैलनेस। यह जो वैलनेस है उसकी अनुभूति हमसे बिछुड़ गई है,वह अनुभूति जो तब पैदा होती है जब देह और मन एक स्वर में गुनगुनाते हैं। डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने अब स्वीकार कर लिया है कि देह और मन के बीच एक गहरा संबंध होता है,वह एक इकाई है।
तनाव भरे समय में ऎसा इंसान मिलना मुश्किल है जिसे कोई न कोई शारीरिक तकलीफ या कोई मानसिक उलझन न हो। लोगों को अक्सर यह महसूस होता है कि वैसे तो उन्हें अपने स्वास्थ्य में कुछ गड़बड़ नहीं दिखाई देती,लेकिन कुछ ऎसा भी है जो दुरूस्त नहीं लगता। कुछ बेचैनी सी,कुछ असंतुलन सा। मनुष्य की तीन अवस्थाएं होती हैं-एक है रोग,दूसरा है निरोग और तीसरा है नैरोग्य। नैरोग्य यानी वैलनेस। यह जो वैलनेस है उसकी अनुभूति हमसे बिछुड़ गई है,वह अनुभूति जो तब पैदा होती है जब देह और मन एक स्वर में गुनगुनाते हैं।
डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने अब स्वीकार कर लिया है कि देह और मन के बीच एक गहरा संबंध होता है,वह एक इकाई है। लगभग आधी से अधिक शारीरिक व्याधियां मानसिक तनाव के कारण होती हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि हमें बौद्धिक समझ प्रदान करने वाले हमारे सचेत मन,यानी कॉशन्स माइंड की पतली सी परत हमारे समूचे अस्तित्व का सिर्फ दसवां हिस्सा होती है। जैसे किसी फल का छिलका होता है वैसे ही सचेत मन अवचेतन मन का एक छिलका भर होता है। इसी छिलके को हम शिक्षित करते हैं,सभ्य,सुसंस्कृत बनाते हैं,नीति,धर्म इत्यादि सिखाते हैं लेकिन इस चेतन परत के मुकाबले मस्तिष्क की अवचेतन परतें अधिक महत्वपूर्ण हैं। अगर हमारा नाता अपने ही अवचेतन से टूट गया तो हमारा जीवन स्वस्थ और संतुलित नहीं रह पाता। जब भी आदमी किसी रोग से ग्रसित होता है तो उसकी जड़ें उसके गहन अवचेतन मन में होती हंै। कोई दबाया हुआ क्रोध या दुख या भय अंदर पड़ा-पड़ा नासूर बन जाता है और फिर वह कैंसर या अन्य किसी रोग के रूप में प्रगट होता है। वो रसायन शरीर के अंगों में प्रवेश कर उन अंगों को कमजोर बनाता है और धीरे-धीरे रोग उनमें घर बना लेता है। अवचेतन की इसी शक्ति को ध्यान में रख कर ओशो ने एक प्राचीन तिब्बती ध्यान पद्धति को पुनर्जीवित किया है। उसे नाम दिया है बॉडी-माइंड बैलेंसिंग,देह और मन का संतुलन। यह एक ऎसी निर्देशित ध्यान पद्धति है जिसके जरिए लोग अपने देह और मन का एक इकाई की तरह उपयोग करना सीखते हैं और स्वास्थ्य को अनुभव कर पाते हैं। ओशो ने कहा है कि एक बार आप शरीर से संवाद करना शुरू करते हैं तो चीजें बहुत आसान हो जाती हैं। क्योंकि शरीर पर जबर्दस्ती नहीं की जा सकती, उसे प्रेम से फुसलाया जा सकता है।
बारिश मे रखे स्वास्थ्य का ध्यान
बारिश के समय बीमारियों का अंबार लग जाता है। इन दिनों मौसम बड़ी ही तेजी से बदलता है और साथ ही संक्रमण का भी डर पैदा हो जाता है। सर्दी-जुखाम और बुखार का खतरा बहुत रहता है लेकिन इन बीमारियों की शुरुआत टॉन्सिल से ही होती है। टॉन्सिल में गला बहुत दर्द होता है तथा खाने का भी स्वाद नहीं पता चलता। लेकिन टॉन्सिल को घरेलू उपचार से ठीक किया जा सकता है। इसके लिए निम्न सावधानियां और उपचार की ज़रूरत पड़ेगी -
1. स्वच्छता को अपनाए ताकि कोई भी बीमारी आपको छू नहीं पाए। बाथरूम से आने के बाद, खाने से पहले या फिर छींकने के बाद अपने हाथों को धोना ना भूलें। उस व्यक्ति से पूरी तरह से बचें जिसको खांसी या जुखाम हो।
2. कोल्ड ड्रिंक ना पिएं। ठंडा पेय पीने से गले में संक्रमण होने का खतरा अधिक ज्यादा रहता है। टॉन्सिल ना हो इसके लिये बारिश में कोल्ड ड्रिंक ना पिएं। अगर आपको गर्मी लग रही है और आप ज्यादा देर के लिये इंतजार नहीं कर सकते हैं, तो कम से कम अपने पसीन को सूख जाने दें, तभी कोल्ड ड्रिंक पिएं।
3. हर्बल टी पिएं। हर्बल टी पीने से कफ फैलाने वाले जर्म और बैक्टीरिया मर जाते हैं। टॉन्सिल को दूर करने का यह सबसे आम और प्राकृतिक उपचार है। यह शरीर के लिये भी अच्छी है और गले की लिये भी।
4. खट्टे फल ना खाएं। खट्टे फलों में मौजूद एसिड आपके गले को और भी ज्यादा नुक्सान पहुंचा सकते हैं। जब गला खराब हो तो आपको नींबू, संतरा, स्ट्रॉबेरी और मुंसम्बी नहीं खाना चाहिये।
5. तंबाकू या फिर धूम्रपान करने की आदत पर लगाम लगाएँ। ज्यादातर टॉन्सिल होने के पीछे होने का कारण केवल यही तंबाकू होती है। तंबाकू गले को सुखा देती है जिससे संक्रमण होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है।
बचपन में सीटी स्कैन से कैंसर का ख़तरा
ब्रिटेन। बचपन में सीटी स्कैन करने से रक्त, दिमाग और अस्थि मज्जा के कैंसर का खतरा तीन गुना बढ़ जाता है। कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक शोधपत्र में बताया है कि कैंसर का खतरा कुल मिला कर छोटा-सा प्रतीत होता है। फिर भी उन्होंने सीटी स्कैन में विकिरण की खुराक न्यूनतम रखने और जहां उचित हो उसका विकल्प खोजने की अपील की।
मेडिकल जर्नल लांसेट में अपने लेख में अनुसंधानकर्ताओं ने दावा किया कि उनका अध्ययन बचपन में सीटी स्कैन विकिरण से रूबरू होने और बाद के वर्षों में कैंसर के खतरों के बीच रिश्ता जोड़ने वाला पहला है। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि पिछले 10 साल में सीटी स्कैन बहुत तेजी से बढ़ा है, खास कर अमेरिका में। अनुसंधानकर्ताओं ने इसके लिए ब्रिटेन में एक लाख 80 हजार लोगों का अध्ययन किया जो 1985 से 2002 के दौरान बचपन में या 22 साल से कम उम्र में सीटी स्कैन से गुजरे थे। अध्ययन के अनुसार उनमें से 74 को ल्युकेमिया से और 135 को दिमाग के कैंसर से ग्रस्त पाया गया।