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:: छत्तीसगढ़ पर्यटन ::

 

चित्रकूट जलप्रपात

26 Dec. 2012

चित्रकूट जलप्रपात छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर ज़िले मे इन्द्रावती नदी पर स्थित एक सुंदर जलप्रपात है। हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य में और भी बहुत से जलप्रपात हैं, किन्तु चित्रकूट जलप्रपात सभी से बड़ा है। सभी मौसम में आप्लावित रहने वाला यह जलप्रपात पौन किलोमीटर चौड़ा और 90 फीट ऊँचा है। इसकी विशेषता यह है कि बारिश के दिनों में यह रक्त लालिमा लिए हुए होता है, तो गर्मियों की चाँदनी रात में यह बिल्कुल सफ़ेद दिखाई देता है। अलग-अलग अवसरों पर इस जलप्रपात से कम से कम तीन और अधिकतम सात धाराएँ गिरती हैं। चित्रकूट जलप्रपात जगदलपुर के पश्चिम की ओर 38 किमी की दूरी पर है। चित्रकूट जलप्रपात बहुत ख़ूबसूरत हैं और पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं। चित्रकूट जलप्रपात की ऊंचाई लगभग 100 फीट है। आकार में यह झरने घोड़े की नाल के समान हैं और इनकी तुलना विश्व प्रसिद्ध नियाग्रा झरनों से की जाती है। वर्षा ऋतु में इन झरनों की ख़ूबसूरती अत्यधिक बढ़ जाती है। जुलाई-अक्टूबर का समय पर्यटकों के यहाँ आने के लिए उचित है। रात में, इस जगह को पूरा रोशनी के साथ प्रबुद्ध किया गया है यहाँ के झरने से गिरते पानी के सौंदर्य को रोशनी के साथ देख सकते हैं।


लक्ष्मण मन्दिर

26 Dec. 2012

छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से लगभग 78 किमी दूर महानदी के तट पर स्थित है। ऐतिहासिक जनश्रुति से विदित होता है कि भद्रावती के सोमवंशी पाण्डव नरेशों ने भद्रावती को छोड़कर सिरपुर बसाया था। ये राजा पहले बौद्ध थे, किन्तु शैवमत के अनुयायी बन गए। सिरपुर में गुप्तकाल में तथा परवर्ती काल में बहुत समय तक दक्षिण कोसल अथवा महाकोसल की राजधानी रही।
सिरपुर या श्रीपुर या सीरपुर छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से लगभग 78 किमी दूर महानदी के तट पर स्थित है। ऐतिहासिक जनश्रुति से विदित होता है कि भद्रावती के सोमवंशी पाण्डव नरेशों ने भद्रावती को छोड़कर सिरपुर बसाया था। ये राजा पहले बौद्ध थे, किन्तु शैवमत के अनुयायी बन गए। सिरपुर में गुप्तकाल में तथा परवर्ती काल में बहुत समय तक दक्षिण कोसल अथवा महाकोसल की राजधानी रही।
यहाँ की उत्तर-गुप्तकालीन कला की विशेषता जानने के लिए विशाल लक्ष्मण मन्दिर का वर्णन पर्याप्त होगा–इसका तोरण 6'×6' है, जिस पर अनेक प्रकार की नक़्क़ाशी की गई हैं। इसके ऊपर शेषशायी विष्णु की सुन्दर प्रतिमा अवस्थित है। विष्णु की नाभि से उद्भूत कमल पर ब्रह्मा आसीन हैं और विष्णु के चरणों में लक्ष्मी स्थित हैं। पास ही वाद्य ग्रहण किए हुए गंधर्व प्रदर्शित हैं। तोरण लाल पत्थर का बना हुआ है। मन्दिर के गर्भ गृह में लक्ष्मण की मूर्ति है। यह 26"×16" है। इसकी कटि में मेखला, गले में यज्ञोपवीत, कानों में कुण्डल और मस्तक पर जटाजूट शोभित है। यह मूर्ति एक पाँच फनों वाले सर्प पर आसीन है। जो शेषनाग का प्रतीक है। मन्दिर मुख्यतः ईटों से निर्मित है। किन्तु उस पर जो शिल्प प्रदर्शित है उससे यह तथ्य बहुत आश्चर्यजनक जान पड़ता है क्योंकि ऐसी सूक्ष्म नक़्क़ाशी तो पत्थर पर भी कठिनाई से की जा सकती है। शिखर तथा स्तम्भों पर जो बारीक़ काम है वह भारतीय शिल्पकला का अद्भूत उदाहरण है। गुप्तकालीन भित्ती गवाक्ष इस मन्दिर की वेशेषता है। मन्दिर की ईटें 18"×8" हैं। इन पर जो सुकुमार तथा सूक्ष्म नक़्क़ाशी है वह भारत भर में बेजोड़ है। ईटों के मन्दिर के गुप्तकाल के वास्तु में बहुत सामान्य थे। लक्ष्मण देवालय के निकट ही राम मन्दिर है। किन्तु अब यह खण्डहर हो चुका है।


छत्तीसगढ़ स्थित रतनपुर का महामाया मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. यह धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है.

26 Dec. 2012

51 शक्तिपीठों में महामाया मंदिर
छत्तीसगढ़ स्थित रतनपुर का महामाया मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. यह धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है. भारत में देवी माता के अनेक सिद्ध मंदिर हैं, जिनमें माता के 51 शक्तिपीठ सदा से ही श्रद्धालुओं के लिए विशेष धार्मिक महत्व के रहे हैं. इन्हीं में से एक है छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में रतनपुर स्थित मां महामाया देवी मंदिर. रतनपुर का महामाया मंदिर इन्हीं शक्तिपीठों में से एक है.
कहा जाता है, देवी महामाया का पहला अभिषेक और पूजा-अर्चना कलिंग के महाराज रत्रदेव ने 1050 में रतनपुर में की थी. आज भी यहां उनके किलों के अवशेष देखे जा सकते हैं.
लोककथा: शक्ति पीठों की स्थापना से संबंधित एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है. ऐतिहासिक, धार्मिक तथा पर्यटन की दृष्टि से यह प्रदेश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है. देवी माता का यह मंदिर उनके शक्तिपीठों में से एक है. शक्तिपीठ उन पूजा स्थलों को कहते हैं, जहां सती के अंग गिरे थे. पुराणों के अनुसार, पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित हुई सती ने योगबल द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे. सती की मृत्यु से व्यथित भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे. इस समय माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गए. इन्हीं स्थानों को शक्तिपीठ रूप में मान्यता मिली. महामाया मंदिर में माता का स्कंध गिरा था. इसीलिए इस स्थल को माता के 51 शक्तिपीठों में शामिल किया गया. यहां प्रात:काल से देर रात तक भक्तों की भीड़ लगी रहती है. माना जाता है कि नवरात्र में यहां की गई पूजा निष्फल नहीं जाती. यह मंदिर वास्तुकला के नागर घराने पर आधारित है.
मंदिर लगभग 12वीं शताब्दी में निर्मित माना जाता है. मंदिर के अंदर महामाया माता का मंदिर है. महामाया शक्तिपीठ में दर्शन का अपना अलग ही महत्व है. यहां भगवान सती के अंग तथा आभूषण की पूजा होती है. मान्यता है कि जो भक्त यहां श्रद्धापूर्वक भगवती महामाया के साथ-साथ भोलेनाथ के लिंग की पूजा करते हैं, वे इस लोक में सारे सुखों का भोगकर शिवलोक में जगह प्राप्त करते हैं. वैसे तो सालभर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन मां महमाया देवी मंदिर के लिए नवरात्रों में मुख्य उत्सव, विशेष पूजा-अर्चना एवं देवी के अभिषेक का आयोजन किया जाता है. कैसे पहुंचें बिलासपुर-अंबिकापुर राजमार्ग पर बिलासपुर से 25 किलोमीटर दूर रतनपुर शहर स्थित है. बिलासपुर से निजी अथवा सरकारी वाहन से यहां पहुंच सकते हैं |


विवेकानंद सरोवर (बूढ़ा तालाब )

26 Dec. 2012

विवेकानंद सरोवर शहर के बीचो-बीच स्थित है, हालांकि इसकी पहचान बूढ़ा तालाब के रूप में भी है। इसके साथ कई महापुरुषों की स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। यह राजधानी का एक ऐसा पर्यटन स्थल है जिसका अपना ऐतिहासिक महत्व है। तालाब को ६०० वर्ष पहले कल्चुरी वंश के राजाओं द्वारा खुदवाया गया था। इतिहासकारों के मुताबिक यह पहले १५० एकड़ में था जो अब मात्र लगभग ६० एकड़ में ही सीमित हो गया है। तालबा के बीच में बनीं विवेकानंद की विशाल मूर्ति और उद्यानों की साज सज्जा इसे एक बेहतरीन पर्यटन स्थल का रूप देती है। यहां आप वोटिंग का आनंद भी ले सकते हैं। शाम के समय तालाब में उभरती दूधिया रोशनी यहां की सुंदरता को बढ़ा देती है और बेहद मनोरम दृश्य देखने लायक हो जाता है। युवाओं का तो यहां जमघट लगता ही है साथ ही परिवार के साथ यहां घूमने आने वालों को भी यह बेहद पसंद आता है। तालबा के आसपास ऐसे बहुत से ठिकाने हैं जहां आप स्वाद का आनंद भी ले सकते हैं। यह जानना आपके लिए रोचक रहेगा कि तालाब के पास स्थानीय महापुरुषों के अलावा स्वामी विवेकानंद ने भी अपने जीवन के कुछ वर्ष बिताया था । १४ वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद जब रायपुर आये थे तो वे इस तालाब में तैरकर बीच टापू तक जाते थे, इस कारण से वहां अभी विवेकानंद की विशाल प्रतिमा स्थापित है।


कुलेश्वर मंदिर

26 Dec. 2012

कुलेश्वर मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर जिले में राजिम नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है। पुरातत्वीय धार्मिक एवं सांस्कृति महत्व का स्थल राजिम रायपुर से 48 कि.मी. दक्षिण में महानदी के दक्षिण तट पर स्थित है जहां पैरी एवं सोंढूर नदी का महानदी से संगम होता है। इसका प्राचीन नाम 'कमल क्षेत्र' एवं 'पद्मपुर' था। इसे 'छत्तीसगढ़ का प्रयाग' माना जाता है। राजिम कें राजीव लोचन देवालय में विष्णु भगवान की पूजा होती है । राजेश्वर, दानेश्वर एवं रामचन्द्र मंदिर इस समूह के अन्य महत्वपूर्ण मंदिर है। कुलेश्वर शिव मंदिर संगम स्थली पर ऊंची जगती पर निर्मित है। नवीं शती ई. में निर्मित यह मंदिर पूर्वाभिमुखी है। इस मंदिर में गर्भगृह, अन्तराल एवं मण्डप है। मण्डप की भित्ति में आठ पंक्तियों का क्षरित-अस्पष्ट प्रस्तर अभिलेख जड़ा हुआ है। यहां क्षेत्रीय कला एवं स्थापत्य से संबंधी दुर्लभ कलात्मक प्रतिमाएं मण्डप में दर्शनीय हैं ।