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फीचर

आध्यात्म के माध्यम से प्रदेशवासियों को भारतीय संस्कृति से जोड़ने की पहल
9 January 2020
भोपाल.आध्यात्म वास्तव में मनुष्य में विकास की लालसा को गति प्रदान करने का सशक्त माध्यम है। यह औसत से ऊपर उठकर जीने का विवेकपूर्ण तरीका भी है। मध्यप्रदेश में राज्य सरकार ने इस शाश्वत सत्य को जन-मानस में संचारित करने के लिये वर्ष 2019 में आध्यात्म विभाग का गठन किया। प्रदेश में धर्मस्व, धार्मिक न्यास और आनंद विभाग के बिखरे स्वरूप को आध्यात्म विभाग में समाहित कर प्रदेशवासियों को भारतीय संस्कृति से जोड़े रखने की अहम शुरूआत पिछले वर्ष ही प्रदेश में हुई।
मध्यप्रदेश, भारतीय संस्कृति की अमिट धरोहरों से परिपूर्ण एवं समृद्ध राज्य है। यहाँ देश के 12 ज्योतिर्लिंग में से दो ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर प्रतिष्ठापित हैं। राज्य सरकार ने दोनों ज्योर्तिलिंग को विश्व पर्यटन केन्द्र के स्वरूप में विकसित करने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ ने ओंकार सर्किट योजना में महाकाल-महेश्वर के साथ ओंकारेश्वर विकास योजना को भी मंजूरी दी है।
महाकाल मंदिर विकास विस्तार योजना
विश्व प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के भगवान महाकाल मंदिर के विकास और विस्तार की 300 करोड़ की योजना पर काम शुरू हो गया है। पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने महाकाल मंदिर के बारे में सोचा है। योजना के कामों की निगरानी के लिये मंत्री-मण्डल की तीन सदस्यीय समिति गठित की गई है। समिति में लोक निर्माण मंत्री श्री सज्जन सिंह वर्मा, आध्यात्म मंत्री श्री पी.सी. शर्मा और नगरीय विकास मंत्री श्री जयवर्द्धन सिंह सदस्य हैं। योजना को समय-सीमा में पूरा कराने की जिम्मेदारी मुख्य सचिव को सौंपी गई है। योजना ऐसी बनाई गई है कि यहाँ ऐसी व्यवस्थाएँ रहें कि श्रद्धालु एक-दो दिन आराम से रुक सकें। महाकाल मंदिर के मूल ढाँचे के साथ कोई छेड़छाड़ न हो। उज्जैन शहर और वहाँ के रहवासियों का विकास भी इस योजना में शामिल है।
योजना के पहले चरण में यात्रियों-श्रद्धालुओं के लिये सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है। साथ ही, मंदिर के प्रवेश एवं निर्गम द्वार, फ्रंटियर यार्ड और नंदी हाल का विस्तार किया जा रहा है। महाकाल थीम पार्क, महाकाल कॉरिडोर और वर्केज लॉन पार्किंग आदि का निर्माण कराने की योजना है। दूसरे चरण में महाराजा बाड़ा, कॉम्पलेक्स, कुंभ संग्रहालय, महाकाल से जुड़ी विभिन्न कथाओं का प्रदर्शन, अन्न क्षेत्र, धर्मशाला, रुद्रसागर की स्केपिंग, रामघाट मार्ग का सौंदर्यीकरण, पर्यटन सूचना केन्द्र, रुद्र सागर झील का पुनर्जीवन, हरी फाटक पुल, यात्री सुविधाओं और अन्य सुविधाओं का निर्माण और विस्तार शामिल है।
ओंकारेश्वर विकास कार्य-योजना
मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ ने ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के गौरव को चिर-स्थायी बनाने के लिये 156 करोड़ की विकास कार्य-योजना को मंजूरी दी है। साथ ही, ओंकारेश्वर मंदिर के लिये शीघ्र ही कल्याणकारी एक्ट बनाने के निर्देश भी दिये हैं। यहाँ ओंकारेश्वर के प्रवेश द्वार को भव्य बनाना, मंदिर का संरक्षण, प्रसाद काउंटर, मंदिर के चारों ओर विकास तथा सौंदर्यीकरण, शॉपिंग कॉम्पलेक्स, झूला-पुल और विषरंजन कुंड के पास रिटेनिंग वॉल, बहुमंजिला पार्किंग, पहुँच मार्ग, परिक्रमा-पथ का सौंदर्यीकरण, शेड निर्माण, लेंड-स्केपिंग, धार्मिक-पौराणिक गाथा की पुस्तकों की लायब्रेरी, ओंकार आइसलैंड का विकास, गौ-मुख घाट पुनर्निर्माण, भक्त निवास और भोजन-शाला, ओल्ड पैलेस तथा विष्णु मंदिर, ब्रह्मा मंदिर और चंद्रेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार, ई-साइकिल तथा ई-रिक्शा सुविधा, बोटिंग, आवागमन, बस-स्टैण्ड, पर्यटक सुविधा केन्द्र सहित अन्य विकास कार्य किये जा रहे हैं।
रामपथ गमन विकास के लिये 22 करोड़ से अधिक मंजूर
राज्य सरकार ने रामपथ गमन विकास योजना को भी अंतिम रूप दिया है। योजना को सरकार की प्राथमिकता में शामिल किया गया है। इसके लिये 22 करोड़ 9 लाख 32 हजार रुपये की राशि आध्यात्म विभाग को जारी कर दी गई है। इस राशि में से 4 करोड़ लघु निर्माण कार्यों, एक करोड़ 54 लाख 66 हजार स्थाई सम्पत्तियों के अनुरक्षण, 2 करोड़ मशीनों एवं उपकरणों के अनुरक्षण और अन्य आवश्यक निर्माण एवं विकास कार्यों के लिये 4 करोड़ 54 लाख 66 हजार रुपये दिये गये हैं। इसके अलावा, रामपथ गमन अंचल विकास, वृहद निर्माण कार्यों, पूंजीगत व्यय और समाज-सेवाओं के लिये 10 करोड़ की राशि दी गई है। इन योजनाओं का क्रियान्वयन भी शुरू हो गया है।
रामपथ गमन मार्ग में सतना, पन्ना, कटनी, उमरिया, शहडोल और अनूपपुर जिले आते हैं। इसमें चित्रकूट के 16 तीर्थ आते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि भगवान श्रीराम ने सीताजी और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के 14 वर्षों में से 11 वर्ष चित्रकूट में ही बिताए थे। इसी स्थान पर ऋषि अत्रि और सती अनुसुइया ने ध्यान लगाया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनुसुइया के घर जन्म लिया था।
रामपथ गमन के मुख्य स्थल कामदगिरि, गुप्त गोदावरी, स्फटिक शिला, अनुसुइया आश्रम, हनुमान धारा, सरभंग एवं सुतीक्षा आश्रम, वृहस्पद कुंड, चौमुखनाथ, मैहर, दशरथ घाट, बाँधवगढ़ आदि हैं। राज्य सरकार ने इस मार्ग पर तीर्थ-स्थलों के जीर्णोद्धार, संरक्षण, विकास एवं जन-सुविधाएँ, भीड़ प्रबंधन, सुरक्षा व्यवस्था, मेले, उत्सव एवं आध्यात्मिक कार्यक्रम की योजना बनाई है। रामपथ गमन फोर-लेन बनाया जा रहा है। रामपथ को धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने की योजना है। रामपथ के बीच पड़ने वाली समस्त नदी, झरने एवं जल-स्रोत को प्रदूषण-मुक्त करना तथा छायादार पौधा-रोपण की कार्य-योजना को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
धार्मिक आस्था स्थलों का जीर्णोद्धार
राज्य सरकार ने पिछले साल शासन द्वारा संधारित मंदिरों का जीर्णोद्धार करने का निर्णय लिया। साथ ही, इन मंदिरों के पुजारियों के मानदेय में भी तीन गुना की उल्लेखनीय वृद्धि की। इस दौरान 30 मंदिरों के जीर्णोद्धार और विकास के लिये 4 करोड़ 82 लाख 36 हजार रुपये की राशि जारी की। अब प्रदेश में मंदिरों को पर्यटन केन्द्रों के स्वरूप में विकसित किया जा रहा है।
सिन्धु दर्शन, कैलाश मानसरोवर और श्रीलंका तीर्थ-यात्रा
प्रदेश में पिछले मात्र एक वर्ष में 23 हजार से अधिक तीर्थ-यात्रियों को राज्य सरकार ने 23 विशेष ट्रेन के माध्यम से मुख्यमंत्री तीर्थ-दर्शन योजना में विभिन्न तीर्थ-स्थलों की यात्रा कराई। इस यात्रा में तीर्थ-यात्रियों को भोजन, स्वास्थ्य, सुरक्षा संबंधी सभी सुविधाएँ नि:शुल्क उपलब्ध कराई गईं। राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री तीर्थ-दर्शन योजना में सिन्धु दर्शन, कैलाश मानसरोवर और श्रीलंका यात्रा को जोड़कर सर्वधर्म-समभाव का परिचय दिया। इसके लिये तीर्थ-यात्रियों को 27 लाख 71 हजार की आर्थिक सहायता/अनुदान भी दिया गया। साथ ही, अन्य बुनियादी सुविधाएँ और सुरक्षा नि:शुल्क मुहैया कराई गई। इस योजना के साथ ही, शासन द्वारा संधारित दो धर्मशालाओं का 32 लाख से जीर्णोद्धार भी कराया गया।
मंदिरों, मठों, देव-स्थानों और नदियों का संरक्षण
राज्य सरकार ने मंदिरों, मठों, देव-स्थानों और पवित्र नदियों के संरक्षण के लिये समितियों और न्यासों का गठन किया। माँ नर्मदा, क्षिप्रा, मंदाकिनी और ताप्ती के संरक्षण एवं संवर्धन के लिये न्यास का गठन किया गया। इसी तरह, प्रदेश के मठ-मंदिरों के सुचारु संचालन के लिये सलाहकार समिति गठित की गई।
श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति, उज्जैन का 8 मार्च, 2019 को गठन किया गया। ओंकारेश्वर मंदिर अधिनियम, गणपति मंदिर अधिनियम, म.प्र. शारदा देवी मंदिर अधिनियम, देव-स्थान प्रबंधन एवं विकास विधेयक में आवश्यक संशोधन किये गये।
शासन द्वारा संधारित देव-स्थानों की कृषि भूमि, दुकान, व्यावसायिक सम्पत्ति एवं भवन प्रबंधन का दायित्व संबंधित जिला कलेक्टर को सौंपा गया। शासन नियंत्रित देव-स्थानों की व्यवस्था को सुचारु रूप देने के लिये देव-स्थान स्तरीय, अनुविभाग स्तरीय तथा जिला स्तरीय प्रबंध समिति नियम-2019 जारी किये गये। शासन संधारित मंदिरों/देव-स्थानों के पुजारियों की नियुक्ति के लिये अर्हताएँ, नियुक्ति की प्रक्रिया, कर्त्तव्य, दायित्व, पुजारी की पदच्युति तथा पुजारी पद रिक्त होने पर व्यवस्था के संबंध में नियम बनाये गये। साथ ही, शारदा माता, गणपति खजराना, रामराजा ओरछा एवं ओंकारेश्वर ट्रस्ट के प्रस्ताव/प्रारूप तैयार किये गये।
प्रमुख तीर्थ-स्थानों पर सुविधाओं का विस्तार
प्रदेश के प्रमुख तीर्थ ओरछा और बगुलामुखी माता मंदिर नलखेड़ा में तीर्थ-यात्रियों की सुविधा के लिये पौने दो करोड़ से ज्यादा की लागत से सेवा सदन बनवाये जा रहे हैं। नर्मदा परिक्रमा पथ पर यात्रियों की सुविधा के लिये 186 लाख की लागत से तीर्थ-यात्री सेवा सदन का निर्माण कराया जा रहा है। माता मंदिर, रतनगढ़ के विकास की करीब 5 करोड़ की समग्र कार्य-योजना में प्रथम किश्त 80 लाख जारी की गई। जिला दमोह में जोगेश्वर नाथ तीर्थ की विकास कार्य-योजना तैयार की गई। जिला ग्वालियर में धूमेश्वर तीर्थ विकास के लिये 36 लाख से ज्यादा की विकास योजना तैयार की गई। माता रतनगढ़ मंदिर और करीला माता मंदिर पर सौर ऊर्जा प्लांट लगाकर पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित किया गया। करीला माता मंदिर में निर्माणाधीन तीर्थ-यात्री सेवा सदन में वॉटर हॉर्वेस्टिंग, नक्षत्र वाटिका, जैविक खाद, पर्यावरण सुरक्षा तथा विद्युत, ऊर्जा, जल-संरक्षण एवं पर्यावरण संवर्धन को आध्यात्मिक परम्परा से जोड़ते हुए नक्षत्र वाटिका तैयार की जा रही है।
धार्मिक-स्थलों पर सुरक्षा एवं प्रबंधन
राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि प्रदेश में धार्मिक स्थलों में लगने वाले मेलों एवं आयोजनों में भीड़ प्रबंधन एवं सुरक्षा की विशेष व्यवस्था की जायेगी। वहाँ सी.सी. टी.व्ही. कैमरे लगाये जायेंगे। निमाड़, मालवा, बुंदेलखण्ड, महाकौशल और चंबल क्षेत्रों में कुल 1307 मेले पंजीबद्ध हैं। कलेक्टर के प्रस्ताव पर 27 मेलों/तीर्थों में इन व्यवस्थाओं क लिये 353 लाख की राशि जारी की गई।
ब्लॉक-स्तर तक आनंदक मेले
पिछले एक साल में प्रदेश में जिले/ब्लॉक स्तर पर आनंदक सम्मेलन की शुरूआत की गई। गिविंग सर्किल की अवधारणा पर कार्य किया गया। वरिष्ठ नागरिक स्वैच्छिक डिस्काउंट कार्यक्रम की शुरूआत हुई। प्रदेश में सामाजिक कल्याण एवं पारस्परिकता की भावना को बढ़ावा देने के लिये देश में पहली बार समय विनिमय कोष की परिकल्पना की गयी। इस परिकल्पना में एक-दूसरे के कौशल का उपयोग करके दूसरों की मदद करना तथा समय को पूँजी के रूप में निवेश करना शामिल है, जिसका भविष्य में उपयोग किया जा सके।
आनंद फैलोशिप चार आवेदकों को स्वीकृत की गई। आनंद शिविरों में आम नागरिकों की भागीदारी के लिये वेबसाइट पर ऑनलाइन पंजीयन का प्रावधान किया गया। अल्प-विराम के द्वारा लोगों के जीवन में आये सकारात्मक बदलाव से संबंधित उदाहरणों का 'परिवर्तन की कहानी'' के रूप में प्रकाशन तथा वेबसाइट पर प्रदर्शन किया जा रहा है। लगभग 2200 स्थानों पर 14 से 18 जनवरी, 2019 के बीच आनंद उत्सव का आयोजन किया गया।
प्रदेश में आध्यात्मिक गतिविधियों का उद्देश्य यह है कि प्रत्येक प्रदेशवासी जो भी कार्य करे, उसमें केवल उसका स्वार्थ नहीं हो बल्कि सभी की भलाई निहित हो। तभी प्रदेश सही मायने में विकसित राज्य बनने का हकदार होगा।

लखनऊ में अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक प्रारम्भ
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक आज प्रातः: 8:20 बजे परम पूजनीय सरसंघचालक मोहन भगवत और सरकार्यवाह भैया जी जोशी द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से निरालानगर स्थित माधव सभागार में शुरू हुई .
दत्तात्रेय होसबले ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्र में पाकिस्तान ने गोलीबारी करके एक नापाक हरकत की है। भारत ने पूरी दृढ़ता के साथ इसका जवाब दिया है। बचाव एवं राहत कार्य के समय जाती या मजहब न देखकर जो त्रस्त है, उनकी सहायता करने की संघ की परंपरा है. चुनाव के समय दिए वचन पूर्ण करने की वरीयता सरकार को तय करनी है: सामान्य जन का जीवन स्तर ऊंचा उठाने के कार्य को वरीयता देना स्वाभाविक ही है:
दत्तात्रेय होसाबले ने कहा कि पिछले तीन साल के दौरान संघ के विस्तार को लेकर कई अहम कार्य किए गए हैं। इसके कार्यकर्ता देश के हर हिस्से में काम कर रहे हैं। एक हजार 800 नए जगहों पर आरएसएस का काम पहुंचा है। इसके साथ ही 485 शाखाएं खोली गई हैं। उन्होंने बताया कि आरएसएस ने ऑनलाइन पंजीकरण शुरू किया है। इससे देशभर के लोग आसानी से संघ के साथ जुड़ सकेंगे।


युवाओं में भारत का गौरव व संस्कृति जानने की जिज्ञासा और समाज के लिए कुछ न कुछ करने की ललक - डॉ. मनमोहन वैद्य
लखनऊ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने फिर कहा है कि भारत में कोई अल्पसंख्यक नहीं। सब हिंदू हैं। इसीलिए संघ अपनी शाखाओं व संगठन में मौजूद कार्यकर्ताओं का हिंदू-मुस्लिम और ईसाई या जातीय दृष्टि से अगड़े-पिछड़े या अन्य श्रेणीवार आंकड़े नहीं रखता।
संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य ने बृहस्पतिवार को यहां पत्रकारों के सवाल पर कहा कि संघ, धर्म और पंथ को अलग-अलग मानता है। इसी नाते संघ में हिंदू शब्द का प्रयोग पंथ, मजहब या रिलीजन के नाते नहीं होता है। हिंदू, मुसलमान और ईसाई जैसे वर्गीकरण पंथ के आधार पर हैं। इसलिए संघ की नजर में भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू हैं।
हिंदू व मुसलमान के आधार पर भेद दूसरे लोग करते हैं। भारतीय संस्कृति की जीवन दृष्टि हिंदू जीवन दृष्टि है। इसलिए संघ, देश में रहने वाले सभी नागरिकों को एक ही सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, हिंदुत्व का मानता है। वह शुक्रवार से राजधानी में शुरू हो रही केंद्रीय कार्यकारी मंडल की बैठक की पूर्व संध्या पर पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।
वैद्य ने बताया कि बैठक का उद्घाटन शुक्रवार सुबह 8.20 पर होगा। उद्घाटन सरसंघचालक मोहन भागवत करेंगे। बैठक संघ की कार्यसंस्कृति का नियमित हिस्सा है। बैठक में प्रस्ताव लाने या न लाने पर अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है।
अलबत्ता देश के सामने भीतर व बाहर मौजूद तात्कालिक समसामायिक स्थितियों के बारे में एक-दूसरे से चर्चा जरूर होगी। साथ ही इनके मद्देनजर संघ की भूमिका पर भी बातचीत होगी। जरूरत पड़ी तो प्रस्ताव भी लाने का फैसला हो जाएगा।

बैठक में संघ के केंद्रीय पदाधिकारी, संघ के लिहाज से तय सांगठनिक रचना के अनुसार 11 क्षेत्रों व 41 प्रांतों के संघ चालक, संघ कार्यवाह और इनमें नियुक्त क्षेत्र प्रचारक व प्रांत प्रचारक तथा संघ के सहयोगी संगठन के रूप में काम करने वाले 33 संगठनों के एक या दो राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी कुल लगभग 390 लोग भाग ले रहे हैं।

पत्रकार ने पूछा: संघ में कितने मुस्लिम

वैद्य ने कहा- बहुत सारे, पर हम इस आधार पर रिकॉर्ड नहीं रखते

डॉ. वैद्य ने जब कहा कि संघ पंथ व मजहब को लेकर भेद नहीं करता तो पत्रकारों ने सवाल पूछा- कितने मुसलमान संघ से जुड़े हैं? डॉ. वैद्य ने जवाब दिया कि इस आधार पर कोई रिकॉर्ड नहीं रखते। यह वर्गीकरण मीडिया ही करता है। फिर भी अगर यह सवाल एक विशेष उपासना पद्धति मानने वालों के बारे में है तो ‘बहुत सारे लोग हैं और लगातार जुड़े रहे हैं।’
डॉ. वैद्य ने बताया कि जिन्हें माइनॉरिटी बोला जाता है वे काफी संख्या में आरएसएस से जुड़े हैं। हालांकि उन्होंने कोई संख्या बताने से इनकार कर दिया। उनका तर्क था कि संघ में जुड़ने वाले कार्यकर्ताओं को कभी जाति या संप्रदाय के आधार पर विभाजित नहीं किया जाता, वे संघ में केवल कार्यकर्ता होते हैं।

मुस्लिम भी राष्ट्रभक्त

मनमोहन वैद्य ने कहा, ‘मैं जब नागपुर में एक शाखा लगाता था तो उस समय भी उसमें तमाम ऐसे मित्र संघ में थे। मुसलमानों में तमाम ऐसे लोग हैं जिनमें भारत व भारतीय संस्कृति से प्रेम हैं।’

संघ से बड़ी संख्या में जुड़ रहे युवा

वैद्य ने बताया कि संघ से जु़ड़े वाले लोगों का आंकड़ा प्रतिवर्ष औसतन एक लाख से ऊपर पहुंच गया है। इनमें ऐसे युवाओं की संख्या भी बहुत ज्यादा है जो शिक्षा के विशिष्ट क्षेत्रों में अध्ययनरत हैं या अध्ययन करके अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।
इसकी वजह युवाओं में भारत का गौरव व संस्कृति जानने की जिज्ञासा और समाज के लिए कुछ न कुछ करने की ललक है।
भारत का युवा अपनी कल्चरल आइडेंटिटी की तलाश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ रहा है। यह कहना है आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य का। उनके मुताबिक आज के युवा में अपनी कल्चरल आइडेंटिटी के लिए भूख जगी है। इसलिए वे अपनी जड़ों की तलाश और समाज के लिए कुछ करने की ललक के चलते आरएसएस की ओर रुख कर रहे हैं।

बढ़ी है संघ से जुड़ने वालों की संख्या

डॉ. मनमोहन वैद्य ने बताया कि देश में विस्तार के लिए विशेष योजना तैयार की गई है। पिछले कुछ वर्षों में संघ से जुड़ने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल जहां 80 हजार लोग जुड़े थे, वहीं इस साल करीब 50 फीसदी लोग ज्‍यादा जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि प्रत्येक महीने संघ से जुड़ने वालों की संख्या करीब आठ हजार है।


बिना भेदभाव के नागरिक और राष्ट्रीय बोध जगाने का काम करता है संघ: श्री दत्तात्रेय होसबाले
लखनऊ-17 अक्तूबर, 2014। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बिना किसी भेदभाव के अपने कार्यों के विस्तार के साथ ही समाज में नागरिक बोध जगाने का काम करता है जिससे देश में अनुसान, कर्मनिष्ठा, सार्वजनिक स्वच्छता, पर्यावरण आदि विषयों में जाग्रति आये। संघ राहत कार्यों में हिन्दू और मुसलमानों में भेद नहीं करता। संघ सम्पूर्ण देश के बारे में चिन्तन करता है। सरकार को काम करने का समय देना चाहिए। कार्यों की प्राथमिकता तय करना सरकार पर छोड़ना चाहिए।
यह बात रा.स्व.संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले ने कही। वह अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल की बैठक प्रारम्भ होने के अवसर पर पत्रकारों से वार्ता कर रहे थे। उन्होंने कहाकि अखिल भारतीय तथा क्षेत्रीय पदाधिकारियों की यह बैठक दशहरा व दीवाली के बीच में होती है। यह सामान्य बैठक है। फिर भी तात्कालिक विषयों पर इसमें चर्चा होती है। जम्मू-कश्मीर, आन्ध्र, उड़ीसा, मेघालय की दैवीय आपदा तथा कश्मीर में सीमा पार की गोलीबारी से मारे गये लोगों व शहीद सैनिकों के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त की गयी। उड़ीसा, आन्ध्र, मेघालय, जम्मू-कश्मीर में प्राकृतिक आपदा के 6-7 घण्टे के अन्दर ही संघ के स्वयंसेवक राहत कार्य में लग गये थे। जम्मू-कश्मीर की आपदा में 3085 लोगों को स्वयंसेवकों ने सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया, 140 स्वास्थ्य शिविर लगाये गये। जिसमें 21 हजार लोगों का इलाज किया गया। इसके अलावा बड़ी मात्रा में राहत सामाग्री वितरित की गयी। संघ आपदा प्रभावित सभी इलाकों में पुनर्वास का काम करेगा। जम्मू-कश्मीर में ठण्ड बढ़ेगी, इसे ध्यान में रख कर विशेष राहत कार्य किया जायेगा।
पिछले 3 वर्षों में रा.स्व.संघ के कार्यों का बहुत विस्तार हुआ है। सभी मुख्य मार्गों के दोनों ओर के सभी गावों में संघ कार्य को विस्तार देने की योजना बनायी गयी है। अण्डमान से लेकर लेह-लद्दाख तक देश के सभी हिस्सों में संघ की 4500 शाखाएँ एवं 1500 साप्ताहिक मिलन बढ़े हैं, कई प्रान्तों में 20 प्रतिशत कार्य बढ़ा है। आॅनलाइन ज्वाॅइन आर.एस.एस. नाम से शुरू हुए सोशल मीडिया कार्यक्रम से लोग बड़ी संख्या में जुड़ रहे हैं। संघ कार्य से परिचित कराने के लिए 1-2 दिन के संघ परिचय वर्ग लगाये जा रहे हैं, इसमें भारी संख्या में लोग सम्मिलित हो रहे हैं जिसमें अलग-अलग आयु वर्ग के लोगों को संघ से परिचित कराया जायेगा। समाज में अनुशासन, सफाई, नागरिक बोध, वृक्षारोपण आदि माहौल बनाने के लिए अभियान चलाने पर भी चर्चा होगी। देशहित में ऐसे कार्य संघ पहले से ही करता आ रहा है।


विघटनकारी संदेश
दिल्ली के एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुछ एक्टिविस्टों द्वारा दुर्गापूजा के समय देवी दुर्गा का अपमान और 'महिषासुर दिवस' मनाने की घटना दोहराई गई है। इन्हीं लोगों ने तीन साल पहले भी यह कार्य किया था। इस पर न केवल भाजपा से जुड़ी विद्यार्थी परिषद, बल्कि अन्य छात्र-संगठनों ने भी विरोध जताया। महिषासुर दिवस मनाने वाले अपने को पिछड़ा वर्ग, दलित, आदिवासियों का प्रतिनिधि बताते हैं। कुछ रेडिकल लेखक, पत्रकार भी उनसे जुड़े हैं। एक द्विभाषी पत्रिका के माध्यम से यह सम्मिलित व्यापार कुछ वषरें से चल रहा है। पर इन गतिविधियों की खोज-बीन करने पर दूसरा ही सच मिलता है। सबसे पहले तो यह कि दलितों, पिछड़ों की दावेदारी करने वाले इन तत्वों का संचालन कोई दलित, पिछड़ा नहीं, बल्कि ईसाई मिशनरी कर रहे हैं। उक्त पत्रिका सीधे-सीधे मिशनरियों द्वारा नियंत्रित, पोषित है अर्थात महिषासुर प्रेम दिखावा है। इस प्रपंच की आड़ में वही पुरानी, हिंदू-द्वेषी, भारतीय राष्ट्र-विरोधी राजनीति हो रही है, जो मिशरियों का पुराना खेल है। इसके नाम और रूप बदलते जाते हैं, मगर अंतर्वस्तु वही रहती है।
इसे इतने खुले रूप में होते देख आश्चर्य भी होता है! जो रेडिकल-वामपंथी लेखक, बुद्धिजीवी उनका समर्थन करते हैं, उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि इससे किसका हित सध रहा है। उनके लिए तो हिंदू धर्म, संस्कृति और भारत की अखंडता की खिल्ली उड़ाना ही पर्याप्त है। महिषासुर दिवस मनाने के नाम पर दलितों, पिछड़ों को दूसरे हिंदुओं से लड़ाने की इस कुटिलता को पहचानना कठिन नहीं। जरूरत है केवल उन एक्टिविस्टों और उनके सरपरस्तों की सारी बातों, क्रियाकलापों और संसाधनों को सामने रखने की। तब समझने में कठिनाई नहीं होगी कि इन विचित्र दलितवादियों के लिए नारायण गुरु, स्वामी श्रद्धानंद और डॉ. अंबेडकर से भी अधिक अनुकरणीय विलियम बिल्बरफोर्स क्यों है? यह कोई अपवाद उदाहरण नहीं। यदि कथित महिषासुर-प्रेमियों के संपूर्ण लेखन, गतिविधियों आदि को सामने रखें, तो उनके प्रेम की कलई खुल जाएगी। उनके 'दलित विमर्श' के आवरण में मुख्य कार्य अनजान, भोले-भाले लोगों को ईसाइयत में मतांतरित कराने के लिए मानसिक रूप से तैयार करना है। इसीलिए हिंदू पर्व-त्योहारों पर कीचड़ उछाला जाता है और हिंदू देवी-देवताओं के बारे में ऊल-जुलूल प्रचार होता है। 'महिषासुर दिवस' मनाने से ज्यादा देवी दुर्गा के प्रति अशोभनीय बातें कहने की जिद रहती है, उसमें एक विघटनकारी राजनीतिक संदेश है, जिसे जानना-समझना चाहिए। उक्त पत्रिका ने अपने कैलेंडर में होली, दीवाली, रामनवमी, दशहरा त्योहारों तथा स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद की जयंतियों को गायब कर बदले में ईसाई मिशनरियों की जयंतियों और ईसाई त्योहारों को स्थान दिया है। यह सब 'दलितों-बहुजनों' के नाम पर होता है। इस उद्योग में अनेक वामपंथी बुद्धिजीवी भी शामिल हैं। अपनी हिंदू-विरोधी झक में वे देशी-विदेशी मिशनरी ताकतों के प्रचार-औजार बने हुए हैं।
यह संयोग नहीं कि जो एक्टिविस्ट महिषासुर दिवस मनाते हैं, वही गोमांस भक्षण समारोह भी करते हैं और दलितों का पहले बौद्ध फिर ईसाइयत में मतांतरण भी कराते हैं। इन सब कायरें में मुख्य प्रेरक संगठन व प्रवक्ता वही मुट्ठी भर लोग हैं। मगर कटिबद्ध, संगठित और साधन-संपन्न अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क से जुड़े होने के कारण खासे प्रभावी हैं। जब कोई ंहदू ऐसी चालों पर आपत्ति करता है, तो वही बुद्धिजीवी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देकर ईसाइयत प्रचार के छल-छद्म को उचित ठहराते हैं। वे भूल जाते हैं कि धार्मिक संवेदनाओं के अतिरिक्त राष्ट्रीय सुरक्षा, अखंडता का प्रश्न भी ऐसे दुष्प्रचार से जुड़ा है। जस्टिस नियोगी समिति, जस्टिस वधवा समिति, आदि कई न्यायिक आयोगों द्वारा बार-बार रेखांकित किया गया है कि ईसाई मतांतरणकारी योजनाएं राष्ट्रीय विखंडन भी प्रेरित करती हैं। अशांति और हिंसा बढ़ाती हैं। इन तथ्यों की पुष्टि विविध राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अनुभवों से भी होती रही है।
महिषासुर प्रेम में 'आर्य-अनार्य' विभेद तथा 'बाहरी आयरें द्वारा भारतीय अनायरें पर आक्रमण' सिद्धांत को भी दोहराया गया है जैसे देवी दुर्गा बाहरी आर्य आक्रमणकारियों द्वारा भेजी गई थीं, जिन्होंने देशी राजा महिषासुर को धोखे से मार डाला आदि। वस्तुत: 'आर्य आक्रमण/आगमन' सिद्धांत तथा 'द्रविड़वाद' जैसी काल्पनिक अवधारणाएं भारत के विरुद्ध विघटनकारी परियोजना का एक बड़ा औजार बनाई गई हैं। दशकों से उसके दोहराव से उसे 'मान्य तथ्य' जैसा दिखाने की चाल सफल रही है। अब वही चाल महिषासुर को दलितवाद से जोड़ने में चली जा रही है ताकि अनजान नई पीढि़यों को हिंदू पर्व-त्योहार, परंपरा के विरुद्ध उभारा जाए। साथ ही हिंदू धर्म को साम्राज्यवादी, अत्याचारी रूप में प्रचारित किया जा सके। ठीक दुर्गा-पूजा के अवसर पर दुर्गा को आर्य दुष्टा कहकर, अनार्य महिषासुर को नायक बनाने के सचेत प्रयत्‍‌न को पूरे संदर्भ में देखना जरूरी है। यह वस्तुत: हिंदू धर्म-समाज पर कालिख पोतने की पुरानी परियोजना का ही अंग है। समय के साथ इसमें मा‌र्क्सवादियों तथा विचारधाराग्रस्त बुद्धिजीवियों को भी जोड़ लिया गया। अनेक बुद्धिजीवी जानबूझ कर भारतीय सभ्यता के इतिहास, दर्शन और वास्तविकता को विकृत कर पेश करते हैं।
सच यह है कि भारत मर्ें ंहदू धर्म संस्कृति पर लंबे समय से कई प्रकार की ताकतों द्वारा संयुक्त प्रहार चल रहा है। हमारा देश आज एक बौद्धिक, भू-रणनीतिक कुरुक्षेत्र है। हमें इसमें अपनी भूमिका पहचानना और सत्यनिष्ठ संघर्ष करना चाहिए। दुर्भावपूर्ण विचारधाराओं, निराधार प्रचार को खुली छूट देने की प्रवृत्ति छोड़नी चाहिए। हर वह बात जो भारतीय समाज को बांटने, तोड़ने, अलगाव भरने के संकेत देती है, उसे ठोस तथ्यों, आंकड़ों पर जांचें-समझें। जिन मिथ्या दावों, नारेबाजी और द्वेषपूर्ण प्रचार से देश और समाज के लिए घातक विष फैल रहा है, उन्हें उनकी जगह दिखाएं। यह हमारी नई पीढि़यों की शिक्षा का अनिवार्य अंग होना चाहिए। केंद्रीय विश्वविद्यालयों की राजनीतिक-वैचारिक दुर्गति से यह प्रधान निष्कर्ष निकलता है।



 
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