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मध्य प्रदेश में प्राइवेट स्कूलों पर बड़ा फैसला, RTI के तहत देनी होंगी ये जानकारियां
24 Feb 2023
भोपालमध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में लगातार सामने आ रही निजी स्कूलों की मनमानी की सामने आती रही है. इसे लेकर अब सूचना आयोग (Information Commission) सख्त हो गया है. रीवा की एक स्कूल के मामले में सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त (Information Commissioner Rahul Singh) ने बड़ा फैसला सुनाया है. उनके आदेश के अनुसार, शासन से अनुदान लेने वाले निजी स्कूल पूरी तरह RTI के दायरे में होंगे. उन्हें अब मांगी गई जानकारी समय सीमा में देनी होगी. ऐसा नहीं करने पर जुर्माना लगाया जाएगा.
सूचना आयुक्त ने क्या कहा?
सूचना आयुक्त ने कहा 'शासन से अनुदान लेने वाले निजी स्कूल पूरी तरह RTI के दायरे में होंगे. लोगों को यह जानने का हक है कि उनके बच्चे जिस प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे हैं. वे शासन द्वारा निर्धारित कानून के तहत संचालित हो रहे हैं या नहीं. मान्यता सम्बन्धी जानकारी 30 दिन में देनी होगी.
राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने साफ किया की शिक्षा विभाग के पास रेगुलेटरी अथॉरिटी होने के नाते पर्याप्त अधिकार हैं. शासन के पास प्राइवेट स्कूलों की नियमों के अनुरूप प्राप्त होनी चाहिए. इस कारण प्राइवेट स्कूल जानकारी देने से मना नहीं कर सकते. ऐसा करने पर RTE Act 2009 और RTE rules 2011 के तहत प्राइवेट स्कूलों के विरुद्ध वैधानिक कार्रवाई कर जानकारी ली जा सकती है.
क्या है रीवा का मामला?
रीवा के एक निजी स्कूल से मान्यता संबंधी जानकारी मांगी थी. इसे जिला शिक्षा अधिकारी ने विकास खंड शिक्षा अधिकारी के पास भेजा था. यहां ये कहते हुए जानकारी देने के इंकार कर दिया गया की निजी स्कूल ने आरटीआई अधिनियम के अधीन नहीं हैं. जानकारी न मिलने पर मामला राज्य सूचना आयोग पहुंचा. जहां, आयुक्त राहुल सिंह ने सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाया है.
इन राज्यो में पहले से है व्यवस्था
बता दें उत्तरप्रदेश में जुलाई 2021 में ही सूचना आयोग प्राइवेट स्कूलों को RTI के दायरे में लाने के आदेश जारी किए थे. इसके बाद हरियाणा में मई 2022 में हाईकोर्ट के आदेश के बाद इस व्यवस्था को लागू किया गया. अब मध्यप्रदेश में रीवा के एक मामले की सुनवाई करते हुए 23 फरवरी 2023 को इस संबंध में आदेश जारी किए. जिसके अनुसार यहां के प्राइवेट स्कूल RTI के दायरे में आ गए हैं.
आर टी आई की अनदेखी पर राज्य सूचना आयुक्त ने अपर कलेक्टर टीकमगढ़ पर लगाया 25000 जुर्माना
13 March 2020
भोपाल से आरटीआई आवेदक प्रदीप अहिरवार द्वारा टीकमगढ़ में अपनी जमीन पर सीएमओ नगरपालिका टीकमगढ़ द्वारा कुआं खोदने एवं सूखा राहत राशि विवरण संबंधी जानकारी 2017 मार्च में मांगी गई थी। इस प्रकरण में तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर टीकमगढ़ श्री प्रताप सिंह चौहान और टीकमगढ़ के अपर कलेक्टर एस के अहिरवार द्वारा प्रथम अपीलीय अधिकारी कलेक्टर टीकमगढ़ के आदेश के बावजूद जानकारी नहीं दी गई। आयोग के समक्ष इस प्रकरण में कुल 6 सुनवाई हुई। लेकिन इनमें से पांच सुनवाईयो में प्रताप सिंह चौहान और एस के अहिरवार उपस्थित नहीं हुए। पांचवी सुनवाई के बाद आयोग द्वारा जारी जुर्माने की कार्रवाई के नोटिस के बाद चौहान और अहिरवार द्वारा आयोग के समक्ष अपना जवाब प्रस्तुत किया। प्रताप सिंह चौहान ने कहा कि उनके खिलाफ कार्यवाही ना की जाए क्योंकि बिंदु क्रमांक 1 की जानकारी दी गई दी जा चुकी है और 10/12/2017 को उनका स्थानांतरण हो गया था और उनकी जगह एसके अहिरवार अपर कलेक्टर राजस्व टीकमगढ़ को प्रभार दिया गया था। सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने उनकी इन दोनों दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि चौहान द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत 30 दिन का उल्लंघन किया गया। वही अधिकारियों द्वारा जानकारी देने में 3 साल से ज्यादा का समय लगा दिया गया। साथ ही प्रथम अपीलीय अधिकारी की जानकारी ना दे कर धारा 7 की उप धारा 8 (1) (2) (3) का भी उल्लंघन किया गया।*
*आयुक्त सिंह ने कहा कि चौहान के स्थानांतरण से पहले ही प्रथम अपीलीय अधिकारी कलेक्टर टीकमगढ़ का आदेश जानकारी देने के लिए आ चुका था और उसके बाद भी जानकारी नहीं देकर इनके द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम की अवहेलना की गई। वही एस के अहिरवार को भी कलेक्टर टीकमगढ़ का आदेश अपीलकर्ता ने 2017 में ही उपलब्ध करा दिए थे पर अहिरवार ने भी जानकारी 26 महीने बाद दी वो भी तब जब राज्य सूचना आयोग ने उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई का नोटिस जारी किया। राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने आयोग के निर्देश के बावजूद आयोग द्वारा बुलाई गई पिछली 5 सुनवाइयों में चौहान और अहिरवार के हाज़िर नहीं होने को सूचना के अधिकार अधिनियम की घोर अवहेलना करार दिया है।
देश मे पहली बार ट्विटर एवं व्हाटसअप के माध्यम से मप्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह कर रहे RTI मामले का निराकरण।
28 November 2019
RTI के तहत जानकारी लेने में अक्सर आवेदको की चप्पले घिस जाती है। पर देश मे पहली बार एक नया प्रयोग करते हुए मध्यप्रदेश के सूचना आयुक्त राहुल सिंह महीनों में होने वाले कार्य को चंद घंटों में अंजाम दे रहे है। सिंह की कार्यशैली इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। वे ट्विटर के माध्यम से शिकायत प्रकरण दर्ज़ कर रहे है। साथ ही साथ फ़ोन पर ही सुनवाई करके अधिकारियों द्वारा की गई कार्यवाई व्हाट्सएप के माध्यम से बुला लेते है।
ट्विटर पर किया प्रकरण दर्ज। रीवा जल संसाधन विभाग का मामला
कानून के तहत 30 दिन में जानकारी देने के प्रावधान हैं पर अक्सर अधिकारियों की लापरवाही के चलते कई मामले महीनों सालो तक लंबित हो जाते हैं। अपनी तरह के पहले मामले में सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने ट्विटर पर मिली शिकायत पर ही प्रकरण पंजीबद्ध कर दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही कर दी है।
ऐसे परेशान किया अपीलकर्ता को।
दुबे ने प्रकरण में गोविंदगढ़ रीवा मेंं जल संसाधन विभाग से जुड़ी हुई जानकारी मांगी थी। उनकी अपील को मुख्य अभियंता के कार्यालय ने कार्यपालन यंत्री के कार्यालय में ट्रांसफर कर दी थी। अपीलकर्ता मनोज कुमार दुबे जब भी कार्यालय जाते वहां उनको प्रकरण की कोई जानकारी नही दी जाती। बाद में मुश्किल से बाबू मिले तो बाबू ने जानकारी की प्रतिलिपि के लिए ₹2 का चालान एसबीआई बैंक चालान के माध्यम से जमा करने को कहा। अपीलकर्ता ने विरोध किया कहा कि नगद में पैसे जमा करवा लें, दो रुपये का बैंक से चालान बनाने वे कहा जाएगे। मनोज ने उस वक़्त अपने मोबाइल कैमरे से उक्त अधिकारी का वीडियो भी बना लिया जिसमें अधिकारी कह रहे हैं कि उनको आरटीआई के कानून से कुछ लेना-देना नहीं है। यह वीडियो और अपनी पूरी शिकायत उन्होंने ट्वीट के माध्यम से राज्य सूचना आयुक्त के ट्विटर हैंडल पर पोस्ट कर दी। सूचना आयुक्त राहुल सिंह छुट्टी पर थे पर उन्होंने चंद मिनटों में इसका संज्ञान लेते हुए अपने कार्यालय को इस मामले में प्रकरण पंजीबद्ध करने के निर्देश दे दिए। सूचना आयुक्त के निर्देश पर उनके कार्यालय ने तत्काल व्हाट्सएप के माध्यम से अपीलकर्ता से धारा 18 के तहत शिकायत का आवेदन भी प्राप्त किया अपीलकर्ता ने अपनी शिकायत में बताया कि किस तरह से उनको सरकारी कार्यालय में जानकारी देने के नाम पर भटकाया जा रहा है।
ये कार्यवाही की दोषी अधिकारियों के ख़िलाफ़। ₹2000 हर्जाना अपीलकर्ता को।
सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपने ट्विटर हैंडल @rahulreports पर रीवा के अधिवक्ता मनोज कुमार दुबे से मिली शिकायत पर कड़ी कार्रवाई करते हुए मध्यप्रदेश के जल संसाधन विभाग के रीवा संभाग के मुख्य अभियंता एवं कार्यपालन यंत्री के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई एवं ₹7500- 7500 जुर्माने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है। साथ ही विभाग के एक अन्य अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के लिए प्रतिवेदन तलब किया है। मुख्य अभियंता जल संसाधन विभाग को अपीलकर्ता को ₹2000 का मुआवज़ा देने के आदेश भी सूचना आयुक्त ने जारी किए है।
सूचना आयुक्त राहुल सिंह के मुताबिक इस प्रकरण में एक नहीं बल्कि सूचना के अधिकार कानून की कई धाराओं का उल्लंघन हुआ है। 30 दिन की समय सीमा के उल्लंघन होने के बाद अपीलकर्ता चाहे तो प्रथम अपील में ना जाकर सीधे जुर्माने एवं अनुशासनिक कार्रवाई के लिए धारा 18 के तहत सूचना आयोग में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। धारा 18 के तहत जानकारी देने का प्रावधान नहीं है लेकिन दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
सूचना आयुक्त ने इस शिकायत के अवलोकन के बाद अपने आदेश में कहा कि स्पष्ट तौर पर समय सीमा का उल्लंघन हुआ है जो की धारा 7 (1) का उल्लंघन है। वही मात्र एसबीआई का चालान मांग कर लोक सूचना अधिकारी कार्यालय कार्यपालन यंत्री ने धारा 7 (5) का उल्लंघन किया है। लोक सूचना अधिकारी को अपीलकर्ता की हर संभव मदद करनी चाहिए थी जो नहीं की गई यहां धारा 5 (3) का भी उल्लंघन हुआ है । डीम्ड लोक सूचना अधिकारी कार्यपालन यंत्री ने धारा 5 (5) का उल्लंघन किया है क्योंकि उन्होंने जानकारी नहीं देकर लोक सूचना अधिकारी मुख्य अभियंता का असहयोग किया है।
लोक सूचना अधिकारी मुख्य अभियंता कार्यालय मात्र आरटीआई आवेदन को दूसरे कार्यालय में अंतरित करके अपने कर्तव्यों से इतिश्री नहीं कर सकते हैं जानकारी देने में उनकी भी जवाबदेही तय होती है।
पहले भी ईमेल, फोन और व्हाटसअप के माध्यम से किया अपील का निराकरण।
एक और प्रकरण में रीवा के TP तिवारी ने 2016 में शासकीय जनता महाविद्यालय के प्राचार्य की जानकारी मांगी।
3 साल चप्पले घिसने के बाद भी जानकारी नही मिली थी। जब इस मामले की राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने भोपाल में सुनवाई की तो चौकाने वाली जानकारी सामने आई। सरकारी अधिकारियों ने तिवारी के हस्ताक्षर वाला एक नोट आयोग के सामने पेश किया जिसमे आवदेक ने खुद जानकारी की जरूरत नही होने से जानकारी लेने से मना कर दिया।
मामला फ़र्ज़ी हस्ताक्षर का था लिहाज़ा सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने रीवा के SP आबिद खान को जाँच सौप दी। साथ ही सूचना आयोग ने महाविधालय के प्राचार्य को 15 दिन में जानकारी देने को कहा।
आयोग के आदेश के बाद भी जब समय सीमा में जानकारी नही मिली तो आवेदक ने सीधे सूचना आयुक्त से फ़ोन पर सम्पर्क किया और ईमेल कर के अपनी शिकायत दर्ज़ कराई। सूचना आयुक्त ने भी इस मामले में तुरंत करवाई करते हुए अपील की सुनवाई फ़ोन पर कर डाली और फ़ोन पर हुई आदेश जारी करने की करवाई का वीडियो ट्विटर के माध्यम से सावर्जनिक कर दिया। साथ ही सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने रीवा के क्षेत्रीय संचालक उच्च शिक्षा विभाग सत्येन्द्र शर्मा को फ़ोन पर तत्काल आदेश जारी करने का निर्देश देते हुए आदेश का पालन प्रतिवेदन व्हाटसअप के माध्यम से भेजने को कहा। एक घंटे के अंदर आदेश की कॉपी व्हाटसअप पर आते ही उसे सूचना आयुक्त ने ट्विटर पर डाल कर सावर्जनिक भी कर दिया।
छात्र के मामले का निराकरण व्हाटसअप के माध्यम से।
एक और मामले में रीवा के रामावतार नाम के एक छात्र ने अपनी मार्कशीट के लिए RTI की अर्जी लगाई। जानकारी नही मिलने पर उसने आयोग में अपील दायर की। सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने इस मामले में आदेश को व्हाटसअप के माध्यम से आवेदक को दिया और उसको प्रिंटआउट ले कर अधिकारियों से मिलने को कहा और साथ ही अधिकारियों को फोन पर जानकारी देने को कहा। 15 दिन में जब तक आयोग के आदेश की सरकारी डाक पहुँचती उससे पहले छात्र को उसकी मार्कशीट मिल गई थी।
अपने इस प्रयोग के बारे में देश के सबसे युवा सूचना आयुक्त राहुल सिंह का कहना है, " हम मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए उस पर करवाई करते है। कई मामलों में जानकारी मांगने वाला व्यक्ति वैसे ही बेहद परेशानी से गुजर रहा होता है। और अधिकारियों के रवैये से उनकी परेशानी बढ़ जाती है ऐसे में आयोग के इस तरह के फैसले लोगो को सूचना के अधिकार कानून के प्रति विश्वास पैदा करता है।"
सूचना आयोग का अनूठा फैसला। जानकारी नही देने जुर्माना ₹ 50000 और हर्जाना 1 रुपये का।
भोपाल,12 जुलाई, 2019
हर्जाने के तौर पर बड़ी राशि अदा करने की खबरें तो आप ने सुनी होगी। पर मध्य प्रदेश का सूचना आयोग इसलिए खबरों में है कि वहां आवेदक को बतौर हर्जाना महज एक रुपए अदा करने का अनूठा फैसला सुनाया है।
मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने मुख्य नगरपालिका अधिकारी ब्यावरा इकरार अहमद से दो अलग अलग प्रकरणों में कुल 50000 रुपये जुर्माने की रक़म वसूलने के लिए नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे को निर्देश दिए हैं। वही इस मामले में पिछले चार साल से जानकारी के लिए भटक रहे ब्यावरा के आरटीआई आवेदक राशिद जमील खान एक रुपये अदा करने की अजीबोगरीब मांग रख दी। सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने इस मांग को स्वीकार करते हुए प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन संजय दुबे को बतौर हर्जाना अपीलकर्ता को एक रुपए अदा करने का निर्देश भी दिए हैं।
ये जानकारी छुपाई गई थी।
इस मामले में आवेदक राशिद जमील खान ने सन 2015 में RTI के तहत राजगढ़ जिले के ब्यावरा नगर पालिका में निर्माण कार्य की क्वालिटी चेक टेस्ट रिपोर्ट एवं रिपोर्ट देने वाली प्रयोगशाला के नाम की जानकारी मांगी थी।
RTI को लेकर सरकारी अधिकारियों की लापरवाही।
इस मामले सूचना आयोग में 8 सुनवाईयां हुई जिसमें से सिर्फ दो मामलों में अधिकारी इकरार अहमद हाजिर हुए। 2017 में इस मामले में आयोग ने इकरार अहमद के खिलाफ ₹25000 अर्थदंड वसूली का आदेश जारी कर दिया था। उसके बाद भी जुर्माने की रक़म जमा नही कराई गई। अपीलकर्ता तीन बार आयोग में आयोग के आदेश का पालन कराने के लिए अर्जी भी दे चुका है।
आयोग के आदेश के अनदेखी से नाराज़ सूचना आयुक्त
अपीलकर्ता रशीद जमील खान जब तीसरी बार अपनी अर्जी लेकर सूचना आयुक्त राहुल सिंह से मिले तो उन्होंने इस प्रकरण तुरंत कार्रवाई के निर्देश दिए । पिछले 4 साल से चल रहे इस प्रकरण को सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने उस ढर्रे की मिसाल बताया है जो सूचना के अधिकार कानून की भावना के विपरीत कार्य करता है। साथ ही उन्होंने आयोग के आदेश की अवहेलना को बेहद गंभीर विषय क़रार देते हुए कहा कि इस मामले सूचना के अधिकार कानून की घोर अवहेलना की गई है और इसमें शासकीय कर्मचारी द्वारा सेवा शर्तों के विपरीत अपने कर्तव्यों के पालन में लापरवाही साफ झलकती है।
दोषी अधिकारी के ख़िलाफ़ कड़ी करवाई।
सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने दोषी लोक सूचना अधिकारी इकरार अहमद को सूचना का अधिकार कानून के प्रति लापरवाही बरतने के लिए उनके खिलाफ अनुशासनिक और विभागीय कार्रवाई करने के लिए भी प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन संजय दुबे को निर्देशित किया है। साथ ही आयोग ने इकरार अहमद की तनख्वाह में से ₹50000 अर्थदंड काटकर आयोग में 30 दिन के भीतर जमा कराने के लिए भी सीधे संजय दुबे की जवाबदेही तय की है।
सूचना अधिकारी आरटीआई से प्यार करेंगे तो शीघ्र दूर होगा भ्रष्टाचार परिचर्चा में सभी ने एकमत होकर कहा
मेट्रो मिरर फॉरवर्ड इंडिया फोरम थिंक टैंक द्वारा वलेंनटाईन डे पर
सूचना का अधिकार पर परिचर्चा आयोजित
भोपाल,14 फरवरी, 2019
शहर के प्रबुद्द व्यक्तियों और विशेषज्ञों ने आज स्वराज भवन में सूचना के अधिकार पर आयोजित परिचर्चा में भाग लिया - प्रमुख रूप से उपस्थित श्री आत्मदीप सूचना आयुक्त, श्री डॉ अनूप स्वरूप, चेयरमेन फॉरवर्ड इंडिया फोरम थिंक टैंक, श्री शिवहर्ष सुहालका, प्रधान संपादक मेट्रो मिरर न्यूज़ नेटवर्क, श्री रवि सक्सेना, कांग्रेस प्रवक्ता, श्री राकेश पाठक, प्रधान संपादक डीएनएन न्यूज़, श्री पी.पी सिंह ओ.एस.डी. मध्यप्रदेश माध्यम, वी.एन. पाठक, श्री विनोद नागर, श्री प्रेम पागारे, श्री के. के. दुबे, श्री रमेश ठाकुर, श्रीमती रोली शिवहरे एवं श्री नारायण सैनी।
डॉ अनूप स्वरूप और श्री शिवहर्ष सुहालका ने मेट्रो मिरर फॉरवर्ड इंडिया फोरम पहल के बारे में बताया। श्री सुहालका ने कहा कि फॉरवर्ड इंडिया फोरम ब्रेन पावर मीडिया इंडिया के सामाजिक दायित्व पहल का हिस्सा है जिसमें समाज के विभिन्न क्षेत्रों के प्रबुद्द लोग सलाहकार हैं। फोरम का उद्देश्य पारदर्शिता और सामाजिक चेतना द्वारा भ्रष्टाचार रहित समाज के निर्माण में योगदान करना है।
परिचर्चा में भाग लेते हुए श्री सुहालका ने कहा कि सभी सरकारी आय और व्यय प्रत्येक विभाग की वेबसाइट पर हर महीने अपडेट होना चाहिए, क्योंकि जनता को यह जानने का अधिकार है कि उनके पैसों का क्या और किस तरह उपयोग हो रहा है। सूचना अधिकारियों को सूचना मांगने वालों को अपना दोस्त समझना चाहिए ना कि दुश्मन।
अधिकतर ब्यूरोक्रेट्स को भी सूचना के अधिकार के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है। आरटीआई एक्टिविस्ट और एनजीओ भी अपना सही काम नहीं कर रहे हैं सरकारी खर्च पर आरटीआई के बारे में व्यापक प्रचार-प्रसार की जरूरत है, यह कहना है सूचना आयुक्त श्री आत्मदीप का जो परिचर्चा में विशेष रूप से उपस्थित रहे।
परिचर्चा में भाग लेते हुए मध्यप्रदेश माध्यम के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी श्री पी.पी. सिंह ने कहा कि सूचना मांगने से पहले मिल जाए तो समाज के लिए अच्छा है उन्होंने कहा कि पूरे सूचना आयोग नहीं है और बहुत से विभागों में सूचना अधिकारी ही नहीं है, या उनके बारे में जानकारी नहीं दी गई है। सूचना अधिकारी को जानकारी देने से ही रोक लिया जाता है श्री सिंह ने भी जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया।
सूचना का अधिकार भ्रष्टाचार को समाप्त करने में अहम रोल निभा रहा है, लेकिन इसका व्यापक प्रचार-प्रसार और सही तरीके से लागू किया जाना चाहिए इसके लिए सूचना अधिकारी और सूचना मांगने वाले सभी को बहुत सकारात्मक रवैया अपनाने की जरूरत है। - डॉ अनूप स्वरूप।
कोई भी जानकारी जो सरकारी या पब्लिक हित में है उसे छुपाया नहीं जा सकता, सभी जानकारी छुपाने के उपायों को खत्म किया जाना चाहिए। मीडिया में भी खेमेबाजी हावी है, जो कि नहीं होनी चाहिए। - डॉ राकेश पाठक प्रधान संपादक डीएनएन न्यूज़।
परिचर्चा में भाग लेते हुए श्री रवि सक्सेना, प्रवक्ता कांग्रेस ने कहा कि आरटीआई का दुरुपयोग ज्यादा और उपयोग कम हो रहा है। ब्लैकमेलर ज्यादा और सही काम करने वाले एक्टिविस्ट बहुत कम है उन्होंने व्यापम को दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम बताया।
श्रीमती रोली शिवहरे, आरटीआई एक्टिविस्ट ने कहा कि सरकारी अधिकारी आरटीआई को बोझ ना समझे सूचनाएं सालों तक ना मिलने से कानून कमजोर हो रहा है, और सभी संशोधन कानून को कमजोर कर रहे हैं उन्होंने कहा कि द्वितीय अपील की समय सीमा होनी चाहिए।
नवाचारी सूचना आयुक्त ने फिर किया नवाचार
5 साल के कामकाज का ब्योरा सार्वजनिक करने वाले पहले आयुक्त बने आत्मदीप
8 February 2019
भोपाल, म0प्र0 के राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने अपना कार्यकाल पूर्ण होने से ठीक पहले एक और नवाचार कर दिखाया है । उन्होनेे अपने 5 वर्ष के कार्यकाल में किए गए कामकाज का ब्योरा जनता के सामने पेष किया है। केन्द्रीय व राज्य सूचना आयोगों के इतिहास में देष-प्रदेष में यह पहला अवसर है जब किसी सूचना आयुक्त ने अपना रिपोर्ट कार्ड सार्वजनिक किया है। आयुक्त का कहना है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सार्वजनिक दायित्व का निर्वहन करने वाले सभी लोग जनता के प्रति जवाबदेह है। इसलिए ऐसे सब जिम्मेदार लोगों को स्वतः पहल कर, पदेन हैसियत से किए गए कामों का ब्योरा जनता के सामने पेष करना चाहिए ।
लोक अदालत, वीडियो क्रांफेसिंग व कैंप कोर्ट की पहल: सर्वसुलभ व नवाचारी सूचना आयुक्त के रूप में जाने जाने वाले आत्मदीप द्वारा जारी रिपोर्ट कार्ड में बताया गया है कि दि0 11/2/14 से अब तक के 5 वर्षीय कार्यकाल में उन्होने म0प्र0 के विभिन्न जिलों की, खासकर ग्वालियर, चंबल व रीवा संभागों की 5000 से अधिक अपीलों व षिकायतों का निराकरण किया है और सूचना के अधिकार की अवज्ञा करने वाले 21 लोक सेवकों को 3,13,500 रू0 के जुर्माने व हर्जाने से दंडित किया है। साथ ही कई ऐसे फैसले किए जो नजीर बने है।
उन्होने पुनर्गठित आयोग की पहली बैठक में ही प्रस्ताव पारित करा कर प्रदेष में पहली बार वीडियो कांफ्रेसिंग से अपीलों की सुनवाई शुरू कराई । साथ ही देष में पहली दफा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सभी संभागों में लोक अदालतें लगाने की नई परिपाटी शुरू कराई, जिसके जरिए सैकड़ों अपीलों का निपटारा किया गया । आयुक्त ने जानने के हक का फायदा अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए अपने प्रभार के सभी जिलों के दौरे करने की भी पहल की । उन्होने विभिन्न जिलों से आयोग की भोपाल कोर्ट में आने-जाने वाले पक्षकारों को राहत देने के लिए खुद जिला मुख्यालयों पर पहुंचकर केम्प कोर्ट लगाई और जिलों की अपीलों की सुनवाई संबंधित जिले में ही करने की कवायद की । कैम्प कोर्ट व वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए 600 अपीलों का निराकरण किया ।
कार्यषालाएं: आयुक्त ने सूचना के अधिकार के क्रियान्वयन की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए जिला मुख्यालयों पर जाकर लोक सूचना अधिकारियों, अपीलीय अधिकारियों व सूचना का अधिकार प्रकोष्ठ से जुड़े लोक सेवकों की कार्यषालाएं आयोजित की । इन कार्यषालाओं में संबंधित अधिकारियों -कर्मचारियों को प्रषिक्षण देते हुए आरटीआई एक्ट तथा म.प्र. सूचना का अधिकार (फीस व अपील) नियम 2005 के उद्देष्यों व मुख्य प्रावधानों से अवगत कराया और उन्हे ऐसी स्थिति निर्मित करने के लिए प्रेरित किया कि नागरिकों के सूचना के आवेदनों का नियत अवधि में यथोचित निराकरण लोक सूचना अधिकारी प्रथम स्तर पर ही हो जाए ताकि लोगों को अपील में न जाना पड़े ।
सोषल मीडिया: उन्होने सूचना के अधिकार के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए पहली बार सोषल मीडिया का भरपूर उपयोग किया । आत्मदीप ने फेसबुक पर ‘राईट टू इंफोर्मेषन (जर्नलिस्ट)’ नाम से पेज बनाकर उसके माध्यम से अपने महत्वपूर्ण फैसलों व संबंधित कानूनी प्रावधानों की जानकारी सबको दी । यह पेज देष-विदेष में काफी देखा जाता है । उन्होने पहली बार निःषुल्क हेल्प लाईन भी शुरू की जिसके तहत कोई भी नागरिक /लोक सेवक आयुक्त से मिलकर या उनसे फेसबुक पेज, व्हाट्सएप, इंस्ट्राग्राम, फोन, मोबाईल, ई मेल आदि के जरिए संपर्क कर सूचना के अधिकार से संबंधित कोई भी जानकारी प्राप्त कर सकता है। इस सुविधा का लाभ बड़ी संख्या में न केवल म.प्र., बल्कि कई राज्यों के लोग उठा रहे हैं ।
देष-विदेष में प्रचार प्रसार: जनता व लोकसेवकों की मदद के लिए सदैव आसानी से उपलब्ध रहने वाले आयुक्त ने म.प्र. के साथ राजस्थान में भी सरकारी आयोजनों के अलावा 50 से अधिक गैर सरकारी कार्यक्रमों में भी जाकर सूचना के अधिकार के बारे में प्रबोधन देकर लोगों को देष-प्रदेष के हित में इस अधिकार का अधिकाधिक उपयोग करने हेतु प्रेरित किया । आत्मदीप देष के पहले सूचना आयुक्त हैं जिन्होने देष से बाहर दुबई-आबूधाबी में भी संगोष्ठी कर प्रवासी भारतीयों को जानकारी दी कि वे किस प्रकार भारत आए बिना, विदेष में रहते हुए ही सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर वांछित जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं। उन्होने सूचना के अधिकार के प्रचार-प्रसार को अपना फर्ज समझते हुए इसके लिए किए गए दौरों का कोई टीए बिल भी क्लेम नहीं किया ।
और यह भी: म. प्र. के विभिन्न क्षेत्रों से सुनवाई के लिए बार-बार भोपाल आने -जाने मे होने वाली परेषानी और समय, धन व श्रम के खर्च से पक्षकारों को बचाने के लिए आयुक्त ने देष में पहली बार फोन/मोबाईल पर सुनवाई कर अपीलों का निराकरण करने की नई परिपाटी का सूत्रपात किया । उन्होने ज्यादातर अपीलों में सिर्फ एक पेषी लगाकर निर्णय पारित किए, ताकि पक्षकारों को बार बार सुनवाई में न आना पड़े । उन्होने मातृ शक्ति को सम्मान व बढ़ावा देने के लिए पहली बार अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर 8 मार्च को केवल महिलाओं की अपीलों/षिकायतों की सुनवाई करने का नया अध्याय भी शुरू किया । साथ ही सुनवाई में निःषक्तजनों, बुजुर्गों व महिलाओं को प्राथमिकता देने के सिलसिले का आगाज किया । आयुक्त का सर्वाधिक जोर ऐसे नवाचार करने पर रहा जिससे न्याय प्राप्ति आसान बने, पक्षकारों की परेषानियां दूर हों, उन्हे सुनवाई के लिए बार बार चक्कर न काटने पड़े, सभी संबंधित पक्षों के धन, समय व श्रम की बचत हो और सार्वजनिक संसाधन का अपव्यय न हो। साथ ही, सूचना के अधिकार को सूचना का रोजगार बना लेने वाले दुरूपयोगकर्ताओं को हतोत्साहित करने के लिए कड़े कदम उठाए ।
अहम फैसले: आयुक्त ने अपने फैसलों के जरिए सहकारी समितियों द्वारा संचालित उचित मूल्य की दुकानों व भारतीय रेडक्रास सोसायटी जैसी संस्थाओं को लोकहित में आरटीआई एक्ट के दायरे में लाकर जनता के प्रति उत्तरदायी बनाने का मार्ग प्रषस्त किया । उन्होनेे जनता के लिए उन विभागों/संस्थाओं/निकायों से भी वांछित जानकारी प्राप्त करने का कानूनी रास्ता खोला जिन्हें केन्द्र/राज्य सरकार ने आरटीआई एक्ट के प्रावधानों से छूट दे रखी है। उनमें लोकायुक्त की विषेष पुलिस स्थापना, आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो, विषेष सषस्त्र बल आदि शामिल हैं। आत्मदीप द्वारा लीक से हट कर किए गए और न्याय दृष्टांत बनने वाले सभी महत्वपूर्ण निर्णयों की जानकारी उनके फेस बुक पेज से ली जा सकती है।
सत्त जारी रहेगी मुफ्त सेवा: आम आदमी को सषक्त बनाने, शासन व उसके तंत्र को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाने तथा सार्वजनिक व्यवस्था में शुचिता व पारदर्षिता को बढ़ावा देने के पवित्र उद्देष्य से दिए गए सूचना के अधिकार के क्षेत्र में आत्मदीप की निःषुल्क सेवाएं सबके लिए सदैव उपलब्ध रहेंगी । इसके लिए वे सोषल मीडिया पर भी सक्रिय रहेंगे और सर्वउपयोगी मार्गदर्षिका भी तैयार करेंगे ।
पक्षकारों को राहत देने के लिए म0प्र0 राज्य सूचना आयोग का नवाचार
अब फोन पर भी सुनवाई कर अपीलें निपटाएगा सूचना आयोग
23 August 2018
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने पक्षकारों को राहत देने के लिए फोन पर अपीलों की सुनवाई करने की नई पहल की है। देष में संभवतः यह पहला अवसर है जब अपीलार्थियों, लोक सूचना अधिकारियों व अपीलीय अधिकारियों की सुविधा के लिए ऐसा नवाचार किया जा रहा है।
आयुक्त आत्मदीप ने बताया कि सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत म0प्र0 के 11 जिलों के 120 पक्षकारों को इस बारे में सहमति हेतु पत्र जारी किए गए हैं। पत्र में कहा गया है कि पहले चरण में राज्य सूचना आयोग में की गई 40 अपीलों का दूरभाष पर सुनवाई कर निराकरण करने का प्रस्ताव है । यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि अपीलार्थियों, लोक सूचना अधिकारियों व अपीलीय अधिकारियों को सुनवाई के लिए भोपाल आना-जाना नहीं पड़े और सबके मूल्यवान समय, श्रम व व्यय की बचत हो सके । फोन पर सुनवाई करने से सभी पक्षकारों को प्रतिकूल मौसम व यात्रा से होने वाली परेषानी से तो निजात मिलेगी ही, अपीलार्थियों का कामकाज और लोक सूचना अधिकारियों व अपीलीय अधिकारियों का कार्यालयीन कार्य भी प्रभावित नहीं होगा और सार्वजनिक संसाधन की भी बचत हो सकेगी । इससे अपीलार्थियों का खर्च बचने के साथ शासकीय व्यय में भी कमी आएगी । सभी पक्षकार अपने अपने स्थान पर रहते हुए ही आयोग के समक्ष अपना पक्ष पेष कर सकेंगे । इसमें हर पक्षकार का पांच-दस मिनट से ज्यादा समय नहीं लगेगा । इसके बाद आदेष (निर्णय) पारित कर सभी पक्षकारों को डाक से भेज दिया जाएगा ।
आयोग की ओर से पक्षकारों को सूचित किया गया है कि उक्त सद् उद्देष्य से किए जाने वाले इस नवाचार से यदि आप सहमत हों तो दूरभाष पर सुनवाई कर अपील का निराकरण किए जाने हेतु अपनी सहमति अपने दूरभाष/मोबाईल नंबर सहित आयोग को भेजें । दि0 15/10/18 तक सहमति प्राप्त न होने की दषा में अपीलीय प्रकरण आयोग के भोपाल स्थित कोर्ट रूम में नियमित सुनवाई में लिए जाएंगें। फोन पर सुनवाई संबंधी पत्र भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर, षिवपुरी, दतिया, भिंड, अषोकनगर, रीवा, सिंगरौली, सतना व सीधी जिलों के पक्षकारों को जारी किए गए हैं।
आयुक्त के अनुसार कई सरकारी दफ्तरों में स्टाफ की कमी के कारण मौजूदा स्टाफ पर कार्यभार अधिक है। ऐसी स्थिति में सूचना के अधिकार के क्रियान्वयन से जुड़े अधिकारियों-कर्मचारियों के आयोग में सुनवाई के लिए भोपाल आने-जाने से जनता से जुड़े कार्य प्रभावित होते हैं। इसके अलावा सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने वाले नागरिकों को यदि समय पर जानकारी नहीं दी जाती है तो उन्हें अपना कोई कसूर न होने पर भी प्रथम व द्वितीय अपील करने पर पैसा व वक्त खर्च करना पड़ता है। फोन पर सुनवाई करने से इस सबसे निजात मिलेगी । पक्षकारों को राहत देने के लिए आयुक्त आत्मदीप द्वारा वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से भी सुनवाई कर अपीलों का निराकरण किया जा रहा है ।
सूचना आयुक्त की नई पहल, अब आसानी से ले सकेंगें आरटीआई संबंधी जानकारी
फोन व फेसबुक पेज पर संपर्क कर और मिलकर भी ले सकंेगे जरूरी जानकारी
Our Correspondent :13 Jun 2018
सूचना के अधिकार के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए म.प्र. राज्य सूचना आयोग में नई पहल हुई है । इसके तहत नागरिक व सूचना के अधिकार के क्रियान्वयन से जुड़े अधिकारी-कर्मचारी राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप से फोन पर या फेसबुक पेज पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर सूचना के अधिकार के बारे में आवष्यक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं । इस दौरान सूचना का अधिकार अधिनियम और म.प्र. सूचना का अधिकार (फीस व अपील) नियम 2005 के प्रावधानों के बारे में आवष्यक जानकारी देने के साथ सवालों के जवाब भी दिए जाएंगे । इसके लिए हर हफ्ते के अंतिम कार्यदिवस (षुक्रवार/षनिवार) पर अपरान्ह 4 से 5 बजे का समय नियत किया गया है।
सूचना आयुक्त आत्मदीप ने बताया कि इस पहल का उद्देष्य सबके लिए हितकारी सूचना के अधिकार के क्रियान्वयन की स्थिति को बेहतर बनाना है। इसके लिए यह सुविधा शुरू करने के अलावा उनके द्वारा विभिन्न जिलों के दौरे कर गैर सरकारी संस्थाओं व संस्थानों के कार्यक्रमों में सूचना के अधिकार से संबंधित जानकारी दी जा रही है। जिलों में अपीलीय अधिकारियों, लोक सूचना अधिकारियों व अन्य संबंधित लोकसेवकों की कार्यषालाएं भी आयोजित की जा रही हैं । साथ ही, भोपाल कोर्ट में और जिलों में कैंप कोर्ट लगाकर अपीलों की सुनवाई के दौरान भी सभी पक्षकारों की काउंसलिंग की जा रही है।
आयुक्त के अनुसार इन सब प्रयासों की जरूरत इसलिए पड़ी है क्योंकि सूचना का कानून लागू हुए 12 बरस से ज्यादा अरसा गुजर जाने के बाद भी ज्यादातर वर्गों के लोगों को इस महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकार के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है। नतीजे मंे देष व प्रदेष की एक चौथाई आबादी भी सूचना के अधिकार का उपयोग नहीं कर रही है। इस मामले में महिला, बीपीएल व ग्रामीण वर्गोें के लोग सबसे पीछे हैं । प्रचार, प्रसार, प्रषिक्षण व जन जागरूकता में कमी के कारण ये हालात बने हैं। इस स्थिति को बदलने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जाने की आवष्यकता है। खासकर इसलिए क्योंकि सूचना का अधिकार जनता को और सषक्त बनाने के पुनीत ध्येय से दिया गया है। यह एक ऐसा मौलिक अधिकार है जो सार्वजनिक व्यवस्था में शुचिता व पारदर्षिता सुनिष्चित करने और लोकसेवकों में जनता के प्रति जवाबदेही को बढ़ावा देने का प्रभावी उपकरण सिध्द हो रहा है। इस ताकतवर और असरदार अधिकार का सदुपयोग कर नागरिक और लोकसेवक, भ्रष्टाचार व अनियमितताओं से मुक्त एवं जनता के प्रति उत्तरदायी सुषासन को सुनिष्चित करने और लोकतंत्र को स्वस्थ व सुदृढ़ बनाने में अपना योगदान कर सकते हैं। इसलिए सभी संबंधितों की ओर से ऐसी कोषिषें होनी चाहिए कि सूचना के अधिकार की पहुंच ज्यादातर नागरिकों तक हो ।
आयुक्त ने आषा जताई कि लोकसेवकों सहित तमाम तबकों के लोगों को सूचना के अधिकार से संबंधित जिज्ञासाओं का उत्तर पाने के लिए फोन पर/फेसबुक पेज पर/व्यक्तिगत रूप से संपर्क करने की शुल्करहित आसान सुविधा उपलब्ध होने से सभी पक्ष लाभान्वित होंगे । आवष्यकता होने पर यह सुविधा रोजाना मुहैया कराई जा सकेगी और फेसबुक लाईव पर भी संवाद किया जा सकेगा ।
सूचना आयोग का अहम फैसला
आरटीआई के दुरूपयोगकर्ताओं की सभी अपीलें खारिज, दी कड़ी चेतावनी
कहा - कानून के समक्ष स्वच्छ मन-मस्तिष्क से आएं
कानूनी प्रक्रिया का बेजा इस्तेमाल स्वीकार्य नहीं
Our Correspondent :4 Jun 2018
भोपाल, 04 जून 2018
म.प्र. राज्य सूचना आयोग ने दो अपीलार्थियों को सूचना के अधिकार के दुरूपयोग का दोषी
करार देते हुए उनकी 13 अपीलें खरिज कर दी हैं । साथ ही उन्हें चेतावनी दी है कि भविष्य में लोकहित में दिए गए इस महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकार का उपयोग अनुचित उद्देष्य के लिए कतई न करें, कानून के समक्ष स्वच्छ मन-मस्तिष्क से आएं और कानूनी प्रक्रिया का बेजा इस्तेमाल हरगिज करें । वरना आयोग, अपीलीय अधिकारी व लोक सूचना अधिकारी के मूल्यवान समय, श्रम व सार्वजनिक संसाधन को बर्बाद करने और लोक क्रियाकलाप से जुडे़ शासकीय कार्य में व्यवधान उत्पन्न करने के कारण उनके विरूध्द दंडात्मक कार्यवाही पर गौर किया जा सकता है।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने विनय शर्मा व अतुल उपाध्याय की अपीलों पर दिए गए अलग-अलग फैसलों में कहा है कि विभिन्न प्रकरणों में इन अपीलार्थियों की जो प्रवृति सामने आई है, उससे स्पष्ट होता है कि वे सूचना के अधिकार के सद्भाविक उपयोगकर्ता नहीं हैं । उनके द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के पावन ध्येय के अनुरूप, लोक हित में सूचना के अधिकार का उपयोग नहीं किया जा रहा है । बल्कि लोक प्राधिकारियों को अनावष्यक रूप से परेषान करने, उन पर अनुचित दबाव बनाने, उन्हे जटिल कार्य में उलझा कर जनता के लिए किए जाने वाले राजकाज को बाधित करने की अस्वच्छ मंषा से सूचना के पवित्र अधिकार का बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है जो स्वीकार्य नहीं है।
सख्त टिप्पणी: सूचना आयुक्त ने कहा कि तमाम मामलों में इन अपीलार्थियों की समूची कार्यवाही सूचना के आवेदन, प्रथम अपील व द्वितीय अपील डाक से भेजने तक सीमित रही है । इनके समस्त प्रकरणों में ऐसा कोई तथ्य सामने नहीं आता कि इन अपीलार्थियों ने आरटीआई लगाने से लेकर प्रथम व द्वितीय अपील करने तक की प्रक्रिया के दौरान, किसी भी स्तर पर, वांछित जानकारी प्राप्त करने में कभी कोई रूचि या गंभीरता दिखाई हो । इसके विपरीत, इनके रवैये से यह साफ तौर पर साबित होता है कि इनका मकसद जानकारी हासिल करना है ही नहीं । आयोग ने इन अपीलार्थियों को आगाह किया है कि अगर उन्होने आइंदा इस तरह की औचित्यहीन, निरर्थक अपीलें पेष की तो उनसे प्रतिकर वसूलने पर विचार किया जाएगा ।
अजब गजब रवैया: आयुक्त आत्मदीप ने कहा कि ये अपीलार्थी ग्वालियर, दतिया व षिवपुरी जिलों के विभिन्न सरकारी दफ्तरों में आरटीआई लगा कर लंबी चौड़ी जानकारी मांगते हैं । 1 आवेदन में 1 विषय या 1 विषिष्ट मद से संबंधित सूचना मांगने की बजाए विभिन्न विषयों से जुड़ी विस्तृत स्वरूप की जानकारियां मांगते हैं । अभिलेख विषेष की प्रति न मांगते हुए ऐसी जानकारियां भी मांगते हैं जो ‘‘सूचना’’ व ‘‘अभिलेख’’ की परिभाषा में नहीं आती है। ये जानकारी लेने के लिए न तो लोक सूचना अधिकारी कार्यालय में उपस्थित होते हैं, न डाक से जानकारी प्राप्त करने हेतु पता लिखा, डाक टिकिट लगा लिफाफा आवेदन के साथ संलग्न करते हैं और न ही लोक सूचना अधिकारी से कभी कोई संपर्क करते हैं। सूचित करने के बावजूद प्रतिलिपि शुल्क भी जमा नहीं करते हैं।
इसके बाद भी लोक सूचना अधिकारी नियत समय सीमा में पंजीकृत डाक से इन्हे वांछित जानकारी के संबंध में वस्तुस्थिति से अवगत करा देते हैं और या जानकारी निःषुल्क प्रेषित कर देते हैं । इस तरह आवेदन का समुचित निराकरण कर देने के बावजूद ये संतुष्ट नहीं होते हैं और बिना किसी विधिक आधार के प्रथम अपील कर देते हैं । पर सुनवाई में कभी उपस्थित नहीं होते हैं । अपीलीय अधिकारी द्वारा सूचित किए जाने पर भी जानकारी लेने के लिए कभी हाजिर नहीं होते हैं।
प्रथम अपील का विधि अनुसार निराकरण कर दिए जाने के बाद भी ये बिना किसी औचित्य के सूचना आयोग में द्वितीय अपील कर देते हैं और आयोग की सुनवाई में भी कभी उपस्थित नहीं होते हैं। ये प्रथम अपीलीय अधिकारी व सूचना आयोग को सुनवाई में हाजिर न होने का कोई कारण भी कभी सूचित नहीं करते हैं और न ही सुनवाई हेतु लिखित कथन प्रेषित करते हैं । जबकि लोक सूचना अधिकारी प्रथम व द्वितीय अपील की सुनवाई में वांछित अभिलेख सहित उपस्थित होते हैं । वे पुनः समक्ष में निःषुल्क देने के लिए जानकारी पेष करते हैं । लेकिन उसे लेने के लिए ये अपीलार्थी कभी नहीं आते हैं । अपनी अपील की ग्राह्यता पर नियत सुनवाई में भी ये अपीलार्थी हमेषा गैरहाजिर रहते हैं। इनकी अपीलों की सुनवाई के लिए आयोग ने इनके गृह जिले दतिया में कैंप कोर्ट लगाई । पर ये सदैव की भांति वहां भी उपस्थित नहीं हुए ।
यह भी हुआ: इन अपीलार्थियों ने इनका आवेदन संबंधित कार्यालय को अंतरित करने की सूचना मिलने के बाद भी जानकारी प्राप्त करने हेतु संबंधित कार्यालय से किसी प्रकार से संपर्क नहीं किया । इसी तरह अवगत कराने के बाद भी सक्षम अपीलीय अधिकारी को प्रथम अपील नहीं की और विधिविरूध्द ढंग से द्वितीय अपील कर दी ।
ऐसे भी अनेक मामले आयोग के सामने आए जिनमें लोक सूचना अधिकारी के सूचित करने के बाद भी इन अपीलार्थियों ने न तो नकल शुल्क जमा किया और न ही जानकारी प्राप्त करने हेतु उपस्थित हुए । फिर लोक सूचना अधिकारी को लिख कर दे दिया कि मैंने समस्त रेकार्ड का अवलोकन कर लिया है । अब मुझे वांछित दस्तावेजों की जरूरत नहीं है। इसके बाद भी प्रथम अपील कर दी । इस पर अपीलीय अधिकारी ने इन्हें निर्देषित किया कि उनके समक्ष उपस्थित होकर जानकारी प्राप्त करें । पर इन्होंने उनके सामने हाजिर होकर जानकारी लेने की जगह आयोग में द्वितीय अपील कर दी ।
विनय शर्मा ने तो एक मामले में लोक सूचना अधिकारी को यह भी लिख कर दिया कि मैं जानकारी की अपनी संपूर्ण मांग खारिज करता हूं, आइंदा कोई जानकारी नही मांगूंगा और अगर मांगू तो आयोग मेरी अपील स्वतः खारिज कर दे । इसके बाद भी इस अपीलार्थी ने इसी मामले में आयोग में अपील दायर कर दी ।
सूचना आयोग के आदेष का पालन न करने पर लोक सूचना अधिकारी पर पच्चीस हजार का जुर्माना
अब भी जानकारी न दी तो होगी और दंडात्मक कार्यवाई
Our Correspondent :15 January 2018
भोपाल, 15 जनवरी 2018 - म.प्र. राज्य सूचना आयोग ने अपने आदेषों की अवहेलना करने और अपीलार्थी को चाही गई जानकारी न देने पर लोक सूचना अधिकारी व पंचायत सचिव जगदीष जाटव को पच्चीस हजार रू. के जुर्माने से दंडित किया है । साथ ही चेतावनी दी है कि अब भी वांछित जानकारी न दी तो सचिव के खिलाफ सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 20 (2) के अंतर्गत भी दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने अपीलार्थी के. के. शर्मा की अपील पर फैसला सुनाते हुए जाटव को अधिनियम की धारा 3 व 7 तथा आयोग के आदेषों का उल्लंघन करने का दोषी करार दिया है। आयुक्त ने जाटव पर धारा 20 (1) के तहत अधिकतम शास्ति अधिरोपित करते हुए आदेषित किया है कि जुर्माने की रकम एक माह में आयोग कार्यालय में जमा कराएं । अन्यथा यह राषि उनके वेतन से काटने की कार्यवाही की जाएगी । आवष्यक होने पर उनके विरूध्द, आयोग को प्राप्त सिविल न्यायालय की शक्तियों का इस्तेमाल भी किया जा सकेगा । आयुक्त ने जाटव को पुनः आदेष दिया है कि अपीलार्थी को वांछित जानकारी अविलंब निःषुल्क उपलब्ध करा कर 15 फरवरी तक आयोग के समक्ष सप्रमाण पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करें । ऐसा न करने पर उनके विरूध्द अनुषासनात्मक/विभागीय कार्यवाही करने के लिए आदेष पारित किया जाएगा ।
सचिव की हिमाकत: फैसले में कहा गया है कि ग्राम पंचायत जड़ेरू (मुरैना) के लोक सूचना अधिकारी व सचिव जगदीष जाटव आयोग द्वारा नियत 3 पेषियों में लगातार गैरहाजिर रहे । यही नहीं, उन्होने न अनुपस्थिति का कोई कारण सूचित किया, न अपील उत्तर प्रेषित किया, न आयोग द्वारा उनके विरूध्द जारी कारण बताओ नोटिस का जवाब पेष किया और न ही आयोग द्वारा पारित 3 आदेषों का पालन किया । जनपद पंचायत, पहाड़गढ़ के निर्देष और आयोग के आदेषों के बाद भी अपीलार्थी को वांछित जानकारी नहीं दी । यह विधिविरूध्द व अनुत्तरदायित्वपूर्ण रवैया अपना कर लोक सूचना अधिकारी ने न केवल सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित पदेन दायित्व का निर्वहन नहीं किया, बल्कि सूचना के मौलिक अधिकार की भी निरंतर अवमानना की जो गंभीर कदाचरण की श्रेणी में आता है। प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा भी मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत मुरैना को जाटव के विरूध्द अनुषासनिक कार्यवाही करने हेतु प्रस्ताव भेजा जा चुका है।
यह है मामला: जौरा के अपीलार्थी न आवेदन दि. 04/04/16 में ग्राम पंचायत, जड़ेरू मंे मनरेगा व रोजगार गारंटी योजना के तहत भरे गए मस्टर रोल, माप पुस्तिका, बिल व्हाउचर आदि से संबंधित जानकारी मांगी थी । पर जाटव ने 30 दिन की नियत समय सीमा में यह जानकारी नहीं दी । इसके पश्चात जनपद पंचायत, पहाड़गढ़ के निर्देष, प्रथम अपीलीय अधिकारी की चेतावनी और आयोग के आदेषों की भी अनदेखी की ।
50 गुना अधिक फोटोकापी शुल्क वसूली पर आयोग का कड़ा रूख
सूचना के अधिकार के तहत अयुक्तियुक्त शुल्क वसूली की अनुमति नहीं: सूचना आयोग
परिवहन विभाग को निर्देष - सौ रू. की बजाए दो रू. शुल्क पर दें जानकारी
- परिवहन आयुक्त तय करें युक्तिसंगत दर
Our Correspondent :30 November 2017
भोपाल, 30 नवंबर 2017 - म.प्र. राज्य सूचना आयोग ने सूचना के अधिकार के तहत परिवहन विभाग द्वारा वसूले जा रहे अत्यधिक शुल्क को अयुक्तियुक्त करार देते हुए दो रू. प्रति पेज की दर से आवेदकों को सूचना देने का आदेष दिया है । साथ ही परिवहन आयुक्त को निर्देषित किया है कि सूचना का अधिकार अधिनियम के मंतव्य और म.प्र. सूचना का अधिकार (फीस व अपील) नियम 2005 के नियम 5 (1) को ध्यान में रखते हुए नागरिकों द्वारा सूचना के अधिकार के तहत चाहे जाने वाले दस्तावेजों की, म.प्र. मोटर यान नियम के तहत निर्धारित फोटोकापी शुल्क की दरों का पुनरीक्षण करें और वास्तविक लागत के आधार पर युक्तियुक्त दरें निर्धारित करने हेतु यथाषीघ्र वांछित कार्यवाही कर आयोग को अवगत कराएं ।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने पत्रकार दीपक तिवारी की अपील पर दिए गए फैसले में कहा कि मनमानी शुल्क वसूली सूचना का अधिकार अधिनियम के महान व पवित्र उद्देष्य के प्रतिकूल है । म.प्र. सूचना का अधिकार (फीस व अपील) नियम के तहत ऐसी सूचना, जिसके लिए अन्य अधिनियम/नियम में अलग शुल्क निर्धारित है, तो आवेदक से वैसा शुल्क लिया जा सकता है । लेकिन इस नियम की आड़ में अनापशनाप शुल्क वसूली की अनुमति नहीं दी जा सकती है। म.प्र. मोटर यान नियम 1994 के नियम 62 में ए3/ए4 साइज के कागज के लिए भी सौ रू. से डेढ़ सौ रू. प्रति पेज की दर निर्धारित की गई है जो अन्य प्रयोजन के लिए है । इस शुल्क दर को सूचना के अधिकार के संदर्भ में प्रयुक्त किया जाना किसी द्वष्टि से औचित्यपूर्ण व न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता है। म.प्र. शासन ने ही फीस व अपील नियम 2005 में सूचना के अधिकार के तहत ए3/ए4 साइज के कागज की फोटोकापी के लिए दो रू. प्रति पेज की दर निर्धारित की है। उसके मुकाबले वास्तविक लागत से 50 गुना से भी ज्यादा फोटोकापी शुल्क वसूला जाना विधि व न्याय से संगत नहीं है। नागरिकों से वसूले जाने वाले किसी भी शुल्क की राषि हर स्थिति में युक्तियुक्त आधार पर ही तय की जाना चाहिए । यदि म.प्र. सूचना का अधिकार (फीस व अपील) नियम के नियम 7 के अंतर्गत विभागों को कितना भी प्रतिलिपि शुल्क तय करने की छूट दी गई तो इतना अधिक शुल्क भी निर्धारित किया जा सकता है कि जिसके कारण नागरिकों को वांछित सूचना प्राप्त करने से वंचित रहना पड़ सकता है। ऐसी विषम स्थिति नैसर्गिक न्याय, लोकहित और सूचना का अधिकार अधिनियम की मंषा के प्रतिकूल होगी जो अस्वीकार्य है। आयोग ने परिवहन विभाग को आदेषित किया है कि अपीलार्थी को सौ रू. की बजाए दो रू. प्रति पेज की दर से वांछित नकलें मुहैया कराएं ।
यह है मामलाः अपीलार्थी ने जिला परिवहन अधिकारी, विदिषा से वाहन प्रदूषण प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत किए गए लोगों/संस्थाओं के प्रमाण पत्रों की नकलें चाही थी । लोकहित में चाही गई ए4 साइज की इन नकलों के लिए सौ रू. प्रति पेज फोटोकापी शुल्क मांगा गया । जबकि बाजार में यह फोटोकापी एक रू. में हो जाती है। इसलिए इतने अधिक शुल्क पर आपत्ति करते हुए अपीलार्थी ने प्रथम अपील की जिसे अपीलीय अधिकारी/अपर कलेक्टर ने यह कह कर खारिज कर दिया कि निर्धारित शुल्क जमा करने पर ही नकलें दी जा सकती हैं । अपीलार्थी ने जिला परिवहन अधिकारी व अपर कलेक्टर के निर्णयों को सूचना आयोग में चुनौती दी जिस पर आयोग ने उनके निर्णयों को निरस्त करते हुए उक्त आदेष पारित किया ।
आरटीआई मामले में जीएडी में दिया तले अंधेरा जैसे हालात
सूचना आयोग की जीएडी को फटकार, आरटीआई एक्ट का पालन करने की हिदायत
Our Correspondent :24 November 2017
भोपाल, 24 नवंबर 2017 - म.प्र. राज्य सूचना आयोग ने सामान्य प्रषासन विभाग (जीएडी) में सूचना के अधिकार का समुचित क्रियान्वयन न होने पर गहरी नाराजगी जताते हुए विभाग के प्रमुख सचिव को व्यवस्था में सुधार हेतु शीघ्र आवष्यक कार्रवाई करने का निर्देष दिया है।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने पत्रकार दीपक तिवारी की अपील पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि जीएडी के लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित पदेन दायित्व का निर्वहन करने और अधिनियम के अनिवार्य प्रावधानों का पालन करने में पूर्णतः विफल रहे हैं । यह दिया तले अंधेरा जैसी स्थिति है जो जीएडी के लिए शोभनीय नहीं है । सूचना के मौलिक अधिकार के प्रति बेपरवाही का यह आलम इसलिए अधिक गंभीर व चिंताजनक है क्योंकि म0प्र0 शासन द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन हेतु जीएडी को नोडल विभाग बनाया गया है। ऐसे में अन्य विभागों के मुकाबले जीएडी की अधिक जिम्मेदारी बनती है। नोडल विभाग होने के नाते स्वाभाविक रूप से जीएडी पर यह दायित्व आयद होता है कि वह स्वयं सूचना के आवेदनों व प्रथम अपील का विधि अनुसार निराकरण करने में कोई त्रुटि न करे और सभी विभागों में आरटीआई एक्ट का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिष्चित करे । यही नहीं, नोडल विभाग को सूचना के अधिकार को सार्थक बनाने के लिए सबसे कारगर व मार्गदर्षक की ऐसी भूमिका निभानी चाहिए जो दूसरे विभागों के लिए प्रेरक व अनुकरणीय मिसाल बने ।
फैसले में कहा गया है कि जीएडी ने ही सभी संबंधित अधिकारियों - कर्मचारियों व नागरिकों के लिए केन्द्र व राज्य शासन द्वारा जारी परिपत्रों - दिषा निर्देषों सहित आरटीआई एक्ट की मार्गदर्षिका जारी की है । इसलिए सबसे पहले जारी कर्ता विभाग को ही यह सुनिष्चित करना चाहिए कि उसके लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी उसके द्वारा जारी दिषा निर्देषों का पालन करें । नोडल विभाग को न केवल आरटीआई एक्ट के प्रावधानों को भावनात्मक रूप से ग्रहण करना चाहिए, अपितु यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आरटीआई एक्ट के तहत जहां नागरिक की स्थिति संविधिक व्यक्ति की है, वहीं लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी अर्धन्यायिक प्राधिकारी की हैसियत मेें हैं । इसलिए लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी को चाहिए कि वे आरटीआई संबंधी कार्यवाही को रूटीन ड्यूटी के रूप में न लें, बल्कि अर्धन्यायिक कार्यवाही के सही रूप में लेते हुए निर्धारित पदेन दायित्व का समुचित निर्वहन करें।
आयोग ने जीएडी के लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी को चेतावनी दी है कि आरटीआई व प्रथम अपील का नियत अवधि में निराकरण न करने की वैधानिक त्रुटि आइंदा हरगिज न करें। अन्यथा उनके विरूध्द धारा 19 व 20 के तहत दंडात्मक प्रावधान आकर्षित होंगे ।
यह है मामला: अपीलार्थी ने विदिषा कलेक्टर अनिल सुचारी से संबंधित सूचना के लिए जीएडी में आरटीआई लगाई और सूचना न मिलने पर प्रथम अपील पेष की । लेकिन जीएडी के लोक सूचना अधिकारी ने आरटीआई पर और अपीलीय अधिकारी ने अपील पर न सिर्फ निर्धारित समय सीमा में कोई कार्यवाही नहीं की, बल्कि साल भर बाद भी अपीलार्थी को कोई इत्तला देने की जरूरत नहीं समझी । आयोग में द्वितीय अपील होने पर लोक सूचना अधिकारी ने विदिषा कलेक्टर का पक्ष जाने बिना सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के हवाले वांछित सूचना देने में असमर्थतता व्यक्त कर दी ।
सूचना आयोग के आदेष का पालन न करना पड़ा भारी
नगर परिषद के सीएमओ पर लगातार दूसरी बार ठोका पच्चीस हजार का जुर्माना
Our Correspondent :16 November 2017
भोपाल, 16 नवंबर 2017 - म.प्र. राज्य सूचना आयोग ने नगर परिषद, ब्यावरा (राजगढ़) के सीएमओ इकरार अहमद को एक बार फिर पच्चीस हजार रू. के जुर्माने से दंडित किया है। उनके विरूध्द एक अन्य मामले में भी आयोग ने हाल में ऐसा ही दंडादेष पारित किया है। इस तरह उन पर दो बार में कुल पचास हजार रू. का अर्थदंड लगाया गया है। सूचना का अधिकार अधिनियम की सरासर अनदेखी करने, अपीेलार्थी को चाही गई जानकारी न देने और अपीलीय अधिकारी व आयोग के आदेष का भी पालन न करने के कारण उनके खिलाफ यह दंडात्मक कार्यवाही की गई है। आयोग ने उन्हें अपीलार्थी को वांछित जानकारी तुरंत देने का आदेष देते हुए अल्टीमेटम दिया है कि ऐसा न करने पर उनके विरूध्द विभागीय कार्यवाही समेत अन्य दंडात्मक कार्यवाही भी की जा सकेगी ।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने राषिद जमील खान, जिला कांग्रेस महामंत्री, राजगढ़ की अपील स्वीकार करते हुए नगर परिषद, ब्यावरा के लोक सूचना अधिकारी व मुख्य नगर पालिका अधिकारी (सीएमओ) अहमद के खिलाफ कड़ी टिप्पणियां की हैं । आयुक्त ने फैेसले में कहा है कि अहमद ने अपीलार्थी के सूचना के आवेदन का निर्धारित अवधि में निराकरण न कर केवल धारा 3 व 7 का उल्लंघन किया, अपितु प्रथम व द्वितीय अपीलीय कार्यवाही की भी अनदेखी की । यही नहीं, प्रथम अपीलीय अधिकारी संयुक्त संचालक, नगरीय प्रषासन व विकास विभाग, भोपाल संभाग और सूचना आयोग के आदेष का भी पालन नहीं किया । इसके अलावा उन्होने आयोग को गलत सूचना दी कि अपीलार्थी को वांछित जानकारी मुहैया करा दी गई है। वे विभिन्न पेषियों पर बिना वजह गैर हाजिर रहे और आयोग द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस का जवाब भी पेष नहीं किया । इसलिए आयुक्त ने उन्हे आरटीआई एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन करने का दोषी करार दिया है।
सूचना आयुक्त ने सीएमओ को आदेष दिया है कि अर्थदंड की राषि एक माह में आयोग में जमा कराएं। अन्यथा उनके विरूध्द अनुषासनात्मक कार्यवाई करने और उनके वेतन से जुर्माना राषि काटने की कार्यवाही की जाएगी । यह राषि भूराजस्व के बकाया के तौर भी वसूली जा सकेगी । सीएमओ को पुनः आदेषित किया गया है कि अपीलार्थी को एक हफ्ते में वांछित जानकारी निःषुल्क देकर पालन प्रतिवेदन पेष करें । वरना उनके खिलाफ धारा 20 (2) के तहत भी दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी ।
क्या था मामलाः अपीलार्थी ने सीएमओ से नगर परिषद, ब्यावरा द्वारा सांसद निधि से कराए गए कार्यों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए निर्माण सामग्री की टेस्ट रिपोर्ट, टेस्ट रिपोर्ट देने वाली लेबोरेट्री के नाम और टेस्ट हेतु किए गए भुगतान की जानकारी मांगी थी । जानकारी न देने पर अपीलार्थी ने प्रथम अपील की जिस पर अपीलीय अधिकारी ने 15 दिन में जानकारी मुफ्त देने का आदेष दिया । फिर भी जानकारी नहीं दी गई । इस पर अपीलार्थी ने आयोग में अपील की जिस पर आयोग ने भी अपीलार्थी को जानकारी निःषुल्क देकर पालन प्रतिवेदन पेष करने का आदेष दिया । पर सीएमओ ने इसकी भी पालना नहीं की । इसलिए आयोग ने उनके विरूध्द लगातार दूसरी बार दंडादेष पारित किया है ।
मध्यप्रदेष सूचना आयोग का फैसला
आरटीआई एक्ट का उल्लंघन करना पड़ा महंगा, सीएमओ पर लगा पच्चीस हजार का अर्थदंड
अन्य दंडात्मक कार्यवाही की भी चेतावनी
Our Correspondent :13 November 2017
भोपाल, 13 नवंबर 2017 म.प्र. राज्य सूचना आयोग के आदेष का पालन न करने और अपीलार्थी को चाही गई जानकारी न देने के कारण नगर परिषद ब्यावरा (राजगढ़) के सी. एम. आ.े इकरार अहमद को 25 हजार रू. के जुर्माने से दंडित किया गया है । साथ ही चेतावनी दी गई है कि अब भी जानकारी नहीं दी गई तो उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही सहित अन्य दंडात्मक प्रावधान भी आकर्षित होेंगे ।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने राजगढ़ जिला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री राषिद जमील खान की अपील मंजूर करते हुए लोक सूचना अधिकारी व मुख्य नगर पालिका अधिकारी (सीएमओ) अहमद द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का निरंतर उल्लंघन किए जाने पर सख्त नाराजगी जताई है। उन्होने फैसले में कहा है कि अहमद ने अपीलार्थी को नियत समय में कोई जानकारी न देकर धारा 7 का उल्लंघन किया । इसके अलावा वे न प्रथम अपील की सुनवाई में हाजिर हुए और न ही अपीलीय अधिकारी संभागीय संयुक्त संचालक, नगरीय प्रषासन व विकास विभाग, भोपाल के आदेष का पालन किया । बल्कि भिन्न-भिन्न तिथियां बताते हुए असत्य लेख किया कि अपीलार्थी को वांछित जानकारी दे दी गई है। वे आयोग की ज्यादातर सुनवाईयों में भी उपस्थित नहीं हुए, आयोग द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस का उत्तर भी पेष नहीं किया और जानकारी देकर पालन प्रतिवेदन पेष करने के आयोग के आदेष का भी पालन नहीं किया । इस प्रकार सीएमओ ने सूचना का अधिकार अधिनियम का लगातार उल्लंघन कर विधिविरूध्द आचरण किया है जिसके लिए उन्हें दंडित करना लोकहित व न्याय हित में आवष्यक है।
सूचना आयुक्त ने फैसले में कहा है कि सीएमओ द्वारा जुर्माने की राषि एक माह में आयोग में जमा न कराए जाने पर अनुषासनिक प्राधिकारी के माध्यम से सीएमओ के खिलाफ अनुषासनात्मक कार्यवाही करने और जुर्माने की रकम उनके वेतन से काटने की कार्यवाही की जाएगी । जरूरी होने पर उनके विरूध्द आयोग को प्राप्त सिविल कोर्ट की शक्तियों का भी इस्तेमाल किया जाएगा ।
यह है मामलाः राषिद जमील खान ने सीएमओ से उपयंत्री द्वारा मूल्यांकन किए गए कार्यों की, उन कार्यों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए निर्माण सामग्री की टेस्ट रिपोर्ट की, टेस्ट रिपोर्ट देने वाली प्रयोगषाला के नाम व उसे किए गए भुगतान की जानकारी मांगी थी जो नहीं दी गई । अपीलीय अधिकारी के आदेष तथा आयोग के आदेषों के बाद भी वांछित जानकारी मुहैया नहीं कराई गई । सीएमओ ने अपीलीय अधिकारी व आयोग के समक्ष प्रचलित अर्ध्दन्यायिक कार्यवाही के प्रति भी उदासीनता बरती । आयोग ने उन्हें पुनः आदेषित किया है कि अपीलार्थी को चाही गई जानकारी 7 दिन में निःषुल्क प्रदाय कर पालन प्रतिवेदन पेष करें।
सूचना आयोग ने अपनाया सख्त रूख
लोक हित की जानकारी न देना पड़ा भारी, अपर आयुक्त पर लगा 25 हजार रू. का जुर्माना
नहीं दी थी गांवों में रात बिता कर जन समस्याएं निपटाने से जुड़ी जानकारी
Our Correspondent :27 September 2017
भोपाल, 27 सितंबर 2017- गांवों में रात्रि विश्राम कर जनता की समस्याएं सुनने, उनका निराकरण करने और इस बारे में शासन को रपट पेष करने के राज्य सरकार के निर्देष का पालन न करना एक प्रषासनिक अधिकारी को महंगा पड़ गया । इस संबंध में सूचना के अधिकार के तहत एक नागरिक द्वारा चाही गई जानकारी न देने पर म.प्र. राज्य सूचना आयोग ने नगर निगम, इंदौर के अपर आयुक्त संतोष टैगोर को पच्चीस हजार रू. के जुर्माने की सजा सुनाई है । साथ ही अपीलार्थी को वांछित जानकारी 7 दिन में निःषुल्क देने का आदेष देते हुए अल्टीमेटम दिया है कि ऐसा न करने पर अपर आयुक्त के खिलाफ सेवा नियमों के तहत अनुषासनात्मक/विभागीय कार्यवाही पर भी गौर किया जा सकता है।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने पत्रकार कैलाष सनोलिया की अपील पर फैसला सुनाते हुए कहा कि म.प्र. शासन के निर्देषानुसार लोक सेवकों (अधिकारियों) के ग्रामों में रात्रि विश्राम कर जन समस्याओं का निपटारा करने से जुड़ी जानकारी लोक क्रियाकलाप व व्यापक लोक हित से संबंधित है जिसे प्राप्त करने का नागरिकों को अधिकार है । लेकिन राज्य प्रषासनिक सेवा के अधिकारी टैगोर ने लोक सूचना अधिकारी/अनुविभागीय अधिकारी (एसडीओ), नागदा के पद पर रहते हुए यह जानकारी नियत समय सीमा में नहीं दी । समस्त वांछित जानकारी 15 दिन में मुफ्त देने के अपीलीय अधिकारी, कलेक्टर उज्जैन के आदेष के बाद भी जानकारी देने में हीलहवाला किया । 50 दिन से अधिक के विलंब से भी जानकारी देने के नाम पर अवांछित, भ्रामक व गलत सूचना दी । वांछित जानकारी 7 दिन में निःषुल्क देने के सूचना आयोग के आदेष की भी अवहेलना की । यही नहीं, सजा से बचने की गरज से आयोग के शो काज नोटिस का विरोधाभासी, असत्य व अस्वीकार्य जवाब पेष किया ।
इस पर सूचना आयुक्त ने टैगोर को जानबूझकर बदनियती से वास्तविक जानकारी छुपाने, सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित पदेन दायित्व के निर्वहन में विफल रहने, कर्त्तव्यविमुखता प्रदर्षित करते हुए विधि से असंगत व गैरजिम्मेदाराना रवैया अपनाने, प्रथम अपीलीय कार्यवाही के प्रति उदासीनता बरतने, आयोग व अपीलीय अधिकारी के आदेष का पालन न करने और धारा 7 के उल्लंघन का दोषी करार देते हुए दंडित किया है।
आयुक्त आत्मदीप ने फैसले में कहा है कि तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी टैगोर एक माह में जुर्माने की रकम अदा करें । अन्यथा संबंधित अनुषासनिक प्राधिकारी के माध्यम से उनके विरूध्द अनुषासनात्मक कार्यवाही करने और जुर्माना वसूलने के लिए जरूरी कार्यवाही की जाएगी । आवष्यक होने पर आयोग को प्राप्त सिविल न्यायालय की शक्तियों का भी इस्तेमाल किया जा सकेगा ।
यह है मामला: अपीलार्थी ने इस आषय की जानकारी मांगी थी कि शासन ने सभी एस.डी.ओ. को गांवोें में रात बिताकर ग्रामीणों की समस्याएं सुनने, उनका निराकरण करने और इस बाबत कलेक्टर को रपट पेष करने के दिषा निर्देष जारी किए हैं । उन्हें इन निर्देष की प्रति, इनके पालन में गांवों में किए गए रात्रि विश्राम व ग्रामीणों की समस्याओं के निपटारे के लिए की गई कार्यवाही के विवरण की प्रति और कलेक्टर को पेष की गई रपट की जानकारी दी जाए ।
जानकारी न मिलने पर अपीलार्थी ने आयोग में द्वितीय अपील की । जिसकी सुनवाई में टैगोर ने भरोसा दिया कि वे उपलब्ध जानकारी जल्द दे देंगे और अनुपलब्ध जानकारी के बारे में भी अवगत करा देंगे । पर उन्होने न तो यह आष्वासन पूरा किया और न ही आयोग के आदेष पर अमल किया । इस पर आयोग ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया । टैगोर ने इसका जवाब पेष किया जिसे आयोग ने अस्वीकार्य करार देते हुए अपील मंजूर कर दंडादेष पारित कर दिया ।
सूचना का अधिकार बना वरदान,सेवानिवृत्त लोक सेवक को मिला लाखों का अटका भुगतान
महिला सषक्तिकरण अधिकारी से ही हो रही थी नाइंसाफी
सूचना आयोग के फैसले से मिला इंसाफ
घूसखोरी से मिली निजात
Our Correspondent :7 September 2017
भोपाल, 07 सितंबर 2017- सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर कोई नागरिक/लोक सेवक किस तरह अपने साथ हुए अन्याय से निजात पा सकता है, इसका उल्लेखनीय प्रकरण सामने आया है । म.प्र. राज्य सूचना आयोग में अपील करने पर आयोग द्वारा पारित आदेष एक सेवानिवृत्त महिला लोक सेवक के लिए वरदान साबित हुआ है। उसे न केवल संबंधित अधिकारियों की रिष्वतखोरी के अभिषाप से मुक्ति मिल गई है, बल्कि जानबूझकर रोके गए लाखों रू. के विभिन्न भुगतान भी मिलने का रास्ता साफ हो गया है। आयोग के आदेष के बाद अपीलार्थी को 17 लाख रू. से अधिक का बकाया भुगतान कर दिया गया है और लगभग ढाई लाख रू. का शेष भुगतान भी एक माह में करने के साथ अपीलार्थी के लंबित पेंषन प्रकरण का निराकरण भी कर दिया जाएगा ।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने मानवीय संवेदना की दृष्टि से महत्वपूर्ण श्रीमती मनोज पढ़रया की अपील का लगभग 8 माह में ही निराकरण कर दिया । उन्होने अपील मंजूर करते हुए अपने फैसले में कहा कि अपीलार्थी द्वारा चाही गई जानकारी उसकी सेवा पुस्तिका और अप्राप्त स्वत्वों से संबंधित है जिससे अपीलार्थी का जीवन प्रभावित है। स्वयं की सेवा पुस्तिका व बकाया भुगतान से संबंधित जानकारी प्राप्त करना हर लोक सेवक का मानवाधिकार भी है और वैधानिक अधिकार भी । इसलिए लोक सूचना अधिकारी का वह निर्णय रद्द किया जाता है जिसमें यह कह कर जानकारी देने से इंकार किया गया कि प्रष्नवाचक जानकारी तैयार कर देने का प्रावधान नहीं है। चाही गई जानकारी लोक हित व न्याय हित में देने योग्य है। अतः जिला महिला सषक्तिकरण अधिकारी को आदेषित किया जाता है कि अपीलार्थी को संबंधित अभिलेख का अवलोकन करा कर वांछित जानकारी निःषुल्क उपलब्ध कराएं और प्रकरण का निराकरण कर आयोग के समक्ष सप्रमाण पालन प्रतिवेदन पेष करें।
कारण बताओ नोटिस भी: सूचना आयुक्त ने अपीलार्थी की आरटीआई का समय सीमा में व उचित निराकरण न करने के कारण लोक सूचना अधिकारी को एस.सी.एन. भी जारी किया कि क्यों न उनके विरूध्द जुर्माना लगाने व अपीलार्थी को हर्जाना दिलाने की कार्यवाही की जाए ।
इसके उत्तर में जिला सषक्तिकरण अधिकारी ने अपीलार्थी की पावती समेत पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत कर बताया कि आयोग के आदेष के पालन में अपीलार्थी को उनकी सेवा पुस्तिका सहित वांछित सूचना समक्ष में मुफ्त दे दी गई है। इसके अलावा अपीलार्थी को सेवानिवृत्ति के बाद देय सभी स्वत्वों का भुगतान कर दिया गया है । पेंषन प्रकरण भी अंतिम पड़ाव पर है। अपीलार्थी को अंतरिम पेंषन के 6 लाख 29 हजार 655 रू. , जी.पी.एफ के 10 लाख 12 हजार 537 रू., परिवार कल्याण निधि के 33,693 रू. और समूह बीमा के 32, 396 रू. का भुगतान कर दिया गया है । अर्जित अवकाष के 2 लाख 44 हजार 985 रू. के देयक, कोषालय में लंबित आपत्तियों का निराकरण करने के बाद भुगतान हेतु कोषालय में पेष किए जा चुके हैं । पदोन्नति - क्रमोन्नति व छठवां वेतन के वेतन निर्धारण की जांच कर संयुक्त संचालक, कोष व लेखा से अनुमोदन हेतु प्रकरण तैयार कर भेजा जा रहा है। अनुमोदन उपरांत पेंषन प्रकरण तैयार कर उसका तत्काल निराकरण कराया जाएगा । इस प्रकार अपीलार्थी के शेष स्वत्वों का निराकरण भी लगभग एक माह में करा दिया जाएगा ।
आयोग ने अपीलार्थी के प्रकरण का पूर्ण निराकरण होने तक के लिए लोक सूचना अधिकारी के विरूध्द जारी एस.सी.एन. पर निर्णय सुरक्षित रखा है।
यह था मामला: खंड महिला सषक्तिकरण अधिकारी के पद से डेढ़ साल पहले सेवानिवृत्त हुई श्रीमती मनोज पढ़रया अपनी सेवानिवृत्ति से पूर्व के और बाद के देय भुगतान जानबूझकर अटकाए जाने तथा संबंधित अधिकारियों द्वारा मोटी घूस मांगे जाने से परेषान थी । उनकी सेवापुस्तिका गुम कर दी गई । कलेक्टर, दतिया के आदेष के बाद भी डुप्लीकेट सेवा पुस्तिका समय पर नहीं बनाई गई । जबकि संबंधित दस्तावेज कार्यालयीन रेकार्ड में संधारित थे । इस बाबत सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी भी उन्हें नहीं दी गई। उनकी प्रथम अपील पर भी कोई कार्यवाही नहीं की गई । तब उन्होने सूचना आयोग में अपील दायर कर न्याय की गुहार लगाई । उनका कहना था कि वे दमा, हार्ट, षूगर, बीपी जैसे कई रोगों से पीडि़त हैं और 20 लाख रू. से अधिक के बकाया भुगतान न मिलने से मानसिक, आर्थिक, शारीरिक व सामाजिक रूप से संत्रास भुगतने को मजबूर हैं। देय स्वत्वों का भुगतान करने की जगह उल्टे उन्हें विभागीय जांच के नाम पर 35,360 रू. का जुर्माना भरने पर मजबूर किया गया । फिर भी उन्हें इंसाफ नहीं मिला । आयोग के आदेष से उन्हे महीने भर में ही न्याय मिलने का रास्ता साफ हो गया ।
मध्यप्रदेष सूचना आयोग का अहम फैसला
पी.एच डी. संबंधी जानकारी सार्वजनिक करने से इंकार नहीं कर सकते विष्वविद्यालय
Our Correspondent :13 Aug, 2017
सूचना के अधिकार के तहत विष्वविद्यालयों को पी. एच डी. संबंधी चाही गई जानकारियां नागरिकों को देनी होंगी । पी. एच डी. से संबंधित जानकारी देने से यह कह कर इंकार नहीं किया जा सकता है कि यह जानकारी तृतीय पक्ष से संबंधित है । तृतीय पक्ष की असहमति मात्र पर भी यह जानकारी देने से मना नहीं किया जा सकता है । यह जानकारी वि.वि. के अभिलेख का भाग है जो गोपनीय न होकर लोक दस्तावेज की श्रेणी में आती है।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने यह फैसला सुनाते हुए जीवाजी विष्वविद्यालय के लोक सूचना अधिकारी/कुल सचिव को आदेष दिया है कि आदिम जाति कल्याण विभाग, भोपाल के अतिरिक्त संचालक सुरेन्द्र सिंह भंडारी की पी. एच डी. से संबंधित जानकारियां अपीलार्थी अनिल शर्मा को निःषुल्क उपलब्ध कराएं।
शर्मा की अपील पर सुनवाई के बाद पारित आदेष में आत्मदीप ने कहा है कि सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 2 के तहत पी. एच डी. संबंधी सूचना सार्वजनिक किए जाने योग्य है । केवल तृतीय पक्ष की असहमति के आधार पर इसे देने से इंकार नहीं किया जा सकता है । विष्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) भी सभी विष्वविद्यालयों को निर्देषित कर चुका है कि वे पी. एच डी. स्कालर्स के ब्योरे को एक निष्चित प्रोफार्मा में संधारित करें, उसे अपनी बेवसाइट पर अपलोड करें और उसका लिंक यूजीसी को भेजें । यदि वि.वि. ऐसा करने से परहेज करते हैं तो यूजीसी संबंधितों की सूची अपनी बेवसाईट पर डाल देगा । पी. एच डी. का नोटिफिकेषन भी आम सूचना हेतु जारी किया जाता है और नोटिफिकेषन वि.वि. की वेबसाईट पर भी डाले जाते हैं।
सूचना आयुक्त ने लोक सूचना अधिकारी/रजिस्ट्रार के साथ विष्वविद्यालय के अपीलीय अधिकारी/कुलपति का वह आदेष भी खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि लोक सूचना अधिकारी अपीलार्थी को सूचित कर चुके हैं कि चाही गई जानकारी तृतीय पक्ष से संबंधित है और सूचना के अधिकार के तहत ऐसी जानकारी तृतीय पक्ष की सहमति के बिना दिया जाना संभव नहीं है।
आत्मदीप ने आदेष में कहा कि तृतीय पक्ष से संबंधित जानकारी के मामले में धारा 11 के तहत तृतीय पक्ष को सूचित कर उसकी सहमति/असहमति ली जानी चाहिए । किन्तु इस मामले में यह प्रक्रिया पूरी किए बिना सीधे जानकारी देने से इंकार कर दिया गया । आदेष में यह भी स्पष्ट किया गया है कि लोक सूचना अधिकारी सिर्फ इस आधार पर भी जानकारी देने से मना नहीं कर सकते कि तृतीय पक्ष उससे संबंधित जानकारी का प्रकटन करने से असहमत है। ऐसी असहमति प्राप्त होने पर लोक सूचना अधिकारी को न्यायिक विवेक से निर्णय करना चाहिए कि तृतीय पक्ष से संबंधित वांछित जानकारी लोकहित में प्रकटन किए जाने योग्य है या नहीं । लोकहित में होने पर तृतीय पक्ष की असहमति के बावजूद जानकारी दी जानी चाहिए ।
यह है मामला: अपीलार्थी के अनुसार उन्होने 2015 में सुरेन्द्र सिंह भंडारी के पी. एच डी. करने से संबंधित 6 बिंदुओं की जानकारी चाही थी जिसे देने से वि. वि. के कुलपति व कुल सचिव ने यह कह कर इंकार कर दिया कि जानकारी तृतीय पक्षीय है जो संबंधित की सहमति के बिना नहीं दी जा सकती है। किन्तु आयोग के आदेष के पालन में वि.वि. ने उन्हे वांछित जानकारी दे दी है जिससे पी. एच डी. करने के संबंध में की गई अनियमितताएं उजागर हुई हंै। इसे लेकर वे उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर भंडारी की पी. एच डी. की उपाधि रद्द करने की मांग करेंगे ।
अपीलार्थी ने सूचना आयोग में दायर अपील में कहा था कि भंडारी को अवैध रूप से पी. एच डी. की उपाधि दी गई है। वि.वि. के अध्यादेष 11 के तहत शोधार्थी के लिए रिसर्च गाइड के साथ न्यूनतम 200 दिन शोध केन्द्र पर उपस्थित रहकर शोध करना आवष्यक है । किन्तु इस मामले में शासकीय पी. जी. कालेज, मुरैना के शोध केन्द्र पर फर्जी उपस्थिति पंजी तैयार कर शोधार्थी की दो सौ दिन की उपस्थिति दिखा दी गई । जबकि विधानसभा में यह मामला उठने पर विधायक मुकेष सिंह चतुर्वेदी के प्रष्न के उत्तर में आदिम जाति कल्याण मंत्री ने दिनांक 09/12/16 को विधानसभा में जो जानकारी दी, उससे स्पष्ट है कि भोपाल में पदस्थ विभाग के अतिरिक्त संचालक भंडारी ने शोध काल के दौरान कुल 22 दिन की ही छुट्टी ली । लेकिन शोध केन्द्र, मुरैना में उन्हे 200 दिन उपस्थित बता दिया गया । वि.वि. के नियमानुसार न तो विभागीय अनुमति ली गई और न ही शोध केन्द्र पर उपस्थिति दी गई । इसके अलावा भंडारी को वर्ष 2011 में पी. एच डी. की डिग्री दी गई । जबकि पी. एच डी. के लिए नियमित छात्र के रूप में उनका नामांकन फरवरी 2017 में और पंजीयन अगस्त 2017 में हुआ । इस प्रकार वि.वि. में एनरोलमेंट व रजिस्ट्रेषन कराने से पहले ही विधि विरूध्द ढंग से पी. एच डी. कर ली गई ।
आयोग के आदेष पर वि.वि. द्वारा दी गई जानकारी में इस फर्जीवाडे़ से संबंधित सबूत मिले हैं जिन्हे लेकर अपीलार्थी अब हाईकोर्ट में गुहार लगाएंगे ।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विषेष पहल
महिला दिवस पर सिर्फ महिलाओं की अपीलों की सुनवाई करेगा सूचना आयोग
Our Correspondent :6 March 2017
भोपाल। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 8 मार्च को मध्यप्रदेष राज्य सूचना आयोग में एक नवाचार का श्रीगणेष होने जा रहा है। इस दिन राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप की पीठ केवल महिलाओं की अपीलों की सुनवाई करेगी ।
आत्मदीप ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र ने 8 मार्च का दिन विष्व भर की महिलाओं के लिए समर्पित किया है । इसलिए हम सबका दायित्व बनता है कि इस दिन महिलाओं के हित में कोई विषेष/अच्छी पहल अवष्य करें। प्रदेष में सूचना के अधिकार का इस्तेमाल महिलाएं सबसे कम कर रही हैं। इसलिए भी जरूरी है कि देष, प्रदेष व समाज के हित में सूचना के अधिकार का अधिकाधिक उपयोग करने के लिए महिलाओं को प्रोत्साहित किया जाए । इस प्रयोजन एवं सामयिक आवष्यकता के मद्देनजर, महिला दिवस पर 8 मार्च को हमारी पीठ में सिर्फ महिलाओं की अपीलों की सुनवाई करने का फैसला लिया गया है।
इससे राज्य सूचना आयोग की मातृ शक्ति के प्रति संवेदनषीलता और सम्मान की भावना का प्रकटन होगा । देष के किसी भी सूचना आयोग में यह अपनी तरह का पहला नवाचार होगा । अपीलों की नियमित सुनवाई में भी महिलाओं को प्राथमिकता देने का निर्णय म.प्र. सूचना आयोग द्वारा लिया गया है। नारी का सम्मान भारतीय संस्कृति की परंपरा रही है। हमारे शास्त्र भी कहते हैं - ‘‘ यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवता ।’’
सूचना मांगने वाले भी स्वच्छ व पारदर्षी बने : सूचना आयुक्त शर्मा
Our Correspondent :30 September 2016
भोपाल, सूचना के अधिकार के अंतर्गत दूसरों से सूचना मांगने वाले नागरिकों को भी उतना ही स्वच्छ एवं पारदर्षी होना चाहिए जितना स्वच्छ व पारदर्षी होने की अपेक्षा वे दूसरों से करते हैं। देष और समाज के हित में यह ध्येय वाक्य सूचना आयुक्त जयकिषन शर्मा ने आज यहां अपने विदाई समारोह में दिया।
राज्य सूचना आयोग में गुरूवार को आयोजित गरिमामय समारोह में मुख्य सूचना आयुक्त के. डी.खान, राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप व सुखराज सिंह, और आयोग के अधिकारी और कर्मचारियों ने शर्मा को सम्मान पूर्वक बिदाई दी। 65 वर्ष की आयु पूर्ण हो जाने के कारण शर्मा सूचना आयुक्त के पद से मुक्त हुए हैं। उनसे पूर्व सूचना आयुक्त गोपाल कृष्ण दण्डौतिया भी इसी कारण गत माह सूचना आयुक्त के पद से मुक्त हुए।
मुख्य सूचना आयुक्त के. डी.खान ने समारोह में शर्मा को सरल, सहज , निष्पक्ष व निर्भीक बताते हुए कहा कि शर्मा ने सूचना आयुक्त के रुप में सक्रिय व सार्थक भूमिका का निर्वहन किया। आयोग में उनकी सेवायें सदैव स्मरणीय रहेंगीं। सूचना आयुक्त आत्मदीप ने कहा कि शर्मा ने अपने प्रभार क्षेत्र के सभी जिलों का दौरा कर अधिकारी कर्मचारियों को सूचना का अधिकार अधिनियम के संबंध में कारगर प्रषिक्षण दिया तथा जिला मुख्यालयों पर भी कैम्प कोर्ट आयोजित कर अपीलार्थियों, लोक सूचना अधिकारियों व अपीलीय अधिकारियों को राहत देते हुए काफी प्रकरणों का निराकरण किया। शर्मा ने लोक अदालतों एवं वीडियों कांफ्रेसिंग के माध्यम से भी काफी प्रकरणों का निराकरण किया। स्वेदष के सम्पादक की तरह सूचना आयुक्त के रुप में भी शर्मा का कार्यकाल यषस्वी रहा। सूचना आयुक्त सुखराज सिंह ने शर्मा के प्रति अपनी भावनायें इकबाल के इस शेर के माध्यम से व्यक्त कि - ‘‘ हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती हैं , बडी मुष्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।’’
आयोग के अवर सचिव पराग करकरे ने शर्मा को साधना पथ का अथक यात्री, सात्विकता एवं जीवन मूल्यों का जीवन्त प्रतीक एवं प्रेरणा पुंज बताया। उन्होंने सूचना के अधिकार के क्रियान्वयन में शर्मा द्वारा निभाई गई भूमिका को सराहनीय व अनुकरणीय बताया। आयोग के अनिल तिवारी ने अपनी काव्य रचना के माध्यम से शर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का बखान करते हुए उन्हें सदगुणों का स्त्रोत बताया।ें।
सूचना आयोग ने परिवहन विभाग को दिया
स्मार्ट चिप कंपनी से संबंधित जानकारी देने का आदेष
Our Correspondent :1 September 2016
भोपाल, 01 सितंबर, 2016, मध्यप्रदेष शासन और स्मार्ट चिप कंपनी के बीच लोक सेवाओं को लेकर हुए करार के तहत होने वाले काम लोक क्रियाकलाप की श्रेणी में आते हैं । इसलिए इनसे संबंधित जानकारी छुपाने का कोई औचित्य नहीं है। यह फैसला सुनाते हुए मप्र राज्य सूचना आयोग ने जानकारी न देने का अपीलीय अधिकारी का आदेष खारिज करते हुए परिवहन विभाग को आदेषित किया है कि अपीलार्थी को 15 दिन में स्मार्ट चिप प्रा. लि. से संबंधित अभिलेख का अवलोकन करा कर चाही गई जानकारी निःषुल्क प्रदाय करें तथा यथाषीघ्र आयोग के समक्ष सप्रमाण पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करेें।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने द्वितीय अपील की सुनवाई के बाद पारित आदेष में स्पष्ट किया है कि म.प्र. शासन द्वारा परिवहन विभाग के माध्यम से स्मार्ट चिप कंपनी से किया गया करार सूचना प्रोद्यौगिकी के जरिए लोक सुविधाओं में वृध्दि करने व पारदर्षिता लाने के उद्देष्य से किया गया है। यह करार लोक क्रियाकलाप से संबंधित होने के कारण सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8 (1) (घ) की परिधि में नहीं आता है । कंपनी को जनता से वसूली गई राषि से भुगतान किया जाता है, इसलिए जनता को इस बारे में जानने का अधिकार है। अपीलार्थी द्वारा चाही गई सूचना के प्रकटन से वाणिज्यिक गोपनीयता या व्यावसायिक रहस्य उजागर होने अथवा स्मार्ट चिप कंपनी की प्रतियोगी स्थिति को क्षति पहुंचने की कोई संभावना दृष्टिगोचर नहीं होती है। अतः चाही गई सूचना लोक हित में प्रकटन किए जाने योग्य है। इस संबंध में अपीलार्थी के तर्क स्वीकार्य हैं जबकि अपीलीय अधिकारी की दलील स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है।
अपीलीय अधिकारी का फैसला रद्द: आयुक्त ने प्रथम अपीलीय अधिकारी/परिवहन आयुक्त का निर्णय इस आधार पर निरस्त कर दिया कि धारा 19 के प्रावधानानुसार प्रथम अपील का निर्दिष्ट अवधि में विधिसंगत ढंग से निराकरण नहीं किया गया । अपीलार्थी को सुनवाई का अवसर प्रदान नहीं किया गया तथा विधिवत आदेष पारित नहीं किया गया । अपीलार्थी को मात्र पत्र लिख कर सूचना देने से इंकार कर दिया गया । अपीलीय अधिकारी द्वारा अपीलार्थी को प्रेषित पत्र एवं आयोग को प्रेषित अपील उत्तर में जानकारी प्रदाय न करने के भिन्न-भिन्न कारण बताए गए और जानकारी न देने का आधार सूचना का अधिकार अधिनियम के संबंधित प्रावधान सहित स्पष्ट नहीं किया गया ।
यह था मामला: षिवपुरी के अपीलार्थी विजय शर्मा ने आवेदन दि. 08/07/15 द्वारा लोक सूचना अधिकारी/कार्यालय परिवहन विभाग, ग्वालियर से 01/04/14 से 31/03/15 तक स्मार्ट चिप कंपनी को किए गए भुगतान तथा इस कंपनी द्वारा प्रस्तुत किए गए बिलों की जानकारी चाही थी। किन्तु लोक सूचना अधिकारी द्वारा अपीलार्थी को कोई इत्तला नहीं दी गई ।
अपीलार्थी के प्रथम अपील प्रस्तुत करने पर अपीलीय अधिकारी ने अपीलार्थी को सूचित किया कि स्मार्ट चिप कंपनी को अनुबंध के तहत भुगतान किया जाता है । इसके बिल वाणिज्यिक अनुबंध के क्रियान्वयन का भाग हैं। आवेदन में किसी प्रकार से स्पष्ट नहीं किया गया है कि आवेदित सूचना से कौन सा लोक हित पूर्ण होगा । अतः वांछित सूचना देना लोक हित में प्रतीत नहीं होता है। इस कारण चाहे गए अभिलेख नहीं दिए जा सकते हैं।
चेतावनी: तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी द्वारा न आवेदन का निराकरण नियत अवधि में किया गया और न ही अपील उत्तर प्रस्तुत किया गया । लोक सूचना अधिकारी या उनके प्रतिनिधि सुनवाई में भी उपस्थित नहीं हुए । इस पर नाराजगी जताते हुए सूचना आयुक्त आत्मदीप ने लोक सूचना अधिकारी को चेतावनी दी है कि भविष्य में ऐसी वैधानिक त्रुटि न करते हुए धारा 7 के प्रावधानानुसार निर्दिष्ट अवधि में आवेदन का निराकरण करना सुनिष्चित करें। आयोग ने अपीलीय अधिकारी को भी सचेत किया है कि उभय पक्षों को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के बाद नियत समय सीमा में विधिवत आदेष पारित कर प्रथम अपील का निराकरण करना सुनिष्चित करें।
लोक सूचना अधिकारी पर 10 हजार जुर्माना
-देरी से जानकारी देने का खर्च भी उठाने का आदेष
-सूचना आयोग का महत्वपूर्ण फैसला
Our Correspondent :09 March 2016
भोपाल। मप्र राज्य सूचना आयोग ने समय पर रेकार्ड उपलब्ध न कराने के कारण तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी श्रीराम लोधी को सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 7 के तहत सूचना प्रदाय करने में अवरोध उत्पन्न करने का दोषी करार देते हुए दस हजार रूपये के जुर्माने से दंडित किया है। साथ ही लोधी को आदेषित किया है कि अपीलार्थी को निःषुल्क मुहैया कराने वाली जानकारी का खर्च भी वे ही वहन करेंगे ।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने इस संबंध में दायर अपील की सुनवाई करने के बाद बुधवार को फैसला सुनाया है । फैसले में कहा गया है कि षिवपुरी जिला निवासी उषा लोधी ने जनपद पंचायत पिछोर से ग्राम पंचायत भगवां में विभिन्न योजनाओं के तहत 7 वर्षों में हुए निर्माण कार्यों से संबंधित जानकारी चाही थी जो नियत समय सीमा में प्रदाय नहीं की गई। जनपद पंचायत द्वारा तत्कालीन सचिव, ग्राम पंचायत भगवां श्रीराम लोधी को जानकारी प्रदान कराने के लिए आदेषित किया गया, किन्तु उनके द्वारा जानकारी उपलब्ध नही कराई गई । वर्तमान पंचायत सचिव ने आयोग को अवगत कराया कि उन्हें तत्कालीन पंचायत सचिव लोधी द्वारा चार्ज में रेकार्ड नहीं सौंपा गया, जिसके कारण जानकारी नहीं दी जा सकी ।
सी.ई.ओ. जनपद पंचायत ने आयोग को बताया कि उनके द्वारा निर्देषित किए जाने के बावजूद लोधी द्वारा अपीलार्थी को जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई । प्रथम अपील की सुनवाई में भी लोधी उपस्थित नहीं हुए और न ही उनके द्वारा रेकार्ड उपलब्ध कराया गया । इस पर लोधी के विरूध्द अनुषासनात्मक कार्यवाही प्रस्तावित की गई । इसके बाद भी लोधी द्वारा रेकार्ड न दिए जाने पर लोधी के विरूध्द पंचायत राज कानून की धारा 69 (1) के तहत निलंबन एवं उचित दंडात्मक कार्यवाही हेतु प्रस्ताव सी.ई.ओ. जिला पंचायत षिवपुरी को भेजा गया ।
प्रस्ताव में कहा गया है कि पंचायत में तत्कालीन सचिव - सरपंच की मिलीभगत से शासकीय ट्रेक्टर बेच देने, तत्कालीन सचिव लोधी द्वारा विधायक/सांसद मद की 62,500/- रू. की राषि का आहरण कर खुदबुर्द करने, पंच परमेष्वर योजना की राषि 3,27,500/- रू. का आहरण करने, बिना कोई निर्माण कराए पंचायत खाते में जमा राषि लगभग खत्म कर देने और पूरी राषि अपने निजी उपयोग में खर्च कर देने की षिकायत जांच में सही पाई गई है।
लोधी द्वारा वित्तीय अनियमितताएं करने के अलावा जनपद पंचायत की साप्ताहिक समीक्षा बैठक में हमेषा अनुपस्थित रह कर तथा चाही गई जानकारी जमा न करा कर शासकीय कार्य के प्रति लापरवाही भी बरती गई है जो अक्षम्य है ।
आयुक्त आत्मदीप ने फैसले में कहा कि प्रकरण के तथ्यों से स्पष्ट है कि अनियमितताएं छुपाने की गरज से लोधी द्वारा समय पर वांछित रेकार्ड चार्ज में नहीं सौंपा गया । लोधी द्वारा इस संबंध में अपीलीय अधिकारी व सी.ई.ओ. जनपद के निर्देष का भी पालन नहीं किया गया । लोधी द्वारा लगभग तीन वर्ष की देरी से वांछित रेकार्ड जनपद में तभी जमा कराया गया जब आयोग द्वारा दि. 23/12/15 को उन्हें आदेषित किया गया । उनके द्वारा पदेन दायित्व के निर्वहन में इरादतन कोताही बरती गई तथा वांछित रेकार्ड समय पर उपलब्ध न करवाकर सूचना प्रदान करने में अवरोध उत्पन्न किया गया।
इसलिए आयोग द्वारा जारी कारण बताओ सूचना पत्र का जो जवाब लोधी ने प्रस्तुत किया, अस्वीकार करार देते हुए उन पर 10 हजार रूपए का जुर्माना लगाया गया है । यह राषि एक माह में आयोग में जमा कराने के लिए आदेषित किया गया है।
आयुक्त आत्मदीप ने यह भी आदेष दिया कि लोक हित में चाही गई जानकारी अपीलार्थी को रेकार्ड अवलोकन करा कर 15 दिन में निःषुल्क उपलब्ध करा कर आयोग के समक्ष सप्रमाण पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाए । लोधी द्वारा किए गए अनावष्यक विलंब के कारण अपीलार्थी को निःषुल्क जानकारी दिए जाने पर होने वाला व्यय लोधी खुद वहन कर इस संबंध में आयोग को अवगत कराएंगे ।
धारा 7 के उल्लंघन पर मिल सकता है दंड
लोक सूचना अधिकारी को कारण बताओ सूचना पत्र जारी
11 January 2016
राज्य सूचना आयोग ने समय सीमा में आवेदन का निराकरण एवं अपीलीय अधिकारी के आदेष का पालन न करने के कारण तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी रामनिवास कुषवाह को कारण बताओ नोटिस जारी किया है । राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने नोटिस में कुषवाह से जवाब तलब किया है कि धारा 7 का उल्लंघन करने के कारण क्यों न उनके विरूध्द धारा 20 (1) के तहत शास्ति अधिरोपित करने की कार्यवाही की जाए ।
आयोग ने मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत, मुरैना को निर्देष दिया है कि तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी को कारण बताओ नोटिस अविलंब तामील करा कर 20 जनवरी तक आयोग को अवगत कराएं ।
तत्काल उपलब्ध कराए अभिलेख:
सूचना आयुक्त आत्मदीप ने जनपद के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को निर्देषित किया है कि ग्राम पंचायत मृगपुरा के जो भी अभिलेख रामनिवास कुषवाह (वर्तमान में सचिव, ग्राम पंचायत हासमी मेवड़ा, जनपद पंचायत मुरैना) के पास हो, उन्हे कुषवाह से प्राप्त करने हेतु तत्काल आवष्यक कार्यवाही कर सचिव, ग्राम पंचायत मृग़पुरा को अभिलेख उपलब्ध कराएं ताकि अपीलार्थी को वांछित जानकारी प्रदाय की जा सके । साथ ही मुख्य कार्यपालन अधिकारी की गई कार्यवाही के संबंध में आयोग के समक्ष पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करें । आयोग ने यह भी निर्देष दिए हैं कि कुषवाह द्वारा वांछित अभिलेख न दिए जाने पर उनके विरूध्द कानूनन कार्यवाही कर आगामी सुनवाई में आयोग को अवगत कराएं । आगामी सुनवाई 3/2/16 को होगी ।
यह है मामला:
मुरैना जिले के रामस्वरूप सिंह द्वारा 19 फरवरी 2014 को सूचना के अधिकार के तहत लोक सूचना अधिकारी/सचिव, ग्राम पंचायत मृगपुरा रामनिवास कुषवाह से चाही गई ग्राम पंचायत में संचालित योजनाओं से संबंधित जानकारी प्रदान नहीं की गई । मामले में प्रथम अपील करने के बाद भी न जानकारी दिलाई गई और न ही अपीलीय अधिकारी का कोई आदेष प्राप्त हुआ। अपीलार्थी द्वारा उक्त संबंध में राज्य सूचना आयोग में अपील करने पर आयोग ने सुनवाई कर यह फैसला सुनाया ।।
प्रवासी भारतीयों में दिखी जानने के हक के प्रति उत्सुकता
Our Correspondent :26 November 2015
मप्र राज्य सूचना आयोग ने पहली बार प्रवासी भारतीयों के बीच पहुंचकर सूचना के अधिकार के प्रति जागरूकता बढ़ाने की कवायद की। विष्व के प्रमुख व्यापार-वाणिज्य व पर्यटन केंद्र दुबई में प्रवासी भारतीय नागरिकों की ओर से सूचना का अधिकार पर संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसे राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने संबोधित किया।
सूचना आयुक्त ने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में व्यापार, वाणिज्य व सेवा क्षेत्र से जुडे प्रवासी भारतीयों को सूचना के अधिकार के संबंध में विभिन्न देषों के कानूनों के बारे में जानकारी दी। साथ ही उन्हें भारत के सूचना का अधिकार अधिनियम के मुख्य प्रावधानों से अवगत कराया। उन्हें बताया कि वे किस प्रकार यूएई में रहते हुए ही भारत में अपने गृह राज्यों एवं मूल स्थानों के संबंध में सूचना के अधिकार अधिनियम का सदुपयोग कर हालात को बेेहतर बनाने में पहरूए की भूमिका निभा सकते हैं। साथ ही किस तरह जानने के हक का इस्तेमाल कर सार्वजनिक क्रियाकलाप में भ्रष्टाचार, अनियमितताओं व लेटलतीफी पर अंकुष लगाने, स्वीकृत कार्यों की गुणवत्ता सुनिष्चित करने, कार्य नियत समय सीमा में पूरे करने आदि में सहायक बन सकते हैं।
गत रविवार बर दुबई के कामथ होटल में हुई संगोष्ठी में यूएई में कार्यरत 60 से अधिक प्रवासी भारतीयों ने सूचना के अधिकार के संबंध में अनेक जिज्ञासाएं सामने रखीं और कई सवाल पूछे, जिनका सूचना आयुक्त आत्मदीप ने समाधान किया। साथ ही प्रवासी भारतीयों को सूचना आयोग की कार्यप्रणाली देखने-समझने के लिए भोपाल आमंत्रित किया। यूएई की राजधानी अबूधाबी में भी प्रवासी भारतीयों से जानने के अधिकार पर परिचर्चा कर सूचना आयुक्त भोपाल लौट आए हैं। संगोष्ठी में शामिल प्रवासी भारतीयों में अली अजगर भाई ठेकावाला, आलोक चैबीसा, शब्बीर भाई दादा, शब्बीर भाई रसीद, अली अजगर, जिम्मी श्रृंगी, निधि श्रृंगी, रिकी, संतोष चैबीसा, जुबेर भाई ठेकावाला, इकबाल सेवा, मोहम्मद असगर भाई, शब्बीर भाई मास्टर, जोएब भाई, अली अकबर, फखरूद्दीन जरीवाला आदि शामिल हुए।
राज्य सूचना आयोग का अहम फैसला
पर पक्ष की असहमति मात्र के आधार पर नहीं कर सकते सूचना देने से इंकार
आयोग से मिला इंसाफ, अपूर्वा को मिलेगी पिता की आय की जानकारी
28 October 2015
मां के आकस्मिक निधन के बाद पिता को छोड़कर नाना के संरक्षण में रह रही अपूर्वा अब भरण पोषण पाने लिए पिता की कुल आमदनी की जानकारी पा सकेगी । यह जानकारी उसे 4 साल के लंबे इंतजार के बाद मध्यप्रदेष राज्य सूचना आयोग के आदेष से मिलेगी । आयोग ने यह जानकारी न देने का अपीलीय अधिकारी का आदेष रद्द कर दिया है और लोक सूचना अधिकारी के जानकारी देने के निर्णय को बहाल कर दिया है, जिसे अपीलीय अधिकारी ने खारिज कर दिया था । आयोग ने अपीलीय अधिकारी को आइंदा ऐसी वैधानिक त्रुटि न करने की नसीहत देते हुए लोक सूचना अधिकारी को आदेष दिया है कि वे 7 दिन में अपीलार्थी को वांछित जानकारी निःषुल्क उपलब्ध करा कर आयोग के समक्ष सप्रमाण पालन प्रतिवेदन पेष करें ।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने संबंधित पक्षों की सुनवाई करने के बाद पारित आदेष में कहा कि आगरा के अपीलार्थी जगन्नाथ प्रसाद अग्रवाल अपनी नातिन अपूर्वा के परिवार न्यायालय द्वारा नियुक्त विधिक संरक्षक हैं। उन्होंने अपूर्वा के लिए आवष्यक भरण पोषण राषि पाने के उद्देष्य से अपूर्वा के पिता किषोर कुमार अग्रवाल के वेतन, भत्ते सहित कुल वार्षिक परिलब्धियों की जानकारी चाही है। यह जानकारी दी जानी चाहिए क्योंकि अपनी संतान का भरण पोषण करना प्रत्येक पिता का विधिक, नैतिक व नैसर्गिक दायित्व है जिसका निर्वहन किया ही जाना चाहिए। किषोर अग्रवाल शासकीय सेवक हैं जिनके वेतन, भत्तों आदि की जानकारी गोपनीय न होकर सार्वजनिक किए जाने योग्य है। धारा 4 के तहत ऐसी जानकारी का स्वतः प्रकटीकरण किया जाना चाहिए। अतः तृतीय पक्ष के रूप में किषोर अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत की गई यह दलील स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि उनके वेतन, भत्तों आदि की व्यक्तिगत जानकारी देने से उनकी निजी स्वतंत्रता, व्यक्तिगत हित व सुरक्षा प्रभावित होगी। चाही गई जानकारी व्यक्तिगत प्रकृति की है किन्तु उसका प्रकटन लोकहित में न्यायोचित है।
पलटे आदेष: फैसले में कहा गया है कि जानकारी देने के प्रति किषोर अग्रवाल की असहमति पर लोक सूचना अधिकारी ने न्यायिक विवेक से निर्णय लिया कि जानकारी देने योग्य है। लेकिन अपीलीय अधिकारी ने ऐसा नहीं किया और न ही सूचना के आवेदन की प्रासंगिकता, उपादेयता व आवेदक की हितबध्दता पर सद्भावनापूर्वक विचार किया। आवेदक को सुनवाई का मौका भी नहीं दिया। अतः अपीलीय अधिकारी का जानकारी न देने का आदेष विधिसम्मत व न्यायसंगत न होने के आधार पर निरस्त किया जाता है। वहीं लोक सूचना अधिकारी का निर्णय स्थिर रखे जाने योग्य होने से बहाल किया जाता है।
मात्र असहमति इंकार का आधार नहींः आयुक्त आत्मदीप ने स्पष्ट किया कि जिस व्यक्ति से संबंधित जानकारी चाही गई है, उसकी असहमति मात्र के आधार पर जानकारी देने से इंकार करना उचित नहीं है। लोक सूचना अधिकारी तथा अपीलीय अधिकारी को न्यायिक विवेक से विनिष्चय करना चाहिए कि वांछित सूचना दिलाना लोक हित व न्यायहित में उचित है या नहीं। इस बारे में सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 11 में उल्लेखित प्रावधान स्वचलित निषेधाधिकार (आटोमेटिक वीटो) नहीं है।
यह है मामला: अपूर्वा के नाना ने आयोग को बताया कि अपनी मां अंजना की अस्वाभाविक मृत्यु के बाद अपूर्वा 15 वर्षों से उनके पास रहकर जीवन यापन व पढ़ाई कर रही है। वे सेवानिव्त्त वृध्द हैं और अपूर्वा की उच्च षिक्षा का खर्च उठाने की स्थिति में नहीं हैं, इसलिए अपूर्वा को उसके पिता से पर्याप्त निर्वाह राषि दिलाना चाहते हैं। पिता किषोर अग्रवाल पारिवारिक न्यायालय के आदेष पर अपूर्वा को 3000 रू. महीना देते थे जिसे उन्होने अपूर्वा के बालिग होने पर देना बंद कर दिया है। लोक सूचना अधिकारी, कार्यालय भू अभिलेख व बंदोबस्त, ग्वालियर ने अपीलार्थी को अपूर्वा के पिता से संबंधित जानकारी देने का निर्णय लिया ही था कि किषोर ने इस निर्णय के विरूध्द प्रथम अपील कर दी। प्रथम अपीलीय अधिकारी, संयुक्त आयुक्त भू अभिलेख ने इस आधार पर लोक सूचना अधिकारी का निर्णय रद्द कर दिया कि पर पक्ष (किषोर) की व्यक्तिगत जानकारी चाही गई जिसे देने से पर पक्ष सहमत नहीं है और उसने सूचना के प्रकटन से क्षति होने की संभावना व्यक्त की है। इसके बाद भी लोक सूचना अधिकारी ने जानकारी देने का आदेष दिया है जो अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत होकर निरस्ती योग्य है, जबकि लोक सूचना अधिकारी ने निर्णय में कहा था कि यद्यपि चाही गई जानकारी व्यक्तिगत है, तथापि वह न तो गोपनीय है और न ही उसके प्रकटन से किषोर अग्रवाल पर कोई विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस तरह की सूचनाओं का प्रकटन विस्तृत लोकहित में न्यायोचित है तथा धारा 11 का किसी भी स्थिति में उल्लंघन नहीं हैं। आयुक्त आत्मदीप ने लोक सूचना अधिकारी के निर्णय को न केवल सही करार दिया है, बल्कि यह भी कहा है कि लोक सूचना अधिकारी द्वारा विधिवत दायित्व निर्वहन किया गया जो प्रषंसनीय व अनुकरणीय है।
आरटीआई का उल्लंघन पड़ा महंगा, निगमायुक्त पर 50 हजार हर्जाना
-प्रदेष में पहला मामला, अपीलार्थी को क्षतिपूर्ति राषि देने के आदेष
-सात दिन में हर्जाना जमा करने के निर्देष, उल्लंघन पर होगी कार्रवाई
भोपाल, 25 जून 2015
मप्र राज्य सूचना आयोग ने सूचना का अधिकार अधिनियम के उल्लंघन पर बुरहानपुर नगर निगम आयुक्त एस.के. रेवाल पर 50 हजार रूपये का हर्जाना लगाया है। सूचना आयुक्त आत्मदीप ने यह राषि 7 दिन में अपीलार्थी राघवेंद्र श्रीवास्तव को देने का दंडादेष बुधवार को पारित किया है। यह पहला अवसर है जब आयोग ने अपीलार्थी को जरूरी सूचना से वंचित रखने के दोषी अधिकारी के विरूध्द 50,000 रू. की क्षतिपूर्ति राषि देने का फैसला सुनाया है। एक अन्य प्रकरण में इन्हीं नगर निगम आयुक्त पर 25 हजार रू. का जुर्माना लगाया गया, जिसकी वसूली के लिए सूचना आयुक्त आत्मदीप ने आयुक्त, नगरीय प्रषासन व विकास को निर्देषित किया है।
अपीलार्थी श्रीवास्तव, तदर्थ लेखापाल नगर पालिका, षिवपुरी ने आयोग को बताया कि उनके बाद तदर्थ रूप से नियुक्त एवं दैनिक वेतन भोगी 6 कर्मचारियों को नियमित कर दिया गया, जबकि इनके पहले तदर्थ रूप से नियुक्त अपीलार्थी को नियमित नहीं किया गया। इससे उन्हें काफी नुकसान हुआ है। अपीलार्थी इस अन्यायपूर्ण विसंगति को उच्च न्यायालय में चुनौती देकर शीघ्र न्याय प्राप्त करना चाहता था, जो तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी द्वारा वांछित दस्तावेज समय पर उपलब्ध न कराने के कारण संभव नहीं हो सका। अपीलार्थी के अनुसार यह प्रकरण मात्र दस्तावेजों की प्रति प्राप्त करने का नहीं है, बल्कि अपीलार्थी अपने प्रति हुए अन्याय के परिष्कार के लिए न्यायालय में न जा सके, इस बदनीयत से आगे का मार्ग अवरूध्द करने का प्रकरण भी है। न्यायालय से न्याय पाने के उद्देष्य से उन्होंने आरटीआई के तहत आवेदन 25 अप्रैल 2011 द्वारा जानकारी चाही थी;
साढे तीन साल बाद दी जानकारी
तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी व सीएमओ, षिवपुरी एस.के. रेवाल ने अपीलार्थी के सेवा संबंधी हितों को क्षति पहुंचाने की नीयत से जानबूझकर नियत समय-सीमा में यह जानकारी नहीं दी। आयोग के आदेष पर वर्तमान लोक सूचना अधिकारी ने साढे़ तीन वर्ष से अधिक समय बाद अपीलार्थी को यह जानकारी दी। आयुक्त ने 5 माह में 6 बार सुनवाई करने के बाद पारित निर्णय में कहा है कि अपीलार्थी की दलीलें न्यायोचित होने से स्वीकार किए जाने योग्य हैं, जबकि तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी रेवाल द्वारा 4 बार समय लेने के बाद प्रस्तुत किया गया कारण बताओ सूचना पत्र का उत्तर विधि सम्मत न होने से निम्न आधार पर स्वीकार्य नहीं है-उत्तर का अधिकांष भाग तथा जवाब के साथ संलग्न किए गए दस्तावेज प्रस्तुत प्रकरण से संबंधित नहीं हैं। उत्तर में इसका कोई उचित कारण नहीं बताया गया है कि प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेष के बाद भी जानकारी क्यों प्रदाय नहीं की गई। उत्तर में किया गया यह कथन भी विधिसम्मत न होने से मान्य नहीं है कि संबंधित लिपिक व सहायक लोक सूचना अधिकारी द्वारा तत्समय प्रकरण मेरे संज्ञान में न लाने से चूक हुई है, क्योंकि अपीलार्थी एवं प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा प्रकरण तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी के संज्ञान में लाए जाने के बाद भी उनके द्वारा प्रकरण में विधि अनुसार वांछित कार्यवाही नहीं की गई।
विभाग के स्पष्ट आदेष, कदाचरण पर हो कार्रवाई
आरटीआई अधिनियम के प्रावधान एवं मंषानुरूप सूचना के आवेदन का समय सीमा में निराकरण सुनिष्चित करने का दायित्व लोक सूचना अधिकारी का है। इस संबंध में सामान्य प्रषासन विभाग द्वारा जारी परिपत्र दि. 22/04/2006 में भी निर्देषित किया गया है कि यदि लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी द्वारा अपने दायित्व का निर्वहन उचित ढंग से नहीं किया जाता है, तो यह कदाचार की श्रेणी में आएगा तथा इसके लिए सक्षम अधिकारी द्वारा अनुषासनात्मक कार्यवाही की जानी चाहिए।
न उपस्थित हुए न ही उत्तर दिया
प्रकरण के तथ्यों से यह सिध्द है कि तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी ने आवेदन का धारा 7 के प्रावधानों के अनुसार निर्दिष्ट समय सीमा में निराकरण नहीं किया। वे उत्तर में इसका युक्तियुक्त कारण बताने में भी विफल रहे हैं। तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी ने प्रथम अपील की कार्यवाही की पूरी तरह अनदेखी की। उन्होंने प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा मांगे जाने पर भी न अपीेल उत्तर प्रस्तुत किया, न सुनवाई में उपस्थित हुए, न अनुपस्थिति का कोई कारण बताया और न ही अपीलीय अधिकारी के आदेष का पालन किया। तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी द्वारा प्रकरण में हर स्तर पर दायित्वहीनता व कर्तव्यविमुखता प्रदर्षित की गई, जो विधि विरूध्द आचरण की श्रेणी में आती है।
सात दिन में मांगा पालन प्रतिवेदन
फैसले में कहा गया है कि उपरोक्त विवेचन के आधार पर तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी एस.के. रेवाल स्पष्ट तौर पर धारा 7 के उल्लंघन के दोषी पाए जाते हैं। आयोग अपीलार्थी के तर्कों से सहमत होते हुए उनकी क्षतिपूर्ति की मांग को वाजिब एवं विधिसम्मत पाता है। अतः आरटीआई अधिनियम की धारा 19 (8) (ख) के अंतर्गत अपीलार्थी को आर्थिक क्षति एवं मानसिक संताप की प्रतिपूर्ति के लिए तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी को आदेषित किया जाता है कि वे आदेष प्राप्ति के 7 दिन के भीतर अपीलार्थी को एकाउंट पेई चैक या डी.डी. के माध्यम से 50,000 रूपये (पचास हजार रूपये) अदा कर आयोग के समक्ष पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करना सुनिष्चित करें।
उल्लंघन पर विभाग को कार्रवाई के निर्देष
उक्त अवधि में अपीलार्थी को बतौर क्षतिपूर्ति 50,000/- रूपये का भुगतान न किए जाने की स्थिति में आयुक्त, नगरीय प्रषासन व विकास, पालिका भवन, षिवाजी नगर, भोपाल को लिखा जाए कि वे अविलंब वांछित कार्यवाही कर तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी से आयोग के उक्त आदेष का यथा शीघ्र क्रियान्वयन कराना सुनिष्चित करें। साथ ही आदेष के बिंदु क्रमांक 5 (ब) के संबंध में नियमानुसार वांछित कार्यवाही करें।
ये मांगी थी जानकारी
-शिवपुरी विकास प्राधिकरण से शिवपुरी नपा में आये कर्मचारियों में से कितने कर्मचारी नियमित किए जा चुके हैं।
-नियमित हुए कर्मचारियों के नियुक्ति आदेश की सत्यप्रतियां।
-नियमित कर्मचारियों की सूची मय पदनाम एवं नियमितीकरण दिनांक तथा क्रमोन्नति दिए जाने की जानकारी।
मप्र राज्य सूचना आयोग का अहम फैसला
आरटीआई का दुरूपयोग करने पर 5 अपीलें एक साथ खारिज
-अपीलार्थी, लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी को दी चेतावनी
04 मई 2015
मप्र राज्य सूचना आयोग ने सूचना के अधिकार का बेजा इस्तेमाल पर कड़ा रूख अख्तियार किया है। आयोग ने इस महत्वपूर्ण अधिकार का दुरूपयोग करने वाले प्रेमनारायण शर्मा को लताड़ लगाने और चेतावनी देने के साथ उसकी 5 अपीलें एक साथ खारिज कर दी हैं। इन प्रकरणों में लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी को भी चेतावनी जारी की गई है।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने पांचों अपीलों की सुनवाई करने के बाद शुक्रवार को पारित आदेश में कहा कि अपीलार्थी ने आवेदन से लेकर प्रथम व द्वितीय अपील के स्तर तक कहीं भी यह स्पष्ट नहीं किया है कि चाही गई जानकारी से वह किस तरह प्रभावित है/यह जानकारी किस तरह लोक क्रियाकलाप से संबंधित है या उसमें क्या लोकहित निहित है। प्रस्तुत प्रकरणों के विवेचन से ज्ञात होता है कि अपीलार्थी ने पारिवारिक विवाद के चलते तृतीय पक्ष (शासकीय सेवक विजयलक्ष्मी व उनके पति सुभाष चंद्र शर्मा) को उत्पीडि़त करने की नीयत से उनकी निजी व सेवा संबंधी व्यक्तिगत जानकारी लेने के लिए विभिन्न आवेदन लगाए हैं। यह कृत्य आरटीआई अधिनियम के दुरूपयोग की श्रेणी में आता है।
सूचना आयुक्त ने अपीलार्थी को चेतावनी दी है कि आइंदा सूचना के अधिकार का इस्तेमाल दुराषयपूर्ण कार्य के लिए हरगिज न करें। यह पवित्र अधिकार सदाशयपूर्ण उपयोग के लिए है, नकारात्मक प्रयोजन के लिए नहीं। इसका न्यायसंगत व औचित्यपूर्ण उपयोग किया जाना चाहिए। जनता का सशक्तिकरण कर लोकतंत्र को स्वस्थ व सुदृढ़ बनाने के महान उद्देश्य से दिए गए इस महत्वपूर्ण अधिकार को किसी को परेशान करने का उपकरण बनाने की छूट नहीं दी जा सकती है।
अधिकारियों को चेतावनी
आयुक्त आत्मदीप ने तृतीय पक्ष द्वारा उनकी निजी जानकारी दिए जाने के प्रति लिखित असहमति व्यक्त किए जाने के बावजूद लोक सूचना अधिकारी कार्यपालन यंत्री, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, मेकेनिकल खंड, ग्वालियर द्वारा निजी जानकारी प्रदाय किए जाने तथा प्रथम अपीलीय अधिकारी मुख्य अभियंता, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, भोपाल द्वारा इसकी अनदेखी किए जाने पर अप्रसन्नता व्यक्त की है। साथ ही कहा है कि व्यक्तिगत जानकारी देने से पूर्व लोक सूचना अधिकारी व प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8 (1) (जे) तथा धारा 11 के प्रावधानों के प्रकाश में उचित निर्णय लिया जाना चाहिए था जो नहीं लिया गया। आयोग ने अपीलीय अधिकारी व लोक सूचना अधिकारी को चेतावनी दी है कि वे भविष्य में ऐसी वैधानिक त्रुटि न करें।
यह है मामला
अपीलार्थी प्रेमनारायण शर्मा, भिंड ने लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से सहायक ग्रेड - 3 सुभाष चंद्र शर्मा व उनकी पत्नी कार्यभारित सेवा में स्थल सहायक विजयलक्ष्मी के बारे में विभिन्न आवेदनों के जरिए ये जानकारियां मांगी - शर्मा दंपति द्वारा किए गए पूंजी निवेश, उनके निजी मकान में रखे गये किराएदार, किराए से प्राप्त आय, अपनी बेटी की शादी के लिए कर्ज हेतु दिए गए आवेदन, दोनों के पास कौन-कौन से वाहन, मोबाईल, टेलीफोन व अन्य आवश्यक वस्तुएं हैं, उनके द्वारा यात्रा में किए गए व्यय, उनके व्हाउचर, टीए, डीए, कैश बुक, सेवा पुस्तिका, उपस्थिति पत्रक, योग्यता प्रमाण पत्र, टायपिंग परीक्षा उत्तीर्ण का प्रमाण पत्र, दैनिक वेतन पर किए गए कार्य का पूरा ब्यौरा, जीपीएफ से राशि कब व किस प्रयोजन हेतु निकाली, भूखंड/मकान खरीदने व निर्माण हेतु ली गई विभागीय अनुमति तथा लोन लेने के लिए दिए गए आवेदन के साथ समस्त दस्तावेजों की प्रतियां, पिता की मदद से खरीदे गए प्लाट को बनवाने में कितना खर्च किया, यह राषि कहां से प्राप्त की, आय के स्त्रोत, पदस्थापना में किस-किस शाखा में क्या-क्या कार्य आवंटन किया गया, अटेचमेंट की अवधि व आदेष, न्यायालयीन कार्य हेतु 6 वर्षों में राज्य के भीतर व बाहर, कहां-कहां, किस-किस प्रकरण में गए, आदि आदि।
यह है वस्तुस्थिति
लोक सूचना अधिकारी एनसी दास के अनुसार अपीलार्थी के पुत्र से इस कार्यालय में कार्यरत श्रीमती विजयलक्ष्मी की पुत्री का विवाह हुआ था एवं बाद में तलाक हो गया। अतः अपीलार्थी पारिवारिक विवाद के कारण श्रीमती विजयलक्ष्मी एवं उनके पति सुभाष चंद्र शर्मा के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के आवेदन प्रस्तुत करते रहे हैं।
फैसला बनेगा मिसाल
आरटीआई के तहत अमूनन अपीलार्थी को जानकारी दिलाई जाती है, लेकिन यह अनोखा मामला है, जिसमें न सिर्फ अपीलार्थी की अपीलें खारिज की गई, बल्कि जानकारी देने वाले लोक सूचना अधिकारी एवं अपीलीय अधिकारी को फटकार भी लगाई। एेसे फैसलों से आरटीआई जैसे कानून का दुरुप्रयोग करने वाले जहां हतोत्साहित होंगे, वहीं इस कानून के दुरुप्रयोग पर भी लगाम लग सकेगी।
मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग का अहम फैसला
लोकायुक्त पुलिस को वांछित जानकारी देने का आदेश
-चाही गई सूचना न देने के लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी के आदेश रद्द
25 March 2015
मप्र राज्य सूचना आयोग ने लोकायुक्त संगठन की विशेष पुलिस स्थापना के लोक सूचना अधिकारी व एसपी, ग्वालियर और प्रथम अपीलीय अधिकारी व आईजी (पूर्व), भोपाल के सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी न देने के निर्णय को निरस्त करते हुए अपीलार्थी को वांछित जानकारी मुहैया कराने का उल्लेखनीय आदेश पारित किया है ।
आयुक्त आत्मदीप ने मामले में दायर अपील की सुनवाई करते हुए लोकायुक्त विशेष पुलिस स्थापना की यह दलील खारिज कर दी कि आरटीआई एक्ट से छूट प्राप्त होने के कारण वह जानकारी देने को बाध्य नहीं है और अपीलार्थी को चाही गई जानकारी देने से संबंधित निरीक्षक के विरुद्ध विभागीय जांच पर विपरीत असर पड़ सकता है ।
आयोग के आदेश में कहा गया है कि अधिनियम की धारा 24 (1) व (4) के अनुसार अधिनियम से छूट प्राप्त होने के बावजूद कोई निकाय भ्रष्टाचार व मानव अधिकारों के अतिक्रमण से संबंधित सूचना देने से इंकार नहीं कर सकता। चूंकि प्रकरण भ्रष्टाचार की शिकायत से संबंधित है, अत: लोक सूचना अधिकारी को आदेशित किया जाता है कि वे 7 दिन में अपीलार्थी को वांछित जानकारी नि:शुल्क प्रदाय कर 7 अप्रैल 2015 तक आयोग के समक्ष सप्रमाण पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करना सुनिश्चित करे।
इस पर लोकायुक्त विशेष पुलिस स्थापना के लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी के प्रतिनिधि ने आयोग को आश्वस्त किया कि आयोग के आदेश के पालन में अपीलार्थी को नियत अवधि में जानकारी प्रदाय कर आयोग के समक्ष पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत कर दिया जाएगा। इस पर आयुक्त आत्मदीप ने लोक सूचना अधिकारी पर जुर्माना लगाने के लिए जारी कारण बताओ सूचना पत्र निरस्त कर दिया।
यह है मामला
अपीलार्थी संजय दीक्षित ने विशेष पुलिस स्थापना, ग्वालियर के तत्कालीन निरीक्षक अनिल कुमार अग्रवाल के विरुद्ध पद के दुरुपयोग की शिकायत की थी। अपीलार्थी ने आवेदन दि. 7 सितंबर 2012 द्वारा इस शिकायत के संबंध में विशेष पुलिस स्थापना ग्वालियर द्वारा लोकायुक्त/मध्यप्रदेश विशेष पुलिस स्थापना मुख्यालय भोपाल/अन्य कार्यालय को पे्रषित जांच रपट तथा जांच रपट में संलग्न समस्त अभिलेखों की प्रमाणित प्रतियां चाही थी। किन्तु लोक सूचना अधिकारी ने यह लिखकर जानकारी देने से इंकार कर दिया कि सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा दि. 25 अक्टूबर 11 को प्रकाशित अधिसूचना के अनुसार लोकायुक्त की विशेष पुलिस स्थापना पर सूचना का अधिकार अधिनियम के उपबंध लागू नहीं होते।
प्रथम अपीलीय अधिकारी ने अपीलार्थी की सुनवाई किए बिना लोक सूचना अधिकारी के तर्क की पुष्टि करने के साथ इस आधार पर अपील खारिज कर दी कि संबंधित निरीक्षक ने उससे जुड़ी जानकारी देने में असहमति व्यक्त की है और चाही गई जानकारी देने से निरीक्षक के विरुद्ध रीवा संभाग में विचाराधीन विभागीय जांच पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है ।
साफ की विधिक स्थिति
प्रकरण में पारित महत्वपूर्ण निर्णय में आयुक्त आत्मदीप ने उन शासकीय निकायों के संबंध में वैधानिक स्थिति स्पष्ट की है जिन्हें केंद्र/राज्य शासन द्वारा धारा 24 (4) के तहत सूचना के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों से विमुक्ति प्रदान की गई है। उन्होंने आदेश में कहा कि इसी धारा 24 की उपधारा (1) व (4) के अनुसार इस विमुक्ति के बावजूद ऐसे निकायों द्वारा भ्रष्टाचार व मानवाधिकारों के अतिक्रमण के अभिकथनों से संबंधित सूचना इस उपधारा के अधीन अपवर्जित नहीं की जाएगी। ऐसी सूचना राज्य सूचना आयोग के अनुमोदन के पश्चात ही दी जाएगी तथा धारा 7 में किसी बात के होते हुए भी, ऐसी सूचना आवेदन प्राप्ति के 45 दिनों के भीतर दी जाएगी। भारत सरकार द्वारा लागू अधिनियम राज्य के कानून पर अभिभावी प्रभाव रखता है ।
यह है वस्तुस्थिति
आदेश में कहा गया है कि मप्र शासन द्वारा लोकायुक्त संगठन की विशेष पुलिस स्थापना एवं राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को अधिनियम से छूट इस कारण प्रदान की गई है कि उनके द्वारा अन्वेषण किए जा रहे आर्थिक अपराधों के मामलों में सूचना देने/शिकायत करने वालों के नाम सूचना के अधिकार अधिनियम के अधीन प्रकट किए जाने से ऐसे लोगों के जीवन या शारीरिक सुरक्षा को खतरा हो सकता है। यह भी कि उक्त संगठनों के अधीन अन्वेषण किए जा रहे अपराधों के मामलों में सूचना के प्रकटन से अपराधियों के अन्वेषण या पकड़े जाने या अभियोजन की प्रक्रिया में अड़चन आएगी।
किन्तु इस प्रकरण में वस्तुस्थिति शासकीय अधिसूचना में उल्लेखित कारकों के विपरीत है। इसमें अपीलार्थी ने आर्थिक अपराध की सूचना देने/शिकायत करने वालों की जानकारी नहीं चाही है बल्कि स्वयं द्वारा की गई भ्रष्टाचार संबंधी शिकायत पर की गई कार्यवाही की जानकारी मांगी है। अत: आर्थिक अपराध की सूचना देने/शिकायत करने वाले की पहचान उजागर होने/उसके जीवन या शारीरिक सुरक्षा को कोई खतरा उत्पन्न होने का कोई प्रश्न ही उद्भूत नहीं होता है। अपीलार्थी ने ऐसे अपराधिक मामले की जानकारी भी नहीं मांगी है जो अन्वेषण के अधीन है। अत: शासकीय अधिसूचना 25 अगस्त 11 में उल्लेखित कारक प्रस्तुत प्रकरण में लागू न होने से चाही गई सूचना इस अधिसूचना की परिधि में नहीं आती है ।
नजीर बनेगा फैसला
आयुक्त आत्मदीप ने आदेश में कहा है कि धारा 8 एवं 24 के अंतर्गत किसी को स्वचलित असीम निषेधाधिकार प्राप्त नहीं है। कानून से छूट के साथ शर्तें लागू हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम का उद्देश्य सरकार व सरकारी तंत्र के कामकाज में शुचिता व पारदर्शिता लाने तथा उसे जनता के प्रति जवाबदेह बनाने को बढ़ावा देना है। अपीलार्थी के आवेदन को इसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए। अपीलार्थी, जो प्रकरण में शिकायतकर्ता भी है, की शिकायत पर की गई कार्यवाही के दस्तावेज प्रदाय न करने से अपीलार्थी के मानवाधिकार का हनन हुआ है। इस संबंध में अपीलार्थी द्वारा प्रथम अपील में विधिक दृष्टि से समूची स्थिति स्पष्ट किए जाने के बावजूद अपीलीय अधिकारी ने उसे अनदेखा किया जिस पर आयोग अप्रसन्नता व्यक्त करता है।
मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग के कड़े तेवर
जानकारी देने में आनाकानी, 3 अधिकारियों को दंडात्मक कार्रवाई के नोटिस
-लोक स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी नहीं देने का मामला
05 February 2015
मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग ने लोक स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी देने में आनाकानी करने पर खाद्य एवं औषधि प्रशासन के 3 अधिकारियों के खिलाफ सख्त तेवर अख्तियार किए हैं। राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने तीनों अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए कारण बताओ नोटिस (एससीएन) जारी किए हैं कि सूचना का अधिकार अधिनियम का उल्लंघन करने के कारण क्यों न उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही की जाए।
इन अधिकारियों में मुख्य चिकित्सा व स्वास्थ्य अधिकारी तथा पदेन उप संचालक, खाद्य एवं औषधि प्रशासन, जिला भिंड डॉ. राकेश शर्मा, खाद्य सुरक्षा अधिकारी जिला सागर आशु कुशवाह और खाद्य सुरक्षा अधिकारी जिला होशंगाबाद शिवराज पावक शामिल हैं। उन्हें 2 मार्च 15 की सुनवाई में जवाब पेश करने का आदेश दिया गया है। साथ ही आदेश का पालन न करने पर एकतरफा दंडादेश पारित करने की चेतावनी दी गई है ।
यह है मामला
ग्वालियर के एसबी सिंह ने भिंड जिले में लिए गए खाद्य नमूनों में से मिलावटी पाए गए नमूनों और उन नमूनों की राज्य खाद्य प्रयोगशाला, भोपाल की जांच रपट की जानकारी चाही थी। नियंत्रक खाद्य व औषधि प्रशासन, भोपाल तथा उप संचालक, खाद्य व औषधि प्रशासन भिंड के निर्देश देने के बावजूद 3 साल से ज्यादा अरसे बाद भी यह जानकारी नहीं दी गई। तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी, मुख्यालय खाद्य निरीक्षक आशु कुशवाह ने अपीलार्थी को शुल्क व प्रथम अपील संबंधी आवश्यक सूचना भी नहीं दी। यही नहीं, 15 में जानकारी देने के आयोग के आदेश का भी पालन नहीं किया।
एओ ने भी की अनदेखी
अपीलीय अधिकारी (एओ), मुख्य चिकित्सा व स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. राकेश शर्मा ने प्रथम अपील पर न सुनवाई की, न ही कोई आदेश पारित किया, बल्कि जिस खाद्य निरीक्षक शिवराज पावक के कार्यकाल में लिए गए खाद्य नमूनों की जानकारी चाही गई थी, उसके पत्र का हवाला देते हुए अपीलीय अधिकारी ने अपीलार्थी को लिख दिया कि पावक ने धारा 8 एवं 9 के तहत जानकारी देने से इंकार कर दिया है।
आयोग के तेवर
इसके विरुद्ध दायर अपील की सुनवाई करते हुए आयुक्त आत्मदीप ने सूचना प्रदान करने में अवरोध उत्पन्न करने के कारण मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को सम लोक सूचना अधिकारी मान कर एससीएन जारी किया। उनका उत्तर समाधान कारक न होने के कारण उस पर निर्णय सुरक्षित रखते हुए अपीलीय अधिकारी को निर्देशित किया कि वे 2 मार्च की सुनवाई में एससीएन का संतोषप्रद जवाब पेश करें।
साथ ही तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी व मुख्यालय खाद्य निरीक्षक आशु कुशवाह (वर्तमान में खाद्य सुरक्षा अधिकारी, सागर) को भी एससीएन जारी किया कि सूचना के आवेदन का निराकरण तय अवधि में न करने के कारण क्यों न उनके विरुद्ध अधिकतम जुर्माना लगाया जाए ।
आयुक्त आत्मदीप ने इसी प्रकरण में तीसरा एससीएन तत्कालीन खाद्य निरीक्षक शिवराज पावक (वर्तमान में खाद्य सुरक्षा अधिकारी, खाद्य व औषधि प्रशासन, होशंगाबाद) को टिकाया। पावक ने बताया कि आयोग के आदेश के पालन में उन्होने अपीलार्थी को नि:शुल्क जानकारी मुहैया करा दी है। अपीलार्थी ने इस जानकारी को अपूर्ण व गलत बताया। इस पर फैसला सुरक्षित रखते हुए आयोग ने पावक को आदेश दिया है कि वे चाही गई पूर्ण जानकारी के साथ 2 मार्च की सुनवाई में उपस्थित हों। साथ ही लोक सूचना अधिकारी को आदेशित किया है कि 7 दिन में अपीलार्थी को जानकारी प्रदाय कर अगली सुनवाई में पालन प्रतिवेदन पेश करें।
चेतावनी
चारों अधिकारियों को आदेश का पालन न करने पर कड़ी कार्यवाही की चेतावनी दी गई है।
मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग का कड़ा फैसला
देरी से जानकारी देना पड़ा महंगा, ठोका 30 हजार जुर्माना
-आदेश का पालन नहीं होने पर वेतन से काटने के दिए निर्देश
मप्र राज्य सूचना आयोग ने तय अवधि में जानकारी नहीं देने के खिलाफ दायर दो अपीलें मंजूर करते हुए दो लोक सूचना अधिकारियों (पीआईओ) के विरुद्ध दंडादेश पारित किए हैं। आयुक्त आत्मदीप ने नगर निगम, बुरहानपुर के आयुक्त एसके रैवाल पर 25 हजार रुपए और लोक निर्माण विभाग, संभाग 1, ग्वालियर के कार्यपालन यंत्री आरके गुप्ता पर 5 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। जुर्माने की राशि एक हफ्ते में आयोग में जमा कराने का आदेश दिया गया है। आदेश का पालन न होने पर यह राशि दोनों के वेतन से काटने की कार्रवाई की जाएगी। साथ ही उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक /विभागीय कार्रवाई पर भी विचार किया जाएगा। आयुक्त आत्मदीप ने फैसले में कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 7 के तहत चाही गई जानकारी 30 दिन में उपलब्ध कराना आवश्यक है। दोनों पीआईओ ने इसका पालन नहीं किया। उन्होंनेे अपीलार्थियों को शुल्क व प्रथम अपील संबंधी आवश्यक सूचना भी नहीं दी। 3 वर्ष से अधिक की देरी से भी जानकारी तब मुहैया कराई गई जब आयोग ने आदेश दिया। अत: धारा 7 के उल्लंघन पर दोनों तत्कालीन पीआईओ पर धारा 20 (1) के तहत शास्ति अधिरोपित की जाती है।
यह है मामला
अपीलार्थी मानकचंद्र राठौर ने आवेदन 11 अप्रैल 2011 द्वारा नगर पालिका शिवपुरी के तत्कालीन पीआईओ व सीएमओ एसके रैवाल से नपा अधिकारियों के विरुद्ध लंबित जन शिकायतों, नपा अशोकनगर द्वारा नपा परिषद शिवपुरी को लिखे 2 पत्रों तथा उन पर की गई कार्रवाई की जानकारी मांगी थी। मामला अनियमितताओं से संबंधित था।
पीआईओ की हिमाकत
रैवाल ने आवेदन के निराकरण की तय अवधि खत्म होने के बाद यह लिख कर जानकारी देने से इंकार कर दिया कि जनशिकायत (पीजी) संबंधी जानकारी बेवसाइट से प्राप्त की जा सकती है। नपा परिषद, अशोकनगर द्वारा सीएमओ शिवपुरी को लिखे गए पत्रों की जानकारी व्यक्तिगत सूचना से संबंधित है जो लोक क्रियाकलाप व लोकहित से संबंधित न होने के कारण धारा 8 व 11 के तहत नहीं दी जा सकती। रैवाल ने उनके इस निर्णय के विरुद्ध प्रस्तुत प्रथम अपील का सुनवाई सूचना पत्र लेने से ही इंकार कर दिया। यही नहीं, वे प्रथम अपीलीय अधिकारी, संभागीय उप संचालक, नगरीय प्रशासन व विकास के समक्ष न सुनवाई में उपस्थित हुए और न ही कोई अपील उत्तर पेश किया। उन्होंने अपीलीय अधिकारी द्वारा 1 जुलाई 2011 को पारित इस आदेश का भी पालन नहीं किया कि वे अपीलार्थी को चाही गई जानकारी 10 दिन में उपलब्ध कराकर पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करें। द्वितीय अपील होने पर सूचना आयोग ने रैवाल को 27 नवंबर 14 को कारण बताओ नोटिस जारी किया। रैवाल के अनुरोध पर उन्हें इसका जवाब पेश करने के लिए अतिरिक्त समय दिया गया। इसके बाद भी वे आयोग के समक्ष न सुनवाई में उपस्थित हुए और न ही कारण बताओ नोटिस का कोई उत्तर प्रस्तुत किया।
कानून की अवमानना
आयुक्त आत्मदीप ने इन तथ्यों का उल्लेख करते हुए आदेश में कहा कि प्रकरण में धारा 8 व 11 लागू नहीं होती है। अपितु सूचना के अधिकार के प्रति तत्कालीन पीआईओ की कत्र्तव्य विमुखता व पदीय दायित्व के निर्वहन में विफलता प्रदर्शित होती है। उनके द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के उद्देश्यों व प्रावधानों के प्रति सद्भावना न दिखाते हुए जानकारी नहीं देने के कारण खोजे गए हैं तथा अयुक्तियुक्त आधार पर जानकारी देने से इंकार किया गया है। आयोग के आदेश पर अपीलार्थी को अप्रैल 2011 में चाही गई जानकारी दिसंबर 2014 व जनवरी 2015 में नि:शुल्क प्रदाय कर दी गई है।
अपीलीय अधिकारी का आदेश खारिज
दूसरे प्रकरण में अजय परमार ने पीडब्ल्यूडी संभाग मुरैना के तत्कालीन पीआईओ व कार्यपालन यंत्री आरके गुप्ता से केंद्रीय पंजीयन व्यवस्था के तहत सी श्रेणी के पंजीयन में लगाई गई अतिरिक्त शर्त संबंधी जानकारी मांगी थी, जो नहीं दी गई। 21 जुलाई 11 को मांगी गई यह जानकारी आयोग के आदेश पर 4 दिसंबर 2014 को दी गई। आयुक्त आत्मदीप ने इस विलंब के लिए गुप्ता को दोषी करार देते हुए दंडित किया। साथ ही प्रथम अपीलीय अधिकारी के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें सुनवाई में उभय पक्षों के अनुपस्थित रहने के आधार पर प्रथम अपील निरस्त कर दी गई थी। आयुक्त आत्मदीप ने इसे विधिविरुद्ध निर्णय करार देते हुए कहा कि संबंधित पक्षों के अनुपस्थित रहने पर गुण दोष के आधार पर अपील का निराकरण किया जाना चाहिए था। मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग का कड़ा फैसला
राज्य सूचना आयोग में आया अनोखा मामला
आरटीआई के तहत आजादी के बाद से अब तक की मांगी जानकारी
स्ूचना के अधिकार के क्रियान्वयन के लिए 2005 में गठित मप्र राज्य सूचना आयोग में सूचना मांगने का अब तक सबसे अनूठा मामला सामने आया है। इसमें शिवपुरी के अपीलार्थी मनोज सिंह भदौरिया ने आजादी के बाद से अब तक किए गए भू अर्जन की अति विस्तृत दस्तावेजी जानकारी चाही है। भूमि अधिग्रहण से जुड़े 7 बिंदुओं की हजारों पृष्ठों की प्रमाणित प्रतिलिपियां मांगने का यह प्रकरण लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) तथा प्रथम अपीलीय अधिकारी (एओ) से होता हुआ आयोग तक पहुंचा है।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए अपीलार्थी को एक आवेदन में अत्यंत लंबी अवधि की इतनी वृहदाकार जानकारी मांगने से बचने की नसीहत दी है। साथ ही अपीलार्थी को निर्देशित किया है कि यदि वे वास्तव में जानकारी प्राप्त करने के इच्छुक हैं, तो संबंधित भूअर्जन कार्यालय में उपस्थित होकर उपलब्ध अभिलेखों का नियमानुसार अवलोकन करें। तत्पष्चात पीआईओ के सामने लिखित रूप से स्पष्ट करें कि किन-किन अभिलेखों की प्रतियां चाहिए। इसके बाद वांछित शुल्क जमा कराकर चाहे गए अभिलेख प्राप्त करें। आयुक्त ने पीआईओ को आदेशित किया है कि अपीलार्थी के उपरोक्त निर्देश का पालन करने पर शुल्क जमा कराए जाने की तिथि से 15 दिन के भीतर वांछित नकलें अपीलार्थी को प्रदाय कर आयोग के समक्ष पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करें।
पीआईओ ने आयोग को बताया कि अपीलार्थी को सूचित किया गया था कि उनके द्वारा चाहे गए 1947 से 2011 तक के विस्तृत अभिलेख कार्यालय में उपलब्ध नहीं हैं। अपीलार्थी ने यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि किन प्रकरण विशेष की भूअर्जन संबंधी जानकारी चाहते हैं। अपीलार्थी से कहा गया कि वे भूअर्जन कार्यालय आकर संबंधित रिकार्ड का अवलोकन कर सकते हैं और जो अभिलेख चाहते हैं उनके बारे में स्थिति स्पष्ट कर सकते हैं। लेकिन अपीलार्थी ने रिकार्ड का अवलोकन करने से इंकार कर दिया और चाही गई जानकारी की प्रमाणित प्रतियां उपलब्ध कराने पर जोर दिया। चाही गई जानकारी लगभग 64 वर्षों की दीर्घावधि की तथा वृहद स्वरूप की होने के कारण प्रदाय करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है।
एओ द्वारा पारित आदेश में कहा गया कि अपीलार्थी को अभिलेख अवलोकन का मौका देने के बाद यह भी सूचित किया जा चुका है कि आपके द्वारा स्वनिर्मित प्रारूप में चाही गई सूचना देना इसलिए संभव नहीं है, क्योंकि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी संकलित व सृजित कर देने का प्रावधान नहीं है। राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने पीआईओ व एओ के अपील उत्तर को स्वीकार करते हुए अपील निराकृत कर दी।
मानवीय संवेदना से जुड़े मामले में आयोग ने लगाई फटकार
-खारिज किए पीआईओ व एओ के जानकारी न देने के आदेश
-पीआईओ को दिया शोकाज नोटिस
-पारित किया 7 दिन में निशुल्क जानकारी देने का आदेश
-बिजली कंपनी को आयोग की फटकार, उपलब्ध कराएं जांच रपट
-मानवीय संवेदना से जुड़े मामले में आयोग ने की सख्त टिप्पणी
-पूर्व सैनिक ने मांगी थी मुसीबत बनी आटाचक्की से संबंधित जानकारी
राज्य सूचना आयोग ने मानवीय संवेदना से जुड़े एक प्रकरण में सख्त रवैया अख्तियार करते हुए लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) व प्रथम अपीलीय अधिकारी (एओ) को कड़ी फटकार लगाई है। सूचना आयुक्त आत्मदीप ने इस मामले में जानकारी न देने के पीआईओ व एओ के आदेश खारिज कर उनके विरुद्ध कड़ी टिप्पणी की है। आयुक्त ने पीआईओ को 7 दिन में अपीलार्थी को निशुल्क जानकारी देने का आदेष दिया है। पीआईओ को चेतावनी दी गई है कि आदेष का समय-सीमा में पालन न करने पर उन पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। वहीं सूचना आयुक्त ने तत्कालीन पीआईओ को कारण बताओ नोटिस जारी किया है कि सूचना के आवेदन को अवैधानिक आधार पर नामंजूर किए जाने के कारण क्यों न उन पर जुर्माना लगाया जाए तथा अनुशासनिक/विभागीय कार्रवाई की जाए।
ग्वालियर के पूर्व सैनिक योगेंद्र प्रताप सिंह ने आयोग में प्रस्तुत अपील में कहा कि हाईकोर्ट व लोक अदालत के निर्णय की अवमानना करते हुए उनके पड़ोस में 5 हार्सपॉवर से अधिक क्षमता की मोटर से आटा चक्की व स्केलर चलाई जा रही है। इससे उनके घर में कंपन होने, आटाचक्की की डस्ट उडक़र आने, गेहूं की सफाई से प्रदूषित धूल-कण उडऩे और ध्वनि प्रदूषण होने से उनके परिवार का जीना दूभर हो गया है। रहना-सोना दुश्वार हो जाने से, शांति से स्वच्छ वातावरण में रहने के उनके जीवन के मूलभूत अधिकार, मानवाधिकार, व्यक्तिगत जीवन व स्वतंत्रता का हनन हो रहा है। उनका परिवार 8 वर्षों से इस वेदना से ग्रसित है। उनकी शिकायत पर कलेक्टर के निर्देशानुसार बिजली कंपनी के सहायक यंत्री/प्रबंधक ने पड़ोसी प्रदीप राठौर की आटाचक्की की विद्युत मोटर क्षमता का निरीक्षण कर पंचनामा बनाया, जिसमें क्षमता 10 एचपी की मापी गई।
अपीलार्थी ने इसी पंचनामे की सत्यप्रति चाही थी, किन्तु तत्कालीन पीआईओ आरपी सिंह जादौन ने उनका आवेदन यह कहकर नामंजूर कर दिया कि चाही गई जानकारी लोकहित में न होकर अन्य उपभोक्ताओं के साथ निजी व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा से संबंधित है। उक्त जानकारी व्यक्तिगत है, जिसे देने से व्यक्ति की निजता भंग होगी। व्यक्तिगत विद्वेष होने तथा लोकहित में नहीं होने से धारा 8 के तहत ऐसी जानकारी देना संभव नहीं है। यह आरटीआई एक्ट का दुरुपयोग है। अपीलार्थी की प्रथम अपील भी अपीलीय अधिकारी आरएच वर्मा (उप महाप्रबंधक, बिजली कंपनी) ने इसी आधार पर खारिज कर दी।
आयोग में द्वितीय अपील की सुनवाई कर शुक्रवार को पारित आदेश में आयुक्त आत्मदीप ने टिप्पणी की कि अपीलार्थी सेवानिवृत्त सैनिक है। घर के बगल में निर्धारित से अधिक क्षमता की मोटर से चक्की चलने से उत्पन्न दिन-रात की परेशानी से अपीलार्थी का परिवार इतना व्यथित है कि वह पुलिस, कलेक्टर, जिला न्यायालय, लोक अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक फरियाद कर चुका है। यह अत्यंत दुखद है कि अपने पक्ष में आदेश/निर्णय पारित होने के बाद भी अपीलार्थी के परिवार को रोजमर्रा की तकलीफ से निजात नहीं मिल सकी है। मानवीय संवेदना से जुड़े ऐसे प्रकरण में सहानुभूतिपूर्वक निराकरण की कार्यवाही की जाना चाहिए जो नहीं की गई है। आयोग की दृष्टि में यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। इसके निराकरण के लिए आयोग ने मामले में वांछित कार्रवाई के लिए आदेश की प्रति कलेक्टर ग्वालियर को भी भेजने के निर्देश दिए हैं।
प्राथमिकता से की सुनवाई
आयुक्त आत्मदीप ने प्रकरण में मानवीय पक्ष की गंभीरता को देखते हुए 2014 में दायर इस अपील की प्राथमिकता से सुनवाई की, जबकि आयोग में वर्ष 2009 से 2013 तक की लंबित अपीलों की सुनवाई चल रही है। इस प्रकार इस प्रकरण के साथ 2014 की अपीलों पर भी सुनवाई शुरू हो गई।
खारिज किए आदेश
आयुक्त आत्मदीप ने उक्त टिप्पणी के आलोक में पीआईओ और एओ के निर्णय को निष्पक्ष, विधिसम्मत एवं न्यायोचित नहीं पाते हुए निरस्त कर दिया। साथ ही अपीलार्थी के तर्क को विधिमान्य व न्यायसंगत मानते हुए अपील मंजूर कर ली। प्रकरण में एओ, पीआईओ एवं तत्कालीन पीआईओ को 2 दिसंबर की सुनवाई में अनविार्य रूप से उपस्थित होकर जवाब पेश करने का आदेश दिया गया है।
एओ को किया आगाह
सूचना आयोग ने एओ को भी आगाह किया है कि वे जानकारी न देने से संबंधित धारा 8 के उपयोग में सावधानी बरतें, जनहित के प्रकरण में संवेदनशील रवैया अख्तियार करें तथा सूचना के अधिकार के प्रति सद्भावी रुख अपनाएं। साथ ही प्रथम अपील के निराकरण के लिए सुनवाई कर विधिवत आदेश पारित करने के प्रावधान का पालन सुनिश्चित करें।
मप्र राज्य सूचना आयोग का फैसला
लोक स्वास्थ्य व अनियमितता से जुड़ी जानकारी देना जरूरी
-दो मामलों में जानकारी न देने पर खाद्य सुरक्षा अधिकारी को जुर्माने के नोटिस
-खाद्य नमूनों व सरकारी रसीद कट्टों की मांगी थी जानकारी
-15 दिन में निशुल्क जानकारी देने का आदेश
मप्र राज्य सूचना आयोग ने जन स्वास्थ्य एवं आर्थिक अनियमितता से संबंधित मामलों की जानकारी न देने वाले लोक सूचना अधिकारी (लोसूअ) के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाया है। राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने दोनों प्रकरणों में सुनवाई कर खाद्य सुरक्षा अधिकारी गिरीश राजौरिया को अलग-अलग कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं कि सूचना के अधिकार के तहत जानकारी न देने के कारण क्यों न उन पर अर्थदंड लगाया जाए तथा उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक/विभागीय कार्रवाई के निर्देश दिए जाएं।
दोनों नोटिसों का जवाब अगली सुनवाई में पेश करने का आदेश जारी किया गया है। साथ ही लोसूअ को आदेश दिया गया है कि वे अपीलार्थी को आवेदन में चाही गई संपूर्ण जानकारी 15 दिन में पंजीकृत डाक से निशुल्क उपलब्ध कराएं तथा अगली सुनवाई में स्वयं उपस्थित होकर सप्रमाण पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करना सुनिश्चित करें। अगली सुनवाई 25 नवंबर को होगी।
दोनों मामलों में भोपाल के प्रयाग सिंह चौहान ने सूचना आयोग में द्वितीय अपील की थी। उन्होने पहले मामले में भिंड जिले में लिए गए खाद्य पदार्थों के नमूनों, उनकी जांच, विनष्टीकरण, अमानक नमूनों के न्यायालय में पेश किए गए प्रकरणों आदि की जानकारी मांगी थी जो तत्कालीन लोसूअ व खाद्य निरीक्षक गिरीश राजौरिया ने नहीं दी। उनके विरुद्ध की गई प्रथम अपील पर तत्कालीन अपीलीय अधिकारी एवं मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) पदेन उप संचालक, खाद्य व औद्यषि प्रशासन डॉ राकेश शर्मा द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई। लोसूअ और प्रथम अपीलीय अधिकारी बिना कोई कारण बताए न सुनवाई में उपस्थित हुए और न ही उनके द्वारा अपील उत्तर प्रस्तुत किया गया।
आयुक्त आत्मदीप ने प्रथम अपीलीय अधिकारी व लोसूअ के इस विधि विरुद्ध आचरण पर घोर अप्रसन्नता व्यक्त की है। उन्होने गत दिवस पारित आदेष में कहा कि अपीलीय अधिकारी व लोसूअ द्वारा पदीय दायित्व के निर्वहन में चूक की गई है। अपीलार्थी द्वारा चाही गई जानकारी जन स्वास्थ्य से संबंधित है, जिसमें व्यापक लोकहित निहित है। सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाने तथा शासकीय तंत्र की जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करने की दृष्टि से भी ऐसी जानकारी प्रदाय करना आवश्यक है। अत: लोसूअ को आदेशित किया जाता है कि वे 15 दिन में वांछित जानकारी प्रदाय कर पालन प्रतिवेदन पेश करें।
सूचना आयुक्त ने लोसूअ व खाद्य निरीक्षक, भिंड (वर्तमान में खाद्य सुरक्षा अधिकारी, कार्यालय सीएमएचओ व पदेन उप संचालक, खाद्य एवं औषधि प्रषासन, श्योपुर) को धारा 7 का उल्लंघन कर जानकारी प्रदाय न करने के लिए शोकाज नोटिस जारी करते हुए जवाब पेश करने का आदेश दिया है। साथ ही प्रथम अपीलीय अधिकारी व सीएमएचओ, भिंड डॉ राकेश शर्मा को निर्देशित किया है कि वे प्रथम अपील के निराकरण के लिए धारा 19 के अनुसार की गई कार्यवाही से 25 नवंबर की सुनवाई में आयोग को अवगत कराना सुनिष्चित करें। अन्यथा सूचना प्रदाय करने में अवरोध उत्पन्न करने के कारण उन्हें सम (डिम्ड) लोसूअ मानकर उनके विरुद्ध धारा 20 (2) के तहत नियमानुसार विभागीय/ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की कार्यवाही की जाएगी।
दूसरे प्रकरण में अपीलार्थी ने खाद्य निरीक्षक गिरीश राजौरिया से सरकारी रसीद कट्टे से प्राप्त की गई व जमा कराई गई राषि से संबंधित जानकारी चाही थी, जो यह आधार बता कर नहीं दी गई कि यह जानकारी तृतीय पक्ष से संबंधित है और तृतीय पक्ष ने धारा 8/9 के तहत जानकारी देने से इंकार किया है। इस मामले में भी लोसूअ बिना कोई कारण बताए न सुनवाई में उपस्थित हुए और न ही उनके द्वारा अपील उत्तर पेश किया गया। तत्कालीन अपीलीय अधिकारी एवं सीएमएचओ डॉ. एनसी गुप्ता द्वारा भी प्रथम अपील पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
इस पर नाराजगी जताते हुए आयुक्त आत्मदीप ने फैसले में कहा कि यह मामला आर्थिक अनियमितता से जुडा है, जिसकी जानकारी देने से धारा 8/9 की आड लेकर इंकार नहीं किया जा सकता। चाही गई जानकारी संबंधित लोकसेवक (गिरीश राजौरिया, तत्कालीन खाद्य निरीक्षक) के पदीय दायित्व के निर्वहन से संबंधित है। इसकी जानकारी संबंधित शासकीय सेवक की असहमति के बावजूद लोकहित में दिया जाना आवश्यक है। शासकीय तंत्र के क्रियाकलाप में शुचिता व पारदर्शिता सुनिश्चित करने तथा शासकीय सेवकों को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाने के लिहाज से भी शासकीय सेवक की सार्वजनिक क्रियाकलाप से संबंधित जानकारी प्रदाय की ही जानी चाहिए। इस प्रकरण में भी अपीलार्थी को 15 दिन में जानकारी उपलब्ध कराने का आदेश तथा तत्कालीन खाद्य सुरक्षा अधिकारी को शोकाज नोटिस जारी किया गया है। साथ ही तत्कालीन प्रथम अपीलीय अधिकारी से स्पष्टीकरण तलब किया गया है।
मप्र राज्य सूचना आयोग का फैसला
जानकारी न देने पर लोक सूचना अधिकारी पर ठोका जुर्माना
-एक और मामले में दिया जुर्माने का नोटिस
-जानकारी न देना महंगा पड़ा लोक सूचना अधिकारी को
राज्य सूचना आयोग ने सूचना का अधिकार अधिनियम का उल्लंघन करने पर लोक सूचना अधिकारी को एक हजार रुपए के जुर्माने से दंडित किया है। इसी लोक सूचना अधिकारी को एक अन्य प्रकरण में भी कारण बताओ नोटिस दिया गया है कि अधिनियम की धारा 7 का उल्लंघन करने के कारण क्यों न उन पर अर्थदंड लगाया जाए तथा उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक/ विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा की जाए।
अपीलार्थी विजय शर्मा, शिवपुरी ने नगर पालिका परिषद शिवपुरी के तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी व मुख्य नगर पालिका अधिकारी पीके द्विवेदी से नगर पालिका द्वारा खरीदी गई व लगाई गई मोटरों से संबंधित जानकारी मांगी थी जो निर्धारित अवधि में नहीं दी गई। प्रथम अपीलीय अधिकारी व संभागीय उप संचालक, नगरीय प्रशासन एवं विकास, ग्वालियर-चंबल संभाग ने पांच दिन में जानकारी देने का आदेश दिया, जिसका पालन नहीं किया गया। दो साल बाद अस्पष्ट व अपूर्ण जानकारी दी गई।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने अपीलार्थी की द्वितीय अपील की सुनवाई कर तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी पीके द्विवेदी (वर्तमान में परियोजना अधिकारी, जिला शहरी विकास अभिकरण, रायसेन) को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। इस पर गत दिवस हुई सुनवाई में द्विवेदी द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण को अस्वीकार्य करार देते हुए आत्मदीप ने उन पर शास्ति अधिरोपित करने का आदेश पारित कर दिया।
आदेश में कहा गया है कि तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी द्विवेदी सूचना के आवेदन का निराकरण 30 दिन की निर्धारित अवधि में करने में विफल रहे। उन्होंने अपीलार्थी को शुल्क व प्रथम अपील संबंधी आवश्यक सूचना भी नहीं दी। प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा आदेशित किए जाने तथा अनुशासनिक कार्रवाई की चेतावनी दिए जाने के बावजूद अपीलार्थी को चाही गई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई। द्विवेदी प्रथम अपील की सुनवाई में बिना कारण बताए अनुपस्थित रहे तथा उन्होंने राज्य सूचना आयोग एवं प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष अपील उत्तर प्रस्तुत करने के पदीय दायित्व का निर्वहन भी नहीं किया गया। इस प्रकार द्विवेदी धारा 7 के उल्लंघन के दोषी पाए जाते हैं।
15 दिन में भरें जुर्माना और दें जानकारी
द्विवेदी को 15 दिन में जुर्माना राश् िआयोग कार्यालय में जमा कराने के लिए आदेशित किया गया है। साथ ही वर्तमान लोक सूचना अधिकारी को आदेश दिया गया है कि वे अपीलार्थी को आवेदन में चाही गई संपूर्ण जानकारी 15 दिन में उपलब्ध करा कर आयोग के समक्ष पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करें।
जुर्माने का एक और नोटिस
सूचना आयुक्त आत्मदीप ने इन्हीं लोक सूचना अधिकारी को एक अन्य प्रकरण में भी कारण बताओ नोटिस जारी किया है कि क्यों न उनके विरुद्ध धारा 20 (1) के तहत जुर्माना लगाने तथा धारा 20 (2) के तहत विभागीय/अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की कार्यवाही की जाए। इस प्रकरण में अपीलार्थी ने पीके द्विवेदी से नगर पालिका परिषद शिवपुरी द्वारा कराए गए निर्माण कार्यों की जानकारी चाही थी जो तय समय-सीमा में प्रदाय नहीं की गई। प्रथम अपील होने पर द्विवेदी न सुनवाई में उपस्थित हुए और न ही उनके द्वारा अपील उत्तर प्रस्तुत किया गया। उन्होंने प्रथम अपीलीय अधिकारी व संभागीय उप संचालक, नगरीय प्रशासन एवं विकास के इस आदेश का पालन नहीं किया कि 7 दिन में अपीलार्थी को वांछित जानकारी प्रदाय कर पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाए। द्वितीय अपील होने पर आयोग ने द्विवेदी को प्रथम दृष्टया पदीय दायित्व के निर्वहन में विफल मानते हुए नोटिस जारी किया है। नोटिस का जवाब 25 नवंबर की सुनवाई में पेश करने का आदेश दिया गया है।
राज्य सूचना आयोग के आदेष पर
आखिर देनी पड़ी पुलिस भर्ती परीक्षा की जानकारी
-भर्ती को गोपनीय बताकर, धारा 8 की आड़ में देने से कर दिया था इंकार
भोपाल, 14 अक्टूबर 2014। राज्य सूचना आयोग के आदेष के पालन में पुलिस ने पुलिस भर्ती परीक्षा की वह जानकारी उपलब्ध करा दी है, जिसे देने से पहले यह कह कर इंकार कर दिया था कि पुलिस भर्ती परीक्षा गोपनीय प्रक्रिया है जिसकी जानकारी नहीं दी जा सकती।
प्रकरण में अतिरिक्त पुलिस महानिदेषक (चयन/भर्ती) पुलिस मुख्यालय, भोपाल तथा पुलिस उप महानिरीक्षक, चंबल रेंज का कहना था कि आरक्षक भर्ती परीक्षा की जानकारी सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8 (र) के तहत गोपनीय व पर पक्ष से संबंधित होने तथा लोक हित में न होने के कारण देना संभव नहीं है। आरक्षक भर्ती प्रक्रिया को उक्त धारा के अंतर्गत प्रकटन से विमुक्ति प्राप्त है।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने ए.डी.जी.पी. एवं डी.आई.जी. की इन दलीलों को खारिज करते हुये फैसला सुनाया था कि हर चयन/भर्ती परीक्षा में पारदर्षिता सुनिष्चित करना लोक हित एवं न्यायहित में आवष्यक है। हर शैक्षणिक व चयन/भर्ती परीक्षा के प्राप्तांकों की जानकारी स्वतः ही सार्वजनिक की जानी चाहिए। संघ लोक सेवा आयोग तथा म0प्र0 राज्य लोक सेवा आयोग ऐसा कर भी रहे हैं।
आत्मदीप ने लोक सूचना अधिकारी डी.आई.जी. चंबल रेंज को आदेषित किया था कि वे आरक्षक भर्ती प्रक्रिया 2011 में चयनित उम्मीदवारों के प्राप्तांकों की जानकारी तथा अपीलार्थी की उत्तर पुस्तिका की सत्यप्रति 15 दिवस में अपीलार्थी को निःषुल्क उपलब्ध कराएं और 14 अक्टूबर 2014 की सुनवाई में आयोग के समक्ष पालन प्रतिवेदन पेष करें।
डी.आई.जी. ने मंगलवार की सुनवाई में पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए अवगत कराया कि आयोग के आदेष के पालन में अपीलार्थी को आरक्षक भती प्रक्रिया 2011 में चयनित उम्मीदवारों के संबंध में चाही गई जानकारी निःषुल्क उपलब्ध करा दी गई है। सुनवाई में अपीलार्थी ओमप्रकाष षर्मा, मुरैना ने पुष्टि की कि उन्हे भर्ती परीक्षा की वांछित जानकारी प्राप्त हो गई है।
तीन साल बाद मिली जानकारी
मामले में अपीलार्थी ओमप्रकाष शर्मा को तीन साल बाद जानकारी मिल सकी। सूचना आयोग में आने के बाद आयुक्त के हस्तक्षेप से मामले का निराकरण हो सका।
उत्साहित अपीलार्थी ने मांग ली एक और जानकारी
उम्मीद छोड चुके अपीलार्थी ने चाही गई जानकारी मिल जाने से उत्साहित होकर सुनवाई के दौरान एक और जानकारी मांग ली। अपीलार्थी ने आयोग से अनुरोध किया कि उसे उक्त भर्ती परीक्षा में चयनित प्रत्याषियों को लिखित परीक्षा में प्राप्त अंकों की जानकारी भी दिलाई जाए। अपीलार्थी ने अपने मूल आवेदन में यह जानकारी नहीं मांगी थी। फिर भी सूचना आयुक्त आत्मदीप ने उदारता दिखाते हुए डीईजी को निर्देषित किया कि वे परीक्षा में पारर्दिषता सुनिष्चित करने के लिए अपीलार्थी को यह जानकारी भी उपलब्ध करा दें। इस पर लोक सूचना अधिकारी की ओर से सहमति व्यक्त की गई।
आयोग ने दिया अपीलीय अधिकारी पर कार्रवाई के निर्देश
-लोक सूचना अधिकारी को कारण बताओ नोटिस
राज्य सूचना आयोग ने लोक हित से संबंधित प्रकरण में प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश को खारिज करने के साथ अपीलीय अधिकारी और तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध कड़ी टिप्पणी करते हुए कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने अपीलार्थी की अपील मंजूर करते हुए निर्देशित किया है कि प्रथम अपीलीय अधिकारी, उप संचालक कृषि को सम लोक सूचना अधिकारी मानते हुए उनके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई के लिए संचालक, कृषि, भोपाल को लिखा जाए एवं तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी सहायक संचालक, कृषि को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाए कि धारा 7 का उल्लंघन करने के कारण क्यों न उन पर धारा 20 (1) के तहत जुर्माना लगाया जाए।
आयुकत आत्मदीप ने सुनवाई के बाद पारित फैसले में लोक सूचना अधिकारी को आदेशित किया है कि वे अपीलार्थी को लोकहित में चाही गई जानकारी नि:शुल्क उपलब्ध करा कर पालन प्रतिवेदन व कारण बताओ नोटिस का जवाब 14 अटूबर की सुनवाई में पेश करें। फैसले में कहा गया है कि उप संचालक, कृषि, दतिया डी. आर. राजपूत ने प्रथम अपील निरस्त करने तथा अपीलार्थी को वांछित जानकारी न देने के अलग-अलग तिथियों में पृथक-पृथक कारण बताए हैं जो विधिसम्मत व न्यायोचित नहीं हैं। प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा पदीय दायित्व के निर्वहन में गंभीर श्रेणी की विफलता प्रदर्शित की गई है तथा आरटीआई कानून की अवहेलना व अवमानना की गई है।
आत्मदीप ने अपीलार्थी के तर्क को स्वीकार करते हुए आदेश में कहा कि मांगी गई जानकारी भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन एवं व्यापक लोकहित में है। अपीलार्थी ने शासकीय योजनाओं के तहत लोकधन से लोक हित में कराए गए कामों की जानकारी चाही है जिसे प्रदाय करना शासकीय कार्यांे में पारदर्शिता लाने, अनियमितताएं रोकने व सरकारी तंत्र को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने की दृष्टि से आवश्यक है। ऐसी जानकारी चाहना और उसे प्रदान करना सूचना का अधिकार कानून के मूल उद्देश्य की पूर्ति में सहायक सिद्ध होगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्देशित किया है कि पारदर्शिता ऐसा मानक है कि जिसे जनहित के सभी सार्वजनिक कार्यों में तो अपनाया ही जाना चाहिए।
अपीलार्थी खुमान सिंह बेचैन ने बुंदेलखंड पैकेज के तहत कृषि विभाग द्वारा दतिया जिले में कराए गए कुआ निर्माण, रबी-खरीफ बीज ग्राम प्रशिक्षण, जैविक ग्राम कृषक प्रषिक्षण, आइसोपाम योजनांतर्गत स्टाफ व कृषक प्रषिक्षण, सिंचाई व स्प्रिंकलर पाइप अनुदान वितरण आदि से संबंधित जानकारी मांगी थी। सहायक संचालक, कृषि द्वारा अपूर्ण शुल्क सूचना भेजने तथा चाही गई जानकारी न देने पर की गई प्रथम अपील उप संचालक, कृषि ने इस आधार पर खारिज कर दी कि अपीलार्थी द्वारा चाही गई जानकारी धारा 8 की उप धारा सी,बी,घ,ङ़ के अंतर्गत आती है जो नहीं दी जा सकती।
इस आदेश के विरुद्ध द्वितीय अपील होने पर उप संचालक ने आयोग के समक्ष दलील दी कि अपीलार्थी के शासकीय सेवा में होने से उन्हें जानकारी प्रदाय नहीं की गई और उनकी प्रथम अपील निरस्त की गई। फिर दलील दी कि अपीलार्थी को सेवानिवृत्त होने के बाद जानकारी इसलिए नहीं दी गई, क्योंकि अपीलार्थी का आवेदन उप संचालक, कृषि को संबोधित है जो लोक सूचना अधिकारी नहीं हैं बल्कि अपीलीय अधिकारी हैं।
आत्मदीप ने प्रथम अपीलीय अधिकारी, उप संचालक, कृषि के आदेष को लोक हित व न्यायहित में निरस्त कर दिया है। आयुक्त ने फैसले में कहा है कि प्रथम अपीलीय अधिकारी ने अपील का निराकरण विधि अनुसार नहीं किया। उनके आदेश का कोई विधिक औचित्य सिद्ध नहीं होता है। आयोग के मत में चाही गई जानकारी आरटीआई कानून की धारा 8 (सी,बी,घ,ङ़) की परिधि में किसी भी दृष्टि से नहीं आती। शासकीय सेवक को भी सूचना प्राप्त करने का अधिकार है। आवेदन प्रथम अपीलीय अधिकारी को किए जाने की स्थिति में धारा 6 (3) के अनुसार अपीलीय अधिकारी को आवेदन, लोक सूचना अधिकारी को 5 दिन में अंतरित करना चाहिए था जो नहीं किया गया। फिर भी लोक सूचना अधिकारी को आवेदन की जानकारी होना प्रमाणित हुआ है। अत: अपीलार्थी को आवेदन के अनुसार जानकारी प्रदाय की जानी चाहिए थी।
सूचना आयोग का अहम फैसला
अपीलीय अधिकारी पर कार्रवाई के निर्देश, लोक सूचना अधिकारी से मांगा जवाब
भोपाल, 10 अक्टूबर। राज्य सूचना आयोग ने लोक हित से संबंधित प्रकरण में प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश को खारिज करने के साथ अपीलीय अधिकारी और तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध कड़ी टिप्पणी करते हुए कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने अपीलार्थी की अपील मंजूर करते हुए निर्देशित किया है कि प्रथम अपीलीय अधिकारी, उप संचालक कृषि को सम लोक सूचना अधिकारी मानते हुए उनके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई के लिए संचालक, कृषि, भोपाल को लिखा जाए एवं तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी सहायक संचालक, कृषि को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाए कि धारा 7 का उल्लंघन करने के कारण क्यों न उन पर धारा 20 (1) के तहत जुर्माना लगाया जाए।
आयुकत आत्मदीप ने सुनवाई के बाद पारित फैसले में लोक सूचना अधिकारी को आदेशित किया है कि वे अपीलार्थी को लोकहित में चाही गई जानकारी नि:शुल्क उपलब्ध करा कर पालन प्रतिवेदन व कारण बताओ नोटिस का जवाब 14 अटूबर की सुनवाई में पेश करें। फैसले में कहा गया है कि उप संचालक, कृषि, दतिया डी. आर. राजपूत ने प्रथम अपील निरस्त करने तथा अपीलार्थी को वांछित जानकारी न देने के अलग-अलग तिथियों में पृथक-पृथक कारण बताए हैं जो विधिसम्मत व न्यायोचित नहीं हैं। प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा पदीय दायित्व के निर्वहन में गंभीर श्रेणी की विफलता प्रदर्शित की गई है तथा आरटीआई कानून की अवहेलना व अवमानना की गई है।
आत्मदीप ने अपीलार्थी के तर्क को स्वीकार करते हुए आदेश में कहा कि मांगी गई जानकारी भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन एवं व्यापक लोकहित में है। अपीलार्थी ने शासकीय योजनाओं के तहत लोकधन से लोक हित में कराए गए कामों की जानकारी चाही है जिसे प्रदाय करना शासकीय कार्यांे में पारदर्शिता लाने, अनियमितताएं रोकने व सरकारी तंत्र को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने की दृष्टि से आवश्यक है। ऐसी जानकारी चाहना और उसे प्रदान करना सूचना का अधिकार कानून के मूल उद्देश्य की पूर्ति में सहायक सिद्ध होगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्देशित किया है कि पारदर्शिता ऐसा मानक है कि जिसे जनहित के सभी सार्वजनिक कार्यों में तो अपनाया ही जाना चाहिए।
अपीलार्थी खुमान सिंह बेचैन ने बुंदेलखंड पैकेज के तहत कृषि विभाग द्वारा दतिया जिले में कराए गए कुआ निर्माण, रबी-खरीफ बीज ग्राम प्रशिक्षण, जैविक ग्राम कृषक प्रषिक्षण, आइसोपाम योजनांतर्गत स्टाफ व कृषक प्रषिक्षण, सिंचाई व स्प्रिंकलर पाइप अनुदान वितरण आदि से संबंधित जानकारी मांगी थी। सहायक संचालक, कृषि द्वारा अपूर्ण शुल्क सूचना भेजने तथा चाही गई जानकारी न देने पर की गई प्रथम अपील उप संचालक, कृषि ने इस आधार पर खारिज कर दी कि अपीलार्थी द्वारा चाही गई जानकारी धारा 8 की उप धारा सी,बी,घ,ङ़ के अंतर्गत आती है जो नहीं दी जा सकती।
इस आदेश के विरुद्ध द्वितीय अपील होने पर उप संचालक ने आयोग के समक्ष दलील दी कि अपीलार्थी के शासकीय सेवा में होने से उन्हें जानकारी प्रदाय नहीं की गई और उनकी प्रथम अपील निरस्त की गई। फिर दलील दी कि अपीलार्थी को सेवानिवृत्त होने के बाद जानकारी इसलिए नहीं दी गई, क्योंकि अपीलार्थी का आवेदन उप संचालक, कृषि को संबोधित है जो लोक सूचना अधिकारी नहीं हैं बल्कि अपीलीय अधिकारी हैं।
आत्मदीप ने प्रथम अपीलीय अधिकारी, उप संचालक, कृषि के आदेष को लोक हित व न्यायहित में निरस्त कर दिया है। आयुक्त ने फैसले में कहा है कि प्रथम अपीलीय अधिकारी ने अपील का निराकरण विधि अनुसार नहीं किया। उनके आदेश का कोई विधिक औचित्य सिद्ध नहीं होता है। आयोग के मत में चाही गई जानकारी आरटीआई कानून की धारा 8 (सी,बी,घ,ङ़) की परिधि में किसी भी दृष्टि से नहीं आती। शासकीय सेवक को भी सूचना प्राप्त करने का अधिकार है। आवेदन प्रथम अपीलीय अधिकारी को किए जाने की स्थिति में धारा 6 (3) के अनुसार अपीलीय अधिकारी को आवेदन, लोक सूचना अधिकारी को 5 दिन में अंतरित करना चाहिए था जो नहीं किया गया। फिर भी लोक सूचना अधिकारी को आवेदन की जानकारी होना प्रमाणित हुआ है। अत: अपीलार्थी को आवेदन के अनुसार जानकारी प्रदाय की जानी चाहिए थी।
-राज्य सूचना आयोग का महत्वपूर्ण फैसला
लोकहित में हर चयन व भर्ती परीक्षा में पारदर्शिता सुनिश्चित करना जरुरी
-पुलिस को देनी होगी भर्ती परीक्षा की वांक्षित जानकारी
भोपाल 14 सितंवर। मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग ने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक और पुलिस उप महानिरीक्षक की दलीलों को नामंजूर करते हुए अपीलार्थी को पुलिस भर्ती परीक्षा की वांछित जानकारी देने का आदेश दिया है। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक(चयन/भर्ती) पुलिस मुख्यालय भोपाल तथा पुलिस उप महानिरीक्षक चंबल रेंज ने अपीलार्थी द्वारा चाही गई जानकारी देने से यह कह कर इंकार कर दिया था कि यह जानकारी सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8(जे) के तहत गोपनीय एवं पर पक्ष से संबंधित होने लोकहित में न होने के कारण देना संभव नहीं है।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने गत दिवस इस मामले में फैसला सुनाते हुए लोकसूचना अधिकारी डीआईजी चंबल रेंज, मुरैना को आदेशित किया कि वे 15 दिन में अपीलार्थी को आरक्षक भर्ती प्रक्रिया 2011 में चयनित उम्मीदवारों के प्राप्तांको की जानकारी तथा अपीलार्थी को उत्तरपुस्तिका की स्तयापित पंजीकृत डाक से नि:शुल्क उपलब्ध कराएं और 14 अक्टूबर की सुनवाई में पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करें। आदेश में अन्य चयनित प्रत्याशियों की उत्तर पुस्तिकाओं की सत्यप्रतियां दिलाने के अपीलार्थी के अनुरोध को इस आधार पर अमान्य कर दिया गया कि यह तृतीय पक्ष से संबंधित तथा धारा 8(जे) के तहत विधि से असंगत है किंतु अपीलार्थी स्वयं की उत्तर पुस्तिका की प्रतिलिपि तथा सभी चयनित प्रत्याशियों को प्राप्त अंकों की जानकारी हासिल कर सकेगा।
आत्मदीप ने पारित आदेश में टिप्पणी की है कि शैक्षिक एवं चयन/भर्ती परीक्षा की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद उसकी जानकारी स्वत: सार्वजनिक की ही जानी चाहिए। परीक्षा में पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दृष्टि से ऐसा करना आवश्यक है। इसी उदेश्य से संघ लोक सेवा आयोग तथा मप्र राज्य लोक सेवा आयोग हर चयन परीक्षा के संपंन्न होते ही उसके प्रतिभागियों के प्राप्तांको की जानकारी अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करना शुरु कर चुके हैं। पारदशिर्ता लाने की दृष्टि से मप्र शासन ने भी चयन/भर्ती प्रक्रिया के आनलाइन करने की पहल की है। फैसले में कहा गया है कि लोकसूचना अधिकारी ने अपीलार्थी के प्रथम अपील संबंधी आवश्यक जानकारी पुलिस महानिरीक्षक चंबल को प्रथम अपील प्रस्तुत नहीं कर सका। इसलिए अतिरिक्त महानिदेशक की यह आपत्ति मान्य नही है कि अपीलार्थी ने प्रथम अपील न कर सीधे राज्य सूचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपील पेश की है, जिसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
आत्मदीप ने निर्णय में कहा कि अपीलार्थी ने अपील संबंधी वांक्षित जानकारी न मिलने के कारण प्रथम अपील पुलिस पुलिस महानिदेशक, पुलिस मुख्यालय भोपाल को की है। पुलिस महानिदेशक कार्यालय सूचना के अधिकार के प्रति सद्भावना दिखाते हुए इस अपील के संबंधित अपीलीय अधिकारी को अंतरित कर सकता था जो नहीं किया गया।
यह था मामला
अपीलार्थी ओमप्रकाश शर्मा मुरैना ने जिला श्योपुर में पुलिस भर्ती प्रक्रिया 2011 में चयनित सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों व अनुक्रमांक 60222 के उम्मीदवार की उत्तर पुस्तिकाओं की सप्त प्रतियां तथा चयनित उम्मीदवारों व अनुक्रमांक 60222 के उम्मीदवार की मौखिक परीक्षा में दिए गए अंकों की सत्य प्रति मंागी थी। लोक सूचना अधिकारी व डीआईजी चंबल रेंज ने आदेश दिनांक 23/2/2011 में चाही गई जानकारी देने से यह लिखकर इनकार कर दिया कि पुलिस आरक्षक भर्ती प्रक्रिया गोपनीय प्रक्रिया है जिसे आरटीआई के प्रति धारा 8 (जे) के अनुसार प्रकटन से छूट प्राप्त है तथा चाहे गए दस्तावेजों से लोक हित की भावना परिलक्षित नहीं होती अत: चाहे गए दस्तावेज देना संभव नहीं है। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (चयन/भर्ती) केएन तिवारी ने आयोग को लिखा की सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल बनाम आदित्य बंद्योपाध्याय के प्रकरण में आदित्य को उनकी उत्तर पुस्तिका का अवलोकन करने का आदेश दिया था। इस न्याय दृष्टांत के अनुसरण में अपिलार्थी को स्वयं की उत्तरपुस्तिका का अवलोकन कराया जा सकता है अन्य की नहीं। तिवारी ने चयनित प्रत्याशियों के प्राप्तांकों की जानकारी देने के संबंध में कुछ नहीं कहा था। बांछित जानकारी प्रदाय किये जाने से इंकार किए जाने के बिरोध में अपिलार्थी ने आयोग के समक्ष अंतिम अपील की थी।
रद्द ट्रेन की सूचना देने पर 25 हजार का जुर्माना
नई दिल्ली | रद्दट्रेन की सूचना देने पर उत्तर रेलवे पर 25 हजार का जुर्माना लगाया गया है। एक यात्री ने बीते साल फरवरी में एक ट्रेन का टिकट बुक कराया। स्टेशन पहुंचने पर पता चला कि ट्रेन कई महीनों से रद्द है। उपभोक्ता आयोग ने इसे सेवा में कमी माना है।
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