शासन संचालन में उदाहरणीय परिवर्तन
7 September 2017
देश ने नरेन्द्र मोदी सरकार 3 साल के कार्यकाल में शासन संचालन में उदाहरणीय परिवर्तन देखा है। नीतियों के साथ सुधारकारी निर्णयों से विकास के लिए देश की मनोदशा में बदलाव हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने देश की अर्थव्यवस्था को नीतिगत शिथिलता की अवस्था से बाहर निकालने के लिए अनेक सुधार कार्यक्रम प्रारंभ किया।
एनडीए सरकार को विरासत में विकास की कम वृद्धि दर उच्च मुद्रा स्फीति और उदासीन शासन व्यवस्था मिली थी। निर्यात में गिरावट आने के साथ-साथ औद्योगिक उत्पान में ठहराव आ गया।
प्रधानमंत्री ने मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, कौशल विकास, मुद्रा, प्रधानमंत्री जन-धन योजना, जेएएम तथा डीबीटी जैसे कार्यक्रमों की घोषणा करके विकास की दिशा निर्धारित की। इन कार्यक्रमों को समर्थन देने के लिए उन्होंने आवश्यक नीतियों और सुधारों को लागू किया। काले धन को बाहर निकालने के लिए विमुद्रीकरण और माफी योजना से कुछ हद तक अर्थव्यवस्था की साफ-सफाई में मदद मिली। पुराने योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग का गठन युवा देश और न्यू इंडिया की मांगों और आकांक्षाओं के अनुरूप है।
स्वतंत्रता के बाद उठाये जाने वाले कठोर ऐतिहासिक प्रत्यक्ष कर सुधार 30 जून और 01 जुलाई, 2017 की मध्य रात्रि को वस्तु और सेवाकर (जीएसटी) लागू करने के साथ शुरू हुआ। जीएसटी व्यवस्था से देशवासी ‘एक देश, एक कर’प्रशासन के अंतर्गत आ गए। सुधार का उद्देश्य कर लगाने में पारदर्शिता लाने के साथ-साथ उपभोक्ताओं, कारोबारियों और उद्योगों के हितों की रक्षा करना है।
जम्मू–कश्मीर सहित देश के सभी राज्यों ने प्रत्यक्ष कर सुधार के निर्णय का समर्थन किया। इस निर्णय की सराहना विश्व के अनेक देशों ने की। जीएसटी लागू होने के बाद से सकारात्मक रूझान और देश के अच्छे आर्थिक भविष्य का संकेत मिला है।
मोदी सरकार को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) नीति लागू करने में भारी सफलता मिली है। रसोई गैस के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण लागू किया जाना विश्व में सबसे बड़ी डीबीटी योजना है। डीबीटी योजना पहल के अंतर्गत लगभग 15 करोड़ रसोई गैस उपभोक्ता आए हैं। इसे गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉड में दर्ज किया गया है। डीबीटी के कारण चोरी होने वाले 56 हजार करोड़ रुपये के धन की बचत हुई है। एनडीए सरकार ने अब पायलट आधार पर उर्वरक और मिट्टी तेल सब्सिडी के लिए डीबीटी लागू करने का प्रस्ताव किया है।
पूर्वप्रभाव से कर लगाने की यूपीए सरकार की नीति तथा विभिन्न क्षेत्रों को निवेश के लिए खोलने में शिथिलता के कारण देश में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) के लिए माहौल खराब हुआ। सत्ता में आने के तुरंत बाद एनडीए सरकार ने विदेश निवेशकों की भावनाओं को समझते हुए घोषणा की कि पूर्वप्रभाव से कर लगाने की नीति सम्बंधित मामलों के अनुसार तय होगी। एनडीए सरकार ने विदेशी प्रत्यक्ष निवेश नीति को उदार बनाया और बीमा, रेल, रक्षा तथा खुदरा बाजार जैसे क्षेत्रों में विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए अनेक निर्णयों की घोषणा की।
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में घोषणा की कि बीमा क्षेत्र में 49 प्रतिशत तक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति होगी। उन्होंने रक्षा क्षेत्र में 50 प्रतिशत से अधिक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति दी। इतना ही नहीं 27.08.2014 को जारी डीआईपीपी प्रेस नोट 8 (2014) के माध्यम से रेल क्षेत्र में 100 फीसदी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति दी गई। इसी प्रकार डीआईपीपी प्रेस नोट 12 के माध्यम से निर्माण क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश पर लगे सभी प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया गया।
एक ही ब्रांड के खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश पर प्रतिबंध को समाप्त करते हुए केंद्र ने सरकारी स्वीकृति मार्ग के जरिए 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति दी। यह अनुमति इस शर्त के साथ दी गई कि पहले 5 वर्षों में बेचा जाने वाला 30 प्रतिशत माल भारत में तैयार किया जाना चाहिए। अत्याधुनिक टैक्नोलॉजी के लिए यह अवधि तीन वर्ष रखी गई। सरकार ने प्रत्यक्ष खुदरा ई-कॉमर्स क्षेत्र में 50 प्रतिशत से अधिक विदेशी निवेश की अनुमति इस शर्त के साथ दी कि जब तक माल एक ही ब्रांड के अंतर्गत नहीं बेचे जाते और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं होते तब तक बिजनेस टू कंज्यूमर ई-कॉमर्स में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति नहीं होगी।
एनडीए सरकार ने तेजी से ईंधन मूल्य सुधार का काम किया है। पेट्रोल की कीमतों के विनियमन के बाद से 18 अक्टूबर, 2014 से डीजल की कीमतें भी नियमन दायरे से बाहर कर दी गईं यही कदम प्राकृतिक गैस के मूल्य के बारे में भी उठाया गया।
विकास में खनन क्षेत्र की भूमिका के महत्व को स्वीकार करते हुए मोदी सरकार ने इस क्षेत्र के विकास के लिए कानूनों और नीतियों को लागू किया। एमएमडीआर अधिनियम में संशोधन किया गया ताकि प्रमुख गैर कोयला खनिजों को पट्टे पर देने में पारदर्शिता लाई जा सके। सरकार ने 30 मार्च, 2015 को कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 द्वारा कोयला क्षेत्र को निजी और विदेशी निवेश के लिए खोल दिया। खनन क्षेत्र में पारदर्शी ई-नीलामी से सरकार को बड़ी राजस्व राशि की प्राप्त हुई है।
इसी तरह दूरसंचार स्पेक्ट्रम में पारदर्शिता लाने के लिए परिवर्तन किए गए। भारत ने दूरसंचार क्षेत्र में अनेक स्वतंत्र और निष्पक्ष नीलामी की है और इसे बारे में किसी तरह की शिकायत नहीं मिली।
कारोबारी सहजता के हिस्से के रूप में सरकार ने औद्योगिक लाइसेंसों की समाप्ति की तिथि बढ़ा दी है। 20 दिसम्बर, 2014 को डीआईपीपी ने औद्योगिक लाइसेंस की अधिकतम वैधता अवधि 2 वर्ष से बढ़कार 7 वर्ष करने का आदेश जारी किया। सरकार ने 20 अप्रैल 2015 को क्षेत्रवार निवेश सीमा दूर करते हुए सुरक्षित सूची से अंतिम 20 उत्पादों को हटा दिया।
सरकार ने हाल में दिवालियापन कानून लागू किया है ताकि कम्पनियां आसानी से तरलता की ओर बढ़ सकें।
मोदी सरकार के एजेंडे में अनेक सुधार कार्यक्रम हैं। अब सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता सब्सिडी खर्च में सुधार करना है। सुधार दीर्घकालिक और निरंतर प्रक्रिया है। शुरू किए गए सुधार कार्यक्रम का असली लाभ अगले दो वर्षों में देखने को मिल सकता है।
रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ चले हैं भारत के कदम
1 Aug 2017
क्या ‘सुपर पावर’ बनने की आकांक्षा रखने वाले किसी भी राष्ट्र को रक्षा उपकरणों के आयात पर निरंतर निर्भर रहना चाहिए अथवा स्वदेश में रक्षा उत्पादन अथवा रक्षा क्षेत्र से जुड़े औद्योगिक आधार की अनदेखी करनी चाहिए? निश्चित तौर पर यह उचित नहीं है। स्वदेश में रक्षा उत्पादन अथवा रक्षा क्षेत्र से जुड़ा औद्योगिक आधार किसी भी देश के दीर्घकालिक सामरिक नियोजन का अभिन्न अवयव है। आयात पर काफी अधिक निर्भरता न केवल सामरिक नीति एवं इस क्षेत्र की सुरक्षा में भारत द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका के नजरिए से अत्यंत नुकसानदेह है, बल्कि विकास एवं रोजगार सृजन की संभावनाओं के मद्देनजर आर्थिक दृष्टि से भी चिंता का विषय है। वैसे तो शक्ति से जुड़े तमाम स्वरूपों को हासिल करने पर ही कोई देश ‘सुपर पावर’ के रूप में उभर कर सामने आता है, लेकिन सही अर्थों में सैन्य शक्ति ही महान अथवा सुपर पावर के रूप में किसी भी राष्ट्र के उत्थान की कुंजी है।
इतिहास के पन्ने पलटने पर हम पाते हैं कि भारतीय रक्षा उद्योग 200 वर्षों से भी अधिक समय का गौरवमयी इतिहास अपने-आप में समेटे हुए है। ब्रिटिश काल के दौरान बंदूकें और गोला-बारूद तैयार करने के लिए आयुध कारखानों की स्थापना की गई थी। प्रथम आयुध कारखाने की स्थापना वर्ष 1801 में काशीपुर में की गई थी। देश की आजादी से पहले कुल मिलाकर 18 कारखानों की स्थापना की गई थी। वर्तमान में भारत के रक्षा क्षेत्र से जुड़े औद्योगिक आधार में भौगोलिक दृष्टि से देश भर में फैले 41 आयुध कारखाने, 9 रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (डीपीएसयू), 200 से अधिक निजी क्षेत्र लाइसेंसधारक कंपनियां और बड़े निर्माताओं एवं रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (डीपीएसयू) की जरूरतें पूरी करने वाले कुछ हजार छोटे, मझोले एवं सूक्ष्म उद्यम शामिल हैं। यही नहीं, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की 50 से अधिक रक्षा प्रयोगशालाएं भी देश में रक्षा विनिर्माण की पूरी व्यवस्था का अहम हिस्सा हैं।
वर्ष 2000 के आसपास यह आलम था कि हमारे ज्यादातर प्रमुख रक्षा उपकरणों और हथियार प्रणालियों का या तो आयात किया जाता था या लाइसेंस प्राप्त उत्पादन के तहत आयुध कारखानों अथवा रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों द्वारा उन्हें भारत में ही तैयार किया जाता था। देश में एकमात्र रक्षा अनुसंधान एवं विकास एजेंसी होने के नाते डीआरडीओ ने प्रौद्योगिकी विकास में सक्रिय रूप से योगदान दिया और स्वदेशीकरण के प्रयासों को काफी हद तक पूरक के तौर पर आगे बढ़ाया। अनुसंधान एवं विकास तथा विनिर्माण क्षेत्र में डीआरडीओ और डीपीएसयू के प्रयासों के परिणामस्वरूप देश अब एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गया है, जहां हमने लगभग सभी प्रकार के रक्षा उपकरणों और प्रणालियों के निर्माण की क्षमताएं भलीभांति विकसित कर ली हैं। आज एक स्थूल विश्लेषण के अनुसार, हमारी कुल रक्षा खरीद में से 40 प्रतिशत खरीदारी तो स्वदेशी उत्पादन की ही की जाती है। कुछ प्रमुख प्लेटफॉर्मों पर स्वदेशीकरण का एक बड़ा हिस्सा बाकायदा हासिल किया जा चुका है। उदाहरण के लिए, टी-90 टैंक में 74 प्रतिशत स्वदेशीकरण, पैदल सेना से जुड़े वाहन (बीएमपी II) में 97 प्रतिशत स्वदेशीकरण, सुखोई 30 लड़ाकू विमान में 58 प्रतिशत स्वदेशीकरण और कॉनकुर्स मिसाइल में 90 प्रतिशत स्वदेशीकरण हासिल हो चुका है। लाइसेंस प्राप्त उत्पादन के तहत निर्मित किए जा रहे प्लेटफॉर्मों में हासिल व्यापक स्वदेशीकरण के अलावा हमने अपने स्वयं के अनुसंधान एवं विकास के जरिए कुछ प्रमुख प्रणालियों को स्वदेश में ही विकसित करने में भी सफलता पा ली है। इनमें आकाश मिसाइल प्रणाली, उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर, हल्के लड़ाकू विमान, पिनाका रॉकेट और विभिन्न प्रकार के रडार जैसे केंद्रीय अधिग्रहण रडार, हथियारों को ढूंढ निकालने में सक्षम रडार, युद्ध क्षेत्र की निगरानी करने वाले रडार इत्यादि शामिल हैं। इन प्रणालियों में भी 50 से 60 प्रतिशत से अधिक स्वदेशीकरण हासिल किया जा चुका है।
सरकारी विनिर्माण कंपनियों और डीआरडीओ के जरिए हासिल की गई उपर्युक्त प्रगति को देखते हुए अब वह सही समय आ गया था कि भारतीय रक्षा उद्योग के दायरे में निजी क्षेत्र को शामिल करके रक्षा से जुड़े औद्योगिक आधार का समुचित विस्तार किया जाए। वर्ष 2001 में सरकार ने 26 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ रक्षा निर्माण में निजी क्षेत्र के प्रवेश को बाकायदा अनुमति दे दी। हमने रक्षा क्षेत्र से जुड़े अपने औद्योगिक आधार का विनिर्माण करने और इस तरह अंततः आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में हो रहे सफर को अपनी मंजिल पर पहुंचाने के लिए देश में उपलब्ध विशेषज्ञता और उद्योग जगत के पूरे स्पेक्ट्रम की क्षमता का दोहन करने हेतु अथक प्रयास किए हैं। वैसे तो वर्ष 2001 में ही निजी क्षेत्र के प्रवेश को अनुमति दे दी गई थी, लेकिन रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र की भागीदारी लगभग 3-4 साल पहले तक नगण्य ही थी और वह भी मुख्यत: आयुध कारखानों और डीपीएसयू को आपूर्ति करने के लिए कलपुर्जों एवं उपकरणों के उत्पादन तक ही सीमित थी। पिछले 3 वर्षों के दौरान लाइसेंसिंग व्यवस्था में उदारीकरण की बदौलत विभिन्न रक्षा वस्तुओं के निर्माण के लिए 128 लाइसेंस जारी किए गए हैं, जबकि उससे पहले पिछले 14 वर्षों में केवल 214 लाइसेंस ही जारी किए गए थे।
चूंकि रक्षा एक क्रेता एकाधिकार क्षेत्र है, जिसमें सरकार ही एकमात्र खरीदार है, अत: ऐसे में घरेलू रक्षा उद्योग की संरचना और विकास सरकार की खरीद नीति के जरिए संचालित हो रहा है। इसलिए सरकार ने देश में ही निर्मित उपकरणों को वरीयता देने के लिए अपनी खरीद नीति को अब पहले के मुकाबले बेहतर बना दिया है। सामरिक प्लेटफॉर्मों जैसे लड़ाकू विमानों, हेलीकॉप्टरों, पनडुब्बियों एवं बख्तरबंद वाहनों के निर्माण को और ज्यादा बढ़ावा देने के लिए सरकार ने हाल ही में एक ऐसी सामरिक साझेदारी नीति की घोषणा की है, जिसके तहत चयनित भारतीय कंपनियां प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के जरिए भारत में इस तरह के प्लेटफॉर्मों का निर्माण करने के लिए विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) के साथ मिलकर संयुक्त उद्यमों की स्थापना कर सकती हैं या अन्य प्रकार की भागीदारियां स्थापित कर सकती हैं। पिछले 3 वर्षों में अपनाई गई नीतियों और पहलों ने अपेक्षित परिणाम दिखाने शुरू कर दिए हैं। 3 साल पहले वर्ष 2013-14 में कुल पूंजीगत खरीदारी का केवल 47.2 प्रतिशत हिस्सा ही भारतीय विक्रेताओं से खरीदा गया था, जबकि वर्ष 2016-17 में यह बढ़कर 60.6 प्रतिशत हो गया है।
देश में ही रक्षा उपकरणों के स्वदेशी डिजाइन, विकास और विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने अनेक नीतिगत एवं प्रक्रियागत सुधार लागू किए हैं। इनमें लाइसेंसिंग एवं एफडीआई नीति का उदारीकरण, ऑफसेट संबंधी दिशा-निर्देशों को सुव्यवस्थित करना, निर्यात नियंत्रण प्रक्रियाओं को तर्कसंगत बनाना और सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र को समान अवसर देने से संबंधित मसलों को सुलझाना शामिल हैं।
डीपीएसयू की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने के लिए भी कई कदम उठाए गए हैं। सभी डीपीएसयू और आयुध कारखाना बोर्ड (ओएफबी) से कहा गया है कि वे एसएमई को अपनी आउटसोर्सिंग बढ़ाएं, ताकि देश के भीतर विनिर्माण की समुचित व्यवस्था विकसित हो सके। डीपीएसयू और ओएफबी को निर्यात के साथ-साथ लागत को कम करके एवं अक्षमताओं को दूर करके अपनी प्रक्रियाओं को और अधिक कुशल बनाने के लिए भी लक्ष्य दिए गए हैं। हमारे रक्षा शिपयार्डों ने जहाज निर्माण में काफी हद तक स्वदेशीकरण हासिल कर लिया है। आज समस्त जहाजों और गश्ती जहाजों इत्यादि के लिए नौसेना और तटरक्षक द्वारा भारतीय शिपयार्डों को ऑर्डर दिए जा रहे हैं। धीरे-धीरे डीपीएसयू में विनिवेश पर विशेष जोर दिया जा रहा है, ताकि उन्हें और अधिक जवाबदेह बनाया जा सके तथा इसके साथ ही उनमें परिचालन दक्षता भी सुनिश्चित की जा सके। पिछले 3 वर्षों में डीपीएसयू और ओएफबी के उत्पादन मूल्य (वीओपी) में लगभग 28 प्रतिशत एवं उत्पादकता में 38 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
जहां तक रक्षा उत्पादन का सवाल है, हम आत्मनिर्भरता की दिशा में अपनी यात्रा के निर्णायक और महत्वपूर्ण चरण में हैं। आजादी के बाद पहले तो हम मुख्यत: आयात पर ही अपना ध्यान केंद्रित कर रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे हम सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशकों में लाइसेंस प्राप्त उत्पादन की ओर बढ़ने लगे थे और अब अपने देश में ही डिजाइन, विकास और विनिर्माण करने की तरफ अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। ऑटोमोबाइल, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, भारी इंजीनियरिंग इत्यादि जैसे अन्य क्षेत्रों की भांति ही मुझे उम्मीद है कि निरंतर नीतिगत पहलों, कुशल प्रशासनिक प्रक्रिया और आवश्यक मार्गदर्शन एवं सहायता की बदौलत भारतीय रक्षा उद्योग बेहतर प्रदर्शन करने लगेगा और इसके साथ ही हम निकट भविष्य में देश में ही प्रमुख रक्षा उपकरणों एवं प्लेटफॉर्मों की डिजाइनिंग, विकास और विनिर्माण शुरू होने के साक्षी बन सकते हैं। सुधारों की प्रक्रिया के साथ-साथ बिजनेस में आसानी या सुगमता सुनिश्चित करना भी एक सतत प्रक्रिया है और इसके साथ ही सरकार एवं उद्योग जगत को आपस में मिलकर एक ऐसा परितंत्र या सुव्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी, जो इस क्षेत्र के विकास एवं स्थिरता के लिए आवश्यक है और यह राष्ट्रीय सुरक्षा के हमारे दीर्घकालिक हित में होगा।
बजट: प्रचार पर कम; वास्तयविकता पर अधिक जोर
7 Feb. 2017
वित्तम मंत्री श्री अरुण जेटली ने अपने बजट 2017-18 में जरूरत मंदों को धन प्रदान किया है। लगभग 21.46 लाख करोड़ रुपये के विभिन्न बजट विवरण के बारे में सबसे उपयुक्तश शीर्ष वैश्विक बैंकर ने कहा है कि यह एक कारीगरी और व्येवसाय जैसा कार्य है।
हालांकि उच्चर अपेक्षाओं के बावजूद बजट के अंतिम आंकड़ों और विकास खाके में प्रचार पर कम और किसानों, ग्रामीण श्रमिकों, निम्नव मध्यय वर्ग, युवा और लघु तथा मध्य म उद्यमोंक के लिए वास्तदविक सहायता प्रदान करने पर अधिक जोर दिया गया है।
विकसित अर्थव्य वस्थारओं द्वारा संरक्षणवाद और उभरते हुए बाजारों से पूंजी का निकलना जैसी वैश्विक चुनौतियों को देखते हुए वित्तं मंत्री ने बजट प्रस्तुात करते हुए घरेलू कारकों पर बल दिया, जिसमें कई बातें पहली बार शामिल की गई हैं। पहली बार बजट एक महीने पहले पेश किया गया, जिससे सरकार के व्य य पर गुणात्मलक प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा पहली बार नियोजित और गैर-नियोजित व्याय की सख्तीा को हटाया गया है।
विमुद्रीकरण और ग्रामीण अर्थव्यावस्थाऔ को बढ़ावा देने के महत्वत के बाद आए इस बजट में श्री जेटली ने देश के ग्रामीण क्षेत्र के लिए 1.87 लाख करोड़ रुपये का संयुक्त आवंटन किया है। प्रमुख ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, महात्मा गांधी मनरेगा के लिए अब तक का सबसे अधिक 48,000 करोड़ रुपये आवंटित किया गया है और यह व्यतय ‘केवल खड्डे खोदने और भरने’ के लिए नहीं बल्कि बेहतरीन ग्रामीण संपत्ति का निर्माण करने में किया जाएगा। सभी मनरेगा संपत्तियों को जीओ-टैग किया जाएगा और अधिक पारदर्शिता के लिए इसे सार्वजनिक किया जाएगा। यहां तक कि मनरेगा कार्यों की योजना बनाने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का भी व्या पक उपयोग किया जाएगा।
किसानों को उनकी फसल का बेहतर मूल्यप दिलाने के लिए उनको ई-मंडी से जोड़ने तथा कृषि उत्पाोद बाजार समीति (एपीएमसी) अधिनियम के चंगुल से और अधिक किसान उत्पाोदों को विमुक्त् करने के लिए अधिक से अधिक राज्योंु से आग्रह करने जैसी पहलों से किसानों को काफी मदद मिलेगी।
एक महत्वंपूर्ण प्रश्नम है कि क्याे यह बजट निजी क्षेत्र में खपत मांग और निवेश को पुनर्जीवित कर सकेगा?
जैसा कि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीहय अर्थव्यावस्था की स्थिति के बारे में शानदार कुछ और ईमानदार आकलन के बेहतरीन दस्तारवेज, आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि देश का निजी क्षेत्र भारी ऋण की समस्याे से जूझ रहा है। इसलिये भारतीय कंपनियों द्वारा इस क्षेत्र में नया धन लगाने से पहले निवेश चक्र में आवश्ययक महत्वरपूर्ण नेतृत्वध के लिये यह सरकार का तार्किक उपाय होगा और इसके बाद दूसरे आदेश में इसका पालन किया जायेगा। यही कार्य इस बजट में किया गया है। विश्वश में विपरित परिस्थितियों के बावजूद पूंजी निर्माण के लिये पूंजी व्य य में 24 प्रतिशत की बढ़ोत्तंरी की गई है। प्रमुख सड़क, रेल और शिपिंग बुनियादी ढांचा क्षेत्र को संयुक्तप रूप से 2.41 लाख करोड़ रुपये के परिव्यरय का सरकारी निवेश प्राप्त् हुआ है। इसे कई गुना प्रभावी बनाने के लिये निजी क्षेत्र को सीमेंट, स्टील और रोलिंग स्टॉपक आदि के ऑर्डर प्राप्तर होंगे, जिससे कुशल और अर्धकुशल लोगों के लिये रोजगार के अवसर पैदा होंगे तथा प्रमोटरों के राजस्व में वृद्धि होगी।
युवाओं के बारे में विचार एकदम स्पतष्टो हैं: जो एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करना है जहां आसान बैंक ऋण, राजकोषीय रियायतों और प्रोद्योगिकी समर्थता की मदद से उद्यमशीलता बढ़े। एक विश्लेरषक ने कहा है कि कारपोरेट भारत को केवल पांच से दस शीर्ष व्या वसायिक घरानों के लिये ही शेयर बाजार में धन बनाने के रूप में नहीं देखना चाहिये,बल्कि यह करोड़ों सूक्ष्मे, लघु और मझौले उद्यमों (एसएमई) के लिये भी है। बजट से इस वर्ग के लोगों की स्थिति में काफी बदलाव आयेगा। हालांकि सरकार द्वारा पूरे उद्योग के लिये कारपोरेट कर को 25 प्रतिशत करने के अलावा एसएमई क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई है, जिन्हेंक कर और कम देना होगा। नाम में कुछ बदलाव कर बुनियादी ढ़ांचा का दर्जा देने के बाद किफायती आवास के इस क्षेत्र को काफी बढ़ावा दिया गया है। विमुद्रीकरण और कम मांग के कारण इस क्षेत्र को काफी धक्काा पंहुचा था। इससे निर्माण क्षेत्र में रोजगार बढ़ेगा और सबके लिये आवास का सरकार का वादा पूरा होगा।
डिजीटल इंडिया एक ऐसा क्षेत्र है, जहां बजट में अपेक्षाओं के अनुरूप आवंटन किया गया है। इसमें जोर देकर कहा गया है कि डिजीटल पहल केवल विमुद्रीकरण तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि यह नया सामान्य तरीका होगा। संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को आपस में जोड़ने के लिये भीम, फाइबर ऑप्टिक्सस, बिक्री स्थिलों और माल प्लेेटफार्म जैसे परिचालन ऐप तैयार करने के लिये कई पहल की और बुनियादी सहायता दी गई है। देश को ऊर्जावान और स्वसच्छ बनाने के लिये बजट में नगदी रहित अर्थव्यहवस्था् ‘टीइसी’ स्तनम्भों में से एक है। वास्तुव में इससे न केवल काले धन और भ्रष्टाहचार को समाप्त कर देश को आंतरिक रूप से स्वमच्छभ करने में मदद मिलेगी, बल्कि इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और युवा ऊर्जावान बनेंगे।
इसी विषय से जुड़े विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड को समाप्तऔ करने से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की परियोजनओं को मंजूरी देने या न देने में लाल फीताशाही कम करने और विवेकाधिकारों को समाप्तज करने के बारे में वैश्विक निवेशकों को बड़ा और स्परष्टक संकेत दिया गया है। इसके बाद राजनीतिक दलों को चंदा देने में पारदर्शिता लाने के लिए सबसे साहासिक कदम चुनावी बांड के जरिए चंदा देना और केवल दो हजार रुपये तक नकद चंदा देने की सीमा तय करना है। यह भ्रष्टा चार के खिलाफ लड़ाई जीतने में काफी मददगार साबित होगा।
20,000 करोड़ रुपये तक प्रत्यदक्ष कर मुक्तर करने के साथ ही वित्तीषय अनुशासन पर टिके रहकर वित्त मंत्री ने इसके लिए कोई नया कर नहीं शुरू किया है। राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पा द के 3.2 प्रतिशत के महत्वथपूर्ण स्वी कार्य स्त र पर नियंत्रित किया गया है। यह एक ऐसा उपाय है, जिससे देश को वैश्विक रेटिंग एजेंसियों का विश्वातस बनाए रखने में मदद मिलेगी।
संक्षेप में बजट 2017-18 बेहतरीन है और अगर अगले वित्त वर्ष में नहीं, तो आगामी वर्षों में इससे 8 प्रतिशत से अधिक जीडीपी वृद्धि दर हासिल करने में मदद मिलेगी।
सेना पर प्रश्न खड़े करते केजरीवाल
4 October 2016
भारत ने उड़ी हमले का बदला पाकिस्तान के गुलाम कश्मीर में आतंकी कैंपों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर लिया। जैसे ही यह खबर आई और सेना की ओर से इस बात की विधिवत जानकारी दी गई, वैसे ही समुचे देश में जश्न का माहौल हो गया । अपने बेटे को देश पर न्यौछावर कर देने वाली हर उस मां के सीने को ठंडक मिली और शहीद की पत्नि और बहनों से लेकर परिवार के प्रत्येक सदस्य को इस बात की तसल्ली हुई कि चलो, भारतीय सेना ने भी अपने अंदाज में अमेरिका की तरह आतंकवादियों के विरुद्ध सर्जिकल स्ट्राइक रातोरात पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर की है ।
जब से भारतीय सेना ने यह कार्य किया, तब से हर देशभक्त भारतीय सीना फुलाए घूम रहे हैं, यह जानते हुए कि प्रतिक्रिया स्वरूप पाकिस्तान अपने स्वभाव के अनुरूप चुप बैठने वाला नहीं, कुछ न कुछ ऐसा करना चाहेगा जिससे कि भारत का अधिकतम नुकसान हो सके। पाकिस्तान तो जो करेगा सो ठीक है, उससे निपट लेंगे। निपट भी रहे हैं, जैसे उड़ी के बाद फिर एक बार आतंकवादियों ने बारामुला में 46-राष्ट्रीय राइफल्स और बीएसएफ के कैंप पर आत्मघाती हमला बोला, जिसे कि विफल करने में सेना कामयाब रही। किंतु स्तुति की चाशनी में शब्दों को ढालकर कोई इस बात के साक्ष्य मांगे कि सर्जिकल स्ट्राइक हुई भी है अथवा नहीं ? वह भी देश के राजधानी केंद्र का मुख्यमंत्री ऐसा कहे तो जरूर सभी को विचार करना चाहिए। आखिर, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ऐसी भाषा बोल भी कैसे सकते हैं ? वस्तुत: दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश होगा जहां अपने देश की सेना पर भारत की तरह संदेह व्यक्त करने वाले लोगों का जमघट होता हो।
वैसे तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का हाल ही में आया वीडियो देखने पर एक साधारण आदमी को यही लगेगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वे जमकर तारीफ कर रहे हैं। लेकिन जब आप गहराई से उनके शब्दों को पकड़ने का प्रयत्न करेंगे तब समझ आएगा कि किस तरह वे अपनी ही सेना को कटघरे में खड़ा करने का प्रयत्न कर रहे हैं। जब देश के प्रधानमंत्री मोदी और भारतीय सेना के इस साहस भरे कदम पर केजरीवाल उन्हें सलाम ही करना चाहते थे तो क्यों वे संयुक्त राष्ट्र के बयान और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में आ रही खबरों की बात करने लगे, जिनमें सर्जिकल स्ट्राइक के भारतीय दावे पर संदेह जताया जा रहा है ?
पहली बात तो इसमें केजरीवाल को यह समझना चाहिए कि पाकिस्तान जिस जगह विदेशी मीडिया को लेकर सीमान्त इलाकों में जा रहा है तो क्या वह उसी जगह उन्हें लेकर जा रहा होगा, जहां भारतीय सेना ने आतंकवादी कैंप नष्ट किए और कई आतंकियों को मार गिराया था। क्या इतने दिनों में पाकिस्तान ने उन तमाम सबूतों को नष्ट करने का प्रयत्न नहीं किया होगा, जिनसे यह लगता हो कि भारत की सैन्य कार्रवाही के साक्ष्य स्पष्ट होते हैं। प्रश्न यहां सीधा है पाकिस्तान के कहे अनुसार जब भारत ने कुछ किया ही नहीं, तब पाकिस्तान इतना घबराया हुआ क्यों है ? पाकिस्तान में इन दिनों युद्ध जैसे हालात क्यों पैदा हो गए हैं। यहां प्रधानमंत्री नवाज शरीफ आपात बैठक क्यों बुला रहे हैं। राजनीतिक पार्टियों के साथ यहां पनप रहे आतंकवादी संगठनों के मुखिया भारत को देखलेने की धमकी किस आधार पर दे रहे हैं। पाक का पूरा मीडिया जोर-जोर से सर्जिकल स्ट्राइक-सर्जिकल स्ट्राइक चिल्ला रहा है। इन सब संकेतों को फिर क्या माना जाए ?
अरविंद केजरीवाल इतना सब होने के बाद भी यदि वीडियो में पीएम की तारीफ करने के साथ यह कहते हैं कि "दो दिन पहले संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने बयान दिया है कि सीमा पर इस तरह की कोई हरकत नहीं देखी गई। कल सीएनएन में रिपोर्ट चली। बीबीसी, न्यूयॉर्क टाइम्स वालों की भी खबर चल रही थी...। इनमें दिखाया जा रहा था कि वहां तो कुछ नहीं हुआ। वहां बच्चे खेल रहे हैं, जिंदगी सामान्य चल रही है। गोला-बारी जैसा कोई सुबूत ही नहीं है।"...आखिर यह सभी बातें कहने के पीछे केजरीवाल का मंतव्य क्या समझें ? केजरीवाल जब पीएम की तारीफ करने के साथ धीरे से बोलते हैं "जैसे प्रधानमंत्रीजी ने और सेना ने मिलकर जमीन पर पाकिस्तान को मजा चखाया है, वैसे ही पाकिस्तान जो झूठा प्रोपगंडा कर रहा है, उसको भी बेनकाब करें" तो यहां उनसे सीधे यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि इसमें बेनकाब करने जैसी बात क्या रह गई है, जबकि सेना इस सर्जिकल स्ट्राइक की पहले ही पुष्टि कर चुकी है। भारत की ओर से यह कदम उठाने के बाद कई प्रमुख देशों के राष्ट्राध्यक्षों को इसके बारे में अवगत करा दिया गया था।
वास्तव में केजरीवाल यह क्यों भूल जाते हैं कि भारत ने जब-जब परमाणु विस्फोट करे, फिर वो कांग्रेस शासन श्रीमती इंदिरा गांधी का रहा हो या एनडीएनीत भाजपा अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में प्रधानमंत्रित्व काल हो, हर बार हुए परमाणु विस्फोटों की जानकारी कोई भी विदेशी मीडिया नहीं लगा पाई थी। वह भारत के खुफिया कार्यों को लेकर पहले भी कभी सच का पता नहीं लगा पाईं और न अब । आगे भी उम्मीद यही की जाए कि ये विदेशी खुफिया एजेंसिया कभी भारत के गोपनीय मिशन का पता नहीं लगा पाए, यही भारत के हित में भी है।
वास्तव में केजरीवाल के इस बयान को गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने "राजनीतिक" करार देते हुए उनकी सही आलोचना की है। रिजिजू को बाकायदा ट्वीट कर कहना पड़ा कि "यह राजनीति करने का समय नहीं है। भारतीय सेना पर विश्वास कीजिए।" केजरीवाल ये समझें कि भारत के प्रधानमंत्री को किसी को सबूत दिखाने की जरूरत नहीं है, सेना अपना कार्य बखूबी कर रही है। सेना ने जो कहा, भारत के सवासौ करोड़ देशवासियों को उसके कहे पर भरोसा है। साक्ष्य हमें नहीं दिखाने हैं। यह तो पाकिस्तान का काम है कि वह भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के सबूतों को नष्ट करता रहे, नहीं तो यह सिद्ध होने में देरी नहीं लगेगी कि पाकिस्तान भारत की अनाधिकृत रूप से हड़पी जमीन पर आतंक की फसल लहरा रहा है, उसे काट रहा है, फिर से खाली होती जमीन पर ऐसे जहरीले बीज बो रहा है।
गज़लो-गीतों ने दिलाई आजादी
दुनिया में जब भी किसी ऐसे आंदोलन को याद करते हैं जिन आंदोलनों में मनुष्य अपने ऊपर थोपे गए कई बंधनों से मुक्ति के लिए एकजूट होता है तो उस आंदोलन का कोई न कोई गीत याद आने लगता है। यही वास्तविकता है कि कोई भी आंदोलन गीतों के बिना पूरा नहीं होता है। काव्य धारा के कई रूप हैं और वे कविता, नज्म़, गज़ल, गीत आदि के रूप में जाने जाते हैं। बल्कि यूं भी कहा जाए कि नारे भी अपनी काव्यत्मकता से ही यादगार बन पाते हैं। ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ आंदोलनों के लिए न मालूम कितने गीत लिखंक गए। इस विषय पर कई शोध हुए हैं लेकिन तमाम तरह के शोधों के बावजूद ये लगता है कि वे उस दौरान लिखे गए सभी गीतों को समेट नहीं पाए।
आमतौर पर दो चार गीतों को हम दोहराते हैं। उनमें उर्दू के प्रसिद्ध शायर इक़बाल का वह गीत जिसमें वे कहते हैं कि सारे जहां से अच्छा , हिन्दोस्तां हमारा। हम बुलबुले है इसकी , ये गुलसितां हमारा। इसी हिन्दोस्तां को हिन्दुस्तान के रूप में प्रचारित किया गया है। इक़बाल 1938 में ऐसे ही जोश खरोश से भरे गीत लिखकर दुनियां से विदा हो गए। दरअसल ब्रिटिश सत्ता के विरोध में आजादी के संग्राम के गीतों की ये विशेषताएं थी कि उनमें सात समंदर पार के शासकों की ज्यादतियों का एहसास कराया जाए। लेकिन इसके साथ ये भी जरूरी था कि अपने भीतर की अच्छाई और सुदंरता के विभिन्न पहलूओं की तस्वीर लोगों के सामने खींची जाए। इक़बाल हिन्दोस्तां हमारा गीत में ही लिखते हैं कि गोदी में खेलती है उसकी हजारों नदियां, गुलशन है जिनके दम से रश्के –जिनां हमारा।
गुलामी का एहसास कराना, स्वतंत्रता की चाहत पैदा करना, स्वतंत्रता के लिए सामूहिकता की भावना पैदा करना, उस सामूहिकता की ताकत का एहसास कराना और सबसे महत्वपूर्ण कि आपस की दूरियों को दूर करना और उन दूरियों को विविधता के रूप में पहचान कराकर उन्हें अपनी ताकत बताना, ये सब एक साथ जब कोई रचनाकार करता है तो उसकी राष्ट्रीय़ गीतकार के रूप में स्वीकार्यता हो जाती है। केवल इकबाल अपनी रचनाओं में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ संघर्ष और अपने लोगों के बीच एकता विकसित करने की चुनौती से नहीं जूझ रहे थे बल्कि हर वह रचनाकार ऐसी चुनौती से जुझ रहा था जो कि भारत को एक लेकिन सभी भारतवासियों के राष्ट्र के रूप में निखारने के सपने देख रहा था। वंशीधर शुक्ल लिखते हैं कि
बिस्मिल , रोशन , लहरी, मौं.अशपाक अली से वीर
आजादी लेने निकले थे, फांसी चढ़े अखीर
शक्ति अनतोली निकली। सिर बांधे कफनवा।
कैप्टन राम सिंह लिखते है- कदम कदम बढाए जा
खुशी के गीत गाए जा
यह जिंदगी है कौम की
तू कौम पर लुटाए जा, बढ़ाए जा।
भारतीय समाज जातियों, धर्मों और दूसरे तरह के आपसी विभाजनों से जूझता रहा है। इन विभाजनों को दूर करने की लड़ाई सदियों से होती रही है। भक्तिकालीन साहित्य में भी यह चुनौती देखने को मिलती है। ब्रिटिश सत्ता विरोधी आंदोलनों के लिए लोगों को घरों से निकालना था और उन्हें यह एहसास कराना था कि इंसानी जिदंगी समाज को जीवंत बनाए रखने की शर्त के साथ जुड़ी है। इसीलिए उस आंदोलन में शामिल होने वाला सैनानी फांसी पर चढ़ते हुए भी लोगों के भीतर मौत का भय नहीं पैदा करता था बल्कि लड़ने के लिए प्रेरित करता था। इस तरह की प्रेरणा केवल और केवल साहित्य ही कर सकता है। कल्पना करें कि स्वंतत्रता की लड़ाई की अगुवाई करने वालों के साथ इन गीतों का साथ नहीं होता तो लोगों को नींद से जगाना और सक्रिय करना लगभग असंभव होता।
वंशीधर शुक्ल खूनी पर्या गीत में कहते हैं कि-
तुम्हीं हिंद में सौदागर आए थे टुकड़े खाने, मेरी दौलत देख देख के, लगे दिलों में ललचाने, लगा फूट का पेड़ हिंद में अग्नी ईष्या बरसाने, राजाओं के मंत्री फोड़े , लगे फौज को भड़काने. तेरी काली करतूतों का भंडा फोड़ कराऊंगा, जब तक तुझको ......
स्वतंत्रता संग्राम की खास बात यह देखी जाती है कि इसने घर-घर में गीत-सैन्य तैयार किए। यानी हर घर में गीत लिखने वाले सैनिक तैय़ार किए। इसीलिए बहुत सारे गीत ऐसे मिलते हैं जिनके रचनाकार के बारे में शोधकर्ताओं को जानकारी नहीं मिलती। दरअसल यहां सैनिक के रूप गीतकार का अर्थ इसी रूप में लेना चाहिए कि जैसे सैकड़ों सैनिक हथियारों से लड़ते-लड़ते शहीद हो जाते हैं और उनके नाम सबकी जुबां तक नहीं पहुंच पाते हैं। दरअसल यही भावना होती है जो कि समाज में परिवर्तन की लड़ाई को अंजाम देने और उनमें सफलता की भावना को सुनिश्चित करती है। एक अज्ञात रचना में गीतकार कहता है कि उठो नौजवानों न रहने कसर दो , विदेशी का अब तो बहिष्कार कर दो, मुअस्सर जहां नहीं पेटभर है दाना . गुलामी में मुश्किल हुआ सर उठाना । रंग दे बसंती चोला , मायी नी रंग दे बसंती चोला वाला जो गीत अक्सर जन भागीदारी वाले कार्यक्रमों में सुनाई देता है उस गीत के भी रचनाकार के बारे में शायद ही कोई जानता हो। वास्तव में उस रचना का रचनाकार अज्ञात है।
दरअसल स्वतंत्रता आंदोलन के कुछ गीत लोगों के बीच लोकप्रिय है लेकिन बहुत बड़ी संख्य़ा में गीत हैं जिन्हें आमतौर पर सुना व पढ़ा नहीं जाता है। आंदोलन के गीतों की खासियत यह भी होती है कि एक गीत कोई लोकप्रिय होता है तो उसकी तर्ज पर कई-कई गीतों की रचना आम लोग करने लगते हैं। मसलन जन गण मन गीत की तरह ही एक अज्ञात रचनाकार लिखते हैं कि शुभ सुख चैन की वर्षा बरसे , भारत भाग है जागा , पंजाब, सिंध , गुजरात, मराठा,द्रविड़,उत्कल-बंग/चंचल सागर , विंध्य हिमालय नीला यमुना गंगा.....। इसी तरह वंदे मातरम शीर्षक वाले अज्ञात गीतकार लिखते हैं कि सरचढ़ो के सिर में चक्कर उस समय आता जरूर, काम में पहुंची जहां झनकार वंदे मातरम। एक ही गीत से कई-कई गीत निकलते रहे हैं। इन गीतों में एक और विशेषता यह देखी जाती है कि हर तरह के काम धंधे करने वाले लोगों के अनुकूल गीत तैयार करने की कोशिश की जाती थी। चकोर लिखते है कि दुखिया किसान हम है, भारत के रहने वाले. बेदम हुए, न दम है , बेमौत मरने वाले । आखिर पंक्ति में लिखते है – ए मौज करने वालो, कर देंगे हश्र बरपा, उभरे चकोर जब भी, हम आह भरने वाले।
गीतों को ब्रिटिश सत्ता अपना सबसे बड़ा शत्रु मानती थी। वह लड़ने वालों के खिलाफ जेल,लाठी गोली का तो इस्तेमाल करती ही थी वह गीतों को भी सलाखों में डालने का इंतजाम करती थी। गीत यानी कलात्मक तरीके से जमीनी हकीकत को बयां करने और उसे लड़ने के लिए प्रेरित करने वाली अभिव्यक्ति से घबराकर ही सरकार ने एक कानून बनाया था जो कि आज भी बरकरार है, जिसके तहत गीतकारों, नाटककारों और दूसरे तरह की साहित्यिक गतिविधियों में शामिल होने वाले वाले रचनाकारों को जेल के अंदर डाला जाता था और गीतों को जब्त कर लिया जाता था। ब्रिटिश सत्ता ने जिस अनुपात में लोगों को जेलों के भीतर डाला उसी अनुपात में गीत भी जब्त किए। इनमें एक गीत राम सिंह का है- मेरे पुत्रों को यह पैगाम दे देना ज़रा बेटा, मर मिटो देश की खातिर, मेरे लख़्ते-जिगर बेटा। दूसरा गीत कुंवर प्रतापचन्द्र आजाद का है -बांध ले बिस्तर , फिरंगी, राज अब जाने को है, ज़ुल्म काफ़ी कर चुके, पब्लिक बिगड़ जाने को है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं एवं वे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के जन संचार विभाग में प्रोफेसर व भारतीय जन संचार संस्थान में हिन्दी पत्रकारिता के प्रशिक्षक रहे हैं।)
उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 1000 करोड़ रुपये के आरंभिक पूंजी आधार के साथ उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (हेफा) स्थापित करने का फैसला
विश्वस्तरीय शिक्षण और अनुसंधान संस्थानों के तौर पर उभरने के लिए 10 सार्वजनिक एवं 10 निजी संस्थाओं को समर्थ बनाया जाएगा
शेष जिलों में अगले 2 वर्षों में 62 नए नवोदय विद्यालय खोले जाएंगे
29 February 2016
सरकार ने अगले दो वर्षों में शेष जिलों में 62 नए नवोदय विद्यालय खोलने का प्रस्ताव किया है। केंद्रीय वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज लोकसभा में वर्ष 2016-17 का आम बजट प्रस्तुत करते हुए कहा कि सरकार का ध्यान शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने पर केंद्रित है। उन्होंने कहा कि सर्वशिक्षा अभियान के तहत बड़ा आवंटन किया जाएगा।
वित्त मंत्री ने कहा कि विश्वस्तरीय शिक्षण और अनुसंधान संस्थानों के तौर पर उभरने में सहायता देने के लिए उच्च शिक्षा संस्थानों को सशक्त बनाना सरकार की वचनबद्धता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए 10 सार्वजनिक एवं 10 निजी संस्थाओं को एक समर्थकारी विनियामक संरचना उपलब्ध करायी जाएगी।
अपने बजट भाषण में श्री जेटली ने कहा कि सरकार ने उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 1000 करोड़ रुपये के आरंभिक पूंजी आधार के साथ उच्च वित्तपोषण एजेंसी (हेफा) स्थापित करने का फैसला किया है।
वृद्धि और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के उपाय
अप्रैल 2016 से मार्च 2019 के दौरान प्रचालन आरंभ करने वाले स्टार्ट अप्स को 5 वर्षों में से 3 वर्षों तक अर्जित किए गए लाभ पर 100 प्रतिशत कर कटौती का लाभ
29 February 2016
केंद्रीय वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज लोकसभा में वर्ष 2016-17 का आम बजट प्रस्तुत करते हुए कहा कि स्टार्ट अप व्यवसाय रोजगार सृजित करते हैं, नवोन्मेष लाते हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि मेक इन इंडिया कार्यक्रम में ये प्रमुख भूमिका निभाएंगे। वित्त मंत्री ने अप्रैल 2016 से मार्च 2019 के दौरान, प्रचालन आरंभ करने वाले स्टार्ट अप्स को पांच वर्षों में से तीन वर्षों तक अर्जित किए गए लाभ पर सौ प्रतिशत कर कटौती का लाभ देकर व्यवसाय को बढ़ावा देने में मदद का प्रस्ताव दिया। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में न्यूनतम एकांतर कर (एमएटी) लागू होगा। पूंजी लाभ पर कर नहीं लगाया जाएगा। यदि विनियमित/अधिसूचित निधियों में निवेश किया गया हो और यदि व्यक्तियों द्वारा ऐसे अधिसूचित स्टार्ट अप में निवेश किया गया हो, जिनमें उनकी अधिसंख्य शेयरधारिता हो।
उन्होंने कहा कि अनुसंधान नवोन्मेष का प्रेरक है और नवोन्मेष आर्थिक विकास को बल प्रदान करता है। श्री जेटली ने पेटेंटों के संबंध में विशेष व्यवस्था शुरू करने का भी प्रस्ताव किया जिसमें भारत में विकसित और पंजीकृत पेटेंटों के विश्व भर में प्रयोग से अर्जित आय पर 10 प्रतिशत की दर से कर लगाया जाएगा।
वित्त मंत्री ने ए आर ए सी के न्यासों सहित प्रतिभूतिकरण न्यासों को आयकर का पूर्ण पास-थ्रू अंतरित करने का भी प्रस्ताव किया है। उन्होंने कहा कि न्यास की बजाए निवेशकों के हाथ आयी आमदनी पर कर लगाया जाएगा, तथापि न्यास स्रोत पर कर कटौती के अध्यधीन होंगे।
वित्त मंत्री ने असूचीबद्ध कंपनियों के मामले में दीर्घावधिक पूंजी लाभ व्यवस्था के लाभ प्राप्त करने की अवधि को तीन वर्ष से घटाकर दो वर्ष करने प्रस्ताव किया।
वित्त मंत्री ने कहा कि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां डूबे हुए और संदेहास्पद ऋणों के संबंध में अपनी आय की पांच प्रतिशत कटौती की पात्र होंगी।
उन्होंने विदेशी कंपनी के प्रभावी प्रबंधन स्थान के आधार पर रेजीडेंसी का निर्धारण एक वर्ष आस्थगित रखने का भी प्रस्ताव किया।
उन्होंने कहा कि ओईसीडी और जी-20 के बीईपीएस कार्यक्रम के प्रति अपनी वचनबद्धता पूरी करने के लिए वित्त विधेयक 2016 में, 750 मिलियन यूरो से अधिक के समेकित राजस्व वाली कंपनियों के लिए देश दर देश सूचना देने की अपेक्षा का प्रावधान शामिल है।
उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना के अंतर्गत उपलब्ध करायी गई सेवाओं तथा कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के पैनल में शामिल मूल्यांकन निकायों द्वारा उपलब्ध करायी गयी सेवाओं को सेवा से छूट देने का प्रस्ताव किया।
वित्त मंत्री ने ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदन और बहुल अपंगता वाले व्यक्तियों के कल्याण हेतु राष्ट्रीय न्यास द्वारा शुरू की गयी ‘निरामय ’ स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत दी गयी साधारण बीमा सेवाओं पर सेवा कर से छूट का भी प्रस्ताव किया।
वित्त मंत्री ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों के लिए अनेक सहायक उपकरणों, पुनर्वास, सहायक सामग्रियों और अन्य वस्तुओं पर शून्य बुनियादी सीमा शुल्क लगता है। उन्होंने ब्रेल कागज पर यह छूट देने का प्रस्ताव भी किया।
संशोधित अनुमान वर्ष 2015-16 में वित्तीय घाटा 3.9 प्रतिशत और बजट अनुमान
वर्ष 2016-17 में 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान
29 February 2016
केंद्रीय वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज लोकसभा में वर्ष 2016-17 का आम बजट प्रस्तुत करते हुए कहा कि वित्तीय लक्ष्यों पर अडिग रहते हुए संशोधित अनुमान 2015-16 और बजट अनुमान 2016-17 में वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद-जीडीपी के क्रमश: 3.9 प्रतिशत और 3.5 प्रतिशत पर बरकरार रहा। श्री जेटली ने कहा कि उन्होंने वित्तीय समेकन और स्थायित्व या सीमित समेकन और वृद्धि को बढ़ावा देने के पक्ष में नीतिगत विकल्पों पर विचार किया। वित्त मंत्री ने कहा कि उन्होंने तय किया कि बुद्धिमानी वित्तीय लक्ष्यों पर अडिग रहने में है, लेकिन ऐसा करते हुए यह सुनिश्चित किया गया कि विकास के एजेंडे के साथ समझौता न किया जाए।
वित्तीय कंपनियों के वियोजन पर व्यापक संहिता को अधिनियमित किया जाएगा
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुन: पूंजीकरण के लिए 25 हजार करोड़ रुपए का आवंटन
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत स्वीकृत राशि का लक्ष्य बढ़ाकर 1.80 लाख करोड़ करने का प्रस्ताव
29 February 2016
केन्द्रीय वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली ने आज लोकसभा में वर्ष 2016-17 का आम बजट पेश करते हुए बताया कि वित्तीय कंपनियों के वियोजन पर व्यापक संहिता को अधिनियमित किया जाएगा। ऐसा करने से दिवालिया और दिवालियापन कानून के साथ इस कोड़ से बड़े क्रमबद्ध खाली स्थान की भरपाई होगी। यह एक बड़ा सुधार करने वाला कदम है। मौद्रिक नीति ढांचे को सांविधिक आधार उपलबध कराया जाएगा और वित्त विधेयक 2016 के तहत मौद्रिक नीति का गठन किया जाएगा। परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियों को मजबूत बनाने के लिए सारफेसी अधिनियम में संशोधन किया जाएगा। उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की स्थिति सुधारने की योजना की भी घोषणा की है।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत स्वीकृत राशि का लक्ष्य बढ़ाकर 1.80 लाख करोड़़ रुपए करने का प्रस्ताव है। पारदर्शिता, जवाबदेही और निपुणता में सुधार लाने के लिए कंपनियों को स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध किया जाएगा। गैर-कानूनी जमावर्ती योजनाओं से निपटने के लिए व्यापक केन्द्रीय कानून तैयार किया जाएगा। ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय सेवाओं की बेहतर पहुंच उपलब्ध कराने के लिए सरकार अगले तीन वर्षों के दौरान डाकघरों में एटीएम और माइक्रो एटीएम की बड़ी राष्ट्रव्यापी योजना शुरू करेंगी।
चालू वित्त वर्ष के बजट अनुमान की तुलना में योजना व्यय में 15.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी
29 February 2016
केन्द्रीय वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली ने आज लोकसभा में वर्ष 2016-17 का आम बजट पेश करते हुए बताया कि 2016-17 के आम बजट में कुल व्यय 19.78 लाख करोड़ रुपए अनुमानित है, जिसमें योजना व्यय का 5.50 लाख करोड़ रुपए और गैर-योजना के अधीन 14.28 लाख करोड़ रुपए शामिल है। योजना व्यय में चालू वित्त वर्ष के बजट अनुमानों की तुलना में 15.3 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। श्री जेटली ने कहा कि योजना आवंटनों में कृषि, सिंचाई और स्वास्थ्य, महिला और बाल विकास, अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अल्पसंख्यकों के कल्याण तथा बुनियादी ढांचा जैसे सामाजिक क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया गया है।
सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करेगी
एकीकृत कृषि विपणन ई-प्लेटफॉर्म इस वर्ष 14 अप्रैल को राष्ट्र को समर्पित किया जाएगा
केंद्रीय वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज लोकसभा में वित्त वर्ष 2016-17 का आम बजट पेश करते हुए कहा कि उनकी सरकार खाद्य सुरक्षा से और आगे बढ़ने तथा हमारे किसानों में आय सुरक्षा की भावना भरने का इरादा रखती है। इस संदर्भ में, सरकार की योजना किसानों की आय दोगुनी करने की है। उन्होंने कृषि एवं किसानों के कल्याण के लिए 35,984 करोड़ रुपए आवंटित किए। उन्होंने कहा कि सरकार का इरादा जल संसाधनों के अधिकतम उपयोग की समस्या को दूर करने, सिंचाई के लिए नए बुनियादी ढांचे का निर्माण करने, उर्वरक के संतुलित उपयोग के साथ मृदा उर्वरता को संरक्षित करने एवं कृषि से बाजार तक संपर्क मुहैया कराने का है। श्री अरुण जेटली ने कहा कि 141 मिलियन हेक्टेयर शुद्ध खेती वाले क्षेत्रों में से केवल 65 मिलियन हेक्टेयर ही सिंचित हैं। इस बारे में, उन्होंने 'प्रधानमंत्री सिंचाई योजना' की घोषणा की जिससे कि अन्य 28.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई के साथ लाने के लिए मिशन मोड में क्रियान्वित किया जा सके। उन्होंने कहा कि एआईबीपी के तहत 89 परियोजनाओं को फास्ट ट्रैक किया जाएगा जो अन्य 80.6 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई के तहत लाने में मदद करेगा। उन्होंने इन परियोजनाओं में से 23 को 31 मार्च 2017 से पहले पूरा करने का वादा किया। इन परियोजनाओं के लिए अगले वर्ष 17 हजार करोड़ रुपए और अगले 5 वर्षों में 86,500 करोड़ रुपए की आवश्यकता है। वित्त मंत्री श्री जेटली ने घोषणा की कि लगभग 20 हजार करोड़ रुपए की प्रारंभिक कार्पस राशि से नाबार्ड में एक समर्पित दीर्घावधि सिंचाई निधि बनाई जाएगी। बहुपक्षीय वित्त पोषण के लिए 6 हजार करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से भूजल संसाधनों के ठोस प्रबंधन के लिए एक ऐसे ही कार्यक्रम का भी प्रस्ताव रखा गया है।
श्री जेटली ने मार्च 2017 तक 14 करोड़ कृषि जोतों के कवरेज के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के लिए लक्ष्य निर्धारित कर रखा है। यह किसानों को उर्वरक का उचित उपयोग करने में सहायक होगा। उन्होंने कहा कि उर्वरक कंपनियों के 2,000 मॉडल खुदरा विक्रय केंद्रों को अगले तीन वर्षों में मृदा एवं बीज परीक्षण सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। उन्होंने जैव खेती के तहत 5 लाख एकड़ वर्षा जल क्षेत्रों को लाने के लिए 'परंपरागत कृषि विकास योजना' की घोषणा की। उन्होंने पूर्वोत्तर क्षेत्र में 'जैव मूल्य श्रृंखला विकास योजना' प्रारंभ की जिससे कि उनके जैव उत्पादों को घरेलू एवं निर्यात बाजार प्राप्त हो सके।
श्री जेटली ने घोषणा की कि इस वर्ष 14 अप्रैल को डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर के जन्मदिवस पर एकीकृत कृषि विपणन ई-मंच राष्ट्र को समर्पित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि देश के शेष 65 हजार गांवों को जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को 2021 से बढ़ाकर 2019 कर दिया जाएगा। उन्होंने सभी किसानों तक न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए तीन विशिष्ट पहलों की घोषणा की, जिसमें खरीदारी का विकेन्द्रीकरण, एफसीआई के माध्यम से ऑनलाइन खरीदारी प्रणाली और दालों की खरीदारी के लिए प्रभावी प्रबंध करना शामिल है।
वित्त मंत्री ने दुग्ध उत्पादन को अधिक लाभकारी बनाने के लिए पशुधन संजीवनी, नकुल स्वास्थ्य पत्र, उन्नत प्रजनन प्रौद्योगिकी, ई-पशुधन हॉट और देसी नस्लों के लिए राष्ट्रीय जीनोमिक केन्द्र की स्थापना करने की भी घोषणा की है। इन परियोजनाओं में अगले कुछ वर्षों के दौरान 850 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे।
श्री जेटली ने ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं को ग्रांट इन एड के रूप में 2.87 लाख करोड़ रुपए आवंटित करने की घोषणा की। ऐसा 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार किया है और यह राशि पिछले पांच वर्ष की तुलना में 228 प्रतिशत अधिक है। दीन दयाल अंत्योदय मिशन को प्रत्येक सूखाग्रस्त विकास खंड में और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना को ऐसे ही जिलों में शुरू किया जाएगा।
श्री जेटली ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन के तहत 300 रूर्बन कलस्टरों को विकसित करने की भी घोषणा की। उन्होंने 01 मई, 2018 तक शत-प्रतिशत गांवों में विद्युतीकरण की भी घोषणा की। वित्त मंत्री ने नेशनल डिजिटल साक्षरता मिशन और डिजिटल साक्षरता अभियान नामक दो नई योजनाओं को भी मंजूरी दी है। पंचायती राज संस्थानों की मदद के लिए उन्होंने नई योजना राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान का भी प्रस्ताव किया है।
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