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फीचर

दुर्ग शब्द का तात्पर्य है ऐसा गढ़ जहाँ पहुँचना कठिन हो।
दुर्ग शब्द का तात्पर्य है ऐसा गढ़ जहाँ पहुँचना कठिन हो। याग्वल्क ने कहा की दुर्ग से राजा और प्रजा की सुरक्षा ,स्थिति और सामर्थ ज्ञात होती थी . लेकिन साथ में यह भी कहा जाता है की किसी दुर्ग की कहानी ,महज किसी राजा और रानी की कहानी नहीं होती .ऐसी ना जाने कितनी कथाएं ,किस्से और किवदंतिया है जो हमारे इतिहास से निकलती है या हमारे इतिहास में जमा है सच यही है की ये मानव -सभ्यता के विकास या पतन की कहानियां होती है . हजारों दुर्ग अपने अपने इतिहास के साथ अपनी एक कहानी लिए आज भी खड़े है . कौटिल्य ने दुर्गों के चार मुख्य प्रकार बताये जबकि मनु ने दुर्ग के छ प्रकार बताये है पर किसी ने भी रहस्यमय दुर्ग काकोई प्रकार नहीं बताया .
मध्य प्रदेश के महाराष्ट्र की सीमा से लगे निमाड़ में प्राचीन असीरगढ़ के किले में कौटिल्य और मनु के बताये दुर्ग शैली का समावेश तो है ही पर इस किले से जुडी किवदंतियां और लोककथाएं आज भी इसे रहस्यमयी दुर्ग बनाती है और लोगो की जुबान पर यह किला अलग अंदाज में आज भी आता है . निमाड़ का वह इलाका जहाँ उबड़ खाबड़ जमींन के बीच ज्वार की रोटी और अम्बाडी की भाजी की सौंधी सी महक आपको खाने की इच्छा जगती है जहाँ भरी दोपहर की गर्मी को प्याज और हरी मिर्च खा कर कम किया जाता है उस निमाड़ का अपना एक सांस्कृतिक पक्ष है एक लोक जीवन है .
इसी लोक संस्कृति में एक लोक कथा प्रचलित है ,कहते है की निमाड़ के जंगलों में अश्वतथामा आज भी अपनी पीड़ा के साथ भटक रहा है . असीर गढ़ का जंगल आज तक महाभारत कालीन अजेय योदधा अश्वतथामा को संरक्षण दिए हुए है जो आज भी असीर गढ़ के किले में घुमता रहता है . निमाड़ में यह भी किवदंती है की जब भी किसी ने अश्वत्त्थामा को देखा है वह अपना मानसिक संतुलन खो देता है . इसका कारणमेरी समझ से शायद उसकी पीड़ा,उसकी अभिशप्त जिंदगी की कल्पना ही होती होगी .
बचपन में सुनी " अश्वत्त्थामा मारा गया "की कथा का अंत भी असीरगढ़ की और ले जाता है पिता से सुनी और स्मृति में कहीं धुंधली पड़ी यह कथा खंडवा - बुरहानपुर की एक अनायास बनी यात्रा के वक्त फिर स्मृति पटल पर चमकने लगी और असीर गढ़ कीओर आकर्षित करने लगी थी उस यात्रा का पडाव बना खंडवा -बुरहानपुर के मध्य असीरगढ़ रोड रेलवे स्टेशन . यहाँ से लगभग १२ किलोमीटर दूर सतपुड़ा पर्वतमाला के एक शिखर पर रहस्यमयी दुर्ग बना हुआ है . यह दुर्ग चंदानी रेलवे स्टेशन से १२ किलो मीटर की दुरी पर है . सतपुड़ा के सघन जंगलों के बीच से होकर असीरगढ़ दुर्ग पहुँचना होता है . जंगल में वीरानी इतनी की हवा की सायं सायं सुनी जा सकती है ,गर्मी इतनी की पसीने से कपडे चिपकने लगते है और सूखे पतझड़ी वनों के बीचसे पत्तों पर चलते हुए पत्तों की खडखडाहट एक भय मिश्रित रोमांच पैदा करती है . निमाड़ की गर्म हवा के थपेड़े उनकी पत्तों से सरसराहट यह अहसास दिलाती है कि कहीं कोई है ,शायद हमारे कदमों के निशानों पर अपने कदम रखता हुआ हमारे पीछे चल रहा है . एक पल को यह ख्याल की कहीं कोई अनजानी रूह या अश्वत्त्थामा तो नहीं ?भय का इतना रोमांचक अहसास की पलट कर देखना भी जरुरी लगे और देखते हुए एक भय आपको कंपकंपा भी दे . पर पलटने पर कोई नहीं दिखाई देता ,शायद कोई परिंदा भी नहीं, बस एक वहम हमारे साथ चलता है की इस जंगल में एक अभिशप्त भटक रहा है ,कौन जाने वो कहाँ टकरा जाय . मन आपको बार बार चेतावनी देता हुआ सा डरता है की वापस चलाना चाहिए . किन्तु जिज्ञासा भरा मन किले की कथा , दुर्ग का शिल्प , अश्वत्त्थामा का इतिहास ,जंगल की यात्रा और दूर दूर तक फैली वीरानी - विराट प्रकृति का अनूठा आकर्षण पलटने भी नहीं देता . यही वो मानवीय जिज्ञासा का चरम बिंदु होता होगा जो आदमी को चाँद की सैर से लेकर समुन्दर की गर्त तक ख़ाक छानने को मजबूर करता होगा .कदम से कदम मिलाती वह सरसराहट बस एक वहम ही है जो कथाओं से उपजे भय का परिणाम हो सकती है हम चलते जाते है एक जिज्ञासा से लदे हुए की राजाओं को भी दुर्ग बनाने के लिए यही जगह क्यों सूझी होगी .और एक प्रशन मन में बार बार आता है की जहाँ एक आबादी की रक्षा का इतना प्रबंध था वहां आज इतनी वीरानी क्यों ?
मुझे रोमांचक यात्राओं का अजीब शौक है जो मुझे और मेरे परिवार को घुमक्कड़ बनाता रहा है ,फिर वह असीर का दुर्ग हो या सिरवेल की गहरे कुंए में उतरनेवाली गुफा यात्रा ही क्यों ना हो अक्सर हम यात्रा से लौट कर सोचते है हमने जान जोखिम में डाली थी .
सतपुडा के जंगल की रोमांचक यात्रा का लुफ्त लेते हुए १२-१३ किलोमीटर का यह थका देनेवाला रास्ता तय होता है जो हमें खडा करदेता है दक्षिण द्वार पर . इतिहासमे इसे दक्षिण की कुंजी [किला दक्खन ] कहा गया है . इतिहास कहता है दक्षिण भारत पर विजय पाने के लिए पहले इसी असीर गढ़ को जीतना जरुरी होता था . तो इसका अर्थ निकालती हूँ मै की यह उत्तर और दक्षिण के बीच एक बिंदु है जिसके इस- उस पार जाने के लिए इसे लांघना एक चुनौती रहा होगा . बहरहाल एक विचार मन में कौंघता है की अश्वत्त्थामा ने भी क्याजगह चुनी थी अपने लिए ?लगा शायद सदियों तक अभिशप्त जीवन के लिए इससे बेहतर विराना कहीं हो ही नहीं ?भूमितल से इसकी उंचाई 300 मीटर और समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 761 मीटर है .दुर्ग की उंचाई को लेकर एक दन्त कथा और है कि हिजरी संवत 866 में मोहम्मद खिलजी ने युद्ध के लिए असीरगढ़ के जंगलो में ढेर डाला था तो रात में नींद खुलने पर उसने अपने गुलाम को आवाज दी और वजू के लिए पानी माँगा ,तब गुलाम ने बताया की अभी सुबह नहीं हुई है सरकार ,आप जिसे भौर का तारा समझ रहे हो वह तो असीर गढ़ किले के अन्दर रात में जलनेवाला चिराग है . कहते है की किले की ऊंचाई देख कर ही बिना आक्रमण किये मोहम्मद खिलजी वापस चला गया था .
आज की स्थित में दुर्ग यद्दपि खँडहर ही कहा जाना चाहिए पर दुर्ग की इमारत को देख कर बुलंदी को महसूस किया जा सकता है उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़नेवाले प्राचीन मार्ग पर स्थित यह दुर्ग सबसे ऊँचे और शक्तिशाली दुर्गों में से एक है . दरअसल असीरगढ़ का किला केवल किला नहीं है . यहाँ तीन किलेबंदियाँ है .सबसे ऊँचे किले का नाम असीरगढ़ ,बीचवाले का नाम कमर गढ़ .और सबसे निचे मैदान वाले किले का नाम मलय गढ़ है . पूर्व से पश्चिम तक किले की लम्बाई और चौढहाई क्रमशः सवा और एक किलोमीटर के लगभग है .असीरगढ़ 1००० मीटर लम्बा और 6०० मीटर चोड़ा है . लगभग 8०-85 एकड़ जमींन एक मजबूत परकोटे से घिरी हुई है . चट्टानी प्राचीर लगभग 40 मीटर ऊँची है . दक्षिणी भाग में भयावह ढलान है .चट्टानों की इस लम्बी ढलान के कारण दुर्ग में जाने का मार्ग पूर्व और उत्तर में है . दूसरी पहाड़ी पर कमरगढ़ है ,यह किला फारुखी सुलतान आदिलशाह ने बनवाया था . कमर गढ़ और असीर गढ़ को जोड़ने के लिए दस मीटर ऊँची एक दिवार है ,यंही पर एक प्रशस्ति लगी है जो अकबर ,दानियल और शाहजहाँ के द्वारा दुर्ग फतह का प्रमाण है . चट्टान के पास ही एक बड़ा -सा दरवाजा है जो राजा गोपालदास ने बनवाया था टेढ़े-मेढ़े रास्तो से होते हुए सात दरवाजे पार करने के बाद मुख्य दरवाजा आता है . यूँ आप चाहें तो दक्षिण की तरफ से जीप द्वारा जा सकते है पर तब भी तोडा सा रास्ता तो पैदल ही पार करना पडता है .और सबसे ज्यादा अखरेगा यह की जंगल जैसी प्रकृति के बावजूद आपको नया अनुभव ना होना क्योंकि तब आपको नहीं मिलेगा जंगल का रोमांच और पत्तो की सरसराहट, निमाड़ी गर्मी और खुद के पसीने की गंध यात्रा केइस रोमांच से आप वंचित रह जाते है इसलिए जो लोग जंगल का मजा लेना चाहते है उन्हें इसी रास्ते से मजा आयगा फिर एक और आकर्षण क्या पता अश्वत्त्थामा कहीं किसी पेड़ के निचे विश्राम करता दिख जाय ,अपने रिसते घाव को सहलाता तालाब के शीतल जल में अपनी प्यास बुछाता अपने अनंतकाल से रिस रहे श्रापग्रस्त घाव को घोता . ओह अश्वस्थामा तुम्हे खोजने बार बार जंगल का रास्ता तय करना पड़े तो भी मेरा मन तुम्हारे दर्द को बांटना चाहता है . तुम्हारी मुक्ति का कोई उपाय खोजने की इच्छा है ,यह भी कोई सजा है श्राप देते हुए क्या तुम्हारी युगों युगों की पीड़ा उन्होंने एक बार भी महसूस नहीं की थी ? मन कहेगा आपका की एक बार अश्वत्त्थामा को हम इन्ही निमाडी सतपुड़ा के जंगल से निकाल सकें उसे नए युग के नए ज़माने में नया जीवन जीना सीखा सकें ? उसके घाव का कोई तो इलाज होगा इस नए ज़माने के पास ? मेरी तरह खोये हुए आप भी इसी चिंतन के साथ जब जंगल से गुजरे तो जीवन का नया दर्शन समझ सकते है , रास्ता हमेशा कठिन ही चुनना चाहिए क्योंकि तभी तो जीवन के अर्थ पता चलते है .
एक इतिहासकार ने इन रास्तों को लेकर लिखा है कि इसमें प्रवेश और निकासी के रास्ते खोजपाना दुष्कर है .आसपास कोई दुसरी पहाड़ी नहीं है ,जहाँ से इस किले पर नजर रखी जा सके . जमीं पर खड़े होकर अप देखते है कि यह किला आसमान के रास्ते ,बीच आधे पर नजर आता है ,ऊँगली स्वतः दांतों के निचे चली जाती है आश्चर्य होता है इस कल्पना पर कि आखिर आसमान और धरती बीच किला बनाया कैसे होगा ? वो कौन वास्तुशास्त्री होगा ? आप उसे सलाम किये बिना नहीं रह पायेंगे . किले की चोटी पर मस्जिद बनी है . मस्जिद में क शिलालेख पर अरबी में फारुखी बादशाहों की नामवली है . एक ऊँची सी बैठक पर इबादत खाना बना है जिसके एक खम्बे पर अकबर की प्रशस्ति है असीरगढ़ यूँ तो सघन जंगल में है ,लेकिन यहाँ तालाबों और कुओं -बावडियों की संख्या हैरत में डालती है जो यह बताती है की कभी यहाँ आबादी भरपूर रही होगी यहाँ पेयजल की उपलब्धता है .आश्चर्य होता है कि जहाँ गर्मी इतनी की हिरन काले पढ जाते है ,आदमी बेदम हो जाते है वहां इन जल स्त्रोतों में शीतल जल भरा हुआ कैसे ?
इतिहासकार फ़रिश्ता ने इस किले को आठवीं सदी में आसा अहीर द्वारा निर्मित कराया जना लिखा है . संभव है की उसी नाम का अप भ्रंश असीर हुआ हो और यह असीरगढ़ कहलाता हो . यहाँ आसा अहीर के वंशजों का ७०० सालों तक शासन रहा है , इतिहास में उल्लेख है की एक आक्रमण में चित्तोड़ की सेना की सहायता के लिए असीरगढ़ से सेना गई थी . अलाउद्दीन खिलजी ने सन 1295 में देवगिरी से लौटते हुए असीर गढ़ पर विजय प्राप्त की थी .सन 1400 में आसा अहीर के वंशजो से फारुखी बादशाह नासीर खान ने किला छीना था .200 सालो तक फिर यहाँ फारुखी शासन रहा जिन्होंने किले को और भव्यता और सुरक्षा दी . सन 1601 में आठ माह की घेराबंदी के बाद अकबर बादशाह ने सैनिकों को रिश्वत देकर किले पर कब्जा किया थाक्या शानदार इतिहास है किले का . और क्या विराटता ? क्या है किसी देश के पास एसा गौरवान्वित करता असीर गढ़ और उसकी शान के अनुरूप ऐसा इतिहास .
दुर्ग ,किले ,गढ़ महल दुमहले सब राज्य शक्ति के प्रतीक है जिनके अन्दर तमाम इतिहास सोया हुआ है जहाँ जाने कितने राजे रजवाड़े ,नवाब -शेख , बादशाह अपने- अपने अतीत के साथ दफ़न है ,जिनकी कथाएं इतिहास की वो कथाएं है जिनसे छल -प्रपंच , युद्ध और व्यूह ,नीति और कौशल को सीखा जा सकता है पर ये किला और इसके जंगल किसी राजे महाराजे की नहीं ये बल्किउसकी किवदंती कहते है जो सदियों से ज़िंदा है ,द्वापर युग में जन्मे एक श्रेष्ठ योद्धा की जो अपने पिता की भाँति शास्त्र -शस्त्र विद्या में निपुण थे . पिता -पुत्र की इस जोड़ी ने महांभारत के युद्ध में पांडवों की सेना को लोहे के चने चबवा दिए थे . हाँ महाभारत के कई प्रमुख पात्रों मे से एकअश्वत्त्थामा आज भी जिन्दा है . कहते है उनका वजूद इन्ही जंगलो में आज भी है . महाभारत के युद्ध के समय गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र व कुरुवंश के राजगुरु कृपाचार्य के भांजे अश्वत्त्थामा हजारों सालो से जिन्दा है जिन्हें मुक्त करने फिर कोई अवतार पैदा नहीं हुआ ,होगा कभी न कभी पर अभी तो वह भोग रहा है श्राप . अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने निकले अश्वतथामा को उनकी एक चूक भारी पड़ी और भगवान् श्री कृष्णने उन्हें युगों -युगों तक भटकने का श्राप दे दिया . ओह अश्वत्त्थामा यह कैसा श्राप ? क्यों ?और वह भी भगवान कहलानेवाले कृष्ण का ? इश्वर तो मुक्ति देते है ये कैसे इश्वर थे ? तुम भोग चुके हो श्राप और वे शिव वे कहाँ है जिन्हें तुम पांच हजार सालो से पूज रहे हो कब तक देवालयों में सोते रहेंगे कब जागेंगे तुम्हे मुक्ति देने के लिए ?अश्वत्त्थामा को मुक्ति दे दो देव ,इन्तहा हो गई उसकी सजा की . दुर्ग के अंदर राजपूत शैली में विक्रमादित्य द्वारा निर्मित एक शिवालय है जो पहाड़ी से घिरे तालाब के किनारे स्थित है . यह मंदिर ही उस रहस्य को निर्मित करता है जो तुम्हारे जिन्दा होने की पुष्टि करता हैअश्वत्त्थामा. माना जाता है की महाभारत का अभिशप्त युद्ध नायक अश्वत्त्थामा इन्ही जंगलों में शिरोपिडा लिए भटक रहा है . वह रोज इसी शिवमंदिर में शिव पूजन के लिए आता है . जनश्रुति है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव पुत्रों को मारने और अश्वत्त्थामा से मणी छीन लिए जाने के बाद दर्द और असहनीय शिरोपीड़ा से व्याकुल भयभीत होकर वह खंडवा -बुरहानपुर के बीच असीर गढ़ के जगंलो में भटकता है .इसीलिए इस मंदिर को अश्वत्थामा मंदिर कहते है . ताप्ति महात्म्य में भी इसका जिक्र आता है .
स्थानीय लोग कहते है कि शिव मंदिर में भौर होते ही कोई पूजा कर जाता है शिवलिंग पर रोज ही ताजे फूल और गुलाल कोई चढ़ा जाता है . अपने संस्कारों से बंघा ब्राहमण पुत्र अब भी देव पूजन की परंपरा चलायमान रखे हुए है ,एक फिर सवाल कौंध जाता है मन मेंब्राह्मण तो रावण भी था और तुम भी , फिर क्षत्रिय ने श्राप क्यों दिए ? राजा राम हों या कृष्ण श्राप और मुक्ति की कहानियों के अधिष्टाता क्यों और कैसे ? नहीं जानती इसके पीछे क्या वजह रही होंगी ,कभी कभी लगता है की ब्राह्मणों की प्रज्ञा से वे भी भयभीत तो नहीं थे .
यह तो जनश्रुति है पर सच यह है कि 16वीं शती में असीर गढ़ किला संसार के आश्चर्यों मेसे एक गिना जाता था .सालो पहले असीर गढ़ की यात्रा याद करते हुए मन एक बार फिर असीर गढ़ के जंगलों में शिवमंदिर में बैठ उसकी मुक्ति की कामना करना चाहता है ,इश्वर मिले तो कहिये अश्वत्त्थामाको मुक्ति मिलन चाहिए ,आप ही ने कहा है न युद्ध में सब जायज है तो जो भी अश्वतथामा ने किया वह भी तो युद्ध का ही हिस्सा रहा होगा . सजा भी एक सीमा तक ठीक होती है देवता कहलानेवाले श्री कृष्ण श्राप देकर भूल ही गए और यह भी कीमाफ़ करने वाला हमेशा बड़ा होता है -इसी जंगल में मंदिर के सामने खड़े होकर मै चिल्लाकर कहती हूँ -तो करो ना अब उसे मुक्त ?
मन मेरे साथ नहीं लौटना चाहता वह छूट रहा है इसी जंगल में . जहाँ कोई अकेला संकट में है सदियों से मुक्ति की कामना में भटकता हुआ ---- अश्वतथामा तुम मिलने तो बाहर आओ क्यों लोगों से छुपते हो ? हो सकता है तुम्हारे दर्द का इलाज किसी के पास हो . यह द्वापर युग नहीं है यह कलयुग है .
-स्वाति तिवारी



विश्व के सात प्राकृतिक अजूबों में शामिल ग्रैंड कैनियन (संयुक्त राज्य अमेरिका) की यात्रा जहाँ चुप हैं नदियों के प्रवाह और समय के निशान
वे कभी अमेरिका नहीं गए थे, फिर कैसे इतना कुछ शब्द शब्द वर्णन कर देते थे जैसे वहीँ खड़े हों? उनके शब्द मेरे कानों में गूँज रहे थे, नदी और उसकी सहायक नदियों ने उस क्षेत्र को परत-दर- परत काटा होगा और पठार ऊपर गया होगा, तब एक अजसामने आया जब पृथ्वी का भूगर्भीय इतिहास प्रकट हुआ ऐसा अजूबा कि देखने वाले बस देखते रह जाएँ दाँतों तले उँगली दबाएँ-- -“जानती हो इस अजूबे को क्या कहते है ?“ग्रैंड कैन्यन विश्व के एक विशाल प्राकृतिक अजूबे के साथ ही ग्रैंड कैन्यन अमेरिका के सबसे बड़े पर्यटक केंद्रों में से एक है।
आठवीं क्लास में पढ़ने वाली एक बच्ची जिसने तब केवल नर्मदा नदी और नर्मदा घाटी ही देखी सुनी थी उसके लिए वैश्विक अजूबा नया शब्द था मैंने तब पिताजी की तरफ आश्चर्य से देखा मेरी नज़रों में प्रश्नवाचक था ;हम कब जायेंगे देखने?

पिताजी ने विश्व एटलस निकाला और समझाया कि वह हमारे पड़ोस में थोड़ी है और वो तो सात समन्दर पार अमेरिका महाद्वीप पर है| पिता की आँखे भी आश्चर्य से भरी थी उन्होंने कहा वंडर्स ऑफ़ द वर्ल्ड -- एटलस अब मेरे हाथों में था| पिता भूगोल के शिक्षक थे दुनिया भर के एटलस उनकी हॉबी थी| वे दुनिया में बच्चों की रूचि जगाने के लिए ऐसी जगहों के बारे में बताया करते थे|  ग्रैंड कैन्यन दुनिया का महा दर्रा है जो पश्चिम से आरम्भ हुआ और दूसरी तरफ पूर्व से भी बनने लगा| साथ-साथ दो धाराओं की तरफ बनते बनते लगभग साठ लाख वर्ष पूर्व दोनों दरारें एक स्थान पर एक साथ मिल गईं जैसे गंगा-जमुना मिलती है ना| मेरी कॉपी पर पेन्सिल से दोनों तरफ से दो दरारों को खींचते हुए उन्होंने मिला दिया, वो कॉपी जिसमें वे दुनिया का एटलस समझाते थे, अब भी कहीं हमारे घर में मिल जाएगी| चित्र मेरी आँखों में अब भी बना हुआ है जो धुँधला हो गया था| नाऊ वी आर फ़्लाइंग ओवर वंडर ऑफ़ द वर्ल्ड-- -- -- -- ग्रैंड कैन्यन, हेलीकॉप्टर चालक की आवाज
से मेरी तन्द्रा भंग हुई| खिड़की से नीचे झाँका मेरी कॉपी के पन्ने पर पिता द्वारा खींची रेखा दुनिया के वितान पर एक विराट दर्रा, केवल रेखा नहीं था किसी कलाकार की पेंटिंग थी शायद, नहीं वो प्रकृति के ऐसे गुम्बद थे जैसे विष्णु के मंदिरों के होते हैं, वे रेत के टीले थे, वे लाल भूरे काले पहाड़ थे जिन पर नक्काशी दिखाई देती है| मैं रोमांचित होते हुए देख रही थी पिता का समझाया अजूबा, जो उनकी बेटी को उसकी बेटी ने दिखाया| पिता इस यात्रा में साथ नहीं हैं, उनका हाथ छूटे सालों हो गए, पर वे मेरे साथ थे| इस यात्रा में शब्द बन कर बार बार याद आ रहे थे मैंने आसमान की ओर देखा शायद वो मुझे दुनिया देखते हुए वहाँ से देख रहे हों? पिता से बेहतर भूगोल का शिक्षक मैंने अपने जीवन में फिर कहीं नहीं पाया और यात्रा गाइड तो वो अब भी मेरे बने रहते हैं शायद ही कोई यात्रा हो जिसमें वे याद ना आते हों| वे शब्दों से दुनिया भर की यात्रा करवा देते थे, जिज्ञासा जगाना कोई उनसे सीखे, वे आर्थिक रूप से संपन्न नहीं थे पर ज्ञान का अचूक भण्डार उनके पास था, न टी.वी. थे, ना फोन-कंप्यूटर का तो सवाल ही नहीं था फिर कैसे वे इतना जानते थे? मेरे लिए तो यही दुनिया का सबसे बड़ा अजूबा बना कहाँ सोचा था कभी कि मैं कभी अमेरिका महाद्वीप पर जाऊँगी? सपना भी नहीं देखा था कभी भूली बिसरी बातें अचानक सामने आ जाएँ तो स्मृति हमें कहाँ-कहाँ ले उड़ती है, परिवार साथ था पर स्मृति पिता के साथ यात्रा करवा रही थी| नीचे लालिमा लिए भूरे मटमैले पठार थे जिन पर परत-दर- परत दरारें दिखाई दे रही थीं, इनके बीच कहीं-कहीं जल धाराएँ दिख रही थीं, दूर-दूर तक फैले निर्जन भयावह से लगते एक क्षितिज से दूसरे क्षितिज तक अनंत में फैले रेतीले मरुस्थलीय पठार| हेलीकॉप्टर ने एक अजीब सी घरघर शुरू की तो एक पल को लगा, यदि इस वीराने में कुछ हो जाए तो पानी की एक बूँद भी देने वाला नहीं मिलेगा पर सामने से आते दूसरे हेलीकॉप्टर ने भय को उड़न छू कर दिया|
अपनी तीसरी बार की अमेरिका यात्रा में इस बार बच्चों ने हमारे साथ कैलिफ़ोर्निया (संयुक् राज्य अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित एक राज्य है) देखा। यह अमेरिका का सबसे अधिक आबादी और क्षेत्रफल में अलास्का और टेक्सास के पश्चात् तीसरा सबसे बड़ा राज्य है। कैलिफ़ोर्निया के ऊपर औरिगन, और उसके नीचे मैक्सिको है। कैलिफ़ोर्निया की राजधानी सैक्रामेण्टो है। संयुक्त राज्य अमेरिका का आधा फल इस राज्य से आता है, ऐरिज़ोना [संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण पश्चिमी हिस्से में स्थित एक राज्य है] इसका सबसे बड़ा शहर और राजधानी फ़िनक्स है। दूसरा सबसे बड़ा राज्य टक्सन है और उसके बाद फ़िनक्स के महानगर क्षेत्र स्थित शहर मेसा, ग्लेनडेल, चंदलर और स्कॉट्सडेल है, लास वेगास (नवादा का सबसे ज्‍़यादा आबादी वाला शहर है), क्‍लार्क काउंटी का स्थान है और जुआ, खरीदारी तथा शानदार खान-पान के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर जाना जाने वाला एक प्रमुख रिसॉर्ट शहर है। स्‍वयं को दुनिया की मनोरंजन राजधानी के रूप में प्रचारित करने वाला लॉस वेगास, कसीनो रिसॉर्ट्स की बड़ी संख्‍या और उनसे संबंधित मनोरंजन के लिए मशहूर है, सैन फ्रांसिस्को शहर [कैलिफ़ोर्निया में चौथी सबसे अधिक आबादी वाला शहर है और संयुक्त राज्य अमेरिका में 12 वीं सबसे अधिक आबादी वाला शहर है, यहाँ की 2008 में 808977 अनुमानित जनसंख्या है] जाने का प्रोग्राम बना लिया था उसी के साथ बच्चों ने इस विश्व के अजूबे को भी दिखाने का सोचा वो इसे पहले देख चुके थे| पल्लवी का कहना है कि यह लाइफ टाइम अचीवमेंट है माँ, चलो आपको नानाजी वाला ज्ञान आँखों से दिखाते हैं|
मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि आपके पिता की कोई इच्छा आपके बच्चे इस तरह पूरी कर सकते हैं| यात्रा अद्भुत थी पति और बच्चे दामाद साथ थे, फिर क्या था मैं घुमक्कड़ मेरा मनघुमक्कड़, यात्रा की यायावरी में रमती हूँ प्रकृति के साथ| अल सुबह हम लॉस वेगास से ट्रेवल्स की बुकिंग अनुसार सड़क मार्ग [हाईवे us 93] से बस द्वारा निकले यह बस हमें होटल से ही पिक अप करती है,हेलीपेड तक ले जाने के लिए| हमारा पहला पड़ाव था लॉस वेगास से 33 मील दूर स्थित हूवर बाँध| यह बाँध नेवादा और एरिज़ोना राज्य की सीमा पर कोलोरोडो नदी की ब्लैक कैनियन के ऊपर बना हुआ है, बेहद नाजुक दिखने वाला यह पुल अनोखे पुलों में शामिल है| सन् १९३६ में बन कर तैयार हुआ हूवर बाँध, जो कभी बौल्डर बाँध के नाम से जाना जाता था, एक कंक्रीट गुरुत्वाकर्षण-चाप बाँध है, जो अमेरिकी राज्यों एरिज़ोना और नेवादा की सीमा के बीच स्थित कोलोराडो नदी के ब्लैक कैनियन पर है|जब 1936 में इसका निर्माण पूरा हुआ, तब यह पनबिजली ऊर्जा उत्पन्न करने वाला विश्व का सबसे बड़ा स्टेशन और विश्व की सबसे बड़ी संरचना थी| 1945 में ग्रांड कौली बाँध, इन दोनों ही मामलों में इससे आगे निकल गया| यह आज की तारीख में विश्व का 38वां सबसे बड़ा पनबिजली उत्पादन केंद्र है|लास वेगास, नेवादा के दक्षिणपूर्व में स्थित 30 मील (48 किमी) इस बाँध का नाम हरबर्ट हूवर के नाम पर रखा गया है जिन्होंने पहले एक वाणिज्य ट्रूव के रूप में और बाद में अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में इस बाँध के निर्माण में एक सहायक भूमिका निभाई| इसका निर्माण 1931 में शुरू हुआ और 30 सितंबर 1935 को राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट द्वारा इसे समर्पित कर दिया गया, लेकिन इसका निर्माण 1936 तक ही पूर्ण हो पाया जो अपने निर्धारित समय से दो वर्ष आगे चल रहा था| यह बाँध और ऊर्जा संयंत्र अमेरिका के आंतरिक विभाग के ब्यूरो ऑफ़ रिक्लमेशन द्वारा संचालित होता है| 1981 में ऐतिहासिक स्थानों के राष्ट्रीय रजिस्टर में सूचीबद्ध होने के बाद, हूवर बाँध को 1985 में एक नैशनल हिस्टोरिक लैंडमार्क नामित किया गया| बाँध में इस्तेमाल किया गया कंक्रीट, सेन फ्रांसिस्को से न्यूयॉर्क तक के दो-लेन वाले एक राजमार्ग के निर्माण के लिए पर्याप्त है| अमेरिका में बने दुनिया के सबसे ऊँचे हूवर बाँध के निर्माण के साथ 112 मौतें जुड़ी हुई थीं| बाँध पर काम करते हुए कितने लोगों की मृत्यु हुई और मरने वालों में कौन पहला और कौन आखरी था, इसका कोई निश्चित विवरण नहीं है| एक लोकप्रिय कथा के अनुसार हूवर बाँध के निर्माण में मरने वाले प्रथम व्यक्ति सर्वेक्षक जे.जी. टिएर्नेय थे, जिनकी मृत्यु बाँध के लिए आदर्श स्थान ढूँढते हुए डूब जाने से हुई| संयोगवश, उनके बेटे, पैट्रिक डब्ल्यू टिएर्नेय, बाँध पर कार्य करते हुए मरने वाले अंतिम व्यक्ति थे, जो उनके पिता के मृत्यु दिवस से 13 वर्ष बाद था| छियानवे लोगों की मृत्यु निर्माण स्थल पर निर्माण के दौरान हुई|
हालाँकि, एक और सर्वेक्षक की मृत्यु निर्माण से पहले एक संभावित निर्माण स्थल का सर्वेक्षण करते हुए हुई और इन आँकड़ों में निर्माण के दौरान हुए अन्य आकस्मिक और संयोग वश मृत्युएँ (जैसे दिल का दौरा, हृदयाघात, आदि) शामिल नहीं है| मीएड झील से बहता हुआ जल धीरे-धीरे संकुचित होते हुए स्लूस के माध्यम से गुज़रते हुए बिजलीघर में पहुँचता है और टर्बाइनों तक पहुँचते हुए उसकी गति लगभग 85 मील/घंटा (137 किमी/घंटा) हो जाती है| कोलोराडो नदी का पूरा प्रवाह टरबाइन के माध्यम से होकर गुजरता है जिसका पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा| बाँध के निर्माण को नदी के मुहाने से संबद्ध पारिस्थितिकी तंत्र के पतन के युग की शुरुआत के रूप में अंकित किया गया| बाँध के निर्माण के बाद और लेक मीएड के भर जाने पर, 1930 के दशक के उतरार्ध में छः साल के लिए, वस्तुतः पानी का कोई प्रवाह नदी के मुँह तक नहीं पहुँचा| डेल्टा के मुहाने को, जो पूर्व में कभी ताज़ेपानी-खारेपानी का एक मिश्रण क्षेत्र था और जो नदी के मुख से 65 किलोमीटर (40 मील) दक्षिण की ओर फैला हुआ था, एक व्युत्क्रम मुहाने में परिवर्तित कर दिया गया जहाँ नदी के मुख पर लवणता की मात्रा वास्तव में उच्च थी| कोलोराडो नदी ने हूवर बाँध के निर्माण से पूर्व प्राकृतिक बाढ़ का अनुभव किया था| बाँध ने प्राकृतिक बाढ़ को समाप्त कर दिया, जिसके कारण बाढ़ के अनुसार अनुकूलित हो चुकी कई प्रजातियाँ, जिनमें पौधे और पशुएँ दोनों शामिल हैं, खतरे में आ गए|
बाँध के निर्माण ने, बाँध से अनुप्रवाहित नदी में रहने वाली स्थानीय मछलियों की जनसंख्या को भी बहुत कम कर दिया है| कोलोराडो नदी में रहने वाली मछलियों की चार स्थानीय प्रजातियों को, U.S. फेडरल सरकार द्वारा वर्तमान में लुप्तप्रायः के रूप में सूचिबद्ध किया गया है, यह प्रजातियाँ हैं बोनिटेल चब, कोलोराडो पाइकमिनो, हम्पबैक चब और रेज़रबैक सकर| हूवर बाँध को कई फिल्मों में प्रदर्शित किया गया, जिनमें दी सिल्वर स्ट्रीक, सेबोटेओर, वेगास वेकेशन, चेरी 2000, ट्रांसफॉर्मर्स, विवा लॉस वेगास, युनिवर्सल सोल्जर, सुपरमैन और दर्जनों अन्य फिल्मों में शामिल हैं| कहते हैं, यह बाँध इंजीनियरिंग की दुनिया में कमाल माना जाता है| 
एरिज़ोना का मरुस्थल शुरू हो चुका था| हमें एक छोटी ड्राइव के बाद पहुँचना था किंग्समन शहर और फिर बोल्डरसिटी म्युनिसिपल एयर पोर्ट जहाँ हक्बेरी जनरल स्टोर है यहाँ से बेटी ने और मैंने पत्थरों की बनी कुछ गिफ्ट खरीदी| महँगा स्टोर था पर कुछ यादगारी तो लेनी ही थी सो ले ली| यहाँ से हेलीकॉप्टर से जाना था| हम थोड़ा विलम्ब से पहुँचे थे इंतज़ार करना पड़ा और तब तक भूख ने भी आक्रमण कर ही दिया था पर शाकाहारी मैं, तिवारीजी और बेटी कुछ हमारे मालवा जैसा चटपटा कचोरी समोसा तो मिलना नहीं था| बेटे दामाद ने आमलेट लिया और हमने बनाना ब्रेड और फल| मुझे मूँगफली और पकोड़े याद आये तो हँसी आ गई, पति देव ने पूछा कचोरी को याद कर रही हो, तो निकालो न इंदौरी सूखी कचोरी? भूल गई लाना| हेलीकॉप्टर में खिड़की मुझे मिली, पहला अनुभव था हेलीकॉप्टर का,हमें बेल्ट लगाना था उसी में लगा था हेडफोन, उड़ चले थे एक नए अनुभव की ओर| पहले आया हरा हरा सा दिखता बोल्डर सिटी फिर पिच-स्प्रिंग और फिर ग्रैंड कैन्यन जहाँ कोलोराडो नदी और उसकी सहायक नदियों ने रचा था एक अनोखा लैंडस्केप| बेहद रूखे क्षेत्र में कहीं-कहीं कुछ कँटीली झाड़ियाँ दिखाई दे रही थीं पर मरुस्थल का विस्तार तो रुखा और सुखा ही था, अगर हम हवाई मार्ग की जगह सड़क मार्ग से जाते तो किंगस्मन से स्ट्रेट रोड AZ 66 से 174 मील चलना पड़ता, पर तपती गर्म मरुभूमि का वीराना जिस पर परदेस। हवाई मार्ग ही ठीक लगा रेतीले पथरीले निर्जन-वीराने का एक अलग ही सम्मोहन महसूस हो रहा था| हमारा हेलीकॉप्टर पैचस्प्रिंग मे घूम रहा था चालक ने बताया कहीं-कहीं पहाड़ों के बीच बस्ती भी है कैनियन की गुफाओं और कुटिया जैसे घरों में अमेरिका के मूल वासी इतिहास काल से निवास करते हैं| देख रही थी मैं धरती की अरबों साल की भौगोलिक यात्रा 450 किलोमीटर लम्बी और 1,800 मीटर से भी ज्यादा खड़ी गहराई। याद आती है एक कहावत-- -करत- करत अभ्यास के, जड़मति होत सूजान, रस्सी आवत जात के सील पर पड़त निशान| ओह चट्टानों पर पानी की धार के निशान साफ दिखाई दे रहे थे| कोलोराडो नदी तुम पुरातन काल से यहाँ अपनी उपस्थिति के प्रमाण बना रही हो, चट्टानों से लड़ रही हो, आखिर क्यों? हेलीकॉप्टर उतर रहा है धीरे-धीरे जमीन पर| पहले से उतरा हेलीकॉप्टर उड़ान भरने को है, लाल भूरे रंग की ज़मीन पर हम खड़े सामने धीर-समीर नदी है काँच जैसा पानी, ग्रैंड कैन्यन घाटी संयुक्त राज्य अमेरिका के एरिज़ोना राज्य से होकर बहने वाली कोलोराडो नदी की धारा से बनी तंग घाटी है। यह घाटी अधिकांशत :ग्रैंड कैन्यन नेशनल पार्क से घिरी है जो अमेरिका के सबसे पहले राष्ट्रीय उद्यानों में से एक था ।इस स्थान पर पहुँचने वाले पहले यूरोपीय यात्री स्पेन के गार्सिया लोपेज दि गार्सेनाज थे जो यहाँ १५४० में पहुँचे थे। नए परीक्षणों के बाद भू-विशेषज्ञों का कहना है कि कोलोराडो बेसिन एक करोड़ सत्तर लाख वर्ष पूर्व बना था। वर्ष २००८ में इस नई खोज को प्रकाशित किया गया था जो घाटी से मिले कैल्साइट की यूरेनियम जाँच के बाद प्रकाश में आया था। हालाँकि बाद में इस खोज पर बहुत विवाद भी हुआ था। लगभग २० करोड़ वर्ष पूर्व कोलोराडो नदी और उसकी सहायक नदियों ने इस क्षेत्र को परत दर परत काटा था और कोलोराडो पठार ऊपर उठता गया था| चालक कहने लगा-“वर्ष २००८ में इस नई खोज को प्रकाशित किया गया था जो घाटी से मिले कैल्साइट की यूरेनियम जाँच के बाद प्रकाश में आया था। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने पिछली शताब्दी के आरंभ में ग्रैंड कैन्यन पार्क को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया था। आज यह कई प्राणियों को संरक्षण देता है। कोलोराडो नदी में भी पर्यटक कई तरह के जल-क्रीड़ा (वाटर स्पोर्ट्स) का आनंद भी उठाते हैं। इस विशालकाय घाटी को देखने के लिए पर्यटकों को हवाई जहाज की सुविधा भी मिलती है। एक विशाल प्राकृतिक अजूबे के साथ ही ग्रैंड कैन्यन अमेरिका के सबसे बड़े पर्यटक केंद्रों में से एक है। ग्रैंडव्यू पाइंट से ग्रैंड कैन्यन और ब्लू आवर, ग्रैंड कैन्यन का आलौकिक दृश्य, सामने दूर तक अनंत विस्तार लिए पहाड़ों में अनेकानेक खाइयों से तराशी पत्थरों के अलग-अलग लाल-भूरे, धूसर-मटमैले, शाहबलूती-सुनहरे रंगों की कलाकृतियाँ दो बिलियन सालों का धरती के विकास का  भूगर्भीय प्रमाण बिखरा पड़ा था। सालों साल हुई धरती की कोख में ज्वालामुखीय हलचल का  एक अमूल्य  दस्तावेज़। जहाँ आग्नेय चट्टानें पठारों के रूप मे ऊपर  उठती गईं| आश्चर्य होता है कि कोलोरोड़ो नदी की मंद-मंथर गति भी पत्थरों को इस तरह काट अपने अस्तित्व का संघर्ष कर रही है। पल्लवी मेरा हाथ खींचती नदी के किनारे ले गई फोटो खींचने| फोटो तो मैंने पत्थरों, कँटीली झाड़ियों कैक्टस सब के लिये। नदी मुझे पास बुलाती रही शायद अपने गहन गहराइयों मे दबे राज़ सुनाना चाहती हो। मुख्य खाई घोड़े की नाल के आकार की है| गाइड कहता यह  अँग्रेजी अक्षर C का आकार है मुझे शिवलिंग सा लगता है आस्तिक होने के ही फायदे हैं ये| मैं नमन  कर लेती हूँ शिवलिंग हो ना हो प्रकृति का कृतित्व तो है ही। सामने के ये पठार विष्णु टेम्पल कहलाते हैं अपने आकार प्रकार से। भूख तेज़ हो जाती हमारा लंच शाकाहारी लिखवाया था पर माँसाहारी निकला बियर, आइसक्रीम और बनाना सेकाम चलाना पड़ा पैसे वापस दिये| नैसर्गिक सौंदर्य का रोमांचक अनुभव जिसमें पानी इंद्रधनुष दिखाई देता है । समय हो गया वापस चलने का हेलीकॉप्टर चालक अब मित्र बन गए| खूब फोटो खींचने के बादफिर उड़ान वीराने से सघन मानवीय आबादी वाले लॉस वेगास। प्लान बनता है क्यों ना कल आधा दिन है स्काय वॉक भी कर लें-- -- --कोलोराडो तुम हमेशा याद रहोगी| मैं हेलीकॉप्टर में आने के पहले दोनों हाथ
ऊपर करती हूँ पिता को आवाज लगाती-- -- -- -- -- --देखो पापा आज मैंने अजूबा देख लिया-- -- -- -- -

देखी मैंने एक नदी, गाती रीति रेत हुई
मरुस्थली चट्टानों से वह खूब लड़ी
बढ़ती चली, बहती गई, बाँधी गई, साधी गई,
फिर भी वह न ठहर सकी
झुकी नहीं, टूटी नहीं, मुड़-मुड़कर वह निकल चली|
-स्वाति तिवारी


 
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