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बजट: प्रचार पर कम; वास्तयविकता पर अधिक जोर
7 Feb. 2017
वित्तम मंत्री श्री अरुण जेटली ने अपने बजट 2017-18 में जरूरत मंदों को धन प्रदान किया है। लगभग 21.46 लाख करोड़ रुपये के विभिन्न बजट विवरण के बारे में सबसे उपयुक्तश शीर्ष वैश्विक बैंकर ने कहा है कि यह एक कारीगरी और व्येवसाय जैसा कार्य है।
हालांकि उच्चर अपेक्षाओं के बावजूद बजट के अंतिम आंकड़ों और विकास खाके में प्रचार पर कम और किसानों, ग्रामीण श्रमिकों, निम्नव मध्यय वर्ग, युवा और लघु तथा मध्य म उद्यमोंक के लिए वास्तदविक सहायता प्रदान करने पर अधिक जोर दिया गया है।
विकसित अर्थव्य वस्थारओं द्वारा संरक्षणवाद और उभरते हुए बाजारों से पूंजी का निकलना जैसी वैश्विक चुनौतियों को देखते हुए वित्तं मंत्री ने बजट प्रस्तुात करते हुए घरेलू कारकों पर बल दिया, जिसमें कई बातें पहली बार शामिल की गई हैं। पहली बार बजट एक महीने पहले पेश किया गया, जिससे सरकार के व्य य पर गुणात्मलक प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा पहली बार नियोजित और गैर-नियोजित व्याय की सख्तीा को हटाया गया है।
विमुद्रीकरण और ग्रामीण अर्थव्यावस्थाऔ को बढ़ावा देने के महत्वत के बाद आए इस बजट में श्री जेटली ने देश के ग्रामीण क्षेत्र के लिए 1.87 लाख करोड़ रुपये का संयुक्त आवंटन किया है। प्रमुख ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, महात्मा गांधी मनरेगा के लिए अब तक का सबसे अधिक 48,000 करोड़ रुपये आवंटित किया गया है और यह व्यतय ‘केवल खड्डे खोदने और भरने’ के लिए नहीं बल्कि बेहतरीन ग्रामीण संपत्ति का निर्माण करने में किया जाएगा। सभी मनरेगा संपत्तियों को जीओ-टैग किया जाएगा और अधिक पारदर्शिता के लिए इसे सार्वजनिक किया जाएगा। यहां तक कि मनरेगा कार्यों की योजना बनाने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का भी व्या पक उपयोग किया जाएगा।
किसानों को उनकी फसल का बेहतर मूल्यप दिलाने के लिए उनको ई-मंडी से जोड़ने तथा कृषि उत्पाोद बाजार समीति (एपीएमसी) अधिनियम के चंगुल से और अधिक किसान उत्पाोदों को विमुक्त् करने के लिए अधिक से अधिक राज्योंु से आग्रह करने जैसी पहलों से किसानों को काफी मदद मिलेगी।
एक महत्वंपूर्ण प्रश्नम है कि क्याे यह बजट निजी क्षेत्र में खपत मांग और निवेश को पुनर्जीवित कर सकेगा?
जैसा कि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीहय अर्थव्यावस्था की स्थिति के बारे में शानदार कुछ और ईमानदार आकलन के बेहतरीन दस्तारवेज, आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि देश का निजी क्षेत्र भारी ऋण की समस्याे से जूझ रहा है। इसलिये भारतीय कंपनियों द्वारा इस क्षेत्र में नया धन लगाने से पहले निवेश चक्र में आवश्ययक महत्वरपूर्ण नेतृत्वध के लिये यह सरकार का तार्किक उपाय होगा और इसके बाद दूसरे आदेश में इसका पालन किया जायेगा। यही कार्य इस बजट में किया गया है। विश्वश में विपरित परिस्थितियों के बावजूद पूंजी निर्माण के लिये पूंजी व्य य में 24 प्रतिशत की बढ़ोत्तंरी की गई है। प्रमुख सड़क, रेल और शिपिंग बुनियादी ढांचा क्षेत्र को संयुक्तप रूप से 2.41 लाख करोड़ रुपये के परिव्यरय का सरकारी निवेश प्राप्त् हुआ है। इसे कई गुना प्रभावी बनाने के लिये निजी क्षेत्र को सीमेंट, स्टी‍ल और रोलिंग स्टॉपक आदि के ऑर्डर प्राप्तर होंगे, जिससे कुशल और अर्धकुशल लोगों के लिये रोजगार के अवसर पैदा होंगे तथा प्रमोटरों के राजस्व में वृद्धि होगी।
युवाओं के बारे में विचार एकदम स्पतष्टो हैं: जो एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करना है जहां आसान बैंक ऋण, राजकोषीय रियायतों और प्रोद्योगिकी समर्थता की मदद से उद्यमशीलता बढ़े। एक विश्लेरषक ने कहा है कि कारपोरेट भारत को केवल पांच से दस शीर्ष व्या वसायिक घरानों के लिये ही शेयर बाजार में धन बनाने के रूप में नहीं देखना चाहिये,बल्कि यह करोड़ों सूक्ष्मे, लघु और मझौले उद्यमों (एसएमई) के लिये भी है। बजट से इस वर्ग के लोगों की स्थिति में काफी बदलाव आयेगा। हालांकि सरकार द्वारा पूरे उद्योग के लिये कारपोरेट कर को 25 प्रतिशत करने के अलावा एसएमई क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई है, जिन्हेंक कर और कम देना होगा। नाम में कुछ बदलाव कर बुनियादी ढ़ांचा का दर्जा देने के बाद किफायती आवास के इस क्षेत्र को काफी बढ़ावा दिया गया है। विमुद्रीकरण और कम मांग के कारण इस क्षेत्र को काफी धक्काा पंहुचा था। इससे निर्माण क्षेत्र में रोजगार बढ़ेगा और सबके लिये आवास का सरकार का वादा पूरा होगा।
डिजीटल इंडिया एक ऐसा क्षेत्र है, जहां बजट में अपेक्षाओं के अनुरूप आवंटन किया गया है। इसमें जोर देकर कहा गया है कि डिजीटल पहल केवल विमुद्रीकरण तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि यह नया सामान्य तरीका होगा। संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को आपस में जोड़ने के लिये भीम, फाइबर ऑप्टिक्सस, बिक्री स्थिलों और माल प्लेेटफार्म जैसे परिचालन ऐप तैयार करने के लिये कई पहल की और बुनियादी सहायता दी गई है। देश को ऊर्जावान और स्वसच्छ बनाने के लिये बजट में नगदी रहित अर्थव्यहवस्था् ‘टीइसी’ स्तनम्भों में से एक है। वास्तुव में इससे न केवल काले धन और भ्रष्टाहचार को समाप्त कर देश को आंतरिक रूप से स्वमच्छभ करने में मदद मिलेगी, बल्कि इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और युवा ऊर्जावान बनेंगे।
इसी विषय से जुड़े विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड को समाप्तऔ करने से प्रत्य‍क्ष विदेशी निवेश की परियोजनओं को मंजूरी देने या न देने में लाल फीताशाही कम करने और विवेकाधिकारों को समाप्तज करने के बारे में वैश्विक निवेशकों को बड़ा और स्परष्टक संकेत दिया गया है। इसके बाद राजनीतिक दलों को चंदा देने में पारदर्शिता लाने के लिए सबसे साहासिक कदम चुनावी बांड के जरिए चंदा देना और केवल दो हजार रुपये तक नकद चंदा देने की सीमा तय करना है। यह भ्रष्टा चार के खिलाफ लड़ाई जीतने में काफी मददगार साबित होगा।
20,000 करोड़ रुपये तक प्रत्यदक्ष कर मुक्तर करने के साथ ही वित्तीषय अनुशासन पर टिके रहकर वित्त मंत्री ने इसके लिए कोई नया कर नहीं शुरू किया है। राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पा द के 3.2 प्रतिशत के महत्वथपूर्ण स्वी कार्य स्त र पर नियंत्रित किया गया है। यह एक ऐसा उपाय है, जिससे देश को वैश्विक रेटिंग एजेंसियों का विश्वातस बनाए रखने में मदद मिलेगी।
संक्षेप में बजट 2017-18 बेहतरीन है और अगर अगले वित्त वर्ष में नहीं, तो आगामी वर्षों में इससे 8 प्रतिशत से अधिक जीडीपी वृद्धि दर हासिल करने में मदद मिलेगी।

मध्यप्रदेष की माटी की सौंधी सुगंध से विष्व को सुरभितकरता लघु सहकारी उपक्रम
आर्थिक उदारीकरण के साथ सूचना प्रौद्योगिकी के गतिमान दौर ने सारे विष्व को एक गांव के रूप में बदल डाला है। विकसित देष बाजार की खोज में जुटे है, विकासषील देष अब तक विकसित देषों के लिए बाजार बने हुए थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वामी विवेकानंद की उस भविष्यवाणी के कायल है, जिसमें स्वामी जी ने कहा था कि 21वीं सदी शताब्दी भारत की होगी। भविष्यवाणी संकेत और प्रेरणा तो बन सकती है लेकिन हरि इच्छा ही वेकषों का अंतिम अवलंबन है, मानसिकता वाले देष का भविष्य नहीं बदल सकती। मेक इन इंडिया का एनडीए सरकार ने ऐलान करके देष की उद्यमिता को नवजागरण का संदेष दिया है। मध्यप्रदेष का विंध्य हर्बल ब्रांड इस दिषा में मध्यप्रदेष राज्य लघु वनोपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ मर्यादित भोपाल की विनम्र प्रस्तुति ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया मिषन में कदम बढ़ाकर विपणन के क्षेत्र में एक छलांग लगाई है। अंतर्राष्ट्रीय वन मेला के आयोजन के साथ यह सहकारी संघ अपनी अनुसंधान, विकास, विपणन इकाईयों के समन्वित प्रयासों से दुनिया के पारंपरिक चिकित्सा पद्धति वाले मुल्कों के लिए आकर्षण का केन्द्र और मंडी बन चुका है। इससे मध्यप्रदेष की लघु वनोपज अर्थकरी (क्रेष कॉर्प) फसल के रूप में विदेषी मुद्रा अर्जन का जरिया बनने जा रही है। मजे की बात यह है कि विंध्य हर्बल ब्रांड के अन्तर्गत अब तक इस सहकारी संघ की एम.एफ.पी (प्रसंस्करण और अनुसंधान केन्द्र, एमएफपी-पीएआरसी) ने उद्योग जगत में प्रमाणित इकाई का दर्जा हासिल कर जंगली शहद के प्रसंस्करण के साथ दो सौ से अधिक आयुर्वेदिक औषधियों का व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन आरंभ कर मार्केट में दावेदारी पुख्ता कर ली है। जानकार सूत्र बताते है कि आने वाले दिनों में सहकारी संघ रोजगार सृजन का ऐसा केन्द्र बनेगा जहां पचास हजार भुजाएं रूग्ण मानवता की सेवा में तत्पर औषधि निर्माण के कार्य में जुटी होंगी। बदलती रूचि रूझान, सौन्दर्य प्रसाधनों की मांग के अनुरूप इस उपक्रम ने काष्तकारों में ऐसा क्रेज विकसित किया है और प्रोत्साहन दिया है कि वे मध्यप्रदेष के औषधि पादप उत्पादन के साथ सीधे अंतर्राष्ट्रीय औषधि, सौन्दर्य प्रसाधन हाट से जुड़ने का दावा कर रहे है।
विदेषी लाल गेहूं पर निर्भर भारत आज विष्व के देषों को सरबती गेहूं और बासमती चावल प्रचुर मात्रा में निर्यात करता है। इस हरित क्रांति का श्रेय तत्कालीन कृषि एवं खाद्य मंत्री सुब्रमण्यम को जाता है। उनके द्वारा बतायी गयी हरित क्रांति के ध्वजवाहक किसान बनें और उन्होनें अन्नदाता होने की सार्थकता पुनः कायम की। इसलिए यदि प्रदेष में औषधि पादप की खेती में किसान सफल हुए है तो इसमें राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ की भूमिका का मूल्याकंन करना होगा, जिसने औषधि पादप उत्पादन का पथ प्रषस्त किया। उन्हें विपणन में सहयोग दिया, प्रोत्साहन देकर अंतर्राष्ट्रीय जड़ी-बूटी हाट केन्द्रों, प्रदर्षनियों और मेलों में पहुंचानें में सेतु का काम किया। इसी का नतीजा है कि प्रदेष में ऐसा अनुकूल वातावरण बन सका जहां मध्यप्रदेष में देष में सर्वाधिक क्षेत्र में औषधि और सुगंधित पौधों की खेती हो रही है। किसान 70 से अधिक आसवन संयंत्र लगा चुके है, जहां इत्र, सुगंधित तेल, डिटरजेन्ट पाउडर बनानें के लिए कच्चा माल तैयार होता है। मध्यप्रदेष उद्यमिता विकास संस्थान ने भी किसानों को सरंक्षण प्रदान कर उनका रास्ता आसान किया है। प्रदेष में 25 तरह के औषधीय पौधों की दो हजार से अधिक क्षेत्र में काष्त होना शुरू हो गयी है। सुगंधित तेल और जड़ी-बूटियांे की मांग पूरी दुनिया मंे बढ़ती जा रही है। मेक इन इंडिया और इसके समानांतर मेक इन मध्यप्रदेष ने देष की प्रदेष की अन्वेषी और ऊर्जावान पीढ़ी को नई दिषा दी है। स्वदेषी अस्मिता बुलंद हुई है। क्योंकि जिस भारत का विष्व व्यापार में योगदान 17वीं शताब्दी में 25 प्रतिषत था, वह 1947 में जब अंग्रेज भारत से विदा हुए तो घटकर मात्र एक से दो प्रतिषत रह चुका था। क्योंकि दो शताब्दियों तक भारत को उसकी समृद्ध उद्यमिता की विरासत से काटने, सामर्थ्य और पराक्रम को आहत करनें के प्रयास लार्ड क्वाईव ने ही नबाव सिराजुद्दौला को पराजित करनें के साथ आरंभ कर दिये थे। इसका प्रभाव चिकित्सा क्षेत्र में परंपरागत संसाधनों पर भी पड़ा। भारत को नील और जरूरत के अनुसार खेती पर समेट कर रख दिया गया, जिससे उद्यमिता ठगी सी रह गयी। हमारे पिछड़ने के इस क्रम ने हमारे इकबाल पर भी चोट की। अब इस दिषा में जो पहल आरंभ हुई है, देर आयत दुरूस्त आयत ही कहा जा सकता है। भारत की ऊर्जावान पीढ़ी ने कमान संभाली है। वनवासी समुदाय भी विकास की रोषनी में अग्रसर हो रहा है।
मध्यप्रदेष में राज्य लघु वनोपज संघ का गठन 1984 में हो चुका था। आज इसे गैर इमारती उत्पादन और प्रसंस्करण के लिए स्वायत्तता हासिल है। संघ ने 61 जिला सहकारी संघ, 1066 के करीब प्राथमिक समितियों का जाल बिछाकर उन वनवासियों को रचनात्मक धर्मिता से जोड़ा है और उनके सामाजिक-आर्थिक उन्नयन का बीड़ा उठाया है, जिनका भविष्य पिछले दिनों तक शोषक ठेकेदारों के यहां बंधक था। इसी का नतीजा है कि संघ मध्यप्रदेष शासन और केन्द्र शासन के विभिन्न मंत्रालयों द्वारा पोषित कार्यक्रमों को गति प्रदान करता हुआ वनवासियों के स्वावलंबी जीवन की दिषा में सखा, मार्गदर्षक और अभिभावक की भूमिका में है। तेन्दुपत्ता संग्रहण, लघु वनोपज के क्षेत्र में संघ का एकाधिकार वनवासियों के कल्याण के लिए समर्पित है। तेन्दुपत्ता संग्रहण के कार्य में कमोवेष वार्षिक सत्र में 15 लाख श्रमिकों को रोजगार मिलता है और उन तक 145 करोड़ रू. की राषि पारिश्रमिक और प्रोत्साहन के रूप मंे पहुंचती है जिससे परिवार में खुषहाली दस्तक दे रही है। लघु वनोपज में प्रदेष में साल बीज और कुल्लू गोंद का अनुमानतः उत्पादन कमोवेष 1200 टन और तीन सौ टन होता है। महुआ का 6 हजार टन और आंवला का उत्पादन पांच हजार टन तक पहुंचता है। लाख का उत्पादन भी हो रहा है जिससे भारत की पहुंच अतंर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ रही है। मध्यप्रदेष देष में वन क्षेत्र के मामलें में समृद्ध राज्यों में गिना जाता है और प्रदेष का एक तिहाई क्षेत्र वनाच्छादित रहा है। प्रषासकीय दृष्टि से मध्यप्रदेष का वन क्षेत्र 16 वन क्षेत्रीय मंडलों, 9 राष्ट्रीय उद्यानों, 25 अभ्यारण्यों और 63 वन मंडल प्रभागों में समाहित है। यहां सागौन और साल वन प्रदेष की समृद्धि और गौरव वखान करते है वहीं नयनाविराम पर्यटन के लिए आमंत्रण देते है।
वन आधारित समुदायों के सामाजिक, आर्थिक उत्थान के लिए संघ की गतिविधियां पोषक और उत्साहवर्द्धक सिद्ध हो रही है। इसमें निजी भागीदारी से किये जा रहे कार्य महत्वपूर्ण और आय में इजाफा करने में महत्वपूर्ण साबित हो रहे है। निजी भागीदारी मंे औषधीय और सुगंधित पौधों के उत्पादन, प्राथमिक एमएफपी सहकारी समितियों के साथ अनुवेध भी शामिल है। सीसल और सवाई जैसे प्राकृतिक फाइबर के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। शहद, आंवला, मुरब्बा, शरबत, आयुर्वेदिक दवाईयों के उत्पादन में ग्राम स्तर पर भागीदारी परिवार मूलक उद्योग की शक्ल ले चुकी है। संघ की बहुमुखी गतिविधियों में हाल के वर्षों में जो प्रगति हुई है उसी का नतीजा है कि प्रसंस्करण और अनुसंधान की गत्यात्मक पहल ने संघ के लिए अंतर्राष्ट्रीय हाट में प्रवेष करा दिया है।
संघ के उत्तरोत्तर प्रगति के आयामों में संघ द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय जड़ी-बूटी मेला (हर्बल फेयर) ऐसा मंच साबित हुआ है जहां वनोपज और लघु वनोपज की तिजारत का नायाब मौका मिलने लगा है। 2001 से इस हर्बल फेयर ने पांच दिवसीय राष्ट्रीय घटना का स्वरूप ले लिया है। हर्बल फेयर का आयोजन एक संयुक्त प्रयास होता है, जिसमें मध्यप्रदेष वन विभाग, मध्यप्रदेष लघु वनोपज सहकारी संघ के साथ अन्य फेडरेषनों की भी सक्रिय भागीदारी होती है। इन फेडरेषनों के साथ 31 लाख संग्रहकर्ताओं की नियति जुड़ी है। हर्बल फेयर के मौके पर देषी परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों के वैद्य, हकीम भी अपने प्रखर व्यक्तित्व और अनुभव से मेला में भाग लेने वालों, जिज्ञासुओं को लाभांवित करते है। हर्बल फेयर जड़ी-बूटियों पर निर्भर चिकित्सकों और इस क्षेत्र में सक्रिय ऐजेंसियों के लिए वार्षिक तीर्थ की शक्ल ले चुका है। भोपाल में 11 दिसंबर से आयोजित किये जा रहे पांच दिवसीय हर्बल फेयर की भव्य और व्यापक तैयारियां लाल परेड प्रांगण पर वरवस ध्यान आकर्षित कर रही है। यहां पहुंचकर भारतीय वनस्पति, जड़ी-बूटियों के चमत्कार, स्वास्थ्य चिकित्सा के प्रभाव और परंपरागत चिकित्सा के नायाब नुस्खों से आमजन रूबरू होता है। उसे स्वदेषी चिकित्सा पद्धति की अनुभूति आल्हादित कर देती है।


भारतीय संस्कृति का प्रतीक है खादी
खादी, हाथ से काते गए और बुने गए कपड़े को कहते हैं। कच्चे माल के रूप में कपास, रेशम या ऊन का प्रयोग किया जा सकता है, जिन्हें चरखे (एक पारंपरिक कताई यन्त्र) पर कातकर धागा बनाया जाता है। भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में खादी का महत्वपूर्ण स्थान है।
गांधी जी ने भारत के लोगों को खादी और अहिंसा जैसे दो ऐसे हथियार दिए जिनके सहारे वे लोग अंग्रेजों को भारत से खदड़ेने में कामयाब रहे। गांधी जी ने खादी को राष्ट्रवाद, समानता और आत्मसम्मान के तौर पर लोगों के सामने पेश किया। उनका मानना था कि समाज का पुनर्गठन और विदेशी शासन के खिलाफ सत्याग्रह सिर्फ और सिर्फ खादी के जरिए ही संभव है। खादी हमारे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम और गांधी जी की विरासत है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) संसद के 'खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम 1956' के तहत भारत सरकार द्वारा निर्मित एक वैधानिक निकाय है। जिसका मुख्य उद्देश्य है - "ग्रामीण इलाकों में खादी एवं ग्रामोद्योगों की स्थापना और विकास करने के लिए योजना बनाना, प्रचार करना, सुविधाएं और सहायता प्रदान करना है, जिसमें वह आवश्यकतानुसार ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कार्यरत अन्य एजेंसियों की सहायता भी ले सकती है। खादी मार्क एक प्रयास है खादी की गुणवत्ता एवं शुद्धता की पहचान को सुनिश्चित करने का। जिस तरह से हालमार्क के जरिए शुद्ध सोने की पहचान की जाती है, उसी प्रकार खादी मार्क के जरिए शुद्ध एवं ओरिजनल खादी की पहचान की जाती है। केवीआईसी शिल्पकारों के कौशल विकास के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करते रहती है। खादी सुधार एवं विकास कार्यक्रम के जरिए विभिन्न क्षेत्रों जैसे संस्थानों, कच्चे माल की आपूर्ति, प्रशिक्षण एवं विकास व मार्केटिंग समेत इस सेक्टर के संपूर्ण विकास पर जोर दिया जाता है। केवीआईसी शिल्पकारों की सामाजिक सुरक्षा का ध्यान भी रखती है और इसके लिए उसने कई कदम उठाए हैं।

गांधी और खादी

गांधी जी ने खादी को राष्ट्रवाद, समानता और आत्मसम्मान के तौर पर लोगों के सामने पेश किया। उनका मानना था कि समाज का पुनर्गठन और विदेशी शासन के खिलाफ सत्याग्रह सिर्फ और सिर्फ खादी के जरिए ही संभव है। उनके मुताबिक खादी के सार्वभौमिक स्वीकार्यता के बगैर स्वराज की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। उनका कहना था, मैं स्वराज विक्रेता हूं, मैं खादी का भक्त हूं। यह मेरा कर्तव्य है कि मैं सभी ईमानदार तरीकों से लोगों से खादी पहनने की अपील करूं। यह कहा जा सकता है कि खादी के जरिए ही गांधी जी स्वराज और स्वदेशी का संदेश लोगों तक पहुंचाने में कामयाब रहे।

खादी और भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष

गांधी जी ने भारत के लोगों को खादी और अहिंसा जैसे दो ऐसे हथियार दिए जिनके सहारे वे लोग अंग्रेजों को भारत से खदड़ेने में कामयाब रहे। 1920 में नागपुर में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में खादी को राष्ट्रीय वस्त्र के रूप में बढ़ावा देने की घोषणा की गई। इसके बाद लोगों ने विदेशी वस्त्रों की होलिका जलाना शुरू कर दिया और खादी को अपनाने लगे। खादी को अब राष्ट्रीय गौरव के रूप में पहचान मिलनी शुरू हो गई। खादी के प्रति गांधी जी के प्रेम और उस वक्त की आर्थिक और राजनीतिक रणनीति की वजह से कांग्रेस पार्टी ने 1920-21 के असहयोग आंदोलन और 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन के केंद्र में खादी को रखा।
खादी और ग्रामोद्योग आयोग (Khadi and Village Industries Commission)खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी)(Khadi and Village Industries Commission), संसद के 'खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम 1956' के तहत भारत सरकार द्वारा निर्मित एक वैधानिक निकाय है। यह भारत में खादी और ग्रामोद्योग से संबंधित सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय (भारत सरकार) के अन्दर आने वाली एक शीर्ष संस्था है, जिसका मुख्य उद्देश्य है - "ग्रामीण इलाकों में खादी एवं ग्रामोद्योगों की स्थापना और विकास करने के लिए योजना बनाना, प्रचार करना, सुविधाएं और सहायता प्रदान करना है, जिसमें वह आवश्यकतानुसार ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कार्यरत अन्य एजेंसियों की सहायता भी ले सकती है।"अप्रैल 1957 में, पूर्व के अखिल भारतीय खादी एवं ग्रामीण उद्योग बोर्ड का पूरा कार्यभार इसने संभाल लिया।
इसका मुख्यालय मुंबई में है, जबकि अन्य संभागीय कार्यालय दिल्ली, भोपाल, बंगलोर, कोलकाता, मुंबई और गुवाहाटी में स्थित हैं। संभागीय कार्यालयों के अलावा, अपने विभिन्न कार्यक्रमों का कार्यान्वयन करने के लिए 29 राज्यों में भी इसके कार्यालय हैं। खादी, हाथ से काते गए और बुने गए कपड़े को कहते हैं। कच्चे माल के रूप में कपास, रेशम या ऊन का प्रयोग किया जा सकता है, जिन्हें चरखे (एक पारंपरिक कताई यन्त्र) पर कातकर धागा बनाया जाता है। खादी और ग्रामोद्योग, दोनों में ही अत्यधिक श्रम (श्रमिकों) की आवश्यकता होती है।
औद्योगीकरण के मद्देनज़र और लगभग सभी प्रक्रियाओं का मशीनीकरण होने के कारण भारत जैसे श्रम अधिशेष देश के लिए खादी और ग्रामोद्योग की महत्ता और अधिक बढ़ जाती खादी और ग्रामीण उद्योग का एक अन्य लाभ यह भी है कि इन्हें स्थापित करने के लिए पूँजी की आवश्यकता नहीं (या बिलकुल कम) के बराबर होती है, जो इन्हें ग्रामीण गरीबों के लिए एक आर्थिक रूप से व्यवहार्य विकल्प बनाता है। कम आय, एवं क्षेत्रीय और ग्रामीण/नगरीय असमानताओं के मद्देनजर भारत के संदर्भ में इसका महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है।
आयोग का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराना, बेचने योग्य सामग्री प्रदान करना और लोगों को आत्मनिर्भर बनाना और एक सुदृढ़ ग्रामीण सामाजिक भावना का निर्माण करना है। आयोग विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन और नियंत्रण द्वारा इन उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है।
योजनाओं और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की प्रक्रिया सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय से आरम्भ होती है, जो इन कार्यक्रमों का प्रशासनिक प्रमुख होता है। मंत्रालय भारतीय केन्द्र सरकार से धन प्राप्त करता है और खादी और ग्रामोद्योग से संबंधित कार्यक्रमों और योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग को पहुंचाता है।खादी और ग्रामोद्योग आयोग इसके बाद इस धनकोष का प्रयोग अपने कार्यक्रमों का कार्यान्वयन करने के लिए करता है। आयोग इस काम को प्रत्यक्ष तौर पर अपने 29 राज्य कार्यालयों के माध्यम से सीधे खादी और ग्राम संस्थाओं एवं सहकारी संस्थाओं में निवेश करके; या अप्रत्यक्ष तौर पर 33 खादी और ग्रामोद्योग बोर्डों के माध्यम से करता है, जो कि भारत में राज्य सरकारों द्वारा संबंधित राज्य में खादी और ग्रामोद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से निर्मित वैधानिक निकाय हैं। तत्पश्चात, खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड खादी और ग्राम संस्थानों/सहकारिताओं /व्यवसाइयों को धन मुहैया कराते हैं। वर्तमान में आयोग के विकासात्मक कार्यक्रमों का क्रियान्वयन 5600 पंजीकृत संस्थाओं, 30,138 सहकारी संस्थाओं और करीब 94.85 लाख लोगों के माध्यम से किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) दो योजनाओं के विलय का परिणाम है - प्रधानमंत्री रोजगार योजना (पीएमआरवाई) और ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम (आरईजीपी)। ब्याज अनुवृत्ति पात्रता प्रमाणपत्र (ISEC) योजना, खादी कार्यक्रम के लिए धन का प्रमुख स्रोत है। इसे मई 1977 में, धन की वास्तविक आवश्यकता और बजटीय स्रोतों से उपलब्ध धन के अंतर को भरने हेतु बैंकिंग संस्थानों से धन को एकत्र करने के लिए शुरू किया गया था।इस योजना के तहत, बैंक द्वारा सदस्यों को उनकी कार्यात्मक/निश्चित राशि की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए ऋण प्रदान किया जाता है। ये ऋण 4% प्रतिवर्ष की रियायती ब्याज दर पर उपलब्ध कराये जाते हैं। वास्तविक ब्याज दर और रियायती दर के बीच के अंतर को आयोग द्वारा अपने बजट के 'अनुदान' मद के तहत वहन किया जाता है। हालांकि, केवल खादी या पॉलीवस्त्र (एक प्रकार की खादी) का निर्माण करने वाले सदस्य ही इस योजना के लिए योग्य होते हैं।
इस योजना के तहत, लाभार्थी को परियोजना की लागत के 10 प्रतिशत का निवेश स्वयं के योगदान के रूप में करना होता है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और अन्य कमजोर वर्गों से लाभार्थी के लिए यह योगदान परियोजना की कुल लागत का 5 प्रतिशत होता है। शेष 90 या 95% प्रतिशत (जो भी उपयुक्त हो), इस योजना के तहत निर्दिष्ट बैंकों द्वारा प्रदान किया जाता है। इस योजना के तहत लाभार्थी को ऋण की एक निश्चित रकम वापस दी जाती है (सामान्य के लिए 25%, ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर वर्गों के लिए 35%), जो कि ऋण प्राप्त करने की तिथि के दो वर्षों के बाद उसके खाते में आती है।
केंद्र सरकार आयोग को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय के माध्यम से दो मदों के तहत धन प्रदान करती है: योजनाकृत और गैर-योजनाकृत. आयोग द्वारा 'योजनाकृत' मद के तहत प्रदान किये गए धन का आवंटन कार्यान्वयन एजेंसियों को किया जाता है। 'गैर-योजनाकृत' मद के तहत प्रदान किया गया धन मुख्य रूप से आयोग के प्रशासनिक व्यय के लिए होता है। धन मुख्य रूप से अनुदान और ऋण के माध्यम से प्रदान किया जाता है।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (Ministry of Micro, Small and Medium Enterprises)भारत सरकार का सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (Ministry of Micro, Small and Medium Enterprises) सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों की नीति-निर्माण, संवर्ध, विकास एवं संरक्षण के लिये केन्द्रीय (नोडल) मंत्रालय है। इसे 9 मई 2007 को कृषि एवं ग्रामीण एवं उद्योग मंत्रालय तथा लघु-उद्योग मंत्रालय को मिलाकर बनाया गया। खादी हमारे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम और गांधी जी की विरासत है। इसी तरह खादी और ग्रामोद्योग भी हमारी विरासत में शामिल हैं।

उत्पाद, विकास, डिजाइन, इन्टरवेंशन ऐंड पैकेजिंग (PRODIP) योजना इस योजना के जरिए भारत सरकार का सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के साथ मिलकर खादी-ग्रामोद्योग उत्पादों की गुणवत्ता को बढ़ाने और उसके उत्तम मार्केटिंग पर जोर देता है। इसकी शुरूआत 2002 में हुई थी। इस योजना में संस्थानों को प्रति परियोजना 2 लाख रुपये तक की सहायता दी जाती है।

खादी हालमार्क

खादी मार्क एक प्रयास है खादी की गुणवत्ता एवं शुद्धता की पहचान को सुनिश्चित करने का। जिस तरह से हालमार्क के जरिए शुद्ध सोने की पहचान की जाती है, उसी प्रकार खादी मार्क के जरिए शुद्ध एवं ओरिजनल खादी की पहचान की जाती है।

कौशल विकास

केवीआईसी शिल्पकारों के कौशल विकास के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करते रहती है। साथ ही खादी संस्थानों के कुशल प्रबंधन के लिए शिल्पकारों को प्रशिक्षण दिया जाता है और इसके लिए प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन विभाग द्वारा किया जाता है।
खादी सुधारखादी सुधार एवं विकास कार्यक्रम के जरिए विभिन्न क्षेत्रों जैसे संस्थानों, कच्चे माल की आपूर्ति, प्रशिक्षण एवं विकास व मार्केटिंग समेत इस सेक्टर के संपूर्ण विकास पर जोर दिया जाता है। इसका उद्देशय शिल्पाकों की बेहतर अर्जन को सुनिश्चित करना एवं उन्हें खादी कार्यक्रम के कार्यान्वयन में शामिल करना है।

रोजगार एवं सामाजिक सुरक्षा

शिल्पकारों की सामाजिक सुरक्षा को ध्यान रखते हुए केवीआईसी ने कई कदम उठाए हैं। खादी कारिगर जनश्री बीमा योजना के जरिए शिल्पकारों का समूह बीमा कराया जाता है। यह बीमा योजना जीवन बीमा निगम द्वारा सिर्फ और सिर्फ खादी शिल्पकारों के लिए डिजाइन की गई है। इस योजना के तहत पूरे देश के खादी शिल्पकार आते हैं। आकस्मिक मृत्यु, दुर्घटना में स्थाई रूप से अपंगता, स्थाई अपंगता को इसके तहत कवर किया जाता है और शिल्पियों को सहायता प्रदान की जाती है। इसी तरह शिल्पी कल्याण फंड ट्रस्ट की स्थापना की गई है जिसके जरिए शिल्पियों को घर बनाने, शादी और किसी आकस्मिक जरूरत के समय आर्थिक सहायता मुहैया कराई जा सके।



दुनिया में सबसे पसंदीदा चार पेय और उनकी ब्रैंड वैल्यू
17 September 2014
पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले और बिकने वाले चार पेय (बैवरेज)हैं- कोका कोला, नेसकैफे, पेप्सी और स्प्राइट। इसमें गर्म पेय में सिर्फ नेसकैफे है, जबकि बाकी तीनों ठंडे पेय हैं। लेकिन इन चारों में कौन-से ब्रैंड की वैल्यू कितनी है? कौन-सा ब्रैंड कितना ज्यादा पसंद किया जा रहा है। जानिए 2013 में इन चारों ब्रैंड्स की वैल्यू के बारे में।
2000 से 2013 तक कोका-कोला पहले स्थान पर है। 2013 में इसकी ब्रैंड वैल्यू चार हज़ार 752 अरब रुपए थी। 2013 में पेप्सी की ब्रैंड वैल्यू 1073 अरब रुपए, नेसकैफे की 639 अरब रुपए और स्प्राइट की 348 अरब रुपए थी।
2000 से 2008 तक कोका-कोला के बाद नेसकैफे दूसरे नंबर पर था। 2010 से स्प्राइट चौथे स्थान पर है। कम वक्त में इस पेय ने अच्छी मार्केट बनाई है।
2000 से अब तक सबसे आगे है कोका-कोला

कोका कोला -4,752 अरब
नेसकैफे - 639 अरब
पेप्सी - 1073 अरब
स्प्राइट- 348 अरब


भारत-चीन सम्बंध ‘‘इंच से मीलों की ओर’’ प्रधानमंत्री ने नई दिल्‍ली स्थित चीनी पत्रकारों से बातचीत की
17 September 2014
प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने आज नई दिल्‍ली स्थित चीनी पत्रकारों के साथ बातचीत की तथा कहा कि ‘भारत और चीन इतिहास से जुड़े हैं, संस्‍कृति द्वारा बंधे हुये हैं तथा समृद्ध परम्पराओं से प्रेरित रहे हैं। एक दूसरे के साथ मिलकर ये समस्‍त मानव जाति के लिये उज्‍ज्वल भविष्‍य का सृजन कर सकते हैं।’
प्रधानमंत्री ने हमारे द्विपक्षीय सम्‍बंधों के ‘‘इंच (भारत और चीन) से मीलों (मलेनीअम ऑफ एक्‍ससेप्सनल सिनर्जी)’’ की ओर बढ़ने की संभावनाओं का सारांश प्रस्‍तुत किया। उन्‍होंने कहा कि प्रत्‍येक इंच चलने पर हम मानवता का इतिहास फिर से लिख सकते हैं तथा प्रत्‍येक मील दर मील बढ़ने पर यह ग्रह बेहतर स्‍थान बन सकता है। उन्‍होंने उम्‍मीद जताई कि भारत और चीन मिलकर कई मीलों का रास्‍ता पार कर सकते हैं। कई मील साथ चलने पर दो देश आगे ही नहीं बढ़ते बल्कि समस्‍त एशिया तथा मानवता प्रगति तथा समन्‍वय की ओर अग्रसर होती है।
भारत और चीन की बहुसंख्‍यक जनसंख्‍या का उल्‍लेख करते हुये प्रधानमंत्री ने कहा कि जब भारत और चीन की जनसंख्‍या विश्‍व की जनसंख्‍या का करीब 35 प्रतिशत है तो भारत और चीन के सम्‍बंध मजबूत होने पर विश्‍व के 35 प्रतिशत लोग और करीब आते हैं; भारत और चीन के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ता है तो विश्‍व की 35 प्रतिशत जनसंख्‍या में गुणवत्‍ता परक परिवर्तन होता है। भारत और चीन के भावी सम्‍बंधों के बारे में पूछे गये प्रश्‍न के उत्‍तर में प्रधानमंत्री ने बताया कि हमारे सम्‍बंध महज अंकगणित से काफी दूर तक के हैं। इनके बीच अनूठी केमिस्‍ट्री है जो निर्धारक क्षण बना सकते हैं।
सम्‍बंधों की प्रकृति का खुलासा करते हुये उन्‍होंने कहा कि ‘‘हमारे सम्‍बंधों की केमिस्‍ट्री तथा अंकगणित मुझे यह आश्‍वस्‍त करता है कि हम मिलकर इतिहास रच सकते हैं तथा समस्‍त मानव जाति के लिये बेहतर कल का सृजन कर सकते हैं। ’’


दक्षेस देशों के गृह मंत्रियों और गृहसचिवों एवं अप्रवासी अधिकारियों की छठीं बैठक 17 सितंबर से काठमांडू में
17 September 2014
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) देशों के गृह मंत्रियों और सचिवों एवं अप्रवासी अधिकारियों की छठीं बैठक 17 से 19 सितंबर 2014 तक नेपाल की राजधानी काठमांडू में आयोजित होगी।
दक्षेस देशों के अप्रवासी अधिकारियों की बैठक 17 सितंबर 2014 को होगी। गृह सचिवों की बैठक 18 सितंबर 2014 जबकि गृह मंत्रियों की बैठक 19 सितंबर 2014 को होगी।
इस तीन दिवसीय बैठक के दौरान आतंकवाद को खत्‍म करने , समुद्री सुरक्षा एवं समुद्री डकैती, नशीली दवाओं और नशीले पदार्थों, भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लड़ाई, साइबर अपराध, आपराधिक मामलों में पारस्‍परिक सहयोग, महिलाओं एवं बच्‍चों की तस्‍करी और दक्षिण एशिया में बच्‍चों के कल्‍याण को बढ़ावा देने जैसे मुद्दों पर बातचीत होने की उम्‍मीद है।
सार्क देशों के आंतरिक/ गृह सचिवों की पांचवीं बैठक सितंबर 2012 में मालदीव में आयोजित हुई थी।

पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय 16-सितम्बर-2014 अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय बॉस्केट के कच्चे तेल की कीमत 15.09.2014 को घटकर 95.50 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल रही
17 September 2014
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अंतर्गत पेट्रोलियम नियोजन और विश्‍लेषण प्रकोष्‍ठ (पीपीएसी) द्वारा आज संगणित/प्रकाशित सूचना के अनुसार भारतीय बॉस्‍केट के लिए कच्‍चे तेल की अंतर्राष्‍ट्रीय कीमत 15.09.2014 को घटकर 95.50 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल रही। 12.09.2014 को यह 96.74 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल थी।
रुपये के संदर्भ में कच्‍चे तेल की कीमत 15.09.2014 को घटकर 5824.55 रुपये प्रति बैरल हो गई, जबकि 12.09.2014 को यह 5885.66 रुपये प्रति बैरल थी। रुपया कमजोर होकर 15.09.2014 को 60.66 रुपये प्रति अमरीकी डॉलर पर बंद हुआ जबकि 12.09.2014 को यह 60.84 रुपये प्रति अमरीकी डॉलर था।

पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय 16-सितम्बर-2014 अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय बॉस्केट के कच्चे तेल की कीमत 15.09.2014 को घटकर 95.50 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल रही
17 September 2014
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अंतर्गत पेट्रोलियम नियोजन और विश्‍लेषण प्रकोष्‍ठ (पीपीएसी) द्वारा आज संगणित/प्रकाशित सूचना के अनुसार भारतीय बॉस्‍केट के लिए कच्‍चे तेल की अंतर्राष्‍ट्रीय कीमत 15.09.2014 को घटकर 95.50 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल रही। 12.09.2014 को यह 96.74 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल थी।
रुपये के संदर्भ में कच्‍चे तेल की कीमत 15.09.2014 को घटकर 5824.55 रुपये प्रति बैरल हो गई, जबकि 12.09.2014 को यह 5885.66 रुपये प्रति बैरल थी। रुपया कमजोर होकर 15.09.2014 को 60.66 रुपये प्रति अमरीकी डॉलर पर बंद हुआ जबकि 12.09.2014 को यह 60.84 रुपये प्रति अमरीकी डॉलर था।

जम्‍मू-कश्‍मीर में बचाये गये लोगों की तादाद 2,37,000 के भी पार श्रीनगर से बारामूला तक का ट्रेन रूट बहाल
17 September 2014
सेना के जवानों और एनडीआरएफ ने भयावह बाढ़ से तबाह जम्‍मू-कश्‍मीर में अपने राहत एवं बचाव कार्यों के तहत राज्‍य के विभिन्‍न हिस्‍सों में अब तक 2,37,000 से भी ज्‍यादा लोगों की जान बचाई है। नौसेना के कमांडो की तीन टीम वातलब, विडिपुरा और टांकपुरा में जारी बचाव कार्यों में पूरी तरह से जुट गई हैं।
बाढ़ का पानी अब उतरने तो लगा है, लेकिन इससे जल-जनित बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ गया है। फिल्‍टर किये गये पानी की मांग बढ़ गई है। हर दिन 4 लाख लीटर को फिल्‍टर करने की क्षमता वाले 20 आरओ प्‍लांट हैदराबाद से श्रीनगर भेजे जा चुके हैं। इसी तरह हर दिन एक लाख लीटर को फिल्‍टर करने की क्षमता वाले चार आरओ प्‍लांट दिल्‍ली से श्रीनगर भेजे जा चुके हैं। जल को शुद्ध करने वाली 13 टन टैबलेट और हर दिन 1.2 लाख बोतलों को फिल्‍टर करने की क्षमता रखने वाले छह संयंत्र इससे पहले श्रीनगर भेजे गए थे। कई और भारी-भरकम जल निकासी पंप जोधपुर और रायपुर से हवाई मार्ग के जरिये घाटी भेजे गये हैं।
बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में हवाई मार्ग से कल 33000 से भी ज्‍यादा कंबल भेजे गये, जिन्‍हें कपड़ा मंत्रालय, रेड क्रॉस सोसायटी और झारखंड एवं पंजाब की सरकार ने प्रदान किया है। इससे पहले बाढ़ से पीड़ित लोगों के बीच 17,500 कंबल बांटे गए थे। इसी तरह इन लोगों को 2106 टेंट मुहैया कराए गए थे। सशस्‍त्र बल चिकित्‍सा सेवाओं की 80 टीम जोर-शोर से अपने काम में जुटी हुई हैं। अवंतिपुर, पट्टन, अनंतनाग और ओल्‍ड एयरफील्‍ड में चार फील्‍ड हॉस्पिटल खोले गए हैं जहां रोगियों को चिकित्‍सा सेवा मुहैया कराई जा रही है। अब तक इन्‍होंने तकरीबन 75,254 मरीजों का इलाज किया है। रांची एवं दिल्‍ली से 17200 कंबल, पठानकोट से 4,000 लीटर पानी और पठानकोट एवं दिल्‍ली से 120 टन खाद्य पदार्थ समेत कुछ और राहत सामग्री हवाई मार्ग से भेजी जा रही है। भारतीय वायु सेना और आर्मी एविएशन कोर के 64 परिवहन विमान एवं हेलिकॉप्‍टर राहत और बचाव कार्य में लगे हुए हैं। सेना ने तकरीबन 30 हजार सैनिकों को राहत और बचाव कार्यों में लगाया है। रक्षाकर्मी बड़े पैमाने पर पानी की बोतलें और खाद्य पैकेट वितरित कर रहे हैं। अब तक तकरीबन 6 लाख लीटर पानी एवं 1400 टन से ज्‍यादा खाद्य पैकेट/पके खाद्य पदार्थ बाढ़ पीडि़तों के बीच वितरित किए जा चुके हैं। रक्षाबलों ने श्रीनगर और जम्मू क्षेत्र में 19 राहत शिविर भी लगाए हैं। श्रीनगर क्षेत्र में बीबी कैंट, अवंतिपुर, ओल्ड एयरफील्ड, सुम्बल, छत्रगाम और जीजामाता मंदिर में शिविर लगाए गए हैं, जहां बाढ़ की त्रासदी से बचाए गए हजारों लोगों ने शरण ले रखी है। इन सभी को खाद्य पदार्थ एवं अन्य बुनियादी सुविधाएं मुहैया करायी जा रही हैं। सड़क संपर्क बहाल करने के लिए सीमा सड़क संगठन के पांच कार्यदल, जिनमें 5700 कर्मी शामिल हैं, श्रीनगर, रजौरी और अखनूर में तैनात किए गए हैं। उन्‍होंने बटोटे-बिजबियारा, बटोटे-अनंतनाग, बटोटे-किश्‍तवार और किश्‍तवार-सिंथन पास वाले सड़क संपर्क को सफलतापूर्वक बहाल कर दिया है। श्रीनगर-सोनामार्ग सड़क संपर्क को सभी तरह के वाहनों के लिए खोल दिया गया है। वहीं, श्रीनगर-बारामूला सड़क को हल्के वाहनों के लिए खोल दिया गया है। जम्‍मू-पूंछ मार्ग को यातायात के लिए चालू कर दिया गया है।
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में स्थितियों पर लगातार नजर रखी जा रही है। वहीं नई दिल्‍ली स्थित आईडीएस के मुख्‍यालय में सुधरते हालात को अपडेट किया जा रहा है।

पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय 16-सितम्बर-2014 अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय बॉस्केट के कच्चे तेल की कीमत 15.09.2014 को घटकर 95.50 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल रही
17 September 2014
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अंतर्गत पेट्रोलियम नियोजन और विश्‍लेषण प्रकोष्‍ठ (पीपीएसी) द्वारा आज संगणित/प्रकाशित सूचना के अनुसार भारतीय बॉस्‍केट के लिए कच्‍चे तेल की अंतर्राष्‍ट्रीय कीमत 15.09.2014 को घटकर 95.50 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल रही। 12.09.2014 को यह 96.74 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल थी।
रुपये के संदर्भ में कच्‍चे तेल की कीमत 15.09.2014 को घटकर 5824.55 रुपये प्रति बैरल हो गई, जबकि 12.09.2014 को यह 5885.66 रुपये प्रति बैरल थी। रुपया कमजोर होकर 15.09.2014 को 60.66 रुपये प्रति अमरीकी डॉलर पर बंद हुआ जबकि 12.09.2014 को यह 60.84 रुपये प्रति अमरीकी डॉलर था।

‘असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा समय की जरूरत है’- डॉ. पी.जे. सुधाकर, अपर महानिदेशक, पीआईबी भोपाल
17 September 2014
असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा समय की जरूरत है। क्षेत्रीय रेलवे वेल्डिंग संस्थान भोपाल में राष्ट्रीय श्रमिक शिक्षा दिवस समारोह को संबोधित करते हुए डॉ. पी.जे. सुधाकर, अपर महानिदेशक, पीआईबी भोपाल ने कहा श्रमिक शिक्षा से श्रमिकों का सशक्तिकरण होता है और वह उन्हें प्रबंधन में जगह दिलाता है। वहां पर बदलते आर्थिक परिदृश्य में श्रमिका शिक्षा की भूमिका विषय पर आयोजित सेमिनार का उद्घाटन करने के बाद श्रमिकों की सुरक्षा और उनका स्वास्थ्य सरकार की उच्च प्राथमिकता है। इसका प्रावधान भारतीय संविधान की धारा 36 से 51 तक में की गई है। श्रमिक भारतीय उद्योग के आधार स्तंभ हैं और वे देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। भारतीय संसद ने श्रमिकों की सुरक्षा के लिए बहुत से कदम उठाए हैं जिनमें प्रमुख हैं- कामगार मुआवजा अधिनियम, 1923, प्रसूति लाभ अधिनियम, 1961, कर्मचारी पेंशन योजना 1995, कर्मचारी राज्य बीमा योजना, अधिनियम, 1948, ग्रैच्युटी भुगतान कानून 1972 इत्यादि।
इस मौके पर बोलते हुए केंद्रीय श्रमिक शिक्षा बोर्ड, भोपाल के क्षेत्रीय निदेशक असीम बनर्जी ने कहा अपने 304 लक्षित श्रमिक शिक्षा कार्यक्रमों में से बोर्ड ने 130 कार्यक्रम गांवों में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के बीच किया। उन्होंने कहा कि भारत में 43 करोड़ श्रमिक असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। कार्यक्रम में शिरकत करते हुए भारतीय मजदूर संघ के नेता ज्ञान प्रकाश तिवारी ने कहा कि असंगठित क्षेत्र के बहुत सारे श्रमिक मनरेगा में काम करते हैं। मीडिया विश्लेष्क वीरेंद्र ने कहा कि श्रमिकों को शिक्षित बनाने में मीडिया का बड़ा रोल है। डॉ. जी.बी. भाले राव, शिक्षा अधिकारी, केंद्रीय श्रमिक शिक्षा बोर्ड, भोपाल ने इस समारोह और यहां पर आयोजित सेमिनार के उद्देश्यों से लोगों को परिचित कराया।
डॉ. पी.जे. सुधाकर, अपर महानिदेशक, पीआईबी भोपाल बदलते आर्थिक परिदृश्य में श्रमिका शिक्षा की भूमिका पर बोलते हुए। केंद्रीय श्रमिक शिक्षा बोर्ड, भोपाल के क्षेत्रीय निदेशक असीम बनर्जी और भारतीय मजदूर संघ के नेता ज्ञान प्रकाश तिवारी।
डॉ. पी.जे. सुधाकर, अपर महानिदेशक, पीआईबी भोपाल बदलते आर्थिक परिदृश्य में श्रमिका शिक्षा की भूमिका पर बोलते हुए। केंद्रीय श्रमिक शिक्षा बोर्ड, भोपाल के क्षेत्रीय निदेशक असीम बनर्जी और भारतीय मजदूर संघ के नेता ज्ञान प्रकाश तिवारी।

 
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