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लीगल डाइजेस्ट

सुप्रीम कोर्ट ने CBI-ED के दुरुपयोग से जुड़ी याचिका पर सुनवाई से किया इनकार
5 April 2023
सुप्रीम कोर्ट ने ED-CBI के दुरुपयोग से जुड़ी कांग्रेस के नेतृत्व में 14 विपक्षी दलों की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है। इसके बाद विपक्षी दलों ने अपनी याचिका वापस ले ली। याचिका में विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों के मनमाने उपयोग का आरोप लगाया गया था। याचिका में गिरफ्तारी, रिमांड और जमानत जैसे मामलों को नियंत्रित करने वाले दिशा-निर्देशों का नया सेट जारी करने की मांग की गई थी।
विपक्षी दलों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि 2013-14 से 2021-22 तक CBI और ED के मामलों में 600 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ED की ओर से 121 राजनीतिक नेताओं की जांच की गई है, जिनमें से 95 प्रतिशत नेता विपक्षी दलों से हैं। CBI की 124 जांचों में से 95 प्रतिशत से अधिक विपक्षी दलों से हैं। सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राजनीतिक विरोध की वैधता पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट ने सिंघवी से पूछा कि क्या हम इन आंकड़ों की वजह से कह सकते हैं कि कोई जांच या कोई मुकदमा नहीं होना चाहिए? क्या नेताओं को इससे अलग रखा जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अंततः एक राजनीतिक नेता मूल रूप से एक नागरिक होता है और नागरिकों के रूप में हम सभी एक ही कानून के अधीन हैं। इस पर सिंघवी ने कहा कि पक्षकार नहीं चाहते कि याचिका से भारत में कोई लंबित मामला प्रभावित हो और वे मौजूदा जांच में हस्तक्षेप करने के लिए भी नहीं कह रहे हैं।


न्यायालयों में 14 जुलाई को लगेगी राष्ट्रीय लोक अदालत
22 May 2018
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा उच्च न्यायालय, जिला न्यायालयों, तालुका, श्रम और कुटुम्ब न्यायालयों में 14 जुलाई 2018 को राष्ट्रीय लोक अदालत लगाई जाएगी। लोक अदालत में लम्बित प्रकरण अपराधिक, शमनीय, पराक्राम्य अधिनियम के तहत बैंक रिकवरी, मोटर दुर्घटना क्षतिपूर्ति दावा प्रकरण, श्रम विवाद, विद्युत एवं जल कर, वैवाहिक, भूमि अधिग्रहण, सेवा निवृत्त संबंधी, राजस्व और दीवानी आदि मामलों की सुनवाई होगी। न्यायालय में लम्बित एवं मुकदमेबाजी के पूर्व (प्री-लिटिगेशन) प्रकरण का समाधान आपसी सहमति से लोक अदालत में करवाने के इच्छुक पक्षकार न्यायालय अथवा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से सम्पर्क कर अपना मामला लोक अदालत में रखे जाने की सहमति दे सकते हैं। न्यायालयों में 14 जुलाई को आयोजित की जा रही राष्ट्रीय लोक अदालत में दीवानी, अपराधिक और शमनीय मामलों सहित सभी प्रकार के ऐसे मामले रखे जायेंगे, जिनमें पक्षकार सौहार्दपूर्ण वातावरण में प्रकरणों का निराकरण कराने का प्रयास कर सकेंगे।
वकालत के क्षेत्र को धनार्जन के बजाये सेवा का क्षेत्र बताया - राम जेठमलानी
राम जेठमलानी ने किया जेएलयू नेशनल मूट कोर्ट कॉम्पिटिशन का शुभारंभ
जेएलयू नेशनल मूट कोर्ट कॉम्पिटिशन का उद्घाटन समारोह

18 Feb. 2017
जागरण लेकसिटी यूनिवर्सिटी में भूतपूर्व कानून मंत्री एवं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राम जेठमलानी ने मूटकोर्ट कार्यक्रम का उद्घाटन किया | यहां उपस्थित जन समूह को संबोधित करते हुए उन्होंने अपने वृहद् अनुभव और विचार साझा किये | माननीय जेठमलानी जी ने देश के विभाजन और आपातकाल के समय के दुखद अनुभवो को छात्रों एवं उपस्थित जनसमूह के साथ साझा किया| उन्होंने वकालत के क्षेत्र को धनार्जन के बजाये सेवा का क्षेत्र बताया| उन्होंने वकालत के पेशे के दौरान हुए कुछ व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करते हुए इसकी गरिमा की चर्चा की| अपने भाषण में उन्होंने लॉ स्टूडेंट के जीवन में मूट कोर्ट अभ्यास को महत्वपूर्ण बताया | साथ ही इस बात पर जोर दिया कि स्टूडेंट्स वकालत के क्षेत्र को करियर के रूप में चुने क्योंकि इससे उनका भविष्य उज्जवल होगा |
जेठमलानी जी ने विधि की शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्रों से आव्हान किया की वे अधिक से अधिक समय व्यावहारिक ज्ञानार्जन के ऊपर ध्यान दें और इस संघर्ष में अपने 5 मत्वपूर्ण वर्षों में इनका सही निवेश करें | जेठमलानी जी ने स्कूल ऑफ़ लॉ को नेशनल मूट कोर्ट आयोजित करने के लिए बधाई भी दी | | देश भर से 40 प्रतिष्ठित लॉ संस्थानों सहित कई महत्वपूर्ण प्राइवेट यूनिवर्सिटीयों के साथ नेशनल लॉ विश्वविद्यालय भी भाग ले रहे हैं| विजेता टीम को 1.5 लाख रुपये नकद राशि मिलेगी जबकि उप विजेता को 1.00 लाख रुपये दिए जायेंगे| इसके अलावा बेस्ट रिसर्चर, बेस्ट स्पीकर एवं बेस्ट मेमोरियल के लिए प्रत्येक को 25,000 रुपये दिए जायेंगे| कानून के विभिन्न क्षेत्रो जैसे बार, बेंच, शिक्षा व् उद्योग जगत की अनेक प्रख्यात हस्तियों को प्रतियोगिता के प्रिलिमनरी, क्वार्टर फाइनल, सेमी फाइनल तथा फाइनल राउंड्स को जज करने के लिए आमंत्रित किया गया है |

जेएलयू भोपाल के चांसलर श्री हरिमोहन गुप्ता ने यूनिवर्सिटी के विज़न स्टेटमेंट "ज्ञान से बढ़कर कोई शक्ति नहीं होती " पर अपने विचार रखे कि किस तरह युवाओं को प्रतिस्पर्धा के दौरान भी अपने ज्ञान कौशल को बढ़ाते रहना चाहिए| उन्होंने स्टूडेंट्स को जीवन के सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ते रहने के लिए कंपीटिटिव एप्टीट्यूड का विकास करने और नतीजे की परवाह ना करते हुए जीवन मूल्यों का विकास करने को कहा | यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर प्रो. (डॉ.) अनूप स्वरुप ने शिक्षा के साथ-साथ पेशेवर अभ्यास की भूमिका पर जोर दिया| उन्होंने समझाया कि किस तरह मूट कोर्ट का अभ्यास बडिंग लॉयर्स को उनके इस क्षेत्र में सफलता से रूबरू करायेगा | साथ ही उन्होंने स्टूडेंट्स को सुझाव दिए कि इस तरह की प्रतियोगिताएं में लगातार भाग लेते रहे जहाँ तुरंत परिणाम के साथ प्रतिक्रिया भी प्राप्त होती है |
माननीय जेठमलानी जी ने इस अवसर पर देश की पहली "अधिवक्ता राम जेठमलानी चेयर ऑफ़ क्रिमिनल लॉ एंड क्रिमिनल जस्टिस" की सहमति देते हुए एक एमओयू पर हस्ताक्षर किये|
समारोह में यूनिवर्सिटी के चांसलर, वाईस चांसलर, सीईओ, डीन एकेडेमिक्स व अन्य फैकल्टी मेंबर स्टाफ सहित मौजूद रहे| स्वागत उद्बोदन डीन एकेडेमिक्स द्वारा दिया गया | कार्यक्रम के अंत में स्कूल ऑफ़ लॉ की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शोभा भारद्धाज ने धन्यवाद् ज्ञापन दिया |


सबसे बड़ी पुरस्कार राशि के लिए पहली बार 40 लॉ स्कूलों में घमासान,
वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी उद्घाटन करेंगे
भारत की सबसे बड़ी मूट कोर्ट प्रतियोगिता

16 Feb. 2017
स्कूल ऑफ़ लॉ , जागरण लेकसिटी यूनिवर्सिटी, भोपाल के द्वारा राष्ट्रीय स्तर की मूट कोर्ट प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है, जिसे कई अग्रणी लॉ संस्थायों से जम कर सरहना मिल रही है| देश भर से 40 प्रतिष्ठित लॉ संस्थानों सहित कई महत्वपूर्ण प्राइवेट यूनिवर्सिटीयों के साथ नेशनल लॉ विश्वविद्यालय भी भाग ले रहे हैं|
यह उल्लेखनीय है की 40 टीमों की अधिकतम सीमा के बावजूद 60 से अधिक टीमों ने संपर्क किया था| मूट कोर्ट प्रतियोगितायों के इतिहास में पहली बार भारत में कोई संस्थान 3.25 लाख रुपये की शानदार इनामी राशि दे रहा है| विजेता टीम को 1.5 लाख रुपये नकद राशि मिलेगी जबकि उप विजेता को 1.00 लाख रुपये दिए जायेंगे| इसके अलावा बेस्ट रिसर्चर, बेस्ट स्पीकर एवं बेस्ट मेमोरियल के लिए प्रत्येक को 25,000 रुपये दिए जायेंगे|
कानून के विभिन्न क्षेत्रो जैसे बार, बेंच, शिक्षा व् उद्योग जगत की अनेक प्रख्यात हस्तियों को प्रतियोगिता के प्रिलिमनरी, क्वार्टर फाइनल, सेमी फाइनल तथा फाइनल राउंड्स को जज करने के लिए आमंत्रित किया गया हैं| उद्घाटन व् समापन सत्रों में अनेक महत्त्वपूर्ण अतिथियों में जस्टिस, सीनियर एडवोकेट्स, शिक्षाविदों के साथ ही वाईस चांसलर्स भी उपस्थित रहेंगे|
उद्घाटन समारोह का आयोजन 17 फरवरी 2017 के दिन अपराह्न 4 बजे से किया जायेगा | समारोह में राज्य सभा सांसद, पूर्व विधि मंत्री एवं वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय श्री राम जेठमलानी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे | मूट प्रॉब्लम :- सविधान के अनुच्छेद के 19(1)(a) और सिनेमाटोग्राफ एक्ट को मूट प्रॉब्लम बनाया गया है|
अनाथ बच्चा पोंटोस देश का सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलर बन जाता है| वो अपने स्ट्रगल को बायोपिक के जरिये दिखाना चाहता है| फिल्म जब सेंसर के पास जाती है तो उसे ‘A’ सर्टिफिकेट दे देते है| फुटबॉलर प्रोड्यूसर के विरुद्ध केस करता है|
विनम्र निवेदन है कि कार्यक्रम के वृहद् कवरेज हेतु प्रेस फोटोग्राफर और संवाददाताओं की नियुक्ति करना सुनिश्चित करें |


भारत का संविधान एक जीवंत दस्‍तावेज, पत्‍थरों पर लिखा अवशेष नहीं : राष्‍ट्रपति
19 April 2016
राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (16 अप्रैल, 2016) भोपाल में राष्‍ट्रीय न्‍यायिक अकादमी में सर्वोच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों की चौथी रिट्रीट का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर बोलते हुए राष्‍ट्रपति महोदय ने रिट्रीट के आयोजन के लिए, भारत के मुख्‍य न्‍यायाधीश एवं अन्‍य साथी न्‍यायाधीशों को बधाई दी। यह रिट्रीट कानूनी विवादों एवं न्‍याय निर्णयन के वैश्विक एवं अंतरराष्‍ट्रीय तत्‍वों के साथ-साथ देश के सामने मौजूद समसामयिक चुनौतियों पर विचार-विमर्श करने के लिए एक मंच प्रदान करेगा। उन्‍होंने कहा कि इस तरह का विचार-विमर्श एवं प्रतिक्रिया महत्‍वपूर्ण हैं, साथ ही, यह न्‍यायाधीशों को समय के साथ तालमेल बनाए रखने में सक्षम बनाता है और तेजी से बदलती दुनिया में निष्‍पक्ष एवं कारगर न्‍याय प्रदान करने में समर्थ बनाता है।
राष्‍ट्रपति महोदय ने कहा कि न्‍यायपालिका, जो हमारे लोकतंत्र के तीन महत्‍वपूर्ण्‍स्‍तंभों में से एक है, संविधान और कानूनों की अंतिम व्‍याख्‍याता है। यह गैर कानूनी कार्य करने वालों से तेजी से तथा प्रभावी तरीके से निपटने के द्वारा सामाजिक व्‍यवस्‍था को बनाए रखने में मदद करती है। लोगों ने न्‍यायपालिका में जो विश्‍वास और भरोसा जताया है उसे हमेशा बरकरार रखा जाना चाहिए। लोगों के लिए न्‍याय सा‍र्थक हो, इसके लिए जरूरी है कि यह सुविधापूर्ण, किफायती एवं त्‍वरित हो।
राष्‍ट्रपति महोदय ने कहा कि भारत में हमारे पास एक लिखित संविधान है जो एक जीवंत दस्‍तावेज है न कि पत्‍थर पर लिखा गया कोई अवशेष। उन्‍होंने कहा कि भारत जैसे विकासशील देश की परिस्थितियों को देखते हुए हमारी न्‍यायपालिका ने न्‍याय के दायरे को विस्‍तारित कर दिया है। उन्‍होंने कहा कि मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने न्‍यायिक अन्‍वेषणों एवं कार्यशीलता के जरिये ‘अधिस्थिति’ के सामान्‍य विधि सिद्धांत को विस्‍तारित किया है।



मानव संसाधन विकास मंत्रालय न्यायिक आयोग का गठन करेगा
25 January 2016
अवलोकन और निष्कर्षों के आधार पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक न्यायिक आयोग गठित करने का निर्णय किया है ताकि पूरे घटनाक्रम और परिस्थितियों की समीक्षा की जा सके तथा तथ्य नियत किए जा सकें। न्यायिक आयोग अपनी रिपोर्ट तीन महीने के अंदर दे देगा।
मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति जुबीन इरानी ने आज युवा शोधार्थी रोहित की मां से बातचीत की और अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं।
उच्च शिक्षा संस्थानों में कमजोर सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पृष्ठभूमि वाले छात्रों की समस्याओं को हल करने तथा भविष्य में इस तरह की दुर्भाग्यशाली घटनाओं को रोकने के लिए मंत्रालय ने निम्नलिखित उपाय करने का फैसला किया हैः-
अकादमिक प्रशासकों को संवेदनशील बनाने और सामाजिक शैक्षिक तथा आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों की समस्याओं को हल करने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया जाएगा। सभी वार्डनों, प्रशासनिक स्टॉफ और रजिस्ट्रारों को अनिवार्य रूप से इस कार्यक्रम में हिस्सा लेना होगा। इसके लिए एक विशेष मॉड्यूल बनाया जाएगा।
मंत्रालय में एक विशेष प्रणाली गठित की जाएगी ताकि इन छात्रों से मिलने वाली शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई की जा सके।
सभी उपकुलपतियों और वरिष्ठ प्रशासकों को इस बात के लिए जागरूक किया जाएगा कि वे सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से वंचित छात्रों की समस्याओं को समझ सकें। परिसर में किसी भी प्रकार के भेदभाव को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस संबंध में सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को एक विशेष चार्टर जारी किया जाएगा।
सभी उच्च शिक्षा संस्थानो को आईआईटी गांधीनगर का पीयर-ग्रुप असिस्टेड लर्निंग (पीएएल) दिया जाएगा। इसके अंतर्गत सामाजिक और शैक्षिक रूप से वंचित छात्रों के लिए सलाहकारों की व्यवस्था की जाएगी, जो न केवल उन्हें शिक्षा के संबंध में सहायता देंगे बल्कि संस्थानों में उनके द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों के लिए समर्थन भी देंगे।

संसद में नारेबाजी, सड़कों पर बहस, आज की विसंगति : सीतासरन शर्मा
Our Correspondent :27 November 2015
मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष श्री सीतासरन शर्मा का कहना है कि संसद व विधानसभाओं का महत्व बनाए रखने से ही संविधान के उद्देश्यों व लोकतंत्र की गरिमा बढ़ेगी। आज संसद में नारेबाजी होती है और सड़कों पर बहस होती है, यह आज की विसंगति है। जबकि संसद में बहस और विमर्श ही हमारे लोकतंत्र का प्राण है।
श्री शर्मा आज माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा संविधान दिवस के अवसर पर आयोजित व्याख्यान में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने 'भारतीय संविधान: नागरिक के दायित्व और अधिकार' विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जब धर्म की व्यवस्था में हम परिवर्तन कर सकते हैं, तो समयानुकूल संवैधानिक परिवर्तन भी आवश्यक है, उन्हें टाला नहीं जा सकता है। परिवर्तन जीवन का नियम है। जहाँ तक संविधान का सवाल है तो परिस्थिति एवं सामाजिक परिवर्तन के मद्देनजर अमेरिका में जहाँ 200 वर्षों में 27 संविधान संशोधन हुए हैं, वहीं हमारे देश में आजादी के बाद अभी तक 100 संविधान संशोधन हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि संविधान को संचालित करने वाले योग्य व्यक्ति हों और वह संविधान की मंशा के अनुरूप प्रावधनों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करे। उन्होंने कहा कि आज देश दिशा पकड़ने की ओर अग्रसर है। इसमें युवाओं की महती भूमिका होगी। संविधान में समाजवाद के नाम पर निहित छद्म समाजवाद से हमें बचना होगा। तभी हम बाबा साहब अम्बेडकर की परिकल्पनाओं को मूल रूप से साकार कर पाएँगे।
श्री शर्मा ने कहा कि भारत का संविधान दुनिया में विशिष्ट माना जाता है। डॉ. आम्बेडकर ने कहा था कि संविधान कितना भी अच्छा बना लो यदि उसे चलाने वाले लोग अच्छे नहीं होंगे तो वह चल नहीं सकता है। संविधान में जन आवश्यकताओं एवं बदली हुई परिस्थिति के अनुरूप अनेक परिवर्तन भी किये गये। आपातकाल के दौरान संविधान में 'सोशलिस्ट' एवं 'सेक्यूलर' शब्द जोड़ा गया जो उचित नहीं है। यह प्रावधान तो संविधान में पहले से ही समाहित था। उन्होंने कहा कि संविधान में हम भारत के लोग, कहा गया है। परन्तु आज 'हम' का स्थान 'एनजीओ' ने ले लिया है जो ठीक नहीं है। आज ज्यादातर याचिकायें नागरिकों द्वारा नहीं बल्कि 'एनजीओ' द्वारा लगाई जा रही हैं। उन्होंने पत्रकारिता के विद्यार्थियों से कहा कि भविष्य में 'लोकतंत्र का चैथा स्तंभ' सबसे अधिक शक्तिशाली होगा। आप लोगों को बहुत जिम्मेदारी के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन करना होगा।
समारोह के मुख्य वक्ता हरियाणा एवं पंजाब उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश डॉ. भारत भूषण प्रसून ने कहा कि भारत के संविधान का सम्बन्ध भारतीयों की अंतरात्मा से है। संविधान हमारे जीवन के अंग-अंग से जुड़ा है। संविधान भारतीयों के सपनों को संजोये हुये है। इसे व्यक्ति की आवश्यकता के अनुरूप ढाला गया है। भारतीय संविधान को समझने के लिये हमें संविधान के पीछे छिपे उसके मूल भाव को समझना होगा। न्यायमूर्ति प्रसून ने कहा कि 26 नवंबर, 1949 को भारत के संविधान को अंगीकार किया गया। 1979 से डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी की पहल पर यह दिन कानून दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा के बाद यह दिवस संविधान दिवस के रूप में भी मनाये जाने का निर्णय लिया गया है।
उन्होंने बताया कि भारतीयता का भारतीय संविधान के साथ एक अटूट बन्धन है। संविधान निर्माताओं ने संविधान की प्रस्तावना में हम भारत के लोग, उल्लेखित किया। संविधान में इस देश के नागरिकों के दायित्वों को भी उल्लेखित किया गया है और इन दायित्वों के निर्वहन के लिये उसे अधिकार भी देता है। संविधान ही देश के सबसे निचले पायदान पर बैठे व्यक्ति को यह अवसर प्रदान करता है कि वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया से देश का सर्वोच्च पद हासिल कर सकता है। अंग्रेजों की अवधारणा थी कि भारतीय अपना संविधान नहीं बना सकते हैं और यदि बना भी लें तो उसे चला नहीं सकते हैं। हमारे संविधान निर्माताओं और देश के प्रत्येक नागरिक ने अंग्रेजों के इस दावे को गलत साबित किया। हमारे देश के संविधान के बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि हमने विभिन्न देशों के संविधान से अनेक प्रावधानों को लेकर भारत का संविधान बना लिया। संविधान निर्माता डॉ. आम्बेडकर ने कहा कि हमने दुनिया के संविधानों से किन्हीं प्रावधानों को चुराया नहीं है बल्कि उन्हें भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल डालकर अंगीकार किया है। हमारे संविधान का एक अनूठा पहलू लचीलापन है। अमेरिका के संविधान में अब तक न्यूनतम संशोधन हुए हैं जबकि हमारे देश में 100 संशोधन हो चुके हैं। इसके पीछे मूल भाव यह है कि हम समय एवं परिस्थितियों के अनुसार नागरिकों के हित में संविधान में संशोधन करते रहते हैं। संविधान में देश की महिलाओं एवं कमजोर वर्गों को भी संरक्षण देने का प्रावधान किया गया है जो एक अनूठा पहलू है एवं दुनिया के किसी और देश में नहीं है।
अध्यक्षीय संबोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि संविधान देश के नागरिकों को अपनी इच्छानुसार जीवन जीने का अधिकार प्रदान करता है और जन इच्छाओं के अनुरूप ही संविधान में संशोधन भी किये जाते हैं। जब हमारे पास लिखित संविधान नहीं था तब भी हमारा राष्ट्र किसी न किसी विधान पर चलता था और उस समय प्रकृति के नियम पर चलना ही विधान माना जाता था। संविधान में कई कमियां हो सकती हैं परन्तु उसके बाद भी यह सर्वश्रेष्ठ है। संविधान में किये गये प्रावधानों पर चलकर ही भारत विश्व को नेतृत्व प्रदान करेगा।
कार्यक्रम में विश्वविद्यालय कुलाधिसचिव श्री लाजपत आहूजा, कुलसचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, वरिष्ठ पत्रकार सर्वश्री सर्वदमन पाठक, शिवहर्ष सुहालका, जी. के. छिब्बर, सरमन नगेले, महेन्द्र गगन, सुरेश गुप्ता, शाकिर नूर, डॉ. रामजी त्रिपाठी, साकेत दुबे सहित विश्वविद्यालय के शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी, विद्यार्थी एवं नगर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया।


सीबीआई, भोपाल द्वारा “प्रिवेंटिव विजिलिएंस एज अ टूल ऑफ गुड गवर्नेंस” पर सेमिनार का आयोजन
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), भोपाल द्वारा बुधवार को “प्रिवेंटिव विजिलिएंस एज अ टूल ऑफ गुड गवर्नेंस” विषय पर ऑफिसर्स ट्रेनिंग कॉलेज ऑडिटोरियम, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, अरेरा हिल्स, भोपाल में एक सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति पी.पी. नवलेकर, लोकायुक्त, मध्य प्रदेश ने कहा कि भ्रष्टाचार के उन्मूलन में समाज की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि वर्षों बाद भी भ्रष्टाचार के प्रति लोगों की सोच में कोई बदलाव नहीं आया है। उन्होंने अफसोस जताया कि लोगों को अपने अधिकार को पाने के लिए भी रिश्वत देनी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि देश की छवि को बेहतर बनाना है तो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना बेहद जरूरी है।
सेमिनार में बोलते हुए पत्र सूचना कार्यालय, भोपाल के अपर महानिदेशक डॉ. पी.जे. सुधाकर ने कहा कि भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने के लिए इसके खिलाफ आजादी की लड़ाई की तरह ही एक जन आंदोलन चलाने की जरूरत है।
सेमिनार में अन्य वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने के लिए जो भी कानून बनाए गए हैं, उनका समुचित एवं प्रभावशाली ढंग से पालन किए बिना इसपर अंकुश नहीं लग सकता है, इसलिए जरूरी है कि इन कानूनों का समुचित क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाए। सेमिनार को सीबीआई के मनोज कुमार सिन्हा ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम में सीबीआई, भोपाल के अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने हिस्सा लिया।



हिन्दी में मिलेंगे हाईकोर्ट के फैसले
भोपाल। मप्र हाईकोर्ट के ढाई लाख केस का डाटा अब ऑनलाइन देखा जा सकेगा। साथ ही हाईकोर्ट से जुड़ी समस्त सूचनाओं से लेकर याचिका लगने और सुनवाई होने की जानकारी ऑनलाइन मिल सकेगी। हाईकोर्ट के फैसलों की नकल हिन्दी में डालने की व्यवस्था भी जल्द शुरू होगी।
विधि विभाग के प्रमुख सचिव वीरेंदर सिंह, हाईकोर्ट के पिं्रसिपल रजिस्ट्रार मनोहर ममतानी ने बताया कि हाईकोर्ट की वेबसाइट और सिस्टम कंप्यूटराइज्ड हो गया है।

ढाई लाख केस पेंडिंग

हाईकोर्ट की तीनों बेंचों में ढाई लाख केस लंबित हैं। नए सिस्टम में प्रत्येक केस की जानकारी दर्ज है। इन लंबित केस में 30 से 40 प्रतिशत अगले कुछ साल में खत्म हो जाएंगे। प्रति जज केस सुनवाई संख्या बढ़ेगी।

सरकार में तालमेल

नई व्यवस्था में लंबित और नए मामलों में हर विभाग से समन्वय रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के प्रकरणों का पता रहेगा। इससे विभागों में जानकारी के अभाव में होने वाली देरी खत्म हो जाएगी।



आयोग ने दिया अपीलीय अधिकारी पर कार्रवाई के निर्देश
-लोक सूचना अधिकारी को कारण बताओ नोटिस

राज्य सूचना आयोग ने लोक हित से संबंधित प्रकरण में प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश को खारिज करने के साथ अपीलीय अधिकारी और तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध कड़ी टिप्पणी करते हुए कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने अपीलार्थी की अपील मंजूर करते हुए निर्देशित किया है कि प्रथम अपीलीय अधिकारी, उप संचालक कृषि को सम लोक सूचना अधिकारी मानते हुए उनके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई के लिए संचालक, कृषि, भोपाल को लिखा जाए एवं तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी सहायक संचालक, कृषि को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाए कि धारा 7 का उल्लंघन करने के कारण क्यों न उन पर धारा 20 (1) के तहत जुर्माना लगाया जाए।
आयुकत आत्मदीप ने सुनवाई के बाद पारित फैसले में लोक सूचना अधिकारी को आदेशित किया है कि वे अपीलार्थी को लोकहित में चाही गई जानकारी नि:शुल्क उपलब्ध करा कर पालन प्रतिवेदन व कारण बताओ नोटिस का जवाब 14 अटूबर की सुनवाई में पेश करें। फैसले में कहा गया है कि उप संचालक, कृषि, दतिया डी. आर. राजपूत ने प्रथम अपील निरस्त करने तथा अपीलार्थी को वांछित जानकारी न देने के अलग-अलग तिथियों में पृथक-पृथक कारण बताए हैं जो विधिसम्मत व न्यायोचित नहीं हैं। प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा पदीय दायित्व के निर्वहन में गंभीर श्रेणी की विफलता प्रदर्शित की गई है तथा आरटीआई कानून की अवहेलना व अवमानना की गई है।
आत्मदीप ने अपीलार्थी के तर्क को स्वीकार करते हुए आदेश में कहा कि मांगी गई जानकारी भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन एवं व्यापक लोकहित में है। अपीलार्थी ने शासकीय योजनाओं के तहत लोकधन से लोक हित में कराए गए कामों की जानकारी चाही है जिसे प्रदाय करना शासकीय कार्यांे में पारदर्शिता लाने, अनियमितताएं रोकने व सरकारी तंत्र को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने की दृष्टि से आवश्यक है। ऐसी जानकारी चाहना और उसे प्रदान करना सूचना का अधिकार कानून के मूल उद्देश्य की पूर्ति में सहायक सिद्ध होगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्देशित किया है कि पारदर्शिता ऐसा मानक है कि जिसे जनहित के सभी सार्वजनिक कार्यों में तो अपनाया ही जाना चाहिए।
अपीलार्थी खुमान सिंह बेचैन ने बुंदेलखंड पैकेज के तहत कृषि विभाग द्वारा दतिया जिले में कराए गए कुआ निर्माण, रबी-खरीफ बीज ग्राम प्रशिक्षण, जैविक ग्राम कृषक प्रषिक्षण, आइसोपाम योजनांतर्गत स्टाफ व कृषक प्रषिक्षण, सिंचाई व स्प्रिंकलर पाइप अनुदान वितरण आदि से संबंधित जानकारी मांगी थी। सहायक संचालक, कृषि द्वारा अपूर्ण शुल्क सूचना भेजने तथा चाही गई जानकारी न देने पर की गई प्रथम अपील उप संचालक, कृषि ने इस आधार पर खारिज कर दी कि अपीलार्थी द्वारा चाही गई जानकारी धारा 8 की उप धारा सी,बी,घ,ङ़ के अंतर्गत आती है जो नहीं दी जा सकती।
इस आदेश के विरुद्ध द्वितीय अपील होने पर उप संचालक ने आयोग के समक्ष दलील दी कि अपीलार्थी के शासकीय सेवा में होने से उन्हें जानकारी प्रदाय नहीं की गई और उनकी प्रथम अपील निरस्त की गई। फिर दलील दी कि अपीलार्थी को सेवानिवृत्त होने के बाद जानकारी इसलिए नहीं दी गई, क्योंकि अपीलार्थी का आवेदन उप संचालक, कृषि को संबोधित है जो लोक सूचना अधिकारी नहीं हैं बल्कि अपीलीय अधिकारी हैं।
आत्मदीप ने प्रथम अपीलीय अधिकारी, उप संचालक, कृषि के आदेष को लोक हित व न्यायहित में निरस्त कर दिया है। आयुक्त ने फैसले में कहा है कि प्रथम अपीलीय अधिकारी ने अपील का निराकरण विधि अनुसार नहीं किया। उनके आदेश का कोई विधिक औचित्य सिद्ध नहीं होता है। आयोग के मत में चाही गई जानकारी आरटीआई कानून की धारा 8 (सी,बी,घ,ङ़) की परिधि में किसी भी दृष्टि से नहीं आती। शासकीय सेवक को भी सूचना प्राप्त करने का अधिकार है। आवेदन प्रथम अपीलीय अधिकारी को किए जाने की स्थिति में धारा 6 (3) के अनुसार अपीलीय अधिकारी को आवेदन, लोक सूचना अधिकारी को 5 दिन में अंतरित करना चाहिए था जो नहीं किया गया। फिर भी लोक सूचना अधिकारी को आवेदन की जानकारी होना प्रमाणित हुआ है। अत: अपीलार्थी को आवेदन के अनुसार जानकारी प्रदाय की जानी चाहिए थी।



सूचना आयोग का अहम फैसला
अपीलीय अधिकारी पर कार्रवाई के निर्देश, लोक सूचना अधिकारी से मांगा जवाब

भोपाल, 10 अक्टूबर। राज्य सूचना आयोग ने लोक हित से संबंधित प्रकरण में प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश को खारिज करने के साथ अपीलीय अधिकारी और तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध कड़ी टिप्पणी करते हुए कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने अपीलार्थी की अपील मंजूर करते हुए निर्देशित किया है कि प्रथम अपीलीय अधिकारी, उप संचालक कृषि को सम लोक सूचना अधिकारी मानते हुए उनके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई के लिए संचालक, कृषि, भोपाल को लिखा जाए एवं तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी सहायक संचालक, कृषि को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाए कि धारा 7 का उल्लंघन करने के कारण क्यों न उन पर धारा 20 (1) के तहत जुर्माना लगाया जाए।
आयुकत आत्मदीप ने सुनवाई के बाद पारित फैसले में लोक सूचना अधिकारी को आदेशित किया है कि वे अपीलार्थी को लोकहित में चाही गई जानकारी नि:शुल्क उपलब्ध करा कर पालन प्रतिवेदन व कारण बताओ नोटिस का जवाब 14 अटूबर की सुनवाई में पेश करें। फैसले में कहा गया है कि उप संचालक, कृषि, दतिया डी. आर. राजपूत ने प्रथम अपील निरस्त करने तथा अपीलार्थी को वांछित जानकारी न देने के अलग-अलग तिथियों में पृथक-पृथक कारण बताए हैं जो विधिसम्मत व न्यायोचित नहीं हैं। प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा पदीय दायित्व के निर्वहन में गंभीर श्रेणी की विफलता प्रदर्शित की गई है तथा आरटीआई कानून की अवहेलना व अवमानना की गई है।
आत्मदीप ने अपीलार्थी के तर्क को स्वीकार करते हुए आदेश में कहा कि मांगी गई जानकारी भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन एवं व्यापक लोकहित में है। अपीलार्थी ने शासकीय योजनाओं के तहत लोकधन से लोक हित में कराए गए कामों की जानकारी चाही है जिसे प्रदाय करना शासकीय कार्यांे में पारदर्शिता लाने, अनियमितताएं रोकने व सरकारी तंत्र को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने की दृष्टि से आवश्यक है। ऐसी जानकारी चाहना और उसे प्रदान करना सूचना का अधिकार कानून के मूल उद्देश्य की पूर्ति में सहायक सिद्ध होगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्देशित किया है कि पारदर्शिता ऐसा मानक है कि जिसे जनहित के सभी सार्वजनिक कार्यों में तो अपनाया ही जाना चाहिए।
अपीलार्थी खुमान सिंह बेचैन ने बुंदेलखंड पैकेज के तहत कृषि विभाग द्वारा दतिया जिले में कराए गए कुआ निर्माण, रबी-खरीफ बीज ग्राम प्रशिक्षण, जैविक ग्राम कृषक प्रषिक्षण, आइसोपाम योजनांतर्गत स्टाफ व कृषक प्रषिक्षण, सिंचाई व स्प्रिंकलर पाइप अनुदान वितरण आदि से संबंधित जानकारी मांगी थी। सहायक संचालक, कृषि द्वारा अपूर्ण शुल्क सूचना भेजने तथा चाही गई जानकारी न देने पर की गई प्रथम अपील उप संचालक, कृषि ने इस आधार पर खारिज कर दी कि अपीलार्थी द्वारा चाही गई जानकारी धारा 8 की उप धारा सी,बी,घ,ङ़ के अंतर्गत आती है जो नहीं दी जा सकती।
इस आदेश के विरुद्ध द्वितीय अपील होने पर उप संचालक ने आयोग के समक्ष दलील दी कि अपीलार्थी के शासकीय सेवा में होने से उन्हें जानकारी प्रदाय नहीं की गई और उनकी प्रथम अपील निरस्त की गई। फिर दलील दी कि अपीलार्थी को सेवानिवृत्त होने के बाद जानकारी इसलिए नहीं दी गई, क्योंकि अपीलार्थी का आवेदन उप संचालक, कृषि को संबोधित है जो लोक सूचना अधिकारी नहीं हैं बल्कि अपीलीय अधिकारी हैं।
आत्मदीप ने प्रथम अपीलीय अधिकारी, उप संचालक, कृषि के आदेष को लोक हित व न्यायहित में निरस्त कर दिया है। आयुक्त ने फैसले में कहा है कि प्रथम अपीलीय अधिकारी ने अपील का निराकरण विधि अनुसार नहीं किया। उनके आदेश का कोई विधिक औचित्य सिद्ध नहीं होता है। आयोग के मत में चाही गई जानकारी आरटीआई कानून की धारा 8 (सी,बी,घ,ङ़) की परिधि में किसी भी दृष्टि से नहीं आती। शासकीय सेवक को भी सूचना प्राप्त करने का अधिकार है। आवेदन प्रथम अपीलीय अधिकारी को किए जाने की स्थिति में धारा 6 (3) के अनुसार अपीलीय अधिकारी को आवेदन, लोक सूचना अधिकारी को 5 दिन में अंतरित करना चाहिए था जो नहीं किया गया। फिर भी लोक सूचना अधिकारी को आवेदन की जानकारी होना प्रमाणित हुआ है। अत: अपीलार्थी को आवेदन के अनुसार जानकारी प्रदाय की जानी चाहिए थी।



-राज्य सूचना आयोग का महत्वपूर्ण फैसला
लोकहित में हर चयन व भर्ती परीक्षा में पारदर्शिता सुनिश्चित करना जरुरी
-पुलिस को देनी होगी भर्ती परीक्षा की वांक्षित जानकारी

भोपाल 14 सितंवर। मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग ने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक और पुलिस उप महानिरीक्षक की दलीलों को नामंजूर करते हुए अपीलार्थी को पुलिस भर्ती परीक्षा की वांछित जानकारी देने का आदेश दिया है। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक(चयन/भर्ती) पुलिस मुख्यालय भोपाल तथा पुलिस उप महानिरीक्षक चंबल रेंज ने अपीलार्थी द्वारा चाही गई जानकारी देने से यह कह कर इंकार कर दिया था कि यह जानकारी सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8(जे) के तहत गोपनीय एवं पर पक्ष से संबंधित होने लोकहित में न होने के कारण देना संभव नहीं है।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने गत दिवस इस मामले में फैसला सुनाते हुए लोकसूचना अधिकारी डीआईजी चंबल रेंज, मुरैना को आदेशित किया कि वे 15 दिन में अपीलार्थी को आरक्षक भर्ती प्रक्रिया 2011 में चयनित उम्मीदवारों के प्राप्तांको की जानकारी तथा अपीलार्थी को उत्तरपुस्तिका की स्तयापित पंजीकृत डाक से नि:शुल्क उपलब्ध कराएं और 14 अक्टूबर की सुनवाई में पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करें। आदेश में अन्य चयनित प्रत्याशियों की उत्तर पुस्तिकाओं की सत्यप्रतियां दिलाने के अपीलार्थी के अनुरोध को इस आधार पर अमान्य कर दिया गया कि यह तृतीय पक्ष से संबंधित तथा धारा 8(जे) के तहत विधि से असंगत है किंतु अपीलार्थी स्वयं की उत्तर पुस्तिका की प्रतिलिपि तथा सभी चयनित प्रत्याशियों को प्राप्त अंकों की जानकारी हासिल कर सकेगा।
आत्मदीप ने पारित आदेश में टिप्पणी की है कि शैक्षिक एवं चयन/भर्ती परीक्षा की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद उसकी जानकारी स्वत: सार्वजनिक की ही जानी चाहिए। परीक्षा में पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दृष्टि से ऐसा करना आवश्यक है। इसी उदेश्य से संघ लोक सेवा आयोग तथा मप्र राज्य लोक सेवा आयोग हर चयन परीक्षा के संपंन्न होते ही उसके प्रतिभागियों के प्राप्तांको की जानकारी अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करना शुरु कर चुके हैं। पारदशिर्ता लाने की दृष्टि से मप्र शासन ने भी चयन/भर्ती प्रक्रिया के आनलाइन करने की पहल की है। फैसले में कहा गया है कि लोकसूचना अधिकारी ने अपीलार्थी के प्रथम अपील संबंधी आवश्यक जानकारी पुलिस महानिरीक्षक चंबल को प्रथम अपील प्रस्तुत नहीं कर सका। इसलिए अतिरिक्त महानिदेशक की यह आपत्ति मान्य नही है कि अपीलार्थी ने प्रथम अपील न कर सीधे राज्य सूचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपील पेश की है, जिसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
आत्मदीप ने निर्णय में कहा कि अपीलार्थी ने अपील संबंधी वांक्षित जानकारी न मिलने के कारण प्रथम अपील पुलिस पुलिस महानिदेशक, पुलिस मुख्यालय भोपाल को की है। पुलिस महानिदेशक कार्यालय सूचना के अधिकार के प्रति सद्भावना दिखाते हुए इस अपील के संबंधित अपीलीय अधिकारी को अंतरित कर सकता था जो नहीं किया गया।

यह था मामला

अपीलार्थी ओमप्रकाश शर्मा मुरैना ने जिला श्योपुर में पुलिस भर्ती प्रक्रिया 2011 में चयनित सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों व अनुक्रमांक 60222 के उम्मीदवार की उत्तर पुस्तिकाओं की सप्त प्रतियां तथा चयनित उम्मीदवारों व अनुक्रमांक 60222 के उम्मीदवार की मौखिक परीक्षा में दिए गए अंकों की सत्य प्रति मंागी थी। लोक सूचना अधिकारी व डीआईजी चंबल रेंज ने आदेश दिनांक 23/2/2011 में चाही गई जानकारी देने से यह लिखकर इनकार कर दिया कि पुलिस आरक्षक भर्ती प्रक्रिया गोपनीय प्रक्रिया है जिसे आरटीआई के प्रति धारा 8 (जे) के अनुसार प्रकटन से छूट प्राप्त है तथा चाहे गए दस्तावेजों से लोक हित की भावना परिलक्षित नहीं होती अत: चाहे गए दस्तावेज देना संभव नहीं है। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (चयन/भर्ती) केएन तिवारी ने आयोग को लिखा की सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल बनाम आदित्य बंद्योपाध्याय के प्रकरण में आदित्य को उनकी उत्तर पुस्तिका का अवलोकन करने का आदेश दिया था। इस न्याय दृष्टांत के अनुसरण में अपिलार्थी को स्वयं की उत्तरपुस्तिका का अवलोकन कराया जा सकता है अन्य की नहीं। तिवारी ने चयनित प्रत्याशियों के प्राप्तांकों की जानकारी देने के संबंध में कुछ नहीं कहा था। बांछित जानकारी प्रदाय किये जाने से इंकार किए जाने के बिरोध में अपिलार्थी ने आयोग के समक्ष अंतिम अपील की थी।



रद्द ट्रेन की सूचना देने पर 25 हजार का जुर्माना
नई दिल्ली | रद्दट्रेन की सूचना देने पर उत्तर रेलवे पर 25 हजार का जुर्माना लगाया गया है। एक यात्री ने बीते साल फरवरी में एक ट्रेन का टिकट बुक कराया। स्टेशन पहुंचने पर पता चला कि ट्रेन कई महीनों से रद्द है। उपभोक्ता आयोग ने इसे सेवा में कमी माना है।


सूचना आयोग का महत्वपूर्ण फैसला,आरटीआई का दुरूपयोग बर्दाष्त नहीं, सभी अपीलें रद्द
भोपाल। आरटीआई के दुरूपयोग की छूट किसी को नहीं
-सूचना आयुक्त ने चारों अपीलें की खारिज, अपीलार्थी को राहत नहीं
-आरटीआई के मनमाने इस्तेमाल पर आयोग ने जताई नाराजगी

सूचना के अधिकार का उपयोग सद्भावी रूप से किया जाना चाहिए न कि दुष्प्रभावी उपकरण के रूप में। सूचना का अधिकार अधिनियम का उद्देष्य लोकधन से संचालित सरकारी-गैरसरकारी निकायों के कामकाज में पारदर्षिता व शुचिता लाना, अनियमितताओं की रोकथाम करना तथा शासन-प्रषासन में जनता के प्रति जवाबदेही बढाना है। नागरिकों से अपेक्षा की जाती है कि वे इस उद्देष्य की पूर्ति में सहायक बनें और इस कानून को शासन या उसके माध्यमों को अकारण परेषान करने का जरिया न बनाएं। यह टिप्पणी करते हुए राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने शुक्रवार को अपीलार्थी एवं ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी, जिला षिवपुरी आरके मेवाफरोस (वर्तमान में जिला दतिया में पदस्थ) की चार अपीलें खारिज कर दीं।
अपीलार्थी ने स्वयं एवं अपने वरिष्ठ अधिकारी के विरूद्ध विभाग को प्राप्त षिकायतों तथा उन पर की गई कार्यवाही की जानकारी मांगी थी। आयोग के समक्ष सुनवाई में प्रस्तुत दस्तावेजों से जाहिर हुआ कि अपीलार्थी का सेवा रिकार्ड बहुत खराब रहा है। उन पर कृषि आदान सामग्री की राषि भी बकाया है, जो नोटिस देने के बावजूद जमा नहीं कराई गई है। उनके विरूद्ध अनेक षिकायतें प्राप्त हुईं, जिनके आधार पर जांच व कार्यवाही की गई है। अपीलार्थी के विरूद्ध वेतनवृद्धि रोकने, बिना सूचना ड्यूटी पर अनुपस्थित रहने की अवधि का वेतन काटने, वेतन भुगतान रोकने का नोटिस देने तथा निलंबित करने की कार्रवाई की जा चुकी है। इसके प्रतिकार स्वरूप अपीलार्थी मेवाफरोस ने विभागीय अधिकारियों को परेषान करने एवं विभागीय कामकाज को प्रभावित करने की गरज से विभिन्न आवेदन लगाकर सूचना के अधिकार का बेजा इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
प्रथम अपीलीय अधिकारी व उप संचालक कृषि जिला षिवपुरी एसकेएस कुषवाह, एसडीओ एमसी श्रीवास्तव एवं लोक सूचना अधिकारी व वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी एनपी अवस्थी ने इस संबंध में आयोग के समक्ष कई दस्तावेज पेष किए। उनसे जाहिर हुआ कि अपीलार्थी के आवेदनों एवं अपीलों का लोक क्रियाकलाप अथवा लोकहित से कोई संबंध नहीं है, अपितु अपीलार्थी की भूमिका कानून की मंषा के विपरीत रही है। सूचना आयुक्त आत्मदीप ने फैसले में कहा कि अपीलार्थी की सभी अपीलें स्वीकार किए जाने योग्य नहीं हैं। सूचना के अधिकार का बदनीयती से उपयोग करने की छूट किसी को नहीं दी जा सकती है। आरटीआई एक्ट की मूलभावना एवं उद्देष्य को विफल होने से बचाने के लिए इस कानून का दुरूपयोग करने का प्रयास करने वालों पर अंकुष लगाना आवष्यक व न्यायसंगत है।


आरटीआई के उल्लंघन पर चार अधिकारियों पर कंसा शिकंजा
Our Correspondent :27 May 2014
भोपाल। राज्य सूचना आयोग ने सूचना का अधिकार अधिनियम के उल्लंघन के आरोप में 4 प्रकरणों में लोक सूचना अधिकारियों को नोटिस जारी किए हैं। आदेश में कहा गया है कि क्यों न उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई की जाए और प्रभावित पक्ष को हर्जाना दिलाया जाए। चारों प्रकरणोें में प्रथम अपील का विधिसम्मत निराकरण नहीं करने पर अपीलीय अधिकारियों से भी जवाब तलब किया गया है। यह विरला अवसर है जब एक ही दिन की सुनवाई में इतने मामलों में लोक सूचना अधिकारियों और प्रथम अपीलीय अधिकारियों पर कानूनी शिकंजा कसा गया है। चारों मामलों में आदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने पारित किएं। खास बात यह है कि ये सभी मामले वन विभाग से जुड़े हैं और इनमें लोक सूचना अधिकारी तथा प्रथम अपीलीय अधिकारी समान हैं।
शिवपुरी के वन क्षेत्रपाल रामरतन जाटव ने तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी व उप वन मंडलाधिकारी, बीनागंज (गुना) से उनकी भ्रमण डायरी, लाग बुक, किराए पर वाहन लेने के स्वीकृति आदेश तथा स्वर्णपदक संबंधी जानकारी मांगी थी। आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी एक माह में देना जरूरी है। यह समय सीमा खत्म होने के साढ़े तीन माह बाद जाटव को सिर्फ स्वर्णपदक संबंधी जानकारी दी गई। प्रथम अपीलीय अधिकारी की ओर से सूचना आयोग को बताया गया कि लालजी मिश्र ने शासकीय व किराए के वाहन का इस्तेमाल किया, लेकिन इसकी लाग बुक तथा वाहन किराए से लेने के स्वीकृति आदेश की जानकारी कार्यालय में उपलब्ध न होने से नहीं दी जा सकी है।
आत्मदीप ने दलील को खारिज करते हुए अपीलार्थी को चाही गयी जानकारी एक माह में उपलब्ध करा कर आयोग के समक्ष पालन प्रतिवेदन पेश करने का आदेश दिया है। इसमें कहा गया है कि लोक सूचना अधिकारी लालजी मिश्र सूचना के आवेदन का निराकरण 30 दिन की निर्धारित अवधि में करने में विफल रहे। आवेदन में मिश्र से उन्हीं से संबंधित जानकारी मांगी गई थी इसलिए नियमानुसार उन्हें यह आवेदन निराकरण के लिए अन्य अधिकारी को अंतरित करने की कार्रवाई करनी थी जो नहीं की गई। लोक सूचना अधिकारी द्वारा अपीलार्थी को शुल्क व अपील संबंधी आवश्यक जानकारी भी नहीं दी गई।
इन तथ्यों के मद्देनजर सूचना आयुक्त आत्मदीप ने लोक सूचना अधिकारी को नोटिस जारी करने का आदेश दिया कि धारा (7) का उल्लंघन करने के कारण क्यों न उन पर धारा 20 (1) के तहत जुर्माना लगाया जाए तथा धारा 19 (8) के अंतर्गत अपीलार्थी को हर्जाना दिलाया जाए । इस प्रकरण में यह भी पाया गया कि तत्कालीन प्रथम अपीलीय अधिकारी पीके सिंह (वतर्मान में मुख्य वन संरक्षक, रीवा) ने प्रथम अपील का निराकरण धारा 19 के अनुसार नहीं किया। उन्होंने न अपीलार्थी को सुनवाई का अवसर प्रदान किया और न ही अधिकतम 45 दिनों में अपील पर निर्णय/आदेश पारित किया। आत्मदीप ने आदेश दिया है कि अपीलीय अधिकारी की इस विधि विरुद्ध भूमिका से उनके विभागाध्यक्ष को अवगत कराया जाए, ताकि उनके स्तर पर यथोचित कार्रवाई की जा सके।
दूसरे प्रकरण में अपीलार्थी रामरतन जाटव ने लोक सूचना अधिकारी व संलग्नाधिकारी, वन मंडल गुना, लालजी मिश्र से मधुसूदनगढ़ वन क्षेत्र में कराए गए वृक्षारोपण कार्य तथा कूपों में खुदाई गई पशु अवरोधक खंती के प्रमाणकों की जानकारी मांगी थी, जो नहीं दी गई। प्रथम अपील का निराकरण भी विधि अनुसार नहीं किया गया। जानकारी देने की समय सीमा खत्म होने के बाद लोक सूचना अधिकारी ने अपीलार्थी को सूचित किया कि जानकारी स्पष्ट रूप से नहीं मांगी गई है, जबकि अपीलार्थी ने चाही गई जानकारी का स्पष्ट उल्लेख किया था। इसके अलावा लोक सूचना अधिकारी ने अपीलार्थी को प्रथम अपील संबंधी जरूरी जानकारी दिए बिना उनके कार्यालय में की गई प्रथम अपील लौटा दी। अपील को प्रथम अपीलीय अधिकारी, वन संरक्षक, गुना को अग्रेषित नहीं किया। आत्मदीप ने आदेश दिया कि लोक सूचना अधिकारी को नोटिस जारी किया कि धारा 7 का उल्लंघन करने के कारण क्यों न उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई की जाए तथा अपीलार्थी को हर्जाना दिलाया जाए। सूचना आयुक्त ने द्वितीय अपील निरस्त करने के अनुरोध को नामंजूर करते हुए तत्कालीन अपीलीय अधिकारी पीके सिंह को निर्देषित किया है कि वे बाद में उनके समक्ष प्रस्तुत की गई प्रथम अपील के निराकरण के लिए धारा 19 के तहत की गई कार्रवाई से आयोग को एक माह के भीतर अवगत कराएं।
तीसरे प्रकरण में वन क्षेत्रपाल रामरतन जाटव ने लोक सूचना अधिकारी, संलग्नाधिकारी, वन मंडल, गुना से उनके वन मंडल में वृक्षारोपण के तहत कराए काम तथा लेनटाना झाड़ियां उखड़वाने के प्रमाणकों (बिलों) की जानकारी मांगी थी जो एक माह की समय सीमा में नहीं दी गई । समय सीमा समाप्त होने के करीब सवा दो साल बाद प्रथम अपीलीय अधिकारी वन संरक्षक, गुना ने वांछित जानकारी अपीलार्थी को मुहैया कराई। अपीलीय अधिकारी ने मंजूर किया कि जानकारी देरी से दी गई है। आत्मदीप ने लोक सूचना अधिकारी को दंडित करने के लिए नोटिस जारी करने का आदेष पारित किया है। साथ ही प्रथम अपीलीय अधिकारी से प्रतिवेदन तलब किया है कि धारा 19 के अनुसार प्रथम अपील का निराकरण करने के लिए उन्होंने क्या कायर्वाही की।
चौथे प्रकरण में उप वन क्षेत्रपाल बाबूसिंह परमार ने लोक सूचना अधिकारी, संलग्नाधिकारी, वन मंडल, गुना से वन क्षेत्र में अवैध उत्खनन की जांच रपट तथा उप वन मंडलाधिकारी, बमौरी, एलबी गोयल की दौरा डायरी की जानकारी मांगी थी, जो नहीं दी गई। प्रथम अपीलीय अधिकारी, वन मंडलाधिकारी, गुना ने सूचना आयोग को जवाब दिया कि अपीलार्थी के उपस्थित न होने के कारण उन्हें चाही गई पूरी जानकारी नहीं दी जा सकी। इसे नामंजूर करते हुए आत्मदीप ने आदेशित किया है कि लोक सूचना अधिकारी को नोटिस जारी किया जाए कि धारा 7 के अनुसार आवेदन का निपटारा न करने के कारण क्यों न उन पर शास्ति अधिरोपित की जाए और अपीलार्थी को क्षतिपूर्ति दिलाई जाए। प्रथम अपीलीय अधिकारी को भी निर्देषित किया गया है कि वे प्रथम अपील पर धारा 19 के अनुसार की गई कार्रवाई से आयोग को अवगत कराएं।


सरकारी विज्ञापनों पर सुप्रीम कोर्ट ने बनाई समिति
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार तथा इसके विभागों की ओर से स्पष्ट राजनीतिक संदेश वाले विज्ञापन जारी करने को नियंत्रित करने के लिए दिशा-निर्देश तय करने के उद्देश्य से बुधवार को एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया.
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. सतशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ऐसे विज्ञापन डीएवीपी के मौजूदा दिशा-निर्देशों के तहत नहीं आते. बेंगलुरु नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के संस्थापक निदेशक एनआर माधवन मेनन, लोकसभा के पूर्व महासचिव टीके विश्‍वनाथन और वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार समिति के सदस्य होंगे.
कोर्ट ने कहा कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव इस समिति के साथ समन्वय करेंगे और इसे सहयोग देंगे. समिति अपनी पहली रिपोर्ट अगले तीन महीने के भीतर न्यायालय में पेश करेगी.


सुप्रीम कोर्ट सख़्त
जानलेवा हैं भारतीय सड़कें

सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में सड़कों की खराब हालत और उनके रखरखाव को लेकर मंगलवार को सख़्त टिप्पणी की| कोर्ट ने कहा कि इनका हाल सुधारने के लिए तुरंत काम किया जाना चाहिए| सड़क सुरक्षा को लेकर शीर्ष अदालत की नाराज़गी का आलम यह था कि उसने सुप्रीम कोर्ट के ही जज जस्टीस केएस राधाकृष्णन की अध्यक्षता में एक समिति का भी गठन कर दिया जो इस मामले पर नज़र रखेगी| यह समिति केंद्र और राज्य सरकार के अंतर्गत आने वाले उन विभागों से तीन महीनों के भीतर देश में सड़कों की हालत पर तफसील से रिपोर्ट तलब करेगी| इन विभागों को ड्राइविंग लाइसेंस, फिटनेस और सड़कों की भी जानकारी देनी होगी|


केडी ख़ान प्रदेश के नए मुख्य सूचना आयुक्त होंगे ,पत्रकार जयकिशन शर्मा और आत्मदीप सूचना आयुक्त होंगे
Our Correspondent :22 January 2014
भोपाल। विधि विभाग में प्रमुख सचिव केडी खान प्रदेश के नए मुख्य सूचना आयुक्त ((सीआईसी)) होंगे। वहीं लोकायुक्त की विशेष पुलिस स्थापना के डीजी सुखराज सिंह, सेवानिवृत्त आईएएस अफसर हीरालाल त्रिवेदी, आरएसएस की पृष्ठभूमि से जुड़े गोपाल दंडोतिया, पत्रकार जयकिशन शर्मा और आत्मदीप सूचना आयुक्त होंगे।
मंत्रालय में सोमवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई बैठक में दो सदस्यीय समिति ने इन नामों की अनुशंसा की। बैठक में संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा और नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे मौजूद थे। राज्य सरकार की इस अनुशंसा को अनुमोदन के लिए राज्यपाल को भेज दिया गया है।
नव नियुक्त सूचना आयुक्त आत्मदीप ने मेट्रो मिरर डॉट कॉम को बताया की आई टी आई एक्ट के प्रचार प्रसार हेतु अलग बजट का प्रावधान होना चाहिए ताकि आई टी आई की पहुँच आम आदमी तक हो| आत्मदीप ने बतायाकी बड़ी संख्या में अपीलें लंबित हैं| जिनका समय पर निराकरण करना मेरी प्राथमिकता रहेगी|


राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद होगी लोकपाल की नियुक्ति
Our Correspondent : 02 Feb. 2013
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने गुरुवार को अचानक लोकपाल के मसौदे को मंजूरी दे दी। लोकपाल के नए संशोधित मसौदे को मंजूरी मिलने के बाद सरकार ने कहा है कि वो बजट सत्र में राज्यसभा में इसे पास कराने की कोशिश करेगी। इसमें कई बदलाव किए गए हैं। राजनीतिक दलों और धार्मिक संगठन को दायरे से बाहर कर दिया गया है। वहीं सीबीआई का परोक्ष रूप से नियंत्रण सरकार ने अपने पास ही रखा है। नए प्रस्ताव में बड़े-बड़े अनुदान पाने वाली संस्थाओं को दायरे में लाया गया है। बिल पास होने की सूरत में राज्यों को एक साल के अंदर लोकायुक्त नियुक्त करने होंगे। उधर मसौदे को अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल ने सिरे से खारिज कर दिया है। अन्ना ने कहा है कि सरकार बड़े-बड़े मुद्दे सीबीआई के जरिये ही निपटाती है। लोकपाल में सीबीआई ही नहीं ह, तो भ्रष्टाचार कैसे मिटेगा? वहीं सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी, पीएमओ में राज्यमंत्री नारायण सामी और कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने इसे सबसे बेहतर मसौदा बताया है। मसौदे में लोकायुक्त की नियुक्ति का अधिकार राज्यों को दिया गया है।
मसौदे के अंतर्गत सबूत के बाद जांच एक साल में पूरी होगी। इसके बाद केस दर्ज होगा और स्पेशल कोर्ट में सुनवाई होगी। कोर्ट से अधिकतम दो साल में फैसला आ जाएगा। दोषी पाए जाने पर सजा दो से 10 साल तक की होगी। गलत शिकायत पर शिकायतकर्ता के खिलाफ न सजा की कार्रवाई होगी और न उसे एक लाख रुपए तक का जुर्माना भुगतना होगा। पहले गलत शिकायत पर सजा-जुर्माने का प्रस्ताव था।
ऐसे होगा चयन
प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष, लोकसभा अध्यक्ष, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस लोकपाल की नियुक्ति करेंगे। आखिरी मंजूरी राष्ट्रपति की होगी। लोकपाल का कार्यकाल दो साल का रहेगा। किसी मामले में लोकपाल को हटाना पड़े तो चयन समिति के 5 सदस्यों को ही ये अधिकार होगा। लोकपाल को लगे कि शिकायत जांच योग्य नहीं है तो वह इसे कूड़ेदान में भी फेंक सकता है।
लोकपाल तभी कार्रवाई या जांच कर सकेगा, जब कोई उसे शिकायत करे।
इसका नहीं होगा अधिकार
सीबीआई अफसरों को हटाने का अधिकार नहीं होगा। राजनीतिक दलों के खिलाफ जांच नहीं कर सकेगा। धार्मिक संगठन भी इसके दायरे से बाहर ही रहेंगे। शिक्षा संस्थानों के खिलाफ जांच का अधिकार नहीं। सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में कोई दखल नहीं होगा।
सिर्फ ये अधिकार ही होंगे
सरकारी मदद पाने वाली संस्थाओं की जांच कर सकेगा। विदेश से अनुदान लेने वाली संस्थाएं भी दायरे में होंगी। कुछ शर्तों के साथ प्रधानमंत्री भी दायरे में होंगे। आरोपी व्यक्ति को पक्ष रखने के दो मौके देने होंगे। पर्याप्त सबूत के बाद ही किसी की जांच कर सकेगा।


जाहिदा परवेज और सबा से दोबारा पूछताछ करना चाहती है सीबीआई
Our Correspondent : 11 Jan. 2013
इंदौर। सीबीआई जाहिदा परवेज और सबा से दोबारा पूछताछ करना चाहती है। इसके लिए सीबीआई की ओर से कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है, ताकि जांच एजेंसी पूरक चार्जशीट पेश कर सके। अर्जी से यह भी साबित हो गया है कि पूर्व में पेश चार्जशीट अधूरी है। गुरुवार को विशेष सीबीआई जज अनुपम श्रीवास्तव के समक्ष सुनवाई हुई। उसमें कॉल डिटेल के संबंध में दो मोबाइल कंपनियों के दो अफसरों के कथन होना थे, किंतु दोनों हाजिर नहीं हो सके। सीबीआई के वरिष्ठ लोक अभियोजक हेमंत शुक्ला ने अदालत में आवेदन देकर कहा कि जाहिदा के कार्यालयीन कक्ष से कुछ आपत्तिजनक सामग्री मिली थी, उनकी जांच के साथ ही दोनों की आवाज की जांच भी करना है। इसके लिए जेल में बंद दोनों आरोपियों से पूछताछ करने की अनुमति दी जाए। अदालत ने सीबीआई का आवेदन रख लिया है। सबा की ओर से अधिवक्ता श्रीवास्तव ने अदालत में दिए आवेदन में कहा कि सबा बीमार है और उसे सुबह 9.30 बजे से शाम 5.30 बजे तक खाना नहीं दिया जाता। अत: उसे बेहतर इलाज व खाना दिया जाए या इसके लिए हमें अनुमति दी जाए। अदालत ने जिला जेल अधीक्षक को मेडिकल जांच रिपोर्ट भेजने के आदेश दिए। श्रीवास्तव ने पत्रकारों को बताया सीबीआई ने अधूरा चालान ही पेश कर दिया। अब वह जांच व पूरक चालान के बहाने किसी को फंसाना चाहती है। सीबीआई अदालत ने शुक्रवार को भी कॉल डिटेल के संदर्भ में भोपाल की दो मोबाइल कंपनियों के दो अफसरों के कथन होंगे। इसी बीच, अधिवक्ता महेंद्र मौर्य ने इरफान की जमानत अर्जी दाखिल की। शाकिब व ताबिश की जमानत अर्जी पूर्व से लंबित है। तीनों की अर्जी पर भी शुक्रवार को सुनवाई होगी। ।

 
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