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वास्तुकला और इंटीरियर डिजाइन
छात्रों ने सीखे वास्तु के गुर, स्थान की शुभ और अशुभ दिशा का लगा सकेंगे अनुमान
18 March 2023
इंदौर: देवी अहिल्या बाई विश्वविद्यालय में वास्तु एवं डाउजिंग को लेकर दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई. जिसमें छात्र-छात्राओं को वास्तु एवं डाउजिंग के गुर सिखाए गए हैं. साथ ही एक्सपर्ट द्वारा स्टूडेंट्स को भूखंड की शुभ-अशुभ दिशा का अनुमान लगाने की बारीकियों के बारे में सिखाया गया. बताया गया कि इसका व्यक्ति की सुख शांति पर किस तरह से प्रभाव पड़ता है.
वास्तुविद के अनुसार वास्तु शास्त्र वैदिक निर्माण विज्ञान है, जिसकी नींव विश्वकर्मा जी ने रखी थी. इसमें वास्तुकला के सिद्धांत और दर्शन सम्मिलित हैं, जो भवन निर्माण में अत्यधिक महत्व रखते हैं. यह कार्यक्रम 17 से शुरू हुआ जो 18 मार्च तक चलेगा. जिसमें पुणे से आए हुए वास्तु एवं डाउजिंग एक्सपर्ट संजय अग्रवाल ने स्टूडेंट्स को वास्तु शास्त्र से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां दे रहे हैं.
आपको बता दें कि भारत मान्यताओं का देश है और हमारे देश में ज्योतिष, वास्तु शास्त्र, पॉजिटिव और नेगेटिव एनर्जी ऐसी तमाम मान्यताएं हैं. जिनसे बड़ी संख्या में लोगों की मान्यताएं जुड़ी हुई हैं. इस कार्यशाला के पहले दिन करीब 120 विद्यार्थी शामिल हुए. प्रशिक्षण के दौरान विश्वविद्यालय के छात्रों ने खासा दिलचस्पी के साथ इन पहलुओं पर ध्यान से सीखा. इस पूरे संबंध में डॉ. माया इमले निदेशक दीनदयाल उपाध्याय कौशल केंद्र (अहिल्या बाई विश्वविद्यालय इंदौर) ने बताया कि दो दिवसीय इस कार्यक्रम में वास्तु एवं डाउजिंग के बारे में बताया जा रहा है.
दीन दयाल उपाध्याय कौशल केंद्र के लेंस कैप डिजाइन के स्टूडेंट्स, इंजीनियरिंग डिजाइन के स्टूडेंट्स, मास्टर ऑफ वोकेशनल के स्टूडेंट्स, इंटीरियर डिजाइन के स्टूडेंट्स समेत शिक्षक भी मौजूद रहे. निदेशक ने बताया कि इस कार्यशाला में पुणे के साईं कंसलटेंट के विशेषज्ञ संजय अग्रवाल इंदौर पहुंचे हैं. उन्होंने बताया कि समय-समय पर विद्यार्थियों की ज्ञान वृद्धि के लिए हमारे द्वारा इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहते हैं.

क्रिस्प में वास्तु शास्त्र पर कार्यषाला
20 January 2020
सेन्टर फाॅर रिसर्च एण्ड इन्डस्ट्रीयल स्टाॅफ परफाॅरमेन्स (क्रिस्प) द्वारा एक दिवसीय कार्यषाला का आयोजन किया गया, जिसमें प्रदेष के जाने माने टाउन प्लानर एवं विख्यात वास्तु शास्त्र के ज्ञाता (वस्तु सलाहकार) श्री सुयष कुलश्रेष्ठ जी ने इंटिरियर डिजायनिंग के विधार्थी एवं षिक्षकों को वास्तु शास्त्र सबंधी जानकारी दी एवं भवन निर्माण में इंटिरियर डिज़ायनिंग की उपयोगिता बताई।
वास्तु शास्त्र वास्तुकला की एक पारंपरिक हिंदू प्रणाली है जिसका शाब्दिक अर्थ “वास्तुकला का विज्ञान” है। ये भारतीय उपमहाद्वीप में पाए गए ग्रंथ हैं जो डिजाइन, लेआउट, माप, जमीन की तैयारी, अंतरिक्ष व्यवस्था और स्थानिक ज्यामिति के सिद्धांतों का वर्णन करते हैं। वास्तु का अर्थ होता निवास स्थान, जहां हम रहते हैं। ये वास्तु शब्द धरती, जल, अग्नि, वायु, आकाश इन पांच तत्वों से मिलकर बना है। वास्तु शास्त्र की विद्या प्राचीनतम विद्याओं में से एक है। इसका सीधा संबंध दिशाओं और ऊर्जाओं से है। इसके अंतर्गत दिशाओं को आधार बनाकर आसपास मौजूद नकारात्मक ऊर्जाओं को सकारात्मक किया जाता है, जिससे वो मानव जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डाल सकें।
वास्तु स्थापत्य वेद से जनित है। स्थापत्य वेद अथर्ववेद का अंग है। ये सीधा हमारे जीवन पर प्रभाव डालता है। जैसे सृष्टि का निर्माण पंचतत्व से हुआ है उसी तरह मानव शरीर का भी निर्माण पंचतत्व से हुआ है। ये ही पांचों तत्व हमारे जीवन को भी प्रभावित करते हैं। इसी तरह भवन निर्माण में भी भूखंड के आसपास की चीज़ों का महत्व होता है। इसी से पता चलता है भूखंड शुभ है या अशुभ है। घर किस दिशा में होना चाहिए, घर का दरवाज़ा किस दिशा में होना चाहिए, घर में रखी कौन सी वस्तु किस स्थान पर होनी चाहिए, ये सब वास्तु शास्त्र से ही पता चलता है। अगर किसी घर में वास्तु दोष पाया जाता है तो उसे सुधारने के लिए भी कई उपाय किए जाते हैं, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास हो।
मुकेश शर्मा, सीईओ, क्रिस्प ने कहा " वास्तु शास्त्र का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। वास्तु शास्त्र हमारे जीवन को बेहतर बनाने में मदद करता है। साथ ही कुछ गलत चीज़ों का प्रभाव हम पर पड़ने से हमें बचाता है। वास्तु शास्त्र हमें नकारात्मक ऊर्जाओं से दूर रखता है। ये सदियों पुराना निर्माण का विज्ञान है। इसमें वास्तुकला के सिद्धांत और दर्शन सम्मिलित हैं, जो किसी भी भवन निर्माण में महत्व रखते हैं। इनका प्रभाव मानव की जीवन शैली एवं रहन-सहन पर पड़ता है।"
वास्तु शास्त्र एक ऐसा शास्त्र है, जिसकी वजह से हमारे ऊपर आने वाली विपदाओं से भी हमें छुटकारा मिल सकता है। इसलिए जब भी भवन निर्माण करना हो, दुकान खोलनी हो या इससे संबंधी कोई भी काम हो तो किसी वास्तुविद् से परामर्श ज़रूर लेना चाहिए। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा तो रहती ही है, साथ ही घर में बरकत बनी रहती है।
क्रिस्प संस्थान समय समय पर इस प्रकार की कार्यषाला का आयोजन करता रहता है जिससे इंटिरियर डिजायनिंग के विधार्थीयों को मार्केट के विभिन्न स्त्रोतो की एवं ग्राहक की मांग के अनुसार तैयार किया जाता है।

मानो या ना मानो
१- अगर घर का कोई सदस्य बीमार है तथा स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो रहा,तो किसी की कब्र या दरगाह पर सूर्यास्त के बाद तेल का दीपक एवं अगरबत्ती जलाएं और बताशे रख कर वापस घर आ जाएं । माना जाता है ऐसा करने से बीमार व्यक्ति शीघ्र ठीक हो जाता है ।
२- मंगलवार के दिन किसी भी देवी के मंदिर में ध्वजा चढ़ाकर आर्थिक समृद्धि की प्रार्थना करनी चाहिए । माना जाता है पाँच मंगलवार ऐसा करने से धन के मार्ग में आ रही सारी रुकावटें दूर हो जाती है । उसके साथ घर में सुख-समृद्धि व लक्ष्मी का वास हो जाता है ।
३- हनुमान जी को हर मंगल या शनिवार सिंदूर और चमेली का तेल अर्पित करना चाहिए । सिन्दूर बजरंगबली को अति प्रिय है,जो भक्त ऐसा करते है उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है ।
४- अध्ययन करते समय आसपास का वातावरण शुद्ध होना चाहिए । धीमी-धीमी सुगंध हो तो अच्छा है परन्तु दुर्गन्ध नहीं होना चाहिए । अगर टेबल पर खाने के झूठे बर्तन हो तो तुरंत हटा दे ।
५- अगर कोई व्यक्ति मंदिर ना जा सके तो उसे शिखर का दर्शन ही कर लेना चाहिए । मंदिर के शिखर का भी उतना ही महत्व होता है । शास्त्रों में कहा गया है कि शिखर दर्शनम् पाप नाशम् अर्थात शिखर के दर्शन करने से भी हमारे पापों का नाश होता है ।
प्रियंका पारे


कालसर्प
कालसर्प एक ऐसा योग है जो किसी मनुष्य के किसी घोर अपराध के दंड या शाप के फलस्वरूप उसकी जन्मकुंडली में दृष्टव्य होता । कालसर्प के दोष से मनुष्य आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान तो होता ही है,मुख्य रूप से उसे संतान संबंधी कष्ट होता है,या तो संतान नहीं होती या होती है तो वह रोग से पीड़ित होती है। वह आर्थिक रूप से परेशान हो जाता है की उसका गुजर- बसर भी ठीक से नहीं हो पता । घर में लक्ष्मी का वास कम होता है अगर होता भी है तो किसी न किसी तरह धन में क्षति होती है व अन्य रोगों से परेशान रहता है ।

जन्मकुंडली में असर-

जब जन्म कुंडली में सारे ग्रह राहु और केतु के बीच उपस्थित रहते है तो ज्योतिषी आसानी से समझ जाते है की कुंडली में कालसर्प योग है तथा व्यक्ति इसके दोष से पीड़ित है ।
परन्तु कालसर्प योग वाले सभी जातकों पर इस का सामान्य प्रभाव नहीं होता इसका प्रभाव उसके अनुसार होता है की किसकी राशि में कौन सा भाव है तथा कौन सा गृह कहा बैठा है तथा कितना बलवान है ।
इसलिए केवल कालसर्प योग सुनकर परेशान ना हो बल्कि उसका ज्योतिषीय विश्लेषण करवाकर उसके प्रभावों की विस्तृत जानकारी हासिल कर लेना ही बुद्धिमत्ता कही जायेगी। और जब असल कारण सामने आजाये तो उसका तत्काल उपाय करना चाहिए । कुछ ज्योतिषीय स्थितियां जिनमें कालसर्प योग बड़ी संबंधित जातक को परेशान किया करता है :
जब कालसर्प योग में राहु के साथ शुक्र की युति हो तो जातक को संतान संबंधी ग्रह बाधा होती है।
जब लग्न व लग्नेश पीड़ित हो, तब भी जातक शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान रहता है।
जब राहु के साथ चंद्रमा लग्न में हो और जातक को बात-बात में भ्रम की बीमारी सताती रहती हो, या उसे हमेशा लगता है कि कोई उसे नुकसान पहुँचा सकता है या वह व्यक्ति मानसिक तौर पर पीड़ित रहता है।
जब राहु की मंगल से युति यानी अंगारक योग हो तब संबंधित जातक को भारी कष्ट का सामना करना पड़ता है।
जब राहु के साथ सूर्य या चंद्रमा की युति हो तब भी जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, शारीरिक व आर्थिक परेशानियाँ बढ़ती हैं।
जब शनि अपनी राशि या अपनी उच्च राशि में केंद्र में अवस्थित हो तथा किसी अशुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट न हों। तब काल सर्प योग का असर काफी कम हो जाता है।
जब शुक्र दूसरे या 12वें भाव में अवस्थित हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
जब बुधादित्य योग हो और बुध अस्त न हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
ऐसे में हम यही कहेंगे की हर कष्ट का उपाय संभव है बस उसे समझ के सही सही समय पर उपाय करना आवशयक है ।


वास्तुशास्त्र
रसोई और शयन कक्ष में न बनाए पूजाघर

पूजाघर रसोई और शयन कक्ष में नहीं होना चाहिए। वास्तुशास्त्र में इसकी मनाही है। ऐसा होने से सांसारिक सुख में असर पड़ता है। वास्तुशास्त्र पूजा घर के संदर्भ विशेष निर्देश दिए हैं इनका पालन करके आप सांसारिक सुख और आध्यात्मिक लाभ दोनों साथ-साथ प्राप्त कर सकते हैं। अगर आप अपने घर में पूजाघर बनाना चाहते हैं तो इन बातों का विशेष ध्यान रखें-vastusastra
1- पूजाघर रसोई और शयन कक्ष में नहीं होना चाहिए।
2- पूजाघर में पीला या सफेद रंग करवाना ठीक रहता है।
3- पूजा स्थल पर पितृ-मृतकों की तस्वीर न रखें।
4-बहुमंजिले मकान में पूजा मंदिर निर्माण भूतल पर करें।
5-पूजाघर के निकट तिजोरी बिल्कुल न रखें।
6-पूजागृह शौचालय से सटा अथवा उसके सामने न हो।
7-आराधना स्थल में देवी-देवताओं की प्रतिमा या मूर्तिया एक-दूसरे के आमने-सामने होने चाहिए।
8-सीढि़यों के नीचे पूजा स्थल न बनाएं। अन्यथा पूजा निष्फल हो जाती है।
9-पूजाघर में सदैव प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए।
10-पूजाघर के ऊपर पिरामिड होना चाहिए साथ ही ध्यान रखना चाहिए कि मंदिर के ऊपर कोई सामान नहीं रखा हो।


निश्चित आधार नहीं है दरवाजों की संख्या का
वास्तु के सिद्धांतों का परिपालन करते हुए बनाया गया मकान, उसमें निवास करने वालों के जीवन की खुशहाली, उन्नति एवं समृद्धि का पतीक होता है। मकान में दरवाजे अहम भूमिका निभाते हैं। साधारणतया आम इंसान मकान में दरवाजों की संख्या के बारे में भ्रमित रहता है। क्योंकि वास्तु विषय की लगभग सभी पुस्तकों में दरवाजों की संख्या के बारे में विवरण दिया गया है कि मकान में दरवाजे 2, 4, 6, 8, 12, 16, 18, 22 इत्यादि की संख्या में होने चाहिए। जबकि व्यवहारिकता में दरवाजों की संख्या का कोई औचित्य व आधार ही नहीं है। मकान में दरवाजे आवश्यकता के अनुसार, वास्तु द्वारा निर्देशित उच्च स्थान पर लगाने से इससे शुभ फल पाप्त होते हैं। लेकिन इसके विपरीत नीच स्थल पर दरवाजे लगाने से इसके अशुभ परिणाम ही पाप्त होंगे।
उच्च स्थान पर दरवाजे लगाते समय यह भी ध्यान में रखा जाना अत्ति आवश्यक होता है कि मुख्य पवेश द्वार के सामने एक ओर दरवाजा लगाने पर ही यह दरवाजे शुभ फलदायक साबित होंगे। मुख्य द्वार के सामने एक ओर दरवाजा नहीं लगाने की स्थिति में एक खिड़की अवश्य ही लगानी चाहिए। ताकि मुख्य द्वार से आने वाली ऊर्जा मकान में पवेश कर सके। अन्यथा दरवाजे के सामने दरवाजा या खिड़की नहीं होने की स्थिति में यह ऊर्जा परिवर्तित हो जायेगी।
मकान के चारों तरफ वास्तु के सिद्धांत के अनुपात में खुली जगह छोड़ने का तात्पर्य भी यही है कि दरवाजों के माध्यम से इन ऊर्जा शक्तियों का मकान में निर्विघ्न पवेश हो सके। आमने-सामने दो दरवाजे ही रखने से अभीपाय यह है कि आमने-सामने दो से ज्यादा दरवाजे होने पर मकान में पवेश होने वाली सकारात्मक ऊर्जा शक्ति में न्यूनता आती है। चित्र संख्या 1 में निर्देशित उच्च (शुभ) तथा चित्र संख्या 2 में निर्देशित नीच (अशुभ) स्थान पर दरवाजे लगाने से पाप्त होने वाले परिणाम :-

दिशा श्रेणी परिणाम
पूर्व उच्च शुभ, उच्च विचार
पूर्व-ईशान उच्च सर्वश्रेष्ठ, शुभ व सौभाग्यदायक
पूर्व-आग्नेय नीच वैचारिक मतभेद, चोरी, पुत्रों के लिये कष्टकारी
पश्चिम-वायव्य उच्च शुभदायक
पश्चिम-नैऋत नीच आर्थिक स्थिति तथा घर के मुखिया के लिये अशुभ
उत्तर-ईशान उच्च आर्थिक फलदायक, श्रेष्ठ
उत्तर-वायव्य नीच धन हानि, चंचल स्वभाव, तनाव में वृद्धि
दक्षिण-आग्नेय उच्च अर्थ लाभ, स्वास्थदायक
दक्षिण-नैऋत नीच आर्थिक विनाशक, गृहणी की स्थिति कष्टपद
दक्षिण एवं पश्चिम उच्च शुभफलदायक
उत्तर उच्च सुखदायक

वास्तु दोष निवारण के कुछ सरल उपाय—
कभी-कभी दोषों का निवारण वास्तुशास्त्रीय ढंग से करना कठिन हो जाता है। ऐसे में दिनचर्या के कुछ सामान्य नियमों का पालन करते हुए निम्न सरल उपाय कर इनका निवारण किया जा सकता है।
- पूजा घर पूर्व-उत्तर में होना चाहिए तथा पूजा यथासंभव प्रातः 06 से 08 बजे के बीच हो जानी चाहिए।
-पूजा भूमि पर ऊनी आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ कर ही करनी चाहिए।
-पूजा घर के पास उत्तर-पूर्व में सदैव जल का एक कलश भरकर रखना चाहिए। इससे घर में सपन्नता आती है।
-मकान के उत्तर पूर्व कोने को हमेशा खाली रखना चाहिए।
-घर में कहीं भी झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखना चाहिए। उसे पैर नहीं लगना चाहिए, न ही लांघा जाना चाहिए, अन्यथा घर में बरकत और धनागम के स्रोतों में वृद्धि नहीं होगी।
-पूजाघर में तीन गणेशों की पूजा नहीं होनी चाहिए, अन्यथा घर में अशांति उत्पन्न हो सकती है।
-घर में दरवाजे अपने आप खुलने व बंद होने वाले नहीं होने चाहिए। ऐसे दरवाजे अज्ञात भय पैदा करते हैं।
-दरवाजे खोलते तथा बंद करते समय सावधानी बरतें ताकि कर्कश आवाज नहीं हो। इससे घर में कलह होता है।
-खिड़कियां खोलकर रखें, ताकि घर में रोशनी आती रहे।
-घर के मुख्य द्वार पर गणपति को चढ़ाए गए सिंदूर से दायीं तरफ स्वास्तिक बनाएं।
- घर में जूते-चप्पल इधर-उधर बिखरे हुए या उल्टे पड़े हुए नहीं हों, अन्यथा घर में अशांति होगी।
-सामान्य स्थिति में संध्या के समय सोएँ नहीं ।
-रात को सोने से पूर्व कुछ समय अपने इष्टदेव का ध्यान जरूर करें।
-घर में पढ़ने वाले बच्चों का मुंह पूर्व तथा पढ़ाने वाले का उत्तर की ओर होना चाहिए।
-घर के मध्य भाग में जूठे बर्तन साफ करने का स्थान नहीं बनाना चाहिए।
-उत्तर-पूर्वी कोने को वायु प्रवेश हेतु खुला रखें, इससे मन और शरीर में ऊर्जा का संचार होगा।
-अचल संपत्ति की सुरक्षा तथा परिवार की समृद्धि के लिए शौचालय, स्नानागार आदि दक्षिण-पश्चिम के कोने में बनाएं।
-भोजन बनाते समय पहली रोटी अग्निदेव अर्पित करें या गाय खिलाएं, धनागम के स्रोत बढ़ेंगे।
-घर के अहाते में कंटीले या जहरीले पेड़ जैसे बबूल, खेजड़ी आदि नहीं होने चाहिए, अन्यथा असुरक्षा का भय बना रहेगा।
-घर में या घर के बाहर नाली में पानी जमा नहीं रहने दें।
-घर में मकड़ी का जाल नहीं लगने दें, अन्यथा धन की हानि होगी।
 
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